Monday, August 1, 2011

कृष्ण लीला ………भाग 5

इतना कह भगवान ने
बालक रूप धारण किया
और वसुदेव ने सूप में
भगवान को रख लिया
जैसे ही पहला कदम बढाया है
हथकड़ी बेड़ियाँ सारी खुल गयीं
ताले सारे टूट गए
दरवाज़े सारे खुल गए
बाहर बरखा रानी
अपना रूप दिखाने लगी

घटाटोप अंधियारा छाया है
घनघोर अँधेरे में
यमुना भी ऊपर चढ़कर
आने लगी
ठाकुर के चरण स्पर्श
करने को अकुलाने लगी
शेषनाग ने ऊपर भगवान के
छाँव करी
वसुदेव ठाकुर को बचाने को
हाथ ऊपर करने लगे
और यमुना भी रह रह
उफान पर आने लगी
चरण स्पर्श की लालसा में
हुलसाने लगी
अपने सभी प्रयत्न करने लगी
प्रभु ने सोचा
ये ऐसे नहीं मानेगी
कहीं बाबा ना डूब जायें
सोच प्रभु ने
अपने चरण बढ़ा
यमुना का मनोरथ पूर्ण किया
कल - कल करती
यमुना नीचे उतर गयी
हरि चरण के स्पर्श से
वो तो पावन हो गयी
गोकुल में नन्द द्वार खुला पाया
यशोदा के पास ठाकुर को लिटा
नव जन्मा कन्या को उठा लिया
इधर देवकी बेचैन हो रही थी
तभी वासुदेव जी पहुँच गए
कन्या को ला देवकी को दिया
देते ही किवाड़ और ताले बंद हो गए
हथकड़ी बेड़ियाँ वापस लग गयीं
तभी कन्या रोने लगी
रोना सुन पहरेदार जाग गए
दौड़े गए कंस के पास समाचार सुनाया
आपके शत्रु ने जन्म ले लिया
इतना सुन गिरता पड़ता
नंगी तलवार ले कंस
कैदखाने में पहुँच गया
देवकी के हाथ से
कन्या को छीन लिया
देवकी चिरौरी करने लगी
भैया तुम्हें डर तो आठवें पुत्र से था
मगर ये तो कन्या है
इसने क्या बिगाड़ा है
मगर कंस ने ना एक सुनी
उसे तो नारद जी की वाणी याद थी
जैसे ही कन्या को पटकने लगा
हाथ से वो छिटक गयी
और आसमाँ में पहुँच
दुर्गा का रूप लिया
जिसे देख कंस
थर थर कांप गया
सोचने लगा शायद
इसी के हाथों मेरी मृत्यु होगी
तभी देवी ये बोल पड़ी
हे कंस ! तुझे मारने वाला
और पृथ्वी का उद्धार करने वाला
तो बृज में जन्म ले चुका है
और तेरे पापों का अब घड़ा भर चुका है
इतना कह देवी अंतर्धान हुई
ये सुन कंस लज्जित और चिंतित हुआ
मन में विचार ये करने लगा
मैंने व्यर्थ की इन्हें इतना दुःख दिया
और देवताओं की बात का विश्वास किया
देवता तो शुरू से झूठे हैं
सारी बातें अपने
मंत्रिमंडल को बतला दीं
तब सब ये बोल उठे
राजन आप ना चिंतित हों
अगर उसने जन्म लिया है
तो अभी तो वो
मारने योग्य नहीं होगा
बालक रूप में इतनी शक्ति कहाँ
आज्ञा हो तो इन दिनों जन्मे
सभी बच्चों को मार डालें
उसके साथ वो भी ख़त्म हो जायेगा
आपका कांटा सदा के लिए मिट जायेगा
ये उपाय कंस के मन को भा गया
और उसका पाप का घड़ा
और भी भरने लगा

14 comments:

  1. यूँ लगता है जैसे किसी पवित्र आँगन में पहुँच गए हों ...

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  2. नि:शब्‍द करती प्रस्‍तुति ... आभार ।

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  3. कृष्ण कथा को बहुत सहज और सरल कर काव्य रूप दिया है .. सुन्दर प्रस्तुति

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  4. sab papiyon ke pap ka ghda to ek din bharta hi hai,,,,,,
    maja aa raha hai karishan ki lila padhkar...
    jai hind jai bharat,,
    jai radhe krishan

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  5. वाह बहुत ही सुन्दर
    रचा है आप ने
    क्या कहने ||

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  6. काव्य रूप में यह कथा अच्छी लगी बधाई

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  7. आपके माध्यम से एक बार फिर से कृष्ण लीला का अध्ययन हो रहा है।

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  8. कुछ दिनों के अन्तराल पर आपकी ये प्रस्तुति मन को शांत कर भक्तिरस में डुबो जाता है .......आभार

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  9. कृष्ण लीला का आनंद ही ऐसा है ...
    मधुर !

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  10. यह आपका अभिनव प्रयोग है।

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  11. वाह....शानदार प्रस्तुति ....ऐसे ही कृष्ण कथा को काव्य रूप से आवगत करवाती रहे ......आभार

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  12. भक्ति के माधुर्य से सराबोर...खूबसूरत प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  13. प्रभु की असीम कृपा है जो आपकी
    भक्तिमय प्रस्तुति के पढ़ने का मौका
    मिल रहा है मुझे.सच कहुं तो आपका
    भक्तिमय लेखन ही सर्वश्रेष्ठ है.इसी ओर
    समस्त उर्जा लगाएं तो धन्य होंगें हम
    सभी.न जाने क्यूँ मैं ऐसा कह रहा हूँ.
    पर जो भी कह रहा हूँ दिल से कह रहा हूँ.
    आभार.

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