Tuesday, August 31, 2010

नई सुबह ---------भाग २

तब माधव बोला ,"सर , मैं आपका आभारी हूँ कि आपने मुझ जैसे भिखारी का शहर के इतने बड़े अस्पताल में इलाज करवाया. मेरे जैसे इंसान तो ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोच सकते. अब आप अपने बारे में कुछ बताइए ताकि मैं आपका परिचय जान सकूँ "
 अब आगे .........

ये सुनकर गाडी वाला मंद - मंद मुस्कान के साथ बोला , " माधव गलती मेरे ड्राईवर की थी और इस दुनिया में किसी को भी किसी की जान लेने का कोई हक़ नहीं है . जब नौकर गलती करे तो उसका जिम्मेदार उसका मालिक होता है . इसलिए अपने ड्राईवर की गलती के लिए , ये जो मैंने किया , उससे भी उस गलती की भरपाई नहीं हो सकती क्योंकि जो दुःख तकलीफ तुमने सही और तुम्हारा जो इतना लहू बहा क्या उसका इस संसार में कोई मोल है . हर इंसान को उतना ही दर्द होता है  जितना खुद को लगने पर होता है  . मैं तो अपने ड्राईवर के इस कृत्य पर शर्मिंदा हूँ और तुमसे इस भूल की क्षमा मांगने का भी अख्तियार नहीं रखता बल्कि ये चाहता हूँ कि तुम मुझे इसके लिए कोई सजा दो ".

बस इतना सुनते ही माधव तो जैसे  भाव-विभोर हो गया . उसके जैसे कवि ह्रदय वाला व्यक्ति कहाँ इतनी विनम्रता सहन कर पाता. माधव की आँखें छलक  आई थीं ये सोचकर कि आज के ज़माने में भी ऐसे इन्सान हैं. इसका मतलब इंसानियत अभी मरी नहीं शायद ऐसे इंसानों  के कारण ही पृथ्वी टिकी हुई है. 

फिर माधव  बोला , "सर ये आपकी महानता है वरना तो लोग टक्कर मार कर रोंदते हुए गाड़ी भगा कर ले जाते हैं . एक पल ठहरते भी नहीं ये जानने के लिए कि जिसे टक्कर मारी  है वो जिंदा भी बचा या मर गया और एक आप हैं जिनकी खुद की कोई गलती नहीं  बल्कि ड्राईवर  से गलती हुई उसके लिए भी मुझसे माफ़ी मांग रहे हैं ............आप जैसे लोग इस दुनिया में ऊँगली पर गिने जाने लायक ही होंगे. मैं आपकी विनम्रता , कृतज्ञता और महानता के आगे नतमस्तक हूँ. मुझे आपसे या आपके ड्राईवर से किसी प्रकार की कोई शिकायत नहीं है. आज मेरे सामने इस एक्सिडेंट के कारण ज़िन्दगी का एक नया पहलू सामने आया है." 

इतना कहकर माधव ने गाडी वाले से जाने की आज्ञा मांगी मगर गाडी वाला तो अब तक हाथ जोड़े और सिर झुकाए आँखों से अविरल धारा बहाता हुआ उसके आगे खड़ा था. ये देखकर तो माधव के होश उड़ गए. उसे समझ नहीं  आ रहा था कि वो किसी इन्सान को देख रहा है या साक्षात् भगवान उसके रूप में पृथ्वी पर अवतरित हो गए हैं क्योंकि आज के हालात में जब इन्सान ही इन्सान का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है उसमे किसी इन्सान को इस स्थिति में देखना तो ऐसा ही लगेगा कि जैसे या तो भगवान आ गए हैं या फिर वो कोई सपना ही देख रहा है , असल ज़िन्दगी में तो ऐसा संभव ही नहीं,फिर भी ये एक जीती -जागती हकीकत उसके सामने खडी थी . माधव की जुबान पर शब्द आकर रुके जा रहे थे और वाणी गदगद हो गयी थी . 

कुछ देर में खुद को संयत करके माधव गाड़ी वाले के पैरों पर गिर पड़ा और बोला , " सर आप मुझसे बड़े हैं मेरे पिता के समान हैं और इस तरह हाथ जोड़े खड़े हैं ----मैं शर्मिंदा हो रहा हूँ ,आप ऐसा मत करिए". 
जब गाड़ी वाले ने माधव को अपने पैरों पर गिरे देखा तो वो खुद को और लज्जित महसूस करने लगा . उसने माधव को उठाया और गले से लगा लिया . 
गाडी वाला बोला , " बेटा मैं इस ग्लानि के कारण खुद को मूँह दिखाने के काबिल नहीं और तुम मुझे और शर्मिंदा कर रहे हो ".

तब माधव बोला ,"सर, बस अब और नहीं . आपको जो कहना था और करना था आप कर चुके हैं . अगर आपको इतना ही ये बात परशान किये जा रही है तो सिर्फ इतना बता दीजिये कि आप हैं कौन? आपका परिचय ही आपका प्रायश्चित होगा".

तब गाड़ी वाला बोला , " मैं इस शहर में एक अख़बार जन -जागरण का मालिक हर्षवर्धन हूँ ".
इतना सुनते ही माधव तो अचम्भित हो गया . वो तो सोच भी नहीं सकता था कि इतना बड़ा इन्सान आज उसके सामने इस तरह खड़ा है. माधव तो खुद को कृतज्ञ समझने लगा. अब माधव ने हर्षमोहन  से जाने की इजाजत मांगी तो उन्होंने मना कर दिया और कहा कि तुम मेरे साथ मेरे घर चलोगे और जब तक पूरी तरह ठीक नहीं हो जाते तब तक आराम करोगे. माधव की तो जुबान ही तालू से चिपक गयी थी . वो चुप खड़ा रहा .तब हर्षमोहन माधव का हाथ पकड़कर उसे अपनी गाडी में बैठाकर घर ले गए. 
हर्षमोहन का घर  था या  एक राजमहल था . कितने नौकर- चाकर थे कोई गिनती नहीं . रात को भी घर ऐसा लगता जैसे दिन निकला हो. माधव खुद में सिमटता जा रहा था. उसने तो कभी सपने में भी ऐसा भव्य दृश्य नहीं देखा था. हर्षमोहन ने नौकरों से कहकर माधव के रहने और उसकी देखभाल का खास इंतजाम करवाया. भला ऐसे जन्नत जैसे माहौल में कोई कितने दिन बीमार रह सकता था सो ४-५ दिन में ही माधव भला -चंगा हो गया और फिर एक दिन उसने हर्षमोहन से जाने की इजाजत मांगी .

तब हर्षमोहन ने कहा ,"मुझे तुमसे जरूरी बात करनी है इसलिए अभी तुम नहीं जा सकते. बस शाम को आकर तुमसे बात करता हूँ . अभी आज एक जरूरी मीटिंग है वो निपटाकर आ जाऊं ". 
माधव के पास रुकने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं था..................

क्रमशः ......................

नई सुबह ---------भाग २

तब माधव बोला ,"सर , मैं आपका आभारी हूँ कि आपने मुझ जैसे भिखारी का शहर के इतने बड़े अस्पताल में इलाज करवाया. मेरे जैसे इंसान तो ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोच सकते. अब आप अपने बारे में कुछ बताइए ताकि मैं आपका परिचय जान सकूँ "
 अब आगे .........

ये सुनकर गाडी वाला मंद - मंद मुस्कान के साथ बोला , " माधव गलती मेरे ड्राईवर की थी और इस दुनिया में किसी को भी किसी की जान लेने का कोई हक़ नहीं है . जब नौकर गलती करे तो उसका जिम्मेदार उसका मालिक होता है . इसलिए अपने ड्राईवर की गलती के लिए , ये जो मैंने किया , उससे भी उस गलती की भरपाई नहीं हो सकती क्योंकि जो दुःख तकलीफ तुमने सही और तुम्हारा जो इतना लहू बहा क्या उसका इस संसार में कोई मोल है . हर इंसान को उतना ही दर्द होता है  जितना खुद को लगने पर होता है  . मैं तो अपने ड्राईवर के इस कृत्य पर शर्मिंदा हूँ और तुमसे इस भूल की क्षमा मांगने का भी अख्तियार नहीं रखता बल्कि ये चाहता हूँ कि तुम मुझे इसके लिए कोई सजा दो ".

बस इतना सुनते ही माधव तो जैसे  भाव-विभोर हो गया . उसके जैसे कवि ह्रदय वाला व्यक्ति कहाँ इतनी विनम्रता सहन कर पाता. माधव की आँखें छलक  आई थीं ये सोचकर कि आज के ज़माने में भी ऐसे इन्सान हैं. इसका मतलब इंसानियत अभी मरी नहीं शायद ऐसे इंसानों  के कारण ही पृथ्वी टिकी हुई है. 

फिर माधव  बोला , "सर ये आपकी महानता है वरना तो लोग टक्कर मार कर रोंदते हुए गाड़ी भगा कर ले जाते हैं . एक पल ठहरते भी नहीं ये जानने के लिए कि जिसे टक्कर मारी  है वो जिंदा भी बचा या मर गया और एक आप हैं जिनकी खुद की कोई गलती नहीं  बल्कि ड्राईवर  से गलती हुई उसके लिए भी मुझसे माफ़ी मांग रहे हैं ............आप जैसे लोग इस दुनिया में ऊँगली पर गिने जाने लायक ही होंगे. मैं आपकी विनम्रता , कृतज्ञता और महानता के आगे नतमस्तक हूँ. मुझे आपसे या आपके ड्राईवर से किसी प्रकार की कोई शिकायत नहीं है. आज मेरे सामने इस एक्सिडेंट के कारण ज़िन्दगी का एक नया पहलू सामने आया है." 

इतना कहकर माधव ने गाडी वाले से जाने की आज्ञा मांगी मगर गाडी वाला तो अब तक हाथ जोड़े और सिर झुकाए आँखों से अविरल धारा बहाता हुआ उसके आगे खड़ा था. ये देखकर तो माधव के होश उड़ गए. उसे समझ नहीं  आ रहा था कि वो किसी इन्सान को देख रहा है या साक्षात् भगवान उसके रूप में पृथ्वी पर अवतरित हो गए हैं क्योंकि आज के हालात में जब इन्सान ही इन्सान का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है उसमे किसी इन्सान को इस स्थिति में देखना तो ऐसा ही लगेगा कि जैसे या तो भगवान आ गए हैं या फिर वो कोई सपना ही देख रहा है , असल ज़िन्दगी में तो ऐसा संभव ही नहीं,फिर भी ये एक जीती -जागती हकीकत उसके सामने खडी थी . माधव की जुबान पर शब्द आकर रुके जा रहे थे और वाणी गदगद हो गयी थी . 

कुछ देर में खुद को संयत करके माधव गाड़ी वाले के पैरों पर गिर पड़ा और बोला , " सर आप मुझसे बड़े हैं मेरे पिता के समान हैं और इस तरह हाथ जोड़े खड़े हैं ----मैं शर्मिंदा हो रहा हूँ ,आप ऐसा मत करिए". 
जब गाड़ी वाले ने माधव को अपने पैरों पर गिरे देखा तो वो खुद को और लज्जित महसूस करने लगा . उसने माधव को उठाया और गले से लगा लिया . 
गाडी वाला बोला , " बेटा मैं इस ग्लानि के कारण खुद को मूँह दिखाने के काबिल नहीं और तुम मुझे और शर्मिंदा कर रहे हो ".

तब माधव बोला ,"सर, बस अब और नहीं . आपको जो कहना था और करना था आप कर चुके हैं . अगर आपको इतना ही ये बात परशान किये जा रही है तो सिर्फ इतना बता दीजिये कि आप हैं कौन? आपका परिचय ही आपका प्रायश्चित होगा".

तब गाड़ी वाला बोला , " मैं इस शहर में एक अख़बार जन -जागरण का मालिक हर्षवर्धन हूँ ".
इतना सुनते ही माधव तो अचम्भित हो गया . वो तो सोच भी नहीं सकता था कि इतना बड़ा इन्सान आज उसके सामने इस तरह खड़ा है. माधव तो खुद को कृतज्ञ समझने लगा. अब माधव ने हर्षमोहन  से जाने की इजाजत मांगी तो उन्होंने मना कर दिया और कहा कि तुम मेरे साथ मेरे घर चलोगे और जब तक पूरी तरह ठीक नहीं हो जाते तब तक आराम करोगे. माधव की तो जुबान ही तालू से चिपक गयी थी . वो चुप खड़ा रहा .तब हर्षमोहन माधव का हाथ पकड़कर उसे अपनी गाडी में बैठाकर घर ले गए. 
हर्षमोहन का घर  था या  एक राजमहल था . कितने नौकर- चाकर थे कोई गिनती नहीं . रात को भी घर ऐसा लगता जैसे दिन निकला हो. माधव खुद में सिमटता जा रहा था. उसने तो कभी सपने में भी ऐसा भव्य दृश्य नहीं देखा था. हर्षमोहन ने नौकरों से कहकर माधव के रहने और उसकी देखभाल का खास इंतजाम करवाया. भला ऐसे जन्नत जैसे माहौल में कोई कितने दिन बीमार रह सकता था सो ४-५ दिन में ही माधव भला -चंगा हो गया और फिर एक दिन उसने हर्षमोहन से जाने की इजाजत मांगी .

तब हर्षमोहन ने कहा ,"मुझे तुमसे जरूरी बात करनी है इसलिए अभी तुम नहीं जा सकते. बस शाम को आकर तुमसे बात करता हूँ . अभी आज एक जरूरी मीटिंग है वो निपटाकर आ जाऊं ". 
माधव के पास रुकने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं था..................

क्रमशः ......................

Sunday, August 29, 2010

नई सुबह ---------भाग 1

माधव का नाम साहित्य जगत का एक जाना -पहचाना नाम था.उसकी कलम से निकला हर शब्द पढने वाले को सोचने पर मजबूर कर देता था ---------क्या श्रृंगार,क्या वियोग,क्या मानवता और क्या व्यंग्य ----------हर विधा का बेजोड़ लेखक था. हर शब्द में ऐसा जादू कि पढने वाले उसमे ही खो जाते थे शायद हर दिल की बात महसूस करने की कूवत थी उसमे तभी उसका हर शब्द हर शख्स को अपना सा लगता था. माधव जो लिखता उसके लिए एक पूजा थी और वो अपनी पूजा को बेचता नहीं था सिर्फ पूजा का प्रशाद ही सबमे बांटता था.अपनी कृतियों से प्राप्त पैसा वो अपने लिए प्रयोग नहीं करता था बल्कि सारा पैसा गरीब , नि:सहाय ,झुग्गी झोंपड़ी में रहने वालों पर खर्च कर देता था . उस कमाई का एक भी पैसा अपने पर खर्च ना करता. उसके चाहने वालों को पता भी ना था कि वो कहाँ रहता है और क्या करता है. एक गुमनाम सी ज़िन्दगी जीता था माधव.अपने जीवन का निर्वाह वो सिर्फ लालबत्ती पर प्राप्त पैसों से ही करता था . ऐसा था मस्त फक्कड़ माधव. जो रोज़ ज़िन्दगी के ना जाने कितने रंगों से सामना करता था और उसी को लफ़्ज़ो में उतार देता था. सारी दुनिया उससे मिलने को बेचैन रहती और शायद लोग उसके पास से गुजर भी जाते होंगे मगर फिर भी उसे पहचान ना पाने के कारण एक भिखारी समझ आगे बढ़ जाते होंगे. उसके संपादक उससे कितनी ही मिन्नतें करते मगर वो टस से मस ना होता. ना जाने क्यों वो गुमनामी के अंधेरों में ही खोया रहना चाहता था. ना  जाने कौन सी खलिश थी जो उसे ऐसा जीवन जीने के लिए मजबूर कर रही थी.

आज के वक़्त में भी ऐसा इन्सान होना संसार के आठवें आश्चर्य से कम नहीं. आज के वक्त में ऐसा कौन इंसान होगा जो दौलत और शोहरत ना चाहता हो या ऐशोआराम की ज़िन्दगी जीना ना चाहता हो मगर माधव की सोच आज के ज़माने से बिलकुल हटकर थी. बेशक जीता आज के वक्त में था और लिखता भी आज के दौर का ही था तभी तो हर  दिल की धड़कन बन  गया था मगर फिर भी अपने उसूलों और आदर्शों से कभी समझौता नहीं करता था.

माधव के आस पास के भिखारी जो लालबत्ती  पर होते थे कोई भी उसके दिल की बात नहीं जानता था. इतना तो था कि वो कभी कभी कुछ दार्शनिक बातें कहता तो अन्य लोगो के सिर के ऊपर  से गुजर जाती और इसे ही पागल समझने लगते मगर उन में से कोई भी नहीं सोच सकता था कि उनके बीच गुदड़ी का लाल छुपा है .

एक दिन अचानक जब माधव लाल बत्ती पर खड़ा भीख मांग रहा था तभी पीछे से आती एक तेज़ रफ़्तार कार का बैलेंस बिगड़ जाने के कारण फुटपाथ  पर खड़े माधव को उसने टक्कर मार दी और माधव अपने झोले के साथ लहूलुहान हो गया और उसके झोले में पड़े पैसों के साथ उसके कागज़ भी हवा में उड़कर तपती सड़क पर उसके ही लहू में भीग कर इधर -उधर बिखर गए जैसे किसी के सपनो को आँधी अपने साथ उडा ले गयी हो और सब तितर -बितर कर दिया हो.आप -पास लोगों  का हुजूम इकठ्ठा हो गया और  वो सब गाड़ी वाले के पीछे पड़ गए उसे पुलिस में ले जाने की धमकी देने लगे .कोई कह रहा था "गरीब आदमी क्या इन्सान नहीं होता जो इन गाड़ी वालो को दिखाई नहीं देता , गरीब का खून क्या खून नहीं होता या उसकी जान मुफ्त की होती है जो इतनी बेरहमी से बेचारे को मार दिया". ऐसे इंसानों को तो पकड़ कर पुलिस में दे देना चाहिए मगर इतने में जो गाडी में बैठा था वो उतर कर आया वो शहर का एक जाना माना शख्स था और गाडी उसका ड्राईवर चला रहा था . उसने कहा ,"भाइयो मेरी मदद करो और इसे जल्दी से गाड़ी में डालो मैं इसका इलाज करवाता हूँ . इतने में भीड़ में से कोई बोला ये सब बचने के उपाय हैं कोई इलाज नहीं करवाएगा हम तो अभी पुलिस का इंतज़ार करेंगे मगर गाडी वाला बोला अगर पुलिस का इंतज़ार करोगे तो उसके इलाज में देरी होने की वजह से वो मर भी सकता है देखो उसका कितना खून बह चुका है .एक बार इसे अस्पताल में दाखिल करवा दो फिर चाहे तो पुलिस में दे देना .कम से कम इसकी जान तो बच जाएगी. उसकी बात में दम देखकर लोगो न माधव और उसके झोले और कागजों को उसके साथ  ही गाड़ी में रख दिया  .

गाडी वाला माधव को अस्पताल ले गया और उसका इलाज शहर के सबसे बड़े अस्पताल में करवाया. पुलिस से निपटना वो अच्छी तरह जानता था और सबसे बड़ी बात कि उसने खुद उसका इलाज करवाया और सारा खर्चा उठाया तो पुलिस तो खुद इन सबसे हाथ झाडती फिरती है और वैसे भी उनका पेट भर ही चुका था गाडी वाला, तो वो क्यूँ कोई एक्शन लेती. दो ही दिन में माधव चलने -फिरने लायक हो गया तब एक दिन वो गाडी वाला उससे मिलने आया . माधव का हाल पूछा तो माधव ने अपने दार्शनिक अंदाज़ में कहा ,"बेरहम ज़िन्दगी एक बार फिर जीत गयी , मौत को भी धोखा दे आई , ना जाने अभी और कौन सा करम बाकी है ".ये सुनकर गाडी वाले के चहेरे पर लाचारगी का एक भाव आकर चला गया मगर माधव को महसूस भी नहीं हुआ.अब माधव को ख्याल आया कि उसने तो उस आदमी से उसका परिचय ही नहीं पुछा . तब माधव बोला ,"सर , मैं आपका आभारी हूँ कि आपने मुझ जैसे भिखारी का शहर के इतने बड़े अस्पताल में इलाज करवाया. मेरे जैसे इंसान तो ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोच सकते. अब आप अपने बारे में कुछ बताइए ताकि मैं आपका परिचय जान सकूँ ".....................
क्रमशः ................

नई सुबह ---------भाग 1

माधव का नाम साहित्य जगत का एक जाना -पहचाना नाम था.उसकी कलम से निकला हर शब्द पढने वाले को सोचने पर मजबूर कर देता था ---------क्या श्रृंगार,क्या वियोग,क्या मानवता और क्या व्यंग्य ----------हर विधा का बेजोड़ लेखक था. हर शब्द में ऐसा जादू कि पढने वाले उसमे ही खो जाते थे शायद हर दिल की बात महसूस करने की कूवत थी उसमे तभी उसका हर शब्द हर शख्स को अपना सा लगता था. माधव जो लिखता उसके लिए एक पूजा थी और वो अपनी पूजा को बेचता नहीं था सिर्फ पूजा का प्रशाद ही सबमे बांटता था.अपनी कृतियों से प्राप्त पैसा वो अपने लिए प्रयोग नहीं करता था बल्कि सारा पैसा गरीब , नि:सहाय ,झुग्गी झोंपड़ी में रहने वालों पर खर्च कर देता था . उस कमाई का एक भी पैसा अपने पर खर्च ना करता. उसके चाहने वालों को पता भी ना था कि वो कहाँ रहता है और क्या करता है. एक गुमनाम सी ज़िन्दगी जीता था माधव.अपने जीवन का निर्वाह वो सिर्फ लालबत्ती पर प्राप्त पैसों से ही करता था . ऐसा था मस्त फक्कड़ माधव. जो रोज़ ज़िन्दगी के ना जाने कितने रंगों से सामना करता था और उसी को लफ़्ज़ो में उतार देता था. सारी दुनिया उससे मिलने को बेचैन रहती और शायद लोग उसके पास से गुजर भी जाते होंगे मगर फिर भी उसे पहचान ना पाने के कारण एक भिखारी समझ आगे बढ़ जाते होंगे. उसके संपादक उससे कितनी ही मिन्नतें करते मगर वो टस से मस ना होता. ना जाने क्यों वो गुमनामी के अंधेरों में ही खोया रहना चाहता था. ना  जाने कौन सी खलिश थी जो उसे ऐसा जीवन जीने के लिए मजबूर कर रही थी.

आज के वक़्त में भी ऐसा इन्सान होना संसार के आठवें आश्चर्य से कम नहीं. आज के वक्त में ऐसा कौन इंसान होगा जो दौलत और शोहरत ना चाहता हो या ऐशोआराम की ज़िन्दगी जीना ना चाहता हो मगर माधव की सोच आज के ज़माने से बिलकुल हटकर थी. बेशक जीता आज के वक्त में था और लिखता भी आज के दौर का ही था तभी तो हर  दिल की धड़कन बन  गया था मगर फिर भी अपने उसूलों और आदर्शों से कभी समझौता नहीं करता था.

माधव के आस पास के भिखारी जो लालबत्ती  पर होते थे कोई भी उसके दिल की बात नहीं जानता था. इतना तो था कि वो कभी कभी कुछ दार्शनिक बातें कहता तो अन्य लोगो के सिर के ऊपर  से गुजर जाती और इसे ही पागल समझने लगते मगर उन में से कोई भी नहीं सोच सकता था कि उनके बीच गुदड़ी का लाल छुपा है .

एक दिन अचानक जब माधव लाल बत्ती पर खड़ा भीख मांग रहा था तभी पीछे से आती एक तेज़ रफ़्तार कार का बैलेंस बिगड़ जाने के कारण फुटपाथ  पर खड़े माधव को उसने टक्कर मार दी और माधव अपने झोले के साथ लहूलुहान हो गया और उसके झोले में पड़े पैसों के साथ उसके कागज़ भी हवा में उड़कर तपती सड़क पर उसके ही लहू में भीग कर इधर -उधर बिखर गए जैसे किसी के सपनो को आँधी अपने साथ उडा ले गयी हो और सब तितर -बितर कर दिया हो.आप -पास लोगों  का हुजूम इकठ्ठा हो गया और  वो सब गाड़ी वाले के पीछे पड़ गए उसे पुलिस में ले जाने की धमकी देने लगे .कोई कह रहा था "गरीब आदमी क्या इन्सान नहीं होता जो इन गाड़ी वालो को दिखाई नहीं देता , गरीब का खून क्या खून नहीं होता या उसकी जान मुफ्त की होती है जो इतनी बेरहमी से बेचारे को मार दिया". ऐसे इंसानों को तो पकड़ कर पुलिस में दे देना चाहिए मगर इतने में जो गाडी में बैठा था वो उतर कर आया वो शहर का एक जाना माना शख्स था और गाडी उसका ड्राईवर चला रहा था . उसने कहा ,"भाइयो मेरी मदद करो और इसे जल्दी से गाड़ी में डालो मैं इसका इलाज करवाता हूँ . इतने में भीड़ में से कोई बोला ये सब बचने के उपाय हैं कोई इलाज नहीं करवाएगा हम तो अभी पुलिस का इंतज़ार करेंगे मगर गाडी वाला बोला अगर पुलिस का इंतज़ार करोगे तो उसके इलाज में देरी होने की वजह से वो मर भी सकता है देखो उसका कितना खून बह चुका है .एक बार इसे अस्पताल में दाखिल करवा दो फिर चाहे तो पुलिस में दे देना .कम से कम इसकी जान तो बच जाएगी. उसकी बात में दम देखकर लोगो न माधव और उसके झोले और कागजों को उसके साथ  ही गाड़ी में रख दिया  .

गाडी वाला माधव को अस्पताल ले गया और उसका इलाज शहर के सबसे बड़े अस्पताल में करवाया. पुलिस से निपटना वो अच्छी तरह जानता था और सबसे बड़ी बात कि उसने खुद उसका इलाज करवाया और सारा खर्चा उठाया तो पुलिस तो खुद इन सबसे हाथ झाडती फिरती है और वैसे भी उनका पेट भर ही चुका था गाडी वाला, तो वो क्यूँ कोई एक्शन लेती. दो ही दिन में माधव चलने -फिरने लायक हो गया तब एक दिन वो गाडी वाला उससे मिलने आया . माधव का हाल पूछा तो माधव ने अपने दार्शनिक अंदाज़ में कहा ,"बेरहम ज़िन्दगी एक बार फिर जीत गयी , मौत को भी धोखा दे आई , ना जाने अभी और कौन सा करम बाकी है ".ये सुनकर गाडी वाले के चहेरे पर लाचारगी का एक भाव आकर चला गया मगर माधव को महसूस भी नहीं हुआ.अब माधव को ख्याल आया कि उसने तो उस आदमी से उसका परिचय ही नहीं पुछा . तब माधव बोला ,"सर , मैं आपका आभारी हूँ कि आपने मुझ जैसे भिखारी का शहर के इतने बड़े अस्पताल में इलाज करवाया. मेरे जैसे इंसान तो ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोच सकते. अब आप अपने बारे में कुछ बताइए ताकि मैं आपका परिचय जान सकूँ ".....................
क्रमशः ................

Monday, August 23, 2010

उसका पता मिलता नहीं

अपना पता भूलती नहीं 
उसका पता मिलता नहीं 
नगरी नगरी , द्वारे द्वारे 
खोजती फिरूँ प्यारे को 
पर उसका ठिकाना मिलता नहीं 

कमली बन कर डोलूँ 
मन के वृन्दावन में खोजूँ
सांझ सकारे प्रीतम प्यारे 
दर्शन को तरसे नैना हमारे
मैं खोजत खोजत हारी 
मुझे मिले ना कृष्ण मुरारी
मुझे मुझसे मिला जाओ 
इक बार दरस दिखा जाओ
अपना मुझे बना जाओ
प्यारे अपना पता बता जाओ
मुझे मेरा "मैं " भुला जाओ
इक होने का आनंद चखा जाओ
प्रेमानंद में डूबा जाओ
श्याम अपनी श्यामा बना जाओ
ह्रदय की तडपन मिटा जाओ
जन्मो की प्यास बुझा जाओ
सांवरिया इक बार तो आ जाओ
सांवरिया इक बार तो आ जाओ

उसका पता मिलता नहीं

अपना पता भूलती नहीं 
उसका पता मिलता नहीं 
नगरी नगरी , द्वारे द्वारे 
खोजती फिरूँ प्यारे को 
पर उसका ठिकाना मिलता नहीं 

कमली बन कर डोलूँ 
मन के वृन्दावन में खोजूँ
सांझ सकारे प्रीतम प्यारे 
दर्शन को तरसे नैना हमारे
मैं खोजत खोजत हारी 
मुझे मिले ना कृष्ण मुरारी
मुझे मुझसे मिला जाओ 
इक बार दरस दिखा जाओ
अपना मुझे बना जाओ
प्यारे अपना पता बता जाओ
मुझे मेरा "मैं " भुला जाओ
इक होने का आनंद चखा जाओ
प्रेमानंद में डूबा जाओ
श्याम अपनी श्यामा बना जाओ
ह्रदय की तडपन मिटा जाओ
जन्मो की प्यास बुझा जाओ
सांवरिया इक बार तो आ जाओ
सांवरिया इक बार तो आ जाओ

Sunday, August 8, 2010

"मैं "का कोई अस्तित्व नहीं

मैं क्या हूँ ?
कुछ भी तो नहीं 
ब्रह्मांड में घूमते
एक कण के सिवा 
कुछ भी तो नहीं 
अकेले किसी 
कण की
सार्थकता नहीं
जब तक अणु 
परमाणु ना बने
जब तक उसके 
जीवन का कोई
प्रयोजन ना हो 
उद्देश्यहीन सफ़र
को मंजिल
नहीं मिलती 
हर डूबती लहर को 
साहिल नहीं मिलता 
और बिना बाती के 
जिस तरह 
दीया नहीं जलता
उसी तरह
"मैं "का कोई 
अस्तित्व नहीं
तब तक ......
जब तक
अस्तित्व बोध 
नहीं  होता  

"मैं "का कोई अस्तित्व नहीं

मैं क्या हूँ ?
कुछ भी तो नहीं 
ब्रह्मांड में घूमते
एक कण के सिवा 
कुछ भी तो नहीं 
अकेले किसी 
कण की
सार्थकता नहीं
जब तक अणु 
परमाणु ना बने
जब तक उसके 
जीवन का कोई
प्रयोजन ना हो 
उद्देश्यहीन सफ़र
को मंजिल
नहीं मिलती 
हर डूबती लहर को 
साहिल नहीं मिलता 
और बिना बाती के 
जिस तरह 
दीया नहीं जलता
उसी तरह
"मैं "का कोई 
अस्तित्व नहीं
तब तक ......
जब तक
अस्तित्व बोध 
नहीं  होता  

Wednesday, August 4, 2010

श्याम बिन ज़िन्दगी गुजरती नहीं है

श्याम बिन ज़िन्दगी गुजरती नहीं है
राधे नाम बिन ये सँवरती नहीं है 
श्याम बिन .....................................

१) पीले पड़ गए हैं ये शाखों के पत्ते -२-
    उजड़ गया है ये मधुबन सारा -२-
    गोविन्द बिन कुछ भी सुहाता नहीं है 
श्याम बिन ..........................................

२) पनघट भी सूने गलियाँ भी सूनी -२-
    वो अमुआ के झूले वो मौसम भी भूले -२-
    तेरे बिन सांवरिया हम मरना भी भूले 
श्याम बिन ............................................

३) वो वंशी की ताने वो यमुना की बाहें -२-
    वो कदम्ब की छाहें वो टेढ़ी निगाहें -२-
    हर इक याद तेरी भुलाती नहीं है 
श्याम बिन .............................................

श्याम बिन ज़िन्दगी गुजरती नहीं है

श्याम बिन ज़िन्दगी गुजरती नहीं है
राधे नाम बिन ये सँवरती नहीं है 
श्याम बिन .....................................

१) पीले पड़ गए हैं ये शाखों के पत्ते -२-
    उजड़ गया है ये मधुबन सारा -२-
    गोविन्द बिन कुछ भी सुहाता नहीं है 
श्याम बिन ..........................................

२) पनघट भी सूने गलियाँ भी सूनी -२-
    वो अमुआ के झूले वो मौसम भी भूले -२-
    तेरे बिन सांवरिया हम मरना भी भूले 
श्याम बिन ............................................

३) वो वंशी की ताने वो यमुना की बाहें -२-
    वो कदम्ब की छाहें वो टेढ़ी निगाहें -२-
    हर इक याद तेरी भुलाती नहीं है 
श्याम बिन .............................................