Sunday, September 25, 2011

कृष्ण लीला ……भाग 15






एक दिन वासुदेव प्रेरणा से
कुल पुरोहित गर्गाचार्य
 गोकुल पधारे हैं
नन्द यशोदा ने 
आदर सत्कार किया
और वासुदेव देवकी का हाल लिया
जब आने का कारण पूछा 
तो गर्गाचार्य ने बतलाया है
पास के गाँव में 
बालक ने जन्म लिया है
नामकरण के लिए जाता हूँ
बस रास्ते में 
तुम्हारा घर पड़ता था
सो मिलने को आया हूँ
सुन नन्द यशोदा ने अनुरोध किया
बाबा हमारे यहाँ भी
दो बालकों ने जन्म लिया
उनका भी नामकरण कर दो
सुन गर्गाचार्य ने मना किया
तुम्हें है हर काम 
जोर शोर से करने की आदत
कंस को पता चला तो
मेरा जीना मुहाल करेगा
सुन नन्द बाबा कहने लगे
भगवन गौशाला में चुपचाप
नामकरण कर देना
हम ना किसी को बताएँगे
सुन गर्गाचार्य तैयार हुए
जब रोहिणी ने सुना
 कुल पुरोहित आये हैं
गुणगान बखान करने लगी
सुन यशोदा बोली
गर इतने बड़े पुरोहित हैं 
तोऐसा करो
अपने बच्चे हम बदल लेते हैं
तुम मेरे लाला को और मैं 
तुम्हारे पुत्र को लेकर जाउंगी
देखती हूँ कैसे तुम्हारे कुल पुरोहित
 सच्चाई जानते हैं
माताएं परीक्षा पर उतर आयीं
बच्चे बदल गौशाले में पहुँच गयीं
यशोदा के हाथ में बच्चे को देख
गर्गाचार्य कहने लगे
 ये रोहिणी का पुत्र है
 इसलिएएक नाम रौहणेय होगा 
अपने गुणों से सबको आनंदित करेगा
 तो एक नाम "राम " होगा
और बल में इसके समान
कोई ना होगा
तो एक नाम बल भी होगा
मगर सबसे ज्यादा 
लिया जाने वाला नाम
बलराम होगा
ये किसी में कोई भेद ना करेगा
सबको अपनी तरफआकर्षित करेगा
तो एक नाम संकर्षण होगा
 और अब जैसे ही 
रोहिणी की गोद के बालक को देखा
 तोगर्गाचार्य मोहिनी मुरतिया में खो गए
अपनी सारी सुधि भूल गए
खुली आँखों से प्रेम समाधि लग गयी
गर्गाचार्य ना बोलते थे ना हिलते थे
ना जाने इसी तरह 
कितने पल निकल गए
ये देख बाबा यशोदा घबरा गए
हिलाकर पूछने लगे बाबा क्या हुआ ?
बालक का नामकरण करने आये हो
क्या ये भूल गए
 सुन गर्गाचार्य को होश आया है
और एकदम बोल पड़े
नन्द तुम्हारा बालक 
कोई साधारण इन्सान नहीं
 ये तो कह जो ऊँगली उठाई
 तभी कान्हा ने आँख दिखाई
कहने वाले थे गर्गाचार्य
 ये तो साक्षात् भगवान हैं
तभी कान्हा ने 
आँखों ही आँखों में
गर्गाचार्य को धमकाया है
बाबा मेरे भेद नहीं खोलना
बतलाया है
मैं जानता हूँ बाबा
यहाँ दुनिया 
भगवान का क्या करती है
उसे पूज कर 
अलमारी में बंद कर देती है
और मैं अलमारी में
बंद होने नहीं आया हूँ
मैं तो माखन मिश्री खाने आया हूँ
माँ की ममता में 
खुद को भिगोने आया हूँ
गर आपने भेद बतला दिया
 मेरा हाल क्या होगा
ये मैंने तुम्हें समझा दिया
मगर गर्गाचार्य मान नहीं पाए 
जैसे ही दोबारा बोले 
ये तो साक्षात् तभी
कान्हा ने फिर धमकाया 
बाबा मान जाओ 
नहीं तो जुबान यहीं रुक जाएगी
और ऊँगली 
उठी की उठी रह जाएगी
ये सारा खेल 
आँखों ही आँखों में हो रहा था
पास बैठे नन्द यशोदा को 
कुछ ना पता चला था
अब गर्गाचार्य बोल उठे 
आपके इस बेटे के नाम अनेक होंगे
जैसे कर्म करता जायेगा
वैसे नए नाम पड़ते जायेंगे
लेकिन क्योंकि इसने 
इस बार काला रंग पाया है
इसलिए इसका एक नाम कृष्ण होगा 
इससे पहले ये कई रंगों में आया है
मैया बोली बाबा 
ये कैसा नाम बताया है
इसे बोलने में तो 
मेरी जीभ ने चक्कर खाया है
कोई आसान नाम बतला देना
तब गर्गाचार्य कहने लगे
मैया तुम इसे कन्हैया , कान्हा , कनुआ कह लेना
सुन मैया मुस्कुरा उठी
ताजिंदगी कान्हा कहकर बुलाती रही
यहाँ तक कि 
सौ साल बाद 
कुरुक्षेत्र में जब 
कान्हा पधारे थे
सुन मैया दौड़ी आई थी
अपने कान्हा का पता
पूछती फिरती थी
अरे किसी ने मेरा कान्हा देखा क्या
कोई मुझे मेरे कान्हा से मिलवा दो
बस यही गाती फिरती थी
तपती रेत पर 
नंगे पाँव दौड़ी जाती थी
नेत्रों से अश्रु बहते थे
पैरों में छाले पड़ गए थे
मगर मैया को कहाँ
अपने शरीर का होश था
उसका व्याकुल ह्रदय तो
कान्हा के दरस को तरस रहा था
१०० साल का वियोग 
मैया ने कैसे सहा था 
आज कैसे वो रुक सकती थी
जिसके लिए वो जी रही थी
जिसकी सांसों की डोर
कान्हा मिलन में अटकी पड़ी थी 
उसकी खबर पाते ही
बेचैन हो गयी थी 
हर मंडप में जाकर 
गुहार लगाती थी
मगर कोई ना उसे 
समझ पाता था
क्यूँकि उनका कान्हा तो अब
द्वारिकाधीश बन गया था
किसी ने ना कभी
ये नाम सुना था
उनके लिए तो सिर्फ
द्वारकाधीश नाम ही 
संबल था
मगर मैया ने ना 
कभी कोई और नाम लिया था
उसके लिए तो
उसका कान्हा आज भी
कनुआ ही था
मैया आवाज़ लगा रही थी
लगाते लगाते जैसे ही
एक मंडप के आगे से गुजरी
ये करुण पुकार सिर्फ
मेरे कान्हा ने सुनी
अरे ये तो मेरी मैया
मुझे बुलाती है
मगर वो यहाँ कहाँ से आ गयी
इस अचरज में पड़े
नेत्रों में अश्रु भरे 
कान्हा दौड़ पड़े
मैया- मैया कह आवाज लगायी
देख तेरा कान्हा यहाँ है
कह मैया को आवाज़ लगायी
सुन कान्हा की आवाज़
मैया रुक गयी
और कान्हा को 
पहले की तरह
गोद में लेकर बैठ गयी
मेरा लाल कितना दुबला हो गया है
क्या कान्हा तुझे माखन 
वहाँ नहीं मिलता है
मैया रोती जाती है

भाव विह्वल हुई जाती है
जैसे बचपन में लाड
लड़ाती थी वैसे ही
आज भी लाड - लड़ाती है 
कान्हा को गले लगाती है
आज तेरा कान्हा मैया
द्वारकाधीश बना है
जो तू मांगेगी 
सब हाजिर हो जायेगा
बोल मैया तू क्या चाहती है
सुन मैया बोल पड़ी
लाला तेरे सिवा ना 
किसी को चाहा है
और माँ तो सदा 
बेटे को देती आई है
तू जो चाहे मुझसे मांग लेना
मेरा तो जीवन धन
सर्वस्व तू ही है कान्हा
सुन कान्हा रो पड़े
तुझसा निस्वार्थ प्यार
मैया मैंने कहीं ना पाया है
तभी तो तेरे प्रेम के लिए
मैं धरती पर आया हूँ 
ऐसा अटल प्रेम था माँ का
तभी तो मैया ने ना
 कभी कृष्ण कहा
उसके लिए तो उसका कान्हा
सदा कान्हा ही रहा 
गर्गाचार्य को दान दक्षिणा दे विदा किया
 नित्य आनंद यशोदा के आँगन
बरसने लगा
बाल रूप में नन्द लाल 
अठखेलियाँ करने लगे
मैया आनंद मग्न 
कान्हा को खिलाती रही
और ब्रह्मा से मानती रही
 कब मेरा लाला
घुट्नन  चलेगा
 कब दंतुलिया निकलेंगी
कब लाला मुझे
 मैया कहकर पुकारेगा
मैया रोज ख्वाब सजाती है
ब्रह्मा से यही मानती है 
वक्त यूँ ही गुजरता रहा 
कान्हा के अद्भुत रूप पर
गोपियाँ मोहित होती रहीं


क्रमशः : ..............

कृष्ण लीला ……भाग 15






एक दिन वासुदेव प्रेरणा से
कुल पुरोहित गर्गाचार्य
 गोकुल पधारे हैं
नन्द यशोदा ने 
आदर सत्कार किया
और वासुदेव देवकी का हाल लिया
जब आने का कारण पूछा 
तो गर्गाचार्य ने बतलाया है
पास के गाँव में 
बालक ने जन्म लिया है
नामकरण के लिए जाता हूँ
बस रास्ते में 
तुम्हारा घर पड़ता था
सो मिलने को आया हूँ
सुन नन्द यशोदा ने अनुरोध किया
बाबा हमारे यहाँ भी
दो बालकों ने जन्म लिया
उनका भी नामकरण कर दो
सुन गर्गाचार्य ने मना किया
तुम्हें है हर काम 
जोर शोर से करने की आदत
कंस को पता चला तो
मेरा जीना मुहाल करेगा
सुन नन्द बाबा कहने लगे
भगवन गौशाला में चुपचाप
नामकरण कर देना
हम ना किसी को बताएँगे
सुन गर्गाचार्य तैयार हुए
जब रोहिणी ने सुना
 कुल पुरोहित आये हैं
गुणगान बखान करने लगी
सुन यशोदा बोली
गर इतने बड़े पुरोहित हैं 
तोऐसा करो
अपने बच्चे हम बदल लेते हैं
तुम मेरे लाला को और मैं 
तुम्हारे पुत्र को लेकर जाउंगी
देखती हूँ कैसे तुम्हारे कुल पुरोहित
 सच्चाई जानते हैं
माताएं परीक्षा पर उतर आयीं
बच्चे बदल गौशाले में पहुँच गयीं
यशोदा के हाथ में बच्चे को देख
गर्गाचार्य कहने लगे
 ये रोहिणी का पुत्र है
 इसलिएएक नाम रौहणेय होगा 
अपने गुणों से सबको आनंदित करेगा
 तो एक नाम "राम " होगा
और बल में इसके समान
कोई ना होगा
तो एक नाम बल भी होगा
मगर सबसे ज्यादा 
लिया जाने वाला नाम
बलराम होगा
ये किसी में कोई भेद ना करेगा
सबको अपनी तरफआकर्षित करेगा
तो एक नाम संकर्षण होगा
 और अब जैसे ही 
रोहिणी की गोद के बालक को देखा
 तोगर्गाचार्य मोहिनी मुरतिया में खो गए
अपनी सारी सुधि भूल गए
खुली आँखों से प्रेम समाधि लग गयी
गर्गाचार्य ना बोलते थे ना हिलते थे
ना जाने इसी तरह 
कितने पल निकल गए
ये देख बाबा यशोदा घबरा गए
हिलाकर पूछने लगे बाबा क्या हुआ ?
बालक का नामकरण करने आये हो
क्या ये भूल गए
 सुन गर्गाचार्य को होश आया है
और एकदम बोल पड़े
नन्द तुम्हारा बालक 
कोई साधारण इन्सान नहीं
 ये तो कह जो ऊँगली उठाई
 तभी कान्हा ने आँख दिखाई
कहने वाले थे गर्गाचार्य
 ये तो साक्षात् भगवान हैं
तभी कान्हा ने 
आँखों ही आँखों में
गर्गाचार्य को धमकाया है
बाबा मेरे भेद नहीं खोलना
बतलाया है
मैं जानता हूँ बाबा
यहाँ दुनिया 
भगवान का क्या करती है
उसे पूज कर 
अलमारी में बंद कर देती है
और मैं अलमारी में
बंद होने नहीं आया हूँ
मैं तो माखन मिश्री खाने आया हूँ
माँ की ममता में 
खुद को भिगोने आया हूँ
गर आपने भेद बतला दिया
 मेरा हाल क्या होगा
ये मैंने तुम्हें समझा दिया
मगर गर्गाचार्य मान नहीं पाए 
जैसे ही दोबारा बोले 
ये तो साक्षात् तभी
कान्हा ने फिर धमकाया 
बाबा मान जाओ 
नहीं तो जुबान यहीं रुक जाएगी
और ऊँगली 
उठी की उठी रह जाएगी
ये सारा खेल 
आँखों ही आँखों में हो रहा था
पास बैठे नन्द यशोदा को 
कुछ ना पता चला था
अब गर्गाचार्य बोल उठे 
आपके इस बेटे के नाम अनेक होंगे
जैसे कर्म करता जायेगा
वैसे नए नाम पड़ते जायेंगे
लेकिन क्योंकि इसने 
इस बार काला रंग पाया है
इसलिए इसका एक नाम कृष्ण होगा 
इससे पहले ये कई रंगों में आया है
मैया बोली बाबा 
ये कैसा नाम बताया है
इसे बोलने में तो 
मेरी जीभ ने चक्कर खाया है
कोई आसान नाम बतला देना
तब गर्गाचार्य कहने लगे
मैया तुम इसे कन्हैया , कान्हा , कनुआ कह लेना
सुन मैया मुस्कुरा उठी
ताजिंदगी कान्हा कहकर बुलाती रही
यहाँ तक कि 
सौ साल बाद 
कुरुक्षेत्र में जब 
कान्हा पधारे थे
सुन मैया दौड़ी आई थी
अपने कान्हा का पता
पूछती फिरती थी
अरे किसी ने मेरा कान्हा देखा क्या
कोई मुझे मेरे कान्हा से मिलवा दो
बस यही गाती फिरती थी
तपती रेत पर 
नंगे पाँव दौड़ी जाती थी
नेत्रों से अश्रु बहते थे
पैरों में छाले पड़ गए थे
मगर मैया को कहाँ
अपने शरीर का होश था
उसका व्याकुल ह्रदय तो
कान्हा के दरस को तरस रहा था
१०० साल का वियोग 
मैया ने कैसे सहा था 
आज कैसे वो रुक सकती थी
जिसके लिए वो जी रही थी
जिसकी सांसों की डोर
कान्हा मिलन में अटकी पड़ी थी 
उसकी खबर पाते ही
बेचैन हो गयी थी 
हर मंडप में जाकर 
गुहार लगाती थी
मगर कोई ना उसे 
समझ पाता था
क्यूँकि उनका कान्हा तो अब
द्वारिकाधीश बन गया था
किसी ने ना कभी
ये नाम सुना था
उनके लिए तो सिर्फ
द्वारकाधीश नाम ही 
संबल था
मगर मैया ने ना 
कभी कोई और नाम लिया था
उसके लिए तो
उसका कान्हा आज भी
कनुआ ही था
मैया आवाज़ लगा रही थी
लगाते लगाते जैसे ही
एक मंडप के आगे से गुजरी
ये करुण पुकार सिर्फ
मेरे कान्हा ने सुनी
अरे ये तो मेरी मैया
मुझे बुलाती है
मगर वो यहाँ कहाँ से आ गयी
इस अचरज में पड़े
नेत्रों में अश्रु भरे 
कान्हा दौड़ पड़े
मैया- मैया कह आवाज लगायी
देख तेरा कान्हा यहाँ है
कह मैया को आवाज़ लगायी
सुन कान्हा की आवाज़
मैया रुक गयी
और कान्हा को 
पहले की तरह
गोद में लेकर बैठ गयी
मेरा लाल कितना दुबला हो गया है
क्या कान्हा तुझे माखन 
वहाँ नहीं मिलता है
मैया रोती जाती है

भाव विह्वल हुई जाती है
जैसे बचपन में लाड
लड़ाती थी वैसे ही
आज भी लाड - लड़ाती है 
कान्हा को गले लगाती है
आज तेरा कान्हा मैया
द्वारकाधीश बना है
जो तू मांगेगी 
सब हाजिर हो जायेगा
बोल मैया तू क्या चाहती है
सुन मैया बोल पड़ी
लाला तेरे सिवा ना 
किसी को चाहा है
और माँ तो सदा 
बेटे को देती आई है
तू जो चाहे मुझसे मांग लेना
मेरा तो जीवन धन
सर्वस्व तू ही है कान्हा
सुन कान्हा रो पड़े
तुझसा निस्वार्थ प्यार
मैया मैंने कहीं ना पाया है
तभी तो तेरे प्रेम के लिए
मैं धरती पर आया हूँ 
ऐसा अटल प्रेम था माँ का
तभी तो मैया ने ना
 कभी कृष्ण कहा
उसके लिए तो उसका कान्हा
सदा कान्हा ही रहा 
गर्गाचार्य को दान दक्षिणा दे विदा किया
 नित्य आनंद यशोदा के आँगन
बरसने लगा
बाल रूप में नन्द लाल 
अठखेलियाँ करने लगे
मैया आनंद मग्न 
कान्हा को खिलाती रही
और ब्रह्मा से मानती रही
 कब मेरा लाला
घुट्नन  चलेगा
 कब दंतुलिया निकलेंगी
कब लाला मुझे
 मैया कहकर पुकारेगा
मैया रोज ख्वाब सजाती है
ब्रह्मा से यही मानती है 
वक्त यूँ ही गुजरता रहा 
कान्हा के अद्भुत रूप पर
गोपियाँ मोहित होती रहीं


क्रमशः : ..............

Tuesday, September 20, 2011

कृष्ण लीला …………भाग 14

भोलेनाथ को देख 
प्रभु ने रुदन बन्द किया
दर्शन पाकर भोलेनाथ
का जीवन सफ़ल हुआ 
लाला का रुदन बंद देख मैया 
तुरंत योगी के चरणों में झुक गयी
और कान्हा का सिर भी
योगी के चारों में झुका दिया
ये देख भोलेनाथ को दुःख हुआ
मेरे प्रभु मेरे चरणों में शीश झुकाते हैं
कैसे इससे उॠण हुआ जाये
कोई उपाय अब किया जाये
अभी जोगी सोच में था
तभी मैया बोल पड़ी
बाबा तुम तो अंतर्यामी हो
जब से लाला हुआ
रोज संकट आते हैं
जरा इसका भाग्य बांच देना
सुन योगी ने प्रभु के
कोमल हाथों को स्पर्श किया
और उस कोमलता के सागर में डूब गया
जिस ब्रह्म का पार समाधि में
भी नहीं पाता हूँ
आज उन्हें बाल रूप में पाया है
ये देख जोगी का ह्रदय भर आया है
फिर खुद को सावधान किया
और कहने लगे
मैया तेरा बालक साधारण नहीं
ये तो साक्षात् भगवान का अवतार है
तुम ना कोई चिंता करना
सब संकट मिट जायेंगे
माओं की जो सोच होती है
उसी अनुसार मैया बोली
बाबा ये बताओ मेरा लाला
कुछ पढ़ेगा लिखेगा या नहीं
और ये इतना काला है
कोई दुल्हन भी इसे
मिलेगी या नहीं
तब भोलेनाथ बोल उठे
मैया ये तो सभी
गुणों की  खान है
सारी विद्याओं में निपुण होगा
और तुम इसके विवाह की तो
बस पूछो ही नहीं
तुम एक की बात करती हो
इसके तो विवाह अनेक होंगे
सुन मैया बोली बाबा
क्यूँ ठिठोली करते हो
माना बूढी हूँ मगर तुम्हारी बातों में नहीं आउंगी
मैया क्या जाने ये त्रिकालदर्शी बैठे हैं
उसने तो इक साधारण बाबा जाना है
मगर भोलेनाथ बोल पड़े
विश्वास नहीं तो कोई बात नहीं
जब बड़ा होगा तब याद करना मेरी बातें
अब हमें जाना होगा
सुन मैया बोल पड़ी
बाबा बड़ी कृपा करी
लाला को चुप करा दिया
उसका भाग्य भी बता दिया
अब ये बताओ
फिर तो ना ये ऐसे रोयेगा
इतना सुनते ही भोलेनाथ को
उपाय मिल गया
बोले मैया ये तो तभी होगा
जब तुम्हारे लाला के चरण
मेरे सिर पर होंगे
सुन मैया घबरा गयी
बोली ऐसा पाप नहीं कर सकती
साधू की चरण धूलि हम
गृहस्थों का जीवन धन है
उनके सिर पर लाला का
पाँव नहीं रख सकती
बात बिगडती देख भोलेनाथ बोल उठे
अरे नहीं री मैया , तू बड़ी भोली है
ये बात नहीं है
मेरे बालों में एक बूँटी है
जिसके छूने से लाला की
हर विपदा टल जाएगी
मगर मेरे बालों की
कैसे जटायें बनी हैं
वो उसमे फँसी पड़ी है
मैं निकाल ना पाऊंगा
इसलिए कहता हूँ मान जाओ
इससे तुम्हें पाप नहीं चढ़ेगा
ये तो औषधि का स्थान है
रोगी की बीमारी का यही निदान है

सुन मैया ने सोचा
होगी सो देखी जायेगी
मगर मेरा लाला तो 
फिर से ना रोवेगा
चाहे पाप कितना सिर पर
चढ जाये पर
लाला मेरा हँस जाये
उसके लिये तो 
हर पाप सिर पर लूँगी
बाबा दोबारा नही मिला
तो कहाँ फिर खोजूँगी
ये सोच
मैया ने बाबा के सिर पर
कान्हा के चरण छुआ दिए
प्रभु के चरणों का स्पर्श पा
भोलेनाथ प्रसन्न हुए
आनंदातिरेक से भर गए
आज्ञा ले वहाँ से फिर
भोलेनाथ ने प्रस्थान किया
प्रभु के दर्शन पा जीवन धन्य किया 





क्रमश:---------

कृष्ण लीला …………भाग 14

भोलेनाथ को देख 
प्रभु ने रुदन बन्द किया
दर्शन पाकर भोलेनाथ
का जीवन सफ़ल हुआ 
लाला का रुदन बंद देख मैया 
तुरंत योगी के चरणों में झुक गयी
और कान्हा का सिर भी
योगी के चारों में झुका दिया
ये देख भोलेनाथ को दुःख हुआ
मेरे प्रभु मेरे चरणों में शीश झुकाते हैं
कैसे इससे उॠण हुआ जाये
कोई उपाय अब किया जाये
अभी जोगी सोच में था
तभी मैया बोल पड़ी
बाबा तुम तो अंतर्यामी हो
जब से लाला हुआ
रोज संकट आते हैं
जरा इसका भाग्य बांच देना
सुन योगी ने प्रभु के
कोमल हाथों को स्पर्श किया
और उस कोमलता के सागर में डूब गया
जिस ब्रह्म का पार समाधि में
भी नहीं पाता हूँ
आज उन्हें बाल रूप में पाया है
ये देख जोगी का ह्रदय भर आया है
फिर खुद को सावधान किया
और कहने लगे
मैया तेरा बालक साधारण नहीं
ये तो साक्षात् भगवान का अवतार है
तुम ना कोई चिंता करना
सब संकट मिट जायेंगे
माओं की जो सोच होती है
उसी अनुसार मैया बोली
बाबा ये बताओ मेरा लाला
कुछ पढ़ेगा लिखेगा या नहीं
और ये इतना काला है
कोई दुल्हन भी इसे
मिलेगी या नहीं
तब भोलेनाथ बोल उठे
मैया ये तो सभी
गुणों की  खान है
सारी विद्याओं में निपुण होगा
और तुम इसके विवाह की तो
बस पूछो ही नहीं
तुम एक की बात करती हो
इसके तो विवाह अनेक होंगे
सुन मैया बोली बाबा
क्यूँ ठिठोली करते हो
माना बूढी हूँ मगर तुम्हारी बातों में नहीं आउंगी
मैया क्या जाने ये त्रिकालदर्शी बैठे हैं
उसने तो इक साधारण बाबा जाना है
मगर भोलेनाथ बोल पड़े
विश्वास नहीं तो कोई बात नहीं
जब बड़ा होगा तब याद करना मेरी बातें
अब हमें जाना होगा
सुन मैया बोल पड़ी
बाबा बड़ी कृपा करी
लाला को चुप करा दिया
उसका भाग्य भी बता दिया
अब ये बताओ
फिर तो ना ये ऐसे रोयेगा
इतना सुनते ही भोलेनाथ को
उपाय मिल गया
बोले मैया ये तो तभी होगा
जब तुम्हारे लाला के चरण
मेरे सिर पर होंगे
सुन मैया घबरा गयी
बोली ऐसा पाप नहीं कर सकती
साधू की चरण धूलि हम
गृहस्थों का जीवन धन है
उनके सिर पर लाला का
पाँव नहीं रख सकती
बात बिगडती देख भोलेनाथ बोल उठे
अरे नहीं री मैया , तू बड़ी भोली है
ये बात नहीं है
मेरे बालों में एक बूँटी है
जिसके छूने से लाला की
हर विपदा टल जाएगी
मगर मेरे बालों की
कैसे जटायें बनी हैं
वो उसमे फँसी पड़ी है
मैं निकाल ना पाऊंगा
इसलिए कहता हूँ मान जाओ
इससे तुम्हें पाप नहीं चढ़ेगा
ये तो औषधि का स्थान है
रोगी की बीमारी का यही निदान है

सुन मैया ने सोचा
होगी सो देखी जायेगी
मगर मेरा लाला तो 
फिर से ना रोवेगा
चाहे पाप कितना सिर पर
चढ जाये पर
लाला मेरा हँस जाये
उसके लिये तो 
हर पाप सिर पर लूँगी
बाबा दोबारा नही मिला
तो कहाँ फिर खोजूँगी
ये सोच
मैया ने बाबा के सिर पर
कान्हा के चरण छुआ दिए
प्रभु के चरणों का स्पर्श पा
भोलेनाथ प्रसन्न हुए
आनंदातिरेक से भर गए
आज्ञा ले वहाँ से फिर
भोलेनाथ ने प्रस्थान किया
प्रभु के दर्शन पा जीवन धन्य किया 





क्रमश:---------

Thursday, September 15, 2011

कृष्ण लीला ---------भाग 13

जाकर योगी बैठ गया ध्यान में
कर रहा करुण पुकार है
भोले नाथ ध्यान में विनती करते हैं
प्रभु दर्शन को नैना तरसते हैं
क्या इतने पास होकर भी
दर्शन नहीं होंगे
अविरल धार अँखियों से बहती है
सुन कर करुण पुकार
कान्हा मचल गए
भक्त के आँसुओं पर
भगवान रीझ गए
कैसे भक्त को रोता देख सकते थे
इसलिए साथ देने को
खुद ने भी रुदन मचाया है
जिसे देख यशोदा का मन घबराया है
मैया ने हर उपाय किया
मगर कान्हा का ना
रुदन बंद हुआ
नन्द बाबा को जब पता चला
हकीम  वैद्य का हर उपचार किया
जाने कितने टोटके किये
मगर सभी बेअसर रहे
नज़रें कितनी उतारी हैं
मगर कान्हा का मुँह
खुला तो खुला ही रहा
देख मैया बाबा परेशान हुए
रात सारी आँखों में कट गयी
सुबह शांडिल्य ऋषि आये हैं
दोनों पति -पत्नी चरणों में गिर गए
देखो गुरुदेव लाला चुप ना होता है
सुन बाबा ने भी सभी उपाय किये
मगर लाला का रुदन चलता रहा
ये देख शांडिल्य मुनि को अचरज हुआ
मेरा उपाय ना कभी निष्फल हुआ
आज कौन सा नया कारण हुआ
सोच  मुनि ने ध्यान किया
आँखों के आगे भोलेनाथ का दर्श किया
माजरा सारा समझ गए
आँख खोल पूछने लगे
यहाँ कोई आया था क्या
सुन यशोदा बोल पड़ी गुरुदेव
इक जोगी आया था
विकराल वेश उसने बनाया था
 
बस तभी से तो लाला रोता है
सुन मुनि ने कहा
जाकर उसको बुला लाओ
वो ही तुम्हारे लाला को
चुप करावेगा
अन्यथा धरती पर नहीं है कोई
जो उसे चुप करा सके
माँ- बाप का प्यार हार गया
पुत्र मोह में मैया ने
अपना हठ त्याग दिया
गोपी पालकी लेकर तुम जाओ
बाबा को आदर सहित ले आओ
गोपी ने जाकर योगी को
मैया का सन्देश सुनाया है
मगर योगी ने तो
समाधि में ध्यान लगाया है
योगी यहाँ होता तो
गोपी की वाणी सुन पाता
वो तो ध्यानमग्न बैठा है
अपने प्रभु के पास 

ध्यान मे ही पहुँचा है
उनसे बातों में उलझा है
क्यूँ प्रभु इतनी देर लगायी है
दास की सुध ना आई है

कौन सा ऐसा अपराध हुआ
जो ना द्वारे पर दर्श हुआ
भाव विह्वल भोलेनाथ 
अविरल अश्रु बहाते हैं
इधर गोपी आवाज़ें लगाती है
पर भोले बाबा के कान तक
ना पहुंच पाती है
जब बाबा ने ना कुछ सुना
तब गोपी ने योगी को
पकड़ के हिला दिया
बाबा मैया बुलाती है , संदेसा दिया
पालकी भिजवाई है
तुम्हारी हठ के आगे हारी है
सुन महादेव मुस्कुराये हैं
मन ही मन में सोचते हैं

वाह रे प्रभु !
तुम्हारी लीला न्यारी है
कभी द्वार आये को धकियाते हो
कभी पालकियों में बुलवाते हो

मन ही मन नमन करते हैं
और गोपी की वाणी
सुन जोगी प्रफुल्लित हुआ
प्रभु के पास जाने को
पैदल ही उद्यत हुआ 



क्रमश:……………

कृष्ण लीला ---------भाग 13

जाकर योगी बैठ गया ध्यान में
कर रहा करुण पुकार है
भोले नाथ ध्यान में विनती करते हैं
प्रभु दर्शन को नैना तरसते हैं
क्या इतने पास होकर भी
दर्शन नहीं होंगे
अविरल धार अँखियों से बहती है
सुन कर करुण पुकार
कान्हा मचल गए
भक्त के आँसुओं पर
भगवान रीझ गए
कैसे भक्त को रोता देख सकते थे
इसलिए साथ देने को
खुद ने भी रुदन मचाया है
जिसे देख यशोदा का मन घबराया है
मैया ने हर उपाय किया
मगर कान्हा का ना
रुदन बंद हुआ
नन्द बाबा को जब पता चला
हकीम  वैद्य का हर उपचार किया
जाने कितने टोटके किये
मगर सभी बेअसर रहे
नज़रें कितनी उतारी हैं
मगर कान्हा का मुँह
खुला तो खुला ही रहा
देख मैया बाबा परेशान हुए
रात सारी आँखों में कट गयी
सुबह शांडिल्य ऋषि आये हैं
दोनों पति -पत्नी चरणों में गिर गए
देखो गुरुदेव लाला चुप ना होता है
सुन बाबा ने भी सभी उपाय किये
मगर लाला का रुदन चलता रहा
ये देख शांडिल्य मुनि को अचरज हुआ
मेरा उपाय ना कभी निष्फल हुआ
आज कौन सा नया कारण हुआ
सोच  मुनि ने ध्यान किया
आँखों के आगे भोलेनाथ का दर्श किया
माजरा सारा समझ गए
आँख खोल पूछने लगे
यहाँ कोई आया था क्या
सुन यशोदा बोल पड़ी गुरुदेव
इक जोगी आया था
विकराल वेश उसने बनाया था
 
बस तभी से तो लाला रोता है
सुन मुनि ने कहा
जाकर उसको बुला लाओ
वो ही तुम्हारे लाला को
चुप करावेगा
अन्यथा धरती पर नहीं है कोई
जो उसे चुप करा सके
माँ- बाप का प्यार हार गया
पुत्र मोह में मैया ने
अपना हठ त्याग दिया
गोपी पालकी लेकर तुम जाओ
बाबा को आदर सहित ले आओ
गोपी ने जाकर योगी को
मैया का सन्देश सुनाया है
मगर योगी ने तो
समाधि में ध्यान लगाया है
योगी यहाँ होता तो
गोपी की वाणी सुन पाता
वो तो ध्यानमग्न बैठा है
अपने प्रभु के पास 

ध्यान मे ही पहुँचा है
उनसे बातों में उलझा है
क्यूँ प्रभु इतनी देर लगायी है
दास की सुध ना आई है

कौन सा ऐसा अपराध हुआ
जो ना द्वारे पर दर्श हुआ
भाव विह्वल भोलेनाथ 
अविरल अश्रु बहाते हैं
इधर गोपी आवाज़ें लगाती है
पर भोले बाबा के कान तक
ना पहुंच पाती है
जब बाबा ने ना कुछ सुना
तब गोपी ने योगी को
पकड़ के हिला दिया
बाबा मैया बुलाती है , संदेसा दिया
पालकी भिजवाई है
तुम्हारी हठ के आगे हारी है
सुन महादेव मुस्कुराये हैं
मन ही मन में सोचते हैं

वाह रे प्रभु !
तुम्हारी लीला न्यारी है
कभी द्वार आये को धकियाते हो
कभी पालकियों में बुलवाते हो

मन ही मन नमन करते हैं
और गोपी की वाणी
सुन जोगी प्रफुल्लित हुआ
प्रभु के पास जाने को
पैदल ही उद्यत हुआ 



क्रमश:……………

Thursday, September 8, 2011

कृष्ण लीला ………भाग 12

इधर भोले बाबा को भी भान हुआ
मेरे राम ने कृष्ण अवतार लिया
दर्शन को नैना मचल गए
तुरंत ताज़ा भस्म लगाने लगे
जिसे देख पार्वती मैया
ने जान लिया
भोले बाबा कहीं जाते हैं , ताड़ लिया
जब पूछा कहाँ जाते हो
तो बाबा ने ये कह टाल दिया
कहीं नहीं बस नीलगिरी तक जाते हैं
जानते थे बाबा गर इन्हें बता दिया
तो ये भी जाने की जिद करेंगी
और इनकी जिद का परिणाम
पिछले जन्म में भुगत चुका हूँ

सती रूप मे जब आयी थीं
तब जिद के वशीभूत हो
परित्याग करना पडा
अब लेकर गया तो 
जाने क्या नया होगा
इसलिये कह दिया
मगर बाबा ने ना झूठ कहा
बल्कि पहले नीलगिरी
पर ही प्रस्थान किया
वहाँ कागभुशुंडी को साथ लिया
बना विप्र वेश गोकुल में प्रवेश किया
पनघट पर जाकर अलख जगाया है
कागभुशुंडी ने चेले का रूप बनाया है
पनघट पर गोपियों से जा बतियाने लगे
अपने गुरु के गुणगान गाने लगे
अगले पिछले सभी जन्मों का हाल बताने लगे
अंतर्यामी गुरु की महिमा गाने लगे
सुनकर गोपियों का दिल मचल गया
जब से लाला आया है
रोज उपद्रव होता है
सोच यशोदा को खबर 

देने  का विचार किया
बाबा बैठो ज़रा

यशोदा मैया को बुलवाते हैं
और इक गोपी को यशोदा को
लिवाने भेज दिया
जाकर बोली गोपी
मैया एक जोगी आया  है
तेजपुंज दिव्य जोत जगाया है
लाला का हाथ दिखा देना
उसका भाग्य जना लेना
सुनकर यशोदा तैयार हुई
जोगी को यहीं  लाने का आदेश दिया
गोपी ने जाकर योगी को बतलाया है
सुनकर जोगी का ह्रदय मचलाया है
प्रभु के दर्शन इतने सुलभ होंगे
ये सोच -सोच इतराता है
जोगी प्रभु प्रेम में मदमाता है
इधर मैया ने दरवाज़ा बंद किया
ये कैसा जोगी आया है
जानने को खिड़की से दर्शन किया
जोगी का रूप देख
मैया का ह्रदय दहल गया
साँप ,कांतर , बिच्छू लटक रहे हैं

बडी जटायें बिखरी पडी हैं
भस्म शरीर पर लगायी है
जिसे देख यशोदा घबराई है
ये किसको लेकर आई है जान गयी
गोपी ने जब दरवाज़ा खोलने को कहा
मैया ने तब ही बाहर का रास्ता बता दिया
मैं ना खोलूंगी ये किसको लायी है
लाला मेरा देखेगा डर जावेगा
जब मैं पगलायी जाती हूँ
वो तो अभी सुकुमार है
सुनकर गोपी मिन्नतें करने लगी
बड़ा पहुँचा जोगी है
मैया को बतलाने लगी
क्यूँकि जोगी की महिमा

वो तो जान गयी थी
पर मैया के आगे उसकी ना एक चली
सुनकर भोलेनाथ घबरा गए
बोले मैया भिक्षा को आया हूँ
सुन मैया थाल भर अनाज ले आई
जोगी बोला नहीं चाहिए ये माई
तब मैया हीरे जवाहरात के थाल भर लायी
देख जोगी बोला क्या करूंगा
इन कंकर  पत्थर का मैं माई
तू घबरा मत मैया
मैं पूतना , शकटासुर या
तृनावर्त  नहीं हूँ माई
सुन कर मैया का मुख सूख गया
ये तो उनको भी जानता है
जरूर उन्ही के कुल का होगा
बोली बाबा ये सब ले जाओ
जोगी बोला बस मुझे तो मैया
लाला के दर्शन करवाओ
मैया बोली बाबा दर्शन ना करवाऊं
विकट रूप देख तुम्हारा
मेरा लाला डर जायेगा
जोगी बोला मैं तो आज
उसी के दर्शन करूंगा
बोला दर्श लालसा में
बहुत दूर से आया हूँ
सुन मैया बोली
कहाँ से आये हो
मैया मैं कांशी से आया हूँ
सुन मैया बोली
चाहे झाँसी से आओ या कांशी से
मैं ना दर्श कराऊँगी
बाबा बोले मैया दर्श करा दे
बड़ा उपकार होगा
सुन मैया ने मना किया
अब बाबा ने सोचा
मैया - मैया बहुत कर लिया
थोड़ी घुड़की देनी चाही
मान जा मैया नहीं तो
तूने योगी की हठ ना जानी
 मैया बोली बाबा यहाँ से
प्रस्थान करो
तुमने भी त्रियाहठ अभी
नहीं है जानी
एक माँ की ममता
नहीं है पहचानी
लग गयी ममता में और भक्त में
बाबा बोला तेरे गाँव के बाहर
आसन मैंने जमाया है
जब तक दरस ना कराओगी
अन्न जल का त्याग किया है





क्रमश:…………