Saturday, February 27, 2010

किससे करें बरजोरी........कैसे खेलें होली ?

होली होली
खेलें होली
रंगों की है
बरजोरी
चलो चलो
सब खेलें होली
आवाज़ ये
आ रही है
दिल को मेरे
दुखा रही है
कैसी होली
कौन सी होली
कौन से रंगों से
करें बरजोरी
कहीं है देखो
रिश्तों के
व्यापार की होली
कहीं है प्यार के
इम्तिहान की होली
कहीं पर देखो
जाति की होली
कहीं है भ्रष्टाचार
की होली
कोई तो फेंके
बमों के गुब्बारे
कहीं पर है
नक्सलिया टोली
लहू का पानी
डाल रहे हैं
नफरतों के
बाज़ार लगे हैं
सियासती चालों की
होली खेल रहे हैं
दाँव पेंच सब
चल रहे हैं
बन्दूक की
पिचकारी बना
निशाना दाग रहे हैं
देश को कैसे
बाँट रहे हैं
ये कैसी होली
खेल रहे हैं
लहू के रंग
बिखेर रहे हैं
केसरिया भी
सिसक रहा है
टेसू के फूलों से
भी जल रहा है
हरियाली भी
रो रही है
अपना दामन
भिगो रही है
अमन शान्ति का
हर रंग उड़ गया है
आसमान भी
बिखर गया है
माँ भी लाचार खडी है
अपनों के खून से
सनी पड़ी है
बेबस निगाहें
तरस रही हैं
जिसके बच्चे
मर रहे हों
आतंक की भेंट
चढ़ रहे हों
जो घात पर घात
सह रही हो
तड़प- तड़प कर
जी रही हो
जिस माँ को
अपने ही बच्चे
टुकड़ों में
बाँट रहे हों
वो माँ बताओ
कैसे खेले होली
जहाँ दिमागों पर
पाला पड़ गया हो
स्पंदन सारे
सूख गए हों
ह्रदयविहीन सब
हो गए हों
अपनों के लहू से
हाथ धो रहे हों
बताओ फिर
कैसे खेलें होली
किसकी होली
कैसी होली
किससे करें
बरजोरी
अब कैसे खेलें होली ?

Friday, February 26, 2010

श्याम संग खेलें होली

कान्हा ओ कान्हा
कहाँ छुपा है श्याम सांवरिया
ढूँढ रही है राधा बावरिया
होली की धूम मची है
तुझको राधा खोज रही है
अबीर गुलाल लिए खडी है
तेरे लिए ही जोगन बनी है
माँ के आँचल में छुपा हुआ है
रंगों से क्यूँ डरा हुआ है
एक बार आ जा रे कन्हाई
तुझे दिखाएं अपनी रंगनायी
सखियाँ सारी ढूँढ रही हैं
रंग मलने को मचल रही हैं
कान्हा ओ कान्हा
कान्हा ओ कान्हा
तुझ बिन होली सूनी पड़ी है
श्याम रंग को तरस रही है
प्रीत का रंग आकर चढ़ा जा
श्याम रंग में सबको भिगो जा
प्रेम रस ऐसे छलका जा
राधा को मोहन बना जा
मोहन बन जाये राधा प्यारी
हिल मिल खेलें सखियाँ सारी
रंगों से सजाएँ मुखमंडल प्यारी
लाल रंग मुख पर लिपटाएँ
देख सुरतिया बलि बलि जायें
श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
श्यामल श्यामल सब हो जाये

श्याम संग खेलें होली

कान्हा ओ कान्हा
कहाँ छुपा है श्याम सांवरिया
ढूँढ रही है राधा बावरिया
होली की धूम मची है
तुझको राधा खोज रही है
अबीर गुलाल लिए खडी है
तेरे लिए ही जोगन बनी है
माँ के आँचल में छुपा हुआ है
रंगों से क्यूँ डरा हुआ है
एक बार आ जा रे कन्हाई
तुझे दिखाएं अपनी रंगनायी
सखियाँ सारी ढूँढ रही हैं
रंग मलने को मचल रही हैं
कान्हा ओ कान्हा
कान्हा ओ कान्हा
तुझ बिन होली सूनी पड़ी है
श्याम रंग को तरस रही है
प्रीत का रंग आकर चढ़ा जा
श्याम रंग में सबको भिगो जा
प्रेम रस ऐसे छलका जा
राधा को मोहन बना जा
मोहन बन जाये राधा प्यारी
हिल मिल खेलें सखियाँ सारी
रंगों से सजाएँ मुखमंडल प्यारी
लाल रंग मुख पर लिपटाएँ
देख सुरतिया बलि बलि जायें
श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
श्यामल श्यामल सब हो जाये

श्याम संग खेलें होली

कान्हा ओ कान्हा
कहाँ छुपा है श्याम सांवरिया
ढूँढ रही है राधा बावरिया
होली की धूम मची है
तुझको राधा खोज रही है
अबीर गुलाल लिए खडी है
तेरे लिए ही जोगन बनी है
माँ के आँचल में छुपा हुआ है
रंगों से क्यूँ डरा हुआ है
एक बार आ जा रे कन्हाई
तुझे दिखाएं अपनी रंगनायी
सखियाँ सारी ढूँढ रही हैं
रंग मलने को मचल रही हैं
कान्हा ओ कान्हा
कान्हा ओ कान्हा
तुझ बिन होली सूनी पड़ी है
श्याम रंग को तरस रही है
प्रीत का रंग आकर चढ़ा जा
श्याम रंग में सबको भिगो जा
प्रेम रस ऐसे छलका जा
राधा को मोहन बना जा
मोहन बन जाये राधा प्यारी
हिल मिल खेलें सखियाँ सारी
रंगों से सजाएँ मुखमंडल प्यारी
लाल रंग मुख पर लिपटाएँ
देख सुरतिया बलि बलि जायें
श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
श्यामल श्यामल सब हो जाये

Thursday, February 25, 2010

कैसे खेलें होरी

तिरछी चितवन
सुर्ख कपोल
भीगे अधर
प्रिये
कैसे प्रवेश करूँ
ह्रदय में
पहरे तुमने
बिठा रखे हैं
चितवन बांकी
बींध रही है
किस रंग से
तुम्हें सजाऊँ
कपोल सुर्ख
किये हुए हैं
कौन से नीर से
तुम्हें भिगाऊं
अधर अमृत का
पान किये हैं
प्रिये
कैसे खेलूँ होरी
तुझ संग कैसे
खेलूँ होरी
प्रिये
एक बार बस
आलिंगनबद्ध
हो जाओ
प्रेम रस में
तुम भीग जाओ
प्रीत मनुहार
के रंगों से
आओ सजनिया
अब खेलें होरी

नखरे वारे सजन

ओ रे सजन, प्यारे सजन
नखरे वारे सजन
फाग का महिना आ गया है
होरी का रंग भा गया है
तन मन ऐसे भीग रहे हैं
प्रेम रस में सींच रहे हैं
यूँ ना करो बरजोरी
गोरी से न करो ठिठोली
बैयाँ ऐसे ना पकड़ो सजना
रंग अबीर मलो मुख पे ना
ऐसे करो ना बरजोरी
नाजुक कलइयां है मोरी
सजना ऐसे मचल रहे हैं
भाँग सुरूर में अटे हुए हैं
लाज शरम सब ताक पर रखकर
गोरी की चुनरिया भिगो रहे हैं
नयनन की मादक चंचलता
फाग को मधुमास किये है
ओ रे सजन , प्यारे सजन
आज तो रंग में आ गए हैं
होरी की मस्ती में झूम रहे हैं
नखरे सारे भूल गए हैं
ओ रे सजन , प्यारे सजन
अब ना रहे ,नखरे वारे सजन

Tuesday, February 23, 2010

कमरों वाला मकान

इस मकान के
कमरों में
बिखरा अस्तित्व
घर नही कहूँगी
घर में कोई
अपना होता है
मगर मकान में
सिर्फ कमरे होते हैं
और उन कमरों में
खुद को
खोजता अस्तित्व
टूट -टूट कर
बिखरता वजूद
कभी किसी
कमरे की
शोभा बनती
दिखावटी मुस्कान
यूँ एक कमरा
जिंदा लाश का था
तो किसी कमरे में
बिस्तर बन जाती
और मन पर
पड़ी सिलवटें
गहरा जाती
यूँ एक कमरा
सिसकती सिलवटों का था
किसी कमरे में
ममता का
सागर लहराता
मगर दामन में
सिर्फ बिखराव आता
यूँ एक कमरा
आँचल में सिसकते
दूध का था
किसी कमरे में
आकांक्षाओं , उम्मीदों
आशाओं की
बलि चढ़ता वजूद
यूँ एक कमरा
फ़र्ज़ की कब्रगाह का था
कभी रोटियों में ढलता
कभी बर्तनों में मंजता
कभी कपड़ों में सिमटता
तो कभी झाड़ू में बिखरता
कभी नेह के दिखावटी
मेह में भीगता
कभी अपशब्दों की
मार सहता
हर तरफ
हर कोने में
टुकड़े - टुकड़े
बिखरे अस्तित्व
को घर कब
मिला करते हैं
ऐसे अस्तित्व तो
सिर्फ कमरों में ही
सिमटा करते हैं.

Saturday, February 20, 2010

आईने कैसे- कैसे

आईना ना देखो यारों
अक्स से बू आती है
आईने में क़ैद अक्स से
खुद को मिलाओ तो ज़रा
गर खुद को पहचान लो तो
आईना खामोश हो जाये


हर आईना अपना सा
नज़र आता है
क्या करूँ महबूब मेरे
हर आईने में
तेरा ही चेहरा
नज़र आता है



मुझे आईना दिखाने वाले
कभी उस आईने में
झाँका होता
तो तेरा अक्स भी
धुंधला गया होता



नकाब चाहे जितना
ड़ाल लो रुखसार पर
आईना सब सच
दिखा देता है