Monday, December 27, 2010

कर्तव्यपालन की सज़ा

जब जल्दी हो तो सारे काम भी उल्टे होते हैं . कभी हाथ से दूध गिरता है तो कभी बर्तन तो कभी सब्जी . हद हो गयी है आज  तो लगता है अपांटमेंट कैंसल ही करनी पड़ेगी. कितनी मुश्किल से तो एक महीने बाद टाइम मिला था लगता है आज वो भी हाथ  से निकल  जायेगा. चलो कोशिश करती हूँ जल्दी से जाने की .ये सब सोचते हुये मै जल्दी जल्दी काम निबटाने लगी।


फिर जल्दी से काम निपटाकर मैं हॉस्पिटल के लिए निकल गयी मगर रास्ते में ट्रैफ़िक इतना कि लगा आज तो जाना ही बेकार था मगर अब कुछ नहीं हो सकता था क्यूँकि इतना आगे आ चुकी थी कि वापस जा नहीं सकती थी तो सोचा चलो चलते है . एक बार कोशिश करुँगी डॉक्टर को दिखाने की . किसी तरह जब वहाँ पहुची तो देखा बहुत से मरीज बैठे थे तो सांस में सांस आई कि चलो नंबर तो मिल ही जायेगा बेशक आखिर का मिले और आखिर का ही मिला . अब डेढ़ घंटे से पहले तो नंबर आने से रहा इसलिए एक साइड में बैठकर मैगजीन पढने लगी ।


थोड़ी देर बाद यूँ लगा जैसे कोई दो आँखें मुझे घूर रही हैं आँख उठाकर देखा तो सामने एक अर्धविक्षिप्त सी अवस्था में एक औरत बैठी थी और कभी- कभी मुझे देख लेती थी .उसके देखने के ढंग से ही बदन में झुरझुरी -सी आ रही थी  इसलिए उसे देखकर अन्दर ही अन्दर थोडा डर भी गयी मैं. फिर अपने को मैगजीन में वयस्त कर दिया मगर थोड़ी देर में वो औरत अपनी जगह से उठी और मेरे पास आकर बैठ गयी तो मैं सतर्क हो गयी. ना जाने कौन है , क्या मकसद है  , किस इरादे से मेरे पास आकर बैठी है, दिमाग अपनी रफ़्तार से दौड़ने लगा मगर किसी पर जाहिर नहीं होने दिया. मगर मैं सावधान होकर बैठ गयी . तभी वो अचानक बोली और मुझे अपना परिचय दिया और मुझसे मेरे बारे में पूछने लगी क्यूँकि उसे मैं जानती नहीं थी इसलिए सोच- सोच कर ही बातों क जवाब दिए . फिर बातों-बातों में उसने मुझसे अपनी थोड़ी जान -पहचान भी निकाल ली. अब मैं पहले से थोड़ी सहज हो गयी थी.


फिर मैंने उससे पूछा कि उसे क्या हुआ है तो उसके साथ उसकी माँ आई हुई थी वो बोलीं की इसे डिप्रैशन है और ये २-२ गोलियां नींद की खाती है फिर भी इसे नींद नहीं आती और काम पर भी जाना होता है तो स्कूटर भी चलती है . ये सुनकर मैं तो दंग ही रह गयी कि ऐसा इन्सान कैसे अपने आप को संभालता होगा और फिर बातों में जो पता चला उससे तो मेरा दिल ही दहल गया.


उसका नाम नमिता था . एक बेटा और एक बेटी दो उसके बच्चे थे . उसका बेटा कोटा में इंजीनियरिंग के एंट्रेंस की तैयारी कर रहा था और बेटी भी अभी 11वीं में थी . पति का अपना काम था तथा वो खुद किसी विश्वविध्यालय में अध्यापिका थी .पूरा परिवार भी सही पढ़ा -लिखा था फिर मुश्किल क्या थी अभी मैं ये सोच ही रही थी कि नमिता ने कहा ,"रोज़ी (मेरा नाम ) , तुम सोच रही होंगी कि मेरे साथ ऐसा क्या हुआ जो आज मेरी ये हालत है, तो सुनो --------मुश्किल तब शुरू हुई जब मेरे बेटे का ऐडमिशन कोटा में हो गया और मुझे उसके पास जाकर २-३ महीने रहना पड़ता था . उसके खाने पीने का ध्यान रखना पड़ता था . घर पर मेरे पति और बिटिया होते थे और मुझे बेटे के भविष्य के लिए जाना पड़ता था .


एक औरत को  घर- परिवार, बच्चों और नौकरी सब देखना होता है . पति तो सिर्फ अपने काम पर ही लगे रहना जानते हैं मगर मुझ अकेली को सब देखना पड़ता । हर छोटी बडी चिन्तायें सब मेरी जिम्मेदारी होती थीं। कैसे घर और नौकरी के बीच तालमेल स्थापित कर रही थी ये सिर्फ़ मै ही जानती थी मगर फिर भी एक सुकून था कि बच्चों का भविष्य बन जायेगा और इसी बीच मेरे पति के अपनी सेक्रेटरी से सम्बन्ध बन गए . शुरू में तो मुझे पता ही नहीं चला  मगर ऐसी बातें कब तक छुपी रहती हैं किसी तरह ये बात मेरे कान में भी पड़ी तो मैंने अपनी तरफ से हर भरसक प्रयत्न किया . उन्हें समझाने की कोशिश की मगर जब बात खुल गयी तो वो खुले आम बेशर्मी पर उतर आये और उसे घर लाने लगे जिसका मेरी जवान होती बेटी पर भी असर पड़ने लगा . हमारे झगडे बढ़ने लगे. उन्हें कभी प्यार और कभी लड़कर कितना समझाया , बच्चों का हवाला दिया मगर उन पर तो इश्क का भूत सवार हो गया था इसलिए मारपीट तक की नौबत आने लगी . घर में हर वक्त क्लेश रहने लगा तो एक दिन उसके साथ जाकर रहने लगे और इस सदमे ने तो जैसे मेरे को भीतर तक झंझोड़ दिया  और मैं पागलपन की हद तक पहुँच गयी . सबको मारने , पीटने और काटने लगी . घर के हालात अब किसी से छुपे नहीं थे . बदनामी ने घर से बाहर निकलना दूभर कर दिया था बच्चे हर वक्त डरे- सहमे रहने लगे यहाँ तक कि बेटे को कोटा में पता चला तो उसकी पढाई पर भी असर पड़ने लगा .घर, घर ना रह नरक बन गया . जब हालात इतने बिगड़ गए तब मेरे घरवालों ने उन्हें बच्चों का वास्ता दिया , यहाँ तक की जात बिरादरी से भी बाहर करने की धमकी दी तब भी नहीं माने तो उन्हें कोर्ट ले जाने की धमकी दी तब जाकर वो वापस आये और जब मेरी ये हालत देखी तो अपने पर पश्चाताप भी हुआ क्यूँकि मेरी इस हालत के लिए वो ही तो जिम्मेदार थे . सिर्फ क्षणिक जूनून के लिए आज उन्होंने मेरा ये हाल कर दिया था कि मैं किसी को पहचान भी नहीं पाती थी इस ग्लानि ने उन्हें उस लड़की से सारे सम्बन्ध तोड़ने पर मजबूर कर दिया और उन्होंने मुझसे वादा किया कि वो अब उससे कोई सम्बन्ध नहीं रखेंगे .........ऐसा वो कहते हैं मगर मुझे नहीं लगता , मुझे उन पर अब विश्वास नहीं रहा .उनके आने के बाद मेरी माँ और उन्होंने मिलकर मेरी देखभाल की अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाया और मेरा इलाज कराया तब जाकर आज मैं कुछ सही हुई हूँ या कहो जैसी अब हूँ वो तुम्हारे सामने हूँ .  अब तुम बताओ रोज़ी क्या ऐसे इन्सान पर विश्वास किया जा सकता है ?क्या वो दोबारा मुझे छोड़कर नहीं जायेगा ?क्या फिर उसके कदम नहीं बहकेंगे, इस बात की क्या गारंटी है ?क्या अगर उसकी जगह मैं होती तो भी क्या वो मुझे अपनाता? अब तो मैं उसके साथ एक कमरे में रहना भी पसंद नहीं करती तो सम्बन्ध पहले जैसे कायम होना तो दूर की बात है . मेरा विश्वास चकनाचूर हो चुका है . इसमें बताओ मेरी क्या गलती है? क्या मैं एक अच्छी पत्नी नहीं रही या अच्छी माँ नहीं बन सकी? कौन सा कर्त्तव्य ऐसा है जो मैंने ढंग से नहीं निभाया?क्या बच्चों के प्रति , अपने परिवार के प्रति कर्त्तव्य निभाने की एक औरत को कभी किसी ने इतनी बड़ी सजा दी होगी?कहीं देखा है तुमने? एक कर्तव्यनिष्ठ,सत्चरित्र, सुगढ़ औरत की ऐसी दुर्दशा सिर्फ अपने कर्तव्यपालन के लिए?


उसकी बातें सुनकर मैं सुन्न हो गयी समझ नहीं आया कि उसे क्या कहूं और क्या समझाऊँ ? ऐसे हालात किसी को भी मानसिक रूप से तोड़ने के लिए काफी होते हैं . क्यूँकि मैं कभी मनोविज्ञान की छात्रा रही थी इसलिए अपनी तरफ से उसे काफी कुछ समझाया तो वो थोडा रीलेक्स लगने लगी मगर मैं जब तक घर आई एक प्रश्नचिन्ह बन गयी थी कि  एक औरत क्या सिर्फ औरत के आगे कुछ नहीं है ? पुरुष के लिए औरत क्या जिस्म से आगे कुछ नहीं है वो क्या इतना संवेदनहीन हो सकता है कि हवस के आगे उसे घर- परिवार कुछ दिखाई नहीं देता? क्या हो अगर औरत भी अपनी वासनापूर्ति के लिए ऐसे ही कदम उठाने लगे , वो भी अपनी मर्यादा भंग करने लगे? क्या एक औरत को उतनी जरूरत नहीं होती जितनी कि एक पुरुष को ? फिर कैसे एक पुरुष इतनी जल्दी अपनी सीमाएं तोड़ बैठता है ?मैं इन प्रश्नों के जाल में उलझ कर रह गयी और यही सोचती रही कि रोज़ी ने ये सब कैसे सहन किया होगा जब मैं इतनी व्यथित हो गयी हूँ .


मैं आज भी इन प्रश्नों के हल खोज रही हूँ मगर जवाब नहीं मिल रहा अगर किसी को मिले तो जरूर बताइयेगा.



कर्तव्यपालन की सज़ा

जब जल्दी हो तो सारे काम भी उल्टे होते हैं . कभी हाथ से दूध गिरता है तो कभी बर्तन तो कभी सब्जी . हद हो गयी है आज  तो लगता है अपांटमेंट कैंसल ही करनी पड़ेगी. कितनी मुश्किल से तो एक महीने बाद टाइम मिला था लगता है आज वो भी हाथ  से निकल  जायेगा. चलो कोशिश करती हूँ जल्दी से जाने की .ये सब सोचते हुये मै जल्दी जल्दी काम निबटाने लगी।


फिर जल्दी से काम निपटाकर मैं हॉस्पिटल के लिए निकल गयी मगर रास्ते में ट्रैफ़िक इतना कि लगा आज तो जाना ही बेकार था मगर अब कुछ नहीं हो सकता था क्यूँकि इतना आगे आ चुकी थी कि वापस जा नहीं सकती थी तो सोचा चलो चलते है . एक बार कोशिश करुँगी डॉक्टर को दिखाने की . किसी तरह जब वहाँ पहुची तो देखा बहुत से मरीज बैठे थे तो सांस में सांस आई कि चलो नंबर तो मिल ही जायेगा बेशक आखिर का मिले और आखिर का ही मिला . अब डेढ़ घंटे से पहले तो नंबर आने से रहा इसलिए एक साइड में बैठकर मैगजीन पढने लगी ।


थोड़ी देर बाद यूँ लगा जैसे कोई दो आँखें मुझे घूर रही हैं आँख उठाकर देखा तो सामने एक अर्धविक्षिप्त सी अवस्था में एक औरत बैठी थी और कभी- कभी मुझे देख लेती थी .उसके देखने के ढंग से ही बदन में झुरझुरी -सी आ रही थी  इसलिए उसे देखकर अन्दर ही अन्दर थोडा डर भी गयी मैं. फिर अपने को मैगजीन में वयस्त कर दिया मगर थोड़ी देर में वो औरत अपनी जगह से उठी और मेरे पास आकर बैठ गयी तो मैं सतर्क हो गयी. ना जाने कौन है , क्या मकसद है  , किस इरादे से मेरे पास आकर बैठी है, दिमाग अपनी रफ़्तार से दौड़ने लगा मगर किसी पर जाहिर नहीं होने दिया. मगर मैं सावधान होकर बैठ गयी . तभी वो अचानक बोली और मुझे अपना परिचय दिया और मुझसे मेरे बारे में पूछने लगी क्यूँकि उसे मैं जानती नहीं थी इसलिए सोच- सोच कर ही बातों क जवाब दिए . फिर बातों-बातों में उसने मुझसे अपनी थोड़ी जान -पहचान भी निकाल ली. अब मैं पहले से थोड़ी सहज हो गयी थी.


फिर मैंने उससे पूछा कि उसे क्या हुआ है तो उसके साथ उसकी माँ आई हुई थी वो बोलीं की इसे डिप्रैशन है और ये २-२ गोलियां नींद की खाती है फिर भी इसे नींद नहीं आती और काम पर भी जाना होता है तो स्कूटर भी चलती है . ये सुनकर मैं तो दंग ही रह गयी कि ऐसा इन्सान कैसे अपने आप को संभालता होगा और फिर बातों में जो पता चला उससे तो मेरा दिल ही दहल गया.


उसका नाम नमिता था . एक बेटा और एक बेटी दो उसके बच्चे थे . उसका बेटा कोटा में इंजीनियरिंग के एंट्रेंस की तैयारी कर रहा था और बेटी भी अभी 11वीं में थी . पति का अपना काम था तथा वो खुद किसी विश्वविध्यालय में अध्यापिका थी .पूरा परिवार भी सही पढ़ा -लिखा था फिर मुश्किल क्या थी अभी मैं ये सोच ही रही थी कि नमिता ने कहा ,"रोज़ी (मेरा नाम ) , तुम सोच रही होंगी कि मेरे साथ ऐसा क्या हुआ जो आज मेरी ये हालत है, तो सुनो --------मुश्किल तब शुरू हुई जब मेरे बेटे का ऐडमिशन कोटा में हो गया और मुझे उसके पास जाकर २-३ महीने रहना पड़ता था . उसके खाने पीने का ध्यान रखना पड़ता था . घर पर मेरे पति और बिटिया होते थे और मुझे बेटे के भविष्य के लिए जाना पड़ता था .


एक औरत को  घर- परिवार, बच्चों और नौकरी सब देखना होता है . पति तो सिर्फ अपने काम पर ही लगे रहना जानते हैं मगर मुझ अकेली को सब देखना पड़ता । हर छोटी बडी चिन्तायें सब मेरी जिम्मेदारी होती थीं। कैसे घर और नौकरी के बीच तालमेल स्थापित कर रही थी ये सिर्फ़ मै ही जानती थी मगर फिर भी एक सुकून था कि बच्चों का भविष्य बन जायेगा और इसी बीच मेरे पति के अपनी सेक्रेटरी से सम्बन्ध बन गए . शुरू में तो मुझे पता ही नहीं चला  मगर ऐसी बातें कब तक छुपी रहती हैं किसी तरह ये बात मेरे कान में भी पड़ी तो मैंने अपनी तरफ से हर भरसक प्रयत्न किया . उन्हें समझाने की कोशिश की मगर जब बात खुल गयी तो वो खुले आम बेशर्मी पर उतर आये और उसे घर लाने लगे जिसका मेरी जवान होती बेटी पर भी असर पड़ने लगा . हमारे झगडे बढ़ने लगे. उन्हें कभी प्यार और कभी लड़कर कितना समझाया , बच्चों का हवाला दिया मगर उन पर तो इश्क का भूत सवार हो गया था इसलिए मारपीट तक की नौबत आने लगी . घर में हर वक्त क्लेश रहने लगा तो एक दिन उसके साथ जाकर रहने लगे और इस सदमे ने तो जैसे मेरे को भीतर तक झंझोड़ दिया  और मैं पागलपन की हद तक पहुँच गयी . सबको मारने , पीटने और काटने लगी . घर के हालात अब किसी से छुपे नहीं थे . बदनामी ने घर से बाहर निकलना दूभर कर दिया था बच्चे हर वक्त डरे- सहमे रहने लगे यहाँ तक कि बेटे को कोटा में पता चला तो उसकी पढाई पर भी असर पड़ने लगा .घर, घर ना रह नरक बन गया . जब हालात इतने बिगड़ गए तब मेरे घरवालों ने उन्हें बच्चों का वास्ता दिया , यहाँ तक की जात बिरादरी से भी बाहर करने की धमकी दी तब भी नहीं माने तो उन्हें कोर्ट ले जाने की धमकी दी तब जाकर वो वापस आये और जब मेरी ये हालत देखी तो अपने पर पश्चाताप भी हुआ क्यूँकि मेरी इस हालत के लिए वो ही तो जिम्मेदार थे . सिर्फ क्षणिक जूनून के लिए आज उन्होंने मेरा ये हाल कर दिया था कि मैं किसी को पहचान भी नहीं पाती थी इस ग्लानि ने उन्हें उस लड़की से सारे सम्बन्ध तोड़ने पर मजबूर कर दिया और उन्होंने मुझसे वादा किया कि वो अब उससे कोई सम्बन्ध नहीं रखेंगे .........ऐसा वो कहते हैं मगर मुझे नहीं लगता , मुझे उन पर अब विश्वास नहीं रहा .उनके आने के बाद मेरी माँ और उन्होंने मिलकर मेरी देखभाल की अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाया और मेरा इलाज कराया तब जाकर आज मैं कुछ सही हुई हूँ या कहो जैसी अब हूँ वो तुम्हारे सामने हूँ .  अब तुम बताओ रोज़ी क्या ऐसे इन्सान पर विश्वास किया जा सकता है ?क्या वो दोबारा मुझे छोड़कर नहीं जायेगा ?क्या फिर उसके कदम नहीं बहकेंगे, इस बात की क्या गारंटी है ?क्या अगर उसकी जगह मैं होती तो भी क्या वो मुझे अपनाता? अब तो मैं उसके साथ एक कमरे में रहना भी पसंद नहीं करती तो सम्बन्ध पहले जैसे कायम होना तो दूर की बात है . मेरा विश्वास चकनाचूर हो चुका है . इसमें बताओ मेरी क्या गलती है? क्या मैं एक अच्छी पत्नी नहीं रही या अच्छी माँ नहीं बन सकी? कौन सा कर्त्तव्य ऐसा है जो मैंने ढंग से नहीं निभाया?क्या बच्चों के प्रति , अपने परिवार के प्रति कर्त्तव्य निभाने की एक औरत को कभी किसी ने इतनी बड़ी सजा दी होगी?कहीं देखा है तुमने? एक कर्तव्यनिष्ठ,सत्चरित्र, सुगढ़ औरत की ऐसी दुर्दशा सिर्फ अपने कर्तव्यपालन के लिए?


उसकी बातें सुनकर मैं सुन्न हो गयी समझ नहीं आया कि उसे क्या कहूं और क्या समझाऊँ ? ऐसे हालात किसी को भी मानसिक रूप से तोड़ने के लिए काफी होते हैं . क्यूँकि मैं कभी मनोविज्ञान की छात्रा रही थी इसलिए अपनी तरफ से उसे काफी कुछ समझाया तो वो थोडा रीलेक्स लगने लगी मगर मैं जब तक घर आई एक प्रश्नचिन्ह बन गयी थी कि  एक औरत क्या सिर्फ औरत के आगे कुछ नहीं है ? पुरुष के लिए औरत क्या जिस्म से आगे कुछ नहीं है वो क्या इतना संवेदनहीन हो सकता है कि हवस के आगे उसे घर- परिवार कुछ दिखाई नहीं देता? क्या हो अगर औरत भी अपनी वासनापूर्ति के लिए ऐसे ही कदम उठाने लगे , वो भी अपनी मर्यादा भंग करने लगे? क्या एक औरत को उतनी जरूरत नहीं होती जितनी कि एक पुरुष को ? फिर कैसे एक पुरुष इतनी जल्दी अपनी सीमाएं तोड़ बैठता है ?मैं इन प्रश्नों के जाल में उलझ कर रह गयी और यही सोचती रही कि रोज़ी ने ये सब कैसे सहन किया होगा जब मैं इतनी व्यथित हो गयी हूँ .


मैं आज भी इन प्रश्नों के हल खोज रही हूँ मगर जवाब नहीं मिल रहा अगर किसी को मिले तो जरूर बताइयेगा.



Thursday, December 23, 2010

नैसर्गिक संगीत कभी सुना है

हवा के बहने से
पत्ते के हिलने से
पैदा होता नैसर्गिक
संगीत कभी सुना है
सुनना ज़रा
कल- कल करती
नदी के बहने का
मधुर संगीत
फूल की पंखुड़ी
पर गिरती ओस की
बूँद का अनुपम संगीत
तितली की पंखुड़ी
के हिलने से पैदा होता
मनमोहक संगीत
सुना है कभी
सुनना कभी
कण -कण में व्याप्त
दिव्य संगीत की धुन
बिना आवाज़ का 
बहता प्रकृति का
अनुपम संगीत
 रोम- रोम 
को महका देगा
ह्रदय को 
प्रफुल्लित 
उल्लसित कर देगा
ब्रह्मनाद का आभास
करा जायेगा
तुझे तुझमे व्याप्त
ब्रह्म से मिला जायेगा
अनहद नाद बजा जायेगा

नैसर्गिक संगीत कभी सुना है

हवा के बहने से
पत्ते के हिलने से
पैदा होता नैसर्गिक
संगीत कभी सुना है
सुनना ज़रा
कल- कल करती
नदी के बहने का
मधुर संगीत
फूल की पंखुड़ी
पर गिरती ओस की
बूँद का अनुपम संगीत
तितली की पंखुड़ी
के हिलने से पैदा होता
मनमोहक संगीत
सुना है कभी
सुनना कभी
कण -कण में व्याप्त
दिव्य संगीत की धुन
बिना आवाज़ का 
बहता प्रकृति का
अनुपम संगीत
 रोम- रोम 
को महका देगा
ह्रदय को 
प्रफुल्लित 
उल्लसित कर देगा
ब्रह्मनाद का आभास
करा जायेगा
तुझे तुझमे व्याप्त
ब्रह्म से मिला जायेगा
अनहद नाद बजा जायेगा

Saturday, December 18, 2010

मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊँ………………

मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊँ
और तुम राधा के दास
एक दूजे की पीर समझ लें
फिर दोनों के प्राण
ओ श्याम तब जानोगे तुम
दिल की लगी की प्यास
मेरे हिय की जलन है ऐसी
जिसमे जल जाएँ दोनों जहान
इक बार तुम भी जलकर देखो
इस जलन में मोहन प्राण आधार
तब जानोगे कैसी होती है
पिया मिलन की प्यास
जल बिन जैसे  मीन प्यासी
तडफत हूँ दिन राति
तुम भी तड़प के देखो प्यारे
फिर जानोगे प्रेम की धार
तुम निर्मोही निःसंग बने हो
कैसे तुमको समझाऊँ
इक बार राधे चरण में आओ
प्रीत की रीत उनसे निभाओ
तुम भी आग पर चलकर देखो
प्रिय मिलन को तरस के देखो
फिर जानोगे कैसी होती
ये ह्रदय की संत्रास
तुम भी प्रेम दीवाने बनकर देखो
राधे के चरण पकड़कर देखो
तब जानोगे मेरे दिल की
कैसे टूटे आस
प्रेम दीवानी वन वन भटकूँ
फिर भी ना पाऊँ ठौर तुम्हारा
एक बार आजाओ गले लगा जाओ
पूरी हो जाए हर आस
मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊं
तुम राधा के दास
हिलमिल दिल व्यथा सुनाएं
एक दूजे को हम समझाएं
पूरण हो जाए हर आस
राधे दीवाने तुम बन जाओ
मोहन दीवानी मैं बन जाऊँ
गलबहियां देकर हिलमिल नाचें
इक दूजे में खुद को समा लें
मैं तेरी तुम मेरे बन जाओ
पूरण हो जाये हर आस
श्याम चरण में चित को लगा के
प्रेम रंग में खुद को रंग के
श्याम पिया की छवि बन जाऊँ
श्याम श्याम की रटना लगाऊं
और ना रहे कोई आस जिया में
श्याम की सजनी मैं बन जाऊं
पूरण कर लूं हर आस
प्यारे जू के चरण शरण में
कर दूं तन मन अर्पण
प्रेम प्रेम की रटना लगाऊं
हो जाऊँ प्रेम रस अंग संग
रसो वयी सः मैं बन जाऊँ
पूरण हो जाए हर आस 
मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊँ
और तुम राधा के दास

मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊँ………………

मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊँ
और तुम राधा के दास
एक दूजे की पीर समझ लें
फिर दोनों के प्राण
ओ श्याम तब जानोगे तुम
दिल की लगी की प्यास
मेरे हिय की जलन है ऐसी
जिसमे जल जाएँ दोनों जहान
इक बार तुम भी जलकर देखो
इस जलन में मोहन प्राण आधार
तब जानोगे कैसी होती है
पिया मिलन की प्यास
जल बिन जैसे  मीन प्यासी
तडफत हूँ दिन राति
तुम भी तड़प के देखो प्यारे
फिर जानोगे प्रेम की धार
तुम निर्मोही निःसंग बने हो
कैसे तुमको समझाऊँ
इक बार राधे चरण में आओ
प्रीत की रीत उनसे निभाओ
तुम भी आग पर चलकर देखो
प्रिय मिलन को तरस के देखो
फिर जानोगे कैसी होती
ये ह्रदय की संत्रास
तुम भी प्रेम दीवाने बनकर देखो
राधे के चरण पकड़कर देखो
तब जानोगे मेरे दिल की
कैसे टूटे आस
प्रेम दीवानी वन वन भटकूँ
फिर भी ना पाऊँ ठौर तुम्हारा
एक बार आजाओ गले लगा जाओ
पूरी हो जाए हर आस
मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊं
तुम राधा के दास
हिलमिल दिल व्यथा सुनाएं
एक दूजे को हम समझाएं
पूरण हो जाए हर आस
राधे दीवाने तुम बन जाओ
मोहन दीवानी मैं बन जाऊँ
गलबहियां देकर हिलमिल नाचें
इक दूजे में खुद को समा लें
मैं तेरी तुम मेरे बन जाओ
पूरण हो जाये हर आस
श्याम चरण में चित को लगा के
प्रेम रंग में खुद को रंग के
श्याम पिया की छवि बन जाऊँ
श्याम श्याम की रटना लगाऊं
और ना रहे कोई आस जिया में
श्याम की सजनी मैं बन जाऊं
पूरण कर लूं हर आस
प्यारे जू के चरण शरण में
कर दूं तन मन अर्पण
प्रेम प्रेम की रटना लगाऊं
हो जाऊँ प्रेम रस अंग संग
रसो वयी सः मैं बन जाऊँ
पूरण हो जाए हर आस 
मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊँ
और तुम राधा के दास

Tuesday, December 7, 2010

शायद अभी भटकन बाकी है ...................

ये दिल के गली कूचे
भर चुके हैं तेरे
प्रेम के गुलाबों से
अब उमड़ते भावों
की गागर 
छलक छलक
जाती है
वेदना की अधिकता
अश्रु सिन्धु में बही
जाती है
कौन हो तुम ?
कहाँ हो तुम?
कैसे हो  तुम?
नहीं जानती
मगर फिर भी
ह्रदय कुञ्ज में
तुम्हारे प्रेम का
बीज रोपित हो चुका है
मेरे अश्रुओं में
बहने वाले
एक अक्स तो
अपना दिखा जाओ
तुम हो कहीं
जानती हूँ
मगर पाने की चाह
अपनी प्रबलता में
सारे बांध तोड़ देती है
मुझमे समाहित तुम
मगर फिर भी
विलगता का अहसास
वेदनाओं के ज्वार में
उफन जाता है
शायद अभी
तड़प अपने
चरम पर नहीं

पहुंची  है
शायद अभी
भटकन बाकी है...................

शायद अभी भटकन बाकी है ...................

ये दिल के गली कूचे
भर चुके हैं तेरे
प्रेम के गुलाबों से
अब उमड़ते भावों
की गागर 
छलक छलक
जाती है
वेदना की अधिकता
अश्रु सिन्धु में बही
जाती है
कौन हो तुम ?
कहाँ हो तुम?
कैसे हो  तुम?
नहीं जानती
मगर फिर भी
ह्रदय कुञ्ज में
तुम्हारे प्रेम का
बीज रोपित हो चुका है
मेरे अश्रुओं में
बहने वाले
एक अक्स तो
अपना दिखा जाओ
तुम हो कहीं
जानती हूँ
मगर पाने की चाह
अपनी प्रबलता में
सारे बांध तोड़ देती है
मुझमे समाहित तुम
मगर फिर भी
विलगता का अहसास
वेदनाओं के ज्वार में
उफन जाता है
शायद अभी
तड़प अपने
चरम पर नहीं

पहुंची  है
शायद अभी
भटकन बाकी है...................

Thursday, December 2, 2010

बस गुजर रही है .......... उसके साथ ............. उसके बिन

ना वो मिला 
ना उसे मिलने की 
हसरत हमसे
बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन 


वो अपना बनाता भी नहीं 
पास बुलाता भी नहीं
छः अंगुल की दूरी 
मिटाता भी नहीं
बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन


वो सपने में आता भी नहीं
ख्वाब दिखाता भी नहीं
बाँसुरिया सुनाता भी नहीं
रास रचाता भी नहीं
मोहिनी मूरत दिखाता भी नहीं
बस गुजर रही है 
उसके साथ
उसके बिन
  
कोई चाहत परवान
चढ़ाता भी नहीं
विरह वेदना 
मिटाता भी नहीं
एक बार दरस 
दिखाता भी नहीं
ह्रदय फटाता भी नहीं
मरना सिखाता भी नहीं
बस गुजर रही है
उसके साथ 
उसके बिन

बस गुजर रही है .......... उसके साथ ............. उसके बिन

ना वो मिला 
ना उसे मिलने की 
हसरत हमसे
बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन 


वो अपना बनाता भी नहीं 
पास बुलाता भी नहीं
छः अंगुल की दूरी 
मिटाता भी नहीं
बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन


वो सपने में आता भी नहीं
ख्वाब दिखाता भी नहीं
बाँसुरिया सुनाता भी नहीं
रास रचाता भी नहीं
मोहिनी मूरत दिखाता भी नहीं
बस गुजर रही है 
उसके साथ
उसके बिन
  
कोई चाहत परवान
चढ़ाता भी नहीं
विरह वेदना 
मिटाता भी नहीं
एक बार दरस 
दिखाता भी नहीं
ह्रदय फटाता भी नहीं
मरना सिखाता भी नहीं
बस गुजर रही है
उसके साथ 
उसके बिन