Tuesday, March 30, 2010

ये किस मोड़ पर ?

निशि की सुन्दरता पर मुग्ध होकर ही तो राजीव और उसके घरवालों ने पहली बार में ही हाँ कह दी थी . दोनों की एक भरपूर , खुशहाल गृहस्थी थी . राजीव का अपना व्यवसाय था और निशि को लाड-प्यार करने वाला परिवार मिला. एक औरत को और क्या चाहिए . प्यार करने वाला पति और साथ देने वाला परिवार. वक़्त के साथ उनके दो बच्चे हुए . चारों तरफ खुशहाल माहौल . कहीं कोई कमी नहीं . वक़्त के साथ बच्चे भी बड़े होने लगे और परिवार के सदस्य भी काम के सिलसिले में दूर चले गए . अब सिर्फ निशि अपने पति और बच्चों के साथ घर में रहती . धीरे- धीरे राजीव का व्यवसाय भी काफी बढ़ गया और वो उसमें व्यस्त रहने लगा. निशि के ऊपर गृहस्थी की पूरी जिम्मेदारी छोड़ राजीव ने अपना सारा ध्यान व्यापार की तरफ केन्द्रित कर लिया . इधर बच्चे भी अब कॉलेज जाने लगे थे तो ऐसे में निशि के पास कोई खास काम भी ना होता और सारा दिन काटने को दौड़ता. उसे समझ नही आता कि वो सारा दिन क्या करे, एक दिन उसके बेटे ने ही उसे बताया की नेट पर चैट किया करो तो आपका मन लगा रहेगा और वक़्त का पता भी नही चलेगा . उसके बेटे ने उसे सब कुछ सिखा दिया . अब तो निशि को दिन कहाँ गुजरा ,पता ही ना चलता . धीरे -धीरे अपने नेट दोस्तों के माध्यम से उसने और भी कई साईट ज्वाइन कर लीं अब तो इस आभासी दुनिया में उसे कई दोस्त मिल गए . नए -नए लोगों से बातें करना उसे अच्छा लगने लगा .
निशि जब भी कंप्यूटर पर चैट करने बैठती उसे देखते ही ना जाने कितने मजनुनुमा भँवरे आ जाते उससे बात करने क्यूंकि वो थी ही इतनी खूबसूरत कि यदि कोई उसे एक बार देख ले तो बात करने को उतावला हो जाता. खुदा ने बड़ी फुरसत में उसे बनाया था . हर अंग जैसे किसी शिल्पकार ने नफासत से गढा हो . शोख चंचल आँखें यूँ लगती जैसे अभी बोलेंगी. लबों की मुस्कान तो देखने वाले का दिल चीर देती थी. उस पर संगमरमरी दूधिया रंग और गुलाबी गालों पर एक छोटा सा काला तिल ऐसा लगता जैसे भगवान ने नज़र का टीका साथ ही लगाकर भेजा हो. ऐसी रूप -लावण्य की राशि पर कौन ना मर मिटे और ऐसे रूप -रंग पर किसे ना नाज़ हो. ऐसा ही हाल निशि का था. जब भी कोई उसकी तारीफ करता , उसके सौंदर्य का गुणगान करता तो वो इठला जाती उसका अहम् संतुष्ट होता. उसे अपने सौंदर्य की प्रशंसा सुनना अच्छा लगता और उम्र के इस पड़ाव पर भी वो किसी भी नज़रिए से इतने बड़े बच्चों की माँ नही लगती थी ऐसे में प्रशंसा के मीठे बोल तो सोने पर सुहागा थे और कंप्यूटर की आभासी दुनिया तो शायद इस काम में माहिर है ही . ......................
क्रमशः ...................

ये किस मोड़ पर ?

निशि की सुन्दरता पर मुग्ध होकर ही तो राजीव और उसके घरवालों ने पहली बार में ही हाँ कह दी थी . दोनों की एक भरपूर , खुशहाल गृहस्थी थी . राजीव का अपना व्यवसाय था और निशि को लाड-प्यार करने वाला परिवार मिला. एक औरत को और क्या चाहिए . प्यार करने वाला पति और साथ देने वाला परिवार. वक़्त के साथ उनके दो बच्चे हुए . चारों तरफ खुशहाल माहौल . कहीं कोई कमी नहीं . वक़्त के साथ बच्चे भी बड़े होने लगे और परिवार के सदस्य भी काम के सिलसिले में दूर चले गए . अब सिर्फ निशि अपने पति और बच्चों के साथ घर में रहती . धीरे- धीरे राजीव का व्यवसाय भी काफी बढ़ गया और वो उसमें व्यस्त रहने लगा. निशि के ऊपर गृहस्थी की पूरी जिम्मेदारी छोड़ राजीव ने अपना सारा ध्यान व्यापार की तरफ केन्द्रित कर लिया . इधर बच्चे भी अब कॉलेज जाने लगे थे तो ऐसे में निशि के पास कोई खास काम भी ना होता और सारा दिन काटने को दौड़ता. उसे समझ नही आता कि वो सारा दिन क्या करे, एक दिन उसके बेटे ने ही उसे बताया की नेट पर चैट किया करो तो आपका मन लगा रहेगा और वक़्त का पता भी नही चलेगा . उसके बेटे ने उसे सब कुछ सिखा दिया . अब तो निशि को दिन कहाँ गुजरा ,पता ही ना चलता . धीरे -धीरे अपने नेट दोस्तों के माध्यम से उसने और भी कई साईट ज्वाइन कर लीं अब तो इस आभासी दुनिया में उसे कई दोस्त मिल गए . नए -नए लोगों से बातें करना उसे अच्छा लगने लगा .
निशि जब भी कंप्यूटर पर चैट करने बैठती उसे देखते ही ना जाने कितने मजनुनुमा भँवरे आ जाते उससे बात करने क्यूंकि वो थी ही इतनी खूबसूरत कि यदि कोई उसे एक बार देख ले तो बात करने को उतावला हो जाता. खुदा ने बड़ी फुरसत में उसे बनाया था . हर अंग जैसे किसी शिल्पकार ने नफासत से गढा हो . शोख चंचल आँखें यूँ लगती जैसे अभी बोलेंगी. लबों की मुस्कान तो देखने वाले का दिल चीर देती थी. उस पर संगमरमरी दूधिया रंग और गुलाबी गालों पर एक छोटा सा काला तिल ऐसा लगता जैसे भगवान ने नज़र का टीका साथ ही लगाकर भेजा हो. ऐसी रूप -लावण्य की राशि पर कौन ना मर मिटे और ऐसे रूप -रंग पर किसे ना नाज़ हो. ऐसा ही हाल निशि का था. जब भी कोई उसकी तारीफ करता , उसके सौंदर्य का गुणगान करता तो वो इठला जाती उसका अहम् संतुष्ट होता. उसे अपने सौंदर्य की प्रशंसा सुनना अच्छा लगता और उम्र के इस पड़ाव पर भी वो किसी भी नज़रिए से इतने बड़े बच्चों की माँ नही लगती थी ऐसे में प्रशंसा के मीठे बोल तो सोने पर सुहागा थे और कंप्यूटर की आभासी दुनिया तो शायद इस काम में माहिर है ही . ......................
क्रमशः ...................

Thursday, March 25, 2010

क्षणिकाएं

आज तो 
चाँदनी भी 
जल रही है
चाँद के 
आगोश को 
तड़प रही है
मोहब्बत के
दंश झेल रही है
फिर भी
उफ़ ना कर रही है 

हर कश पर 
ख़त्म होती 
धुंआ बन 
उडती ज़िन्दगी 
गली के 
एक छोर पर
खडी
खामोश ज़िन्दगी
फिर भी
दूसरे छोर तक 
ना पहुँच 
पाती ज़िन्दगी 

ख्वाब सा 
आया और 
चला गया
ना जाने 
कितने 
मोहब्बत के 
ज़ख्म दे गया
तेरा आना 
और चला जाना
जैसे ज़िन्दगी
मौत से लड़
रही हो 
और फिर 
मौत जीत 
गयी हो

देखा
मिलन हुआ ना
मैंने कहा था 
हम मिलेंगे
एक दिन 
और आज 
वो दिन था
जब तुम और मैं
रु-ब-रु हुए 
तुम मेरे 
साथ थे 
हाथों में 
हाथ थे
देखा 
मिलन ऐसे
भी होता है
ख्वाब में 

प्यार को ताकत बना
कमजोरी  नहीं 
प्यार को खुदा बना
मजबूरी नहीं

अस्पष्ट तस्वीरें
गडमड होते शब्द 
बिखरते ख्वाब
अव्यवस्थित जीवन 
इंसानी वजूद का 
मानचित्र

Wednesday, March 24, 2010

Tuesday, March 23, 2010

मैं हिन्दुस्तानी हूँ

मै हिन्दुस्तानी हूँ 
 मजहब की दीवार 
कभी गिरा नहीं पाया 
किसी गिरते को 
कभी उठा नहीं पाया
नफरतों के बीज 
पीढ़ियों में डालकर 
इंसानियत का दावा 
करने वाला 
मैं हिन्दुस्तानी हूँ

भाषा को अपना 
मजहब बनाया
देश को फिर भाषा की 
सूली पर टँगाया
अपने स्वार्थ की खातिर
भाषा का राग गाया
कुर्सी की भेंट मैंने
लोगों का जीवन चढ़ाया
क्षेत्रवाद  की फसल उगाकर
इंसानियत का दावा 
करने वाला 
मैं हिन्दुस्तानी हूँ

जातिवाद की भेंट चढ़ाया
लहू को लहू से लडवाया
गाजर -मूली सा कटवाया
फिर भी कभी सुकून ना पाया
नफरत की आग सुलगाकर
अमन का दावा करने वाला
मैं हिन्दुस्तानी हूँ


शहीदों के बलिदान को 
हमने भुलाया
कुछ ऐसे फ़र्ज़ अपना
हमने निभाया
फ़र्ज़ का, बलिदान का,
देशभक्ति का पाठ
सिर्फ दूसरों को समझाया
आतंक को पनाह देने वाला 
शहीदों के बलिदान को
अँगूठा दिखाने वाला 
मैं हिन्दुस्तानी हूँ
हाँ, मैं सच्चा हिन्दुस्तानी हूँ
 

Monday, March 22, 2010

शक्ति का वंदन

शक्ति का
पूजन , अर्चन 
वंदन,श्रृंगार
किया तुमने 
मगर साथ ही
शक्ति का
उपहास, परिहास
खण्डन, मर्दन 
ह्रास ,त्रास 
 और तर्पण भी
किया तुमने
फिर कैसे 
शक्ति के 
उपासक बनते हो
जब शक्ति को ही
शक्ति सा ही 
ना वंदन 
करते  हो
पहले शक्ति का 
महिमामंडन करो
शक्ति का 
अवलंबन बनो
शक्ति का पथ
आलोकित करो
शक्ति का 
संचार करो
शक्ति का 
आवाहन करो
शक्ति को 
नव जीवन दो 
फिर शक्ति स्वयं
बंध जाएगी 
तुम्हारे पूजन ,अर्चन
वंदन, श्रृंगार 
स्वीकार कर पायेगी
शक्ति की शक्ति 
तुम्हें मिल जाएगी 

शक्ति का वंदन

शक्ति का
पूजन , अर्चन 
वंदन,श्रृंगार
किया तुमने 
मगर साथ ही
शक्ति का
उपहास, परिहास
खण्डन, मर्दन 
ह्रास ,त्रास 
 और तर्पण भी
किया तुमने
फिर कैसे 
शक्ति के 
उपासक बनते हो
जब शक्ति को ही
शक्ति सा ही 
ना वंदन 
करते  हो
पहले शक्ति का 
महिमामंडन करो
शक्ति का 
अवलंबन बनो
शक्ति का पथ
आलोकित करो
शक्ति का 
संचार करो
शक्ति का 
आवाहन करो
शक्ति को 
नव जीवन दो 
फिर शक्ति स्वयं
बंध जाएगी 
तुम्हारे पूजन ,अर्चन
वंदन, श्रृंगार 
स्वीकार कर पायेगी
शक्ति की शक्ति 
तुम्हें मिल जाएगी 

शक्ति का वंदन

शक्ति का
पूजन , अर्चन 
वंदन,श्रृंगार
किया तुमने 
मगर साथ ही
शक्ति का
उपहास, परिहास
खण्डन, मर्दन 
ह्रास ,त्रास 
 और तर्पण भी
किया तुमने
फिर कैसे 
शक्ति के 
उपासक बनते हो
जब शक्ति को ही
शक्ति सा ही 
ना वंदन 
करते  हो
पहले शक्ति का 
महिमामंडन करो
शक्ति का 
अवलंबन बनो
शक्ति का पथ
आलोकित करो
शक्ति का 
संचार करो
शक्ति का 
आवाहन करो
शक्ति को 
नव जीवन दो 
फिर शक्ति स्वयं
बंध जाएगी 
तुम्हारे पूजन ,अर्चन
वंदन, श्रृंगार 
स्वीकार कर पायेगी
शक्ति की शक्ति 
तुम्हें मिल जाएगी 

Saturday, March 20, 2010

गर प्यार से छू ले

आज भी 
सिहर जाए 
रोम रोम
गर तू
प्यार से 
छू ले मुझे
आज भी
डूब जाऊँ 
नैनों की 
मदिरा में
 गर तू
नज़र भर 
देख ले मुझे
आज भी 
बंध  जाऊँ
बाहुपाश में तेरे
 गर तू
स्नेहमय निमंत्रण दे 
उर स्पन्दनहीन
नहीं है
बस नेह जल के 
अभाव में
बंजर हो गया है

Thursday, March 18, 2010

ॐ जय ब्लोग्वानी

ॐ जय ब्लोग्वानी 
प्रभु जय ब्लोग्वानी
जो कोई तुमको ध्याता
हॉट में स्थान पाता 
ॐ जय ब्लोग्वानी .........

घर , परिवार , नौकरी 
सब दॉव पर लगा देता 
 खाना, पीना ,सोना 
ब्लॉगर सब भूल जाता 
उलटी सीढ़ी टिप्पणियाँ करके 
बस टी आर पी में सबसे 
ऊपर आना चाहता 
ॐ जय ब्लोग्वानी ..........

ब्लॉगिंग के सारे गुण अपनाता
किसी को रिश्तेदार बनाता 
किसी से दुश्मनी मोल लेता
उलटे सीधे करम ये करता 
विवादास्पद लेख लिखकर
पोस्ट को ऊपर रखना चाहता
ब्लोग्वानी प्रभु के चरण कमलों 
में  स्थान पाने को
अकृत्य कृत्य भी कर जाता
ॐ जय ब्लोग्वानी ..................

टिप्पणियों के अभाव में तो
अच्छी पोस्टों का 
दीवाला ही निकल जाता
बेकार पोस्टों का ही 
यहाँ तो दबदबा बन जाता
हॉट के चक्रव्यूह में फंसकर 
नॉट में अटक जाता 
बेचारा ब्लॉगर हॉट में 
स्थान पाने को तरस जाता
जुगाडू ब्लॉगर ही यहाँ
हॉट में कई कई दिन 
स्थान पाता 
ॐ जय ब्लोग्वानी ..........

ब्लोग्वानी प्रभु चमत्कार कर दो 
दीन दुखी ब्लोगरों की 
झोली भी भर दो 
हॉट के दर्शन करा दो
मनोकामना पूर्ण कर दो
जो कोई तुमको ध्याता 
मन वांछित फल पाता
ॐ जय ब्लोग्वानी ...............

इक तेरे बिना इनका कोऊ नाहीं.................

दोस्तों,

ये सिर्फ एक  स्वस्थ हास्य है .......काफी दिनों से काफी लोगों को इसी वजह से रोते बिलखते देख रही थी तो सोचा उन सबकी तरफ से थोड़ी सी प्रार्थना ब्लोग्वानी से कर दी जाए.

  

Tuesday, March 16, 2010

तेरे पास

सुन 
तेरे चेहरे पर 
गुलाब सी खिली 
मधुर स्मित 
नज़र आती है मुझे
जब तू दूर -बहुत दूर
निंदिया के आगोश में
स्वप्नों के आरामगाह में
विचरण कर रहा होता है
तेरे सीने के मचलते ज्वार 
यहीं भिगो जाते हैं मुझे 
मेरे तड़पते जज्बातों को 
तेरी बेखुदी में
महकते ख्याल 
तेरे अहसासों की
 लोरियां सुना 
जाते हैं मुझे
तेरी धड़कन की 
हर आवाज़ सुना 
करती हूँ
तेरे हर पैगाम को
पढ़ा करती हूँ
और मैं यहीं 
तुझसे दूर होकर भी
तेरे पास होती हूँ

Saturday, March 13, 2010

कोई तो जगे

अँधा हूँ मगर
आँख वालों को
आईना बेचता हूँ
शायद अपना अक्स
नज़र आ जाये
किसी को

गूंगा हूँ मगर
जुबान वालों को
शब्द बेचता हूँ
शायद कोई जुबाँ
के ताले खोले
कोई तो सत्य
की चादर ओढ़े

बहरा हूँ मगर
कान वालों को
गीत सुनाता हूँ
शायद सुनकर
किसी का तो
खुदा जगे
कोई तो वक़्त की
आवाज़ सुने

फेरों का फेर

ये फेरे जन्म मरण के
लगाये तू जा रहा है
कोल्हू के बैल सा
चलता ही जा रहा है
कभी उनकी गली के फेरे
कभी मंडप के हैं फेरे
बस फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
कहीं रुसवाइयों के डेरे
कभी डॉक्टर है घेरे
कहीं मंदिर के हैं फेरे
इन फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
इक पल घुमा ले वापस
ज़रा ज़िन्दगी की पिक्चर
क्या खोया क्या पाया
इन फेरों के चक्कर में
पशुओं सा जीवन बस
बिता के जा रहा है
इन फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
कुछ पल तू ठहर जा
और आत्मज्योति जगा ले
किस मुख से जायेगा
कैसे नज़र मिलाएगा
कुछ अपने लिए भी कर ले
कुछ तो सुकून पा ले

अब फेरों के फेर से
मुक्त हो जा ओ प्यारे
कट जायेंगे सब तेरे
ये जन्म मरण के फेरे


फेरों का फेर

ये फेरे जन्म मरण के
लगाये तू जा रहा है
कोल्हू के बैल सा
चलता ही जा रहा है
कभी उनकी गली के फेरे
कभी मंडप के हैं फेरे
बस फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
कहीं रुसवाइयों के डेरे
कभी डॉक्टर है घेरे
कहीं मंदिर के हैं फेरे
इन फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
इक पल घुमा ले वापस
ज़रा ज़िन्दगी की पिक्चर
क्या खोया क्या पाया
इन फेरों के चक्कर में
पशुओं सा जीवन बस
बिता के जा रहा है
इन फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
कुछ पल तू ठहर जा
और आत्मज्योति जगा ले
किस मुख से जायेगा
कैसे नज़र मिलाएगा
कुछ अपने लिए भी कर ले
कुछ तो सुकून पा ले

अब फेरों के फेर से
मुक्त हो जा ओ प्यारे
कट जायेंगे सब तेरे
ये जन्म मरण के फेरे


फेरों का फेर

ये फेरे जन्म मरण के
लगाये तू जा रहा है
कोल्हू के बैल सा
चलता ही जा रहा है
कभी उनकी गली के फेरे
कभी मंडप के हैं फेरे
बस फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
कहीं रुसवाइयों के डेरे
कभी डॉक्टर है घेरे
कहीं मंदिर के हैं फेरे
इन फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
इक पल घुमा ले वापस
ज़रा ज़िन्दगी की पिक्चर
क्या खोया क्या पाया
इन फेरों के चक्कर में
पशुओं सा जीवन बस
बिता के जा रहा है
इन फेरों के फेर में
फिरता ही जा रहा है
कुछ पल तू ठहर जा
और आत्मज्योति जगा ले
किस मुख से जायेगा
कैसे नज़र मिलाएगा
कुछ अपने लिए भी कर ले
कुछ तो सुकून पा ले

अब फेरों के फेर से
मुक्त हो जा ओ प्यारे
कट जायेंगे सब तेरे
ये जन्म मरण के फेरे


Thursday, March 11, 2010

ओह गौड़

Wednesday, March 10, 2010

अब तो आ जा .......

आ जा
अब तो
एक बार
तड़प की
हर हद
पार हो चुकी है
बिन आंसू के
रोती हूँ
तुझ बिन
कैसे जीती हूँ
जानता है
तू भी
मगर फिर भी
मुझे तड़पाकर
कितना सुकून
तुझे मिलता होगा
ये पता है मुझे
अहसास सिर्फ
अहसास होते हैं
उनका नाम
नहीं होता ना
इसीलिए
तुझे अहसास
नाम दिया
और तूने
उसे सार्थक
कर दिया
अहसास बनकर
आया ज़िन्दगी में
अहसास सा
वजूद पर
छा गया
उस अहसास
की तड़प
तडपाती है
जो नही
कहना चाहती
वो भी
कह जाती है
अब तो आ जा
यार मेरे
अहसास का भी
अहसास अब तो
तड़पाता है
मत इम्तिहान ले
मेरे अहसास का
कहीं आज
धडकनें रुक
ना जायें
तेरे दीदार की
हसरत लिए
ना दफ़न
हो जायें
अब तो
आ जा
एक बार
बस एक बार.........

Monday, March 8, 2010

कचोट

बरसों साथ रहकर भी
तेरा मेरा अनजाना रिश्ता
देह की दहलीज पर ही
क्यूँ सिमट गया
मन के आँगन तक की राह
कोई मुश्किल तो ना थी
मौन का शून्य ही
अस्तित्व को बाँटता रहा
प्रगाढ़ स्नेह के बंधन को
कम आँकता रहा
अर्धांगिनी शब्द को
खूँटी पर टाँकता रहा
अर्ध अंग के महत्त्व
को नकारता रहा
शब्द को सिर्फ
शब्द ही रहने दिया
कभी शब्द को
अंतस में ना
उतार पाया
शायद इसीलिए
साथ रहकर भी
अनजान रहे
मन के बंधन
में ना बँधे
देह के रिश्ते
देह पर ही
बिखर गए

Sunday, March 7, 2010

टूटे टुकड़े

१) सुनो
कुछ ख्वाब बोये थे
तुम्हारे साथ जीने के

बंजर ज़मीन में


२) वेदनाओं के ताबूत में
आखिरी कील जो
लगायी तुमने

रूह को सुकून आ गया


३) तेरी चाहत की
बैसाखियों ने
अपाहिज बनाया मुझे

बस लाश बनना बाकी है


४) कैसे समेटेगा
इन बिखरे टुकड़ों को
जिन्हें कभी
तू ने ही ....................


५) बिन बादल बरसती हूँ
बिन आंसू के रोती हूँ

कहीं सैलाब में बह ना जाऊं


६) दस्तक कोई देता ही नही
आवाज़ कोई आती ही नही

शायद हवाओं का रुख बदल रहा है

Friday, March 5, 2010

नारी को नारी रहने दो

वो तो सीता ही थी
वो तो लक्ष्मी ही थी
त्याग , तपस्या
प्रेम समर्पण की
बेड़ियों में जकड़ी ही थी
अपने अरमानो की राख
ओढ़ पड़ी ही थी
फिर क्यूँ तुमने मजबूर किया
सीता से मेडोना बनने को
क्यूँ तुमको बाहर ही
उर्वशी रम्भा दिखाई देती थीं
जब तुमने मजबूर किया
उसने आगे कदम बढाया था
तुम्हारे दिखाए रास्ते
को ही अपनाया था
फिर क्यूँ आज हर गली
हर चौराहे, हर मोड़ पर
बातों के दंश लगाते हो
अपने झूठे दंभ की खातिर
क्यूँ नारी को प्रताड़ित करते हो
रूप सौंदर्य के पिपासुक तुम
क्यूँ मानसिक बलात्कार करते हो
सिर्फ अपना वर्चस्व कायम रहे
इसलिए मानसिक प्रताड़ना देते हो
सिर्फ एक दिन नारी का
सम्मान सह नहीं पाते हो
फिर कैसे तुम नारी को दुर्गा कहते हो
नारी पूजा का राग अलापते हो
खुद ही नारी को शोषित करते हो
दोहरे मानदंडों में जीने वाले
पुरुष तुम
क्यूँ अपनी हार से डरते हो
अपने अहम् की खातिर तुम
नारी की अवहेलना करते हो
तेरी जननी है वो
कैसे खुद से तुलना करते हो
वो तो आज भी सावित्री ही है
क्यूँ अपना नज़रिया नही बदलते हो
नारी की आवृत्ति को
नारित्त्व में ही रहने दो
अपने पुरुषत्व की छाँव
में ना जकड़ने दो
उसे जीने दो और आगे बढ़ने दो
बस नारी को नारी रहने दो

Thursday, March 4, 2010

तेरी ख़ामोशी

तेरी ख़ामोशी
जब बातें करती है
मुझसे
बस वहीं धडकनें
रूक जाती हैं
जो तुझसे
नहीं कह पातीं
वो अफसाने
मेरे कानो में
बयां कर जाती हैं
कभी तेरा
तितलियों सा
उड़ना
कभी तूफ़ान सा
मचलना
कभी खग सदृश
आकाश में उड़ना
कभी यादों के
कटहरे में
सजायाफ्ता
मुजरिम सा
खामोश ठहर जाना
कभी मेघों सा
गरजना
कभी वेणी में गुंथे
पुष्पों सा महकना
और फिर कभी- कभी
कांच की तरह टूटे
ख्वाबों सा तेरा टूटना
कभी किसी
रुके दरिया सा
ख़ामोशी का सन्नाटा
कभी आँख से गिरे
अश्क सा मिटटी
में मिल जाना
तेरे हर पल
हर लम्हे की
दास्ताँ सुना जाती हैं
तेरी ख़ामोशी मुझे
बता फिर कैसे
कोई जिंदा रहे
और धडकनों की
आवाज़ सुने

Monday, March 1, 2010

मुर्गा कटता रहता है

चल पागल
मोहब्बत करनी
भी नहीं आती
झूठे वादे करके
कोई वादा पूरा
न करना
जन्मों के इंतज़ार
की बातें करके
इस जन्म में भी
इंतज़ार न करना
मुरझाये गुल को भी
गुलाब बता देना
खाली पास- बुक को
अम्बानी की बता देना
उधार की गाड़ी को
अपना बना लेना
ये है आज का चलन
और तू है पागल
मोहब्बत के नाम पर
कुर्बान हुआ जाता है
जान हलाल किये जाता है
आँसू बहाए जाता है
वफ़ाओं की दुहाई
दिए जाता है
यहाँ किसी को
दर्द नही होता
यहाँ कोई
किसी के लिए
नहीं मरता है
आज तू , कल
कोई और सही
बस इसी तर्ज़ पर
मुर्गा कटता रहता है