Wednesday, November 30, 2011

कृष्ण लीला .........भाग २५





मैया को बातों का भुलावा दिया 
मीठी मीठी बातों से उसका तो मन मोह लिया 
मगर कान्हा कब मानने वाले थे
थोड़ी देर बाद ही फिर 
घर से निकल पड़े
और इक गोपी के 
पीछे पीछे चल पड़े
उसका पल्लू खींचने लगे
गोपी से मनुहार करने लगे
ए गोपी थोडा सा माखन खिला दे ना
ए गोपी देख तेरे माखन में 
कितना स्वाद है
इतना तो माँ यशोदा के 
माखन में भी नहीं है
ए गोपी सुन ना 
कह - कह पीछे पड़ गए
गोपी मन ही मन मुस्काती है
कान्हा की मीठी बातों पर
रीझी जाती है
मगर ऊपर से नखरे दिखाती है
कान्हा मान जाओ
ना तो मैया से जाकर कह दूंगी
तुम हमें तंग करते हो
तुम्हारे यहाँ इतना माखन है
वो क्यूँ नहीं खाते हो 
तुम्हारे माखन में मुझे
दिव्य आनंद आता है
अच्छा जो तुम कहोगी
मैं कर दूंगा
बस एक बार माखन खिला दो ना
जब कान्हा ने ये कहा
तो गोपी ने कान्हा से 
गोबर के उपले उठाने को कहा
जितने उपले तुम उठाओगे
उतने ही माखन के लड्डू खिलाऊँगी
मुझे कैसे पता चलेगा 
तुम बेईमानी कर जाओगी
कान्हा बोल पड़े
सुन गोपी बोली
जितने उपले उठाओगे
उतनी बिंदियाँ तुम्हारे गाल पर
गोबर के लगाती जाउंगी
फिर उतने लड्डू माखन के तुम खा लेना
अब कान्हा छोटे- छोटे हाथों से
उपले उठते जाते हैं
गोपी उनके मुख पर 
गोबर की बिंदियाँ लगाये जाती है
यूँ गोपी ने कान्हा का सारा मुख
गोबर की बिंदियों से भर दिया
जिसे देख गोपी का मन अति हर्षित हुआ
सुख के सागर में डूब गयी
ये कैसी छवि बन गयी
आज तो कान्हा गज़ब के लगते हैं
कैसे श्यामल सूरत पर 
गोबर के बिंदु चमकते हैं
ज्यूँ ओस कण पुष्प पर मचल रहे हों
इस तरह सबको सुख पहुंचाते हैं
क्यूँकि सुख पहुँचाने के लिए ही तो
कान्हा पृथ्वी पर आये हैं
गोपियाँ इसी छवि को देखने को तो तरसती हैं
तभी रोज कान्हा का आवाहन करती हैं 




इक दिन इक गोपी
चारपाई पर सोयी थी
नन्दलाला ने उसकी चोटी
चारपायी से बांधी थी
और ग्वालबालो संग
आनन्द से माखन खाया था
बर्तनो को फ़ोड डाला
आवाज़ सुन गोपी जाग गयी
पर चारपायी से उठ ना पायी
लेटे लेटे शोर मचाया
दूजी गोपी ने पकड लिया
यशोदा निकट ले आई
माखनचोर की करतूत बताई
कैसे घर के बर्तन फ़ोडा करता है
राह चलती गोपियों के
सिर से पल्लू खींचा करता है
कभी दधि की मटकी फ़ोडा करता है
हम राह चल नही पाती हैं
तुम्हारे लाल ने बडा उधम मचाया है
गोपियो की बाते मैया को सच्ची लगने लगीं
तब कान्हा को यशोदा कहने लगी
तुम चोरी क्यो करते हो
ये गन्दा काम कहाँ से सीखा
अगर नही मानोगे तो
घर मे बांध बिठा दूंगी
रोज ऐसी प्यारी प्यारी लीलाये करते है
मोहन गोपियो का मन हरते हैं
जिसे देख देख सुर भी लरजते हैं
और एक ही बात कहते हैं
कौन सा ऐसा पुण्य कर्म किया
जिसका पार वेदो ने भी ना पाया है
वो ब्रह्म साक्षात धरती पर उतर आया है


यही सवाल परीक्षित जी ने
शुकदेव जी से किया
तब शुकदेव जी ने
इक कथा का वर्णन किया


क्रमशः .............

कृष्ण लीला .........भाग २५





मैया को बातों का भुलावा दिया 
मीठी मीठी बातों से उसका तो मन मोह लिया 
मगर कान्हा कब मानने वाले थे
थोड़ी देर बाद ही फिर 
घर से निकल पड़े
और इक गोपी के 
पीछे पीछे चल पड़े
उसका पल्लू खींचने लगे
गोपी से मनुहार करने लगे
ए गोपी थोडा सा माखन खिला दे ना
ए गोपी देख तेरे माखन में 
कितना स्वाद है
इतना तो माँ यशोदा के 
माखन में भी नहीं है
ए गोपी सुन ना 
कह - कह पीछे पड़ गए
गोपी मन ही मन मुस्काती है
कान्हा की मीठी बातों पर
रीझी जाती है
मगर ऊपर से नखरे दिखाती है
कान्हा मान जाओ
ना तो मैया से जाकर कह दूंगी
तुम हमें तंग करते हो
तुम्हारे यहाँ इतना माखन है
वो क्यूँ नहीं खाते हो 
तुम्हारे माखन में मुझे
दिव्य आनंद आता है
अच्छा जो तुम कहोगी
मैं कर दूंगा
बस एक बार माखन खिला दो ना
जब कान्हा ने ये कहा
तो गोपी ने कान्हा से 
गोबर के उपले उठाने को कहा
जितने उपले तुम उठाओगे
उतने ही माखन के लड्डू खिलाऊँगी
मुझे कैसे पता चलेगा 
तुम बेईमानी कर जाओगी
कान्हा बोल पड़े
सुन गोपी बोली
जितने उपले उठाओगे
उतनी बिंदियाँ तुम्हारे गाल पर
गोबर के लगाती जाउंगी
फिर उतने लड्डू माखन के तुम खा लेना
अब कान्हा छोटे- छोटे हाथों से
उपले उठते जाते हैं
गोपी उनके मुख पर 
गोबर की बिंदियाँ लगाये जाती है
यूँ गोपी ने कान्हा का सारा मुख
गोबर की बिंदियों से भर दिया
जिसे देख गोपी का मन अति हर्षित हुआ
सुख के सागर में डूब गयी
ये कैसी छवि बन गयी
आज तो कान्हा गज़ब के लगते हैं
कैसे श्यामल सूरत पर 
गोबर के बिंदु चमकते हैं
ज्यूँ ओस कण पुष्प पर मचल रहे हों
इस तरह सबको सुख पहुंचाते हैं
क्यूँकि सुख पहुँचाने के लिए ही तो
कान्हा पृथ्वी पर आये हैं
गोपियाँ इसी छवि को देखने को तो तरसती हैं
तभी रोज कान्हा का आवाहन करती हैं 




इक दिन इक गोपी
चारपाई पर सोयी थी
नन्दलाला ने उसकी चोटी
चारपायी से बांधी थी
और ग्वालबालो संग
आनन्द से माखन खाया था
बर्तनो को फ़ोड डाला
आवाज़ सुन गोपी जाग गयी
पर चारपायी से उठ ना पायी
लेटे लेटे शोर मचाया
दूजी गोपी ने पकड लिया
यशोदा निकट ले आई
माखनचोर की करतूत बताई
कैसे घर के बर्तन फ़ोडा करता है
राह चलती गोपियों के
सिर से पल्लू खींचा करता है
कभी दधि की मटकी फ़ोडा करता है
हम राह चल नही पाती हैं
तुम्हारे लाल ने बडा उधम मचाया है
गोपियो की बाते मैया को सच्ची लगने लगीं
तब कान्हा को यशोदा कहने लगी
तुम चोरी क्यो करते हो
ये गन्दा काम कहाँ से सीखा
अगर नही मानोगे तो
घर मे बांध बिठा दूंगी
रोज ऐसी प्यारी प्यारी लीलाये करते है
मोहन गोपियो का मन हरते हैं
जिसे देख देख सुर भी लरजते हैं
और एक ही बात कहते हैं
कौन सा ऐसा पुण्य कर्म किया
जिसका पार वेदो ने भी ना पाया है
वो ब्रह्म साक्षात धरती पर उतर आया है


यही सवाल परीक्षित जी ने
शुकदेव जी से किया
तब शुकदेव जी ने
इक कथा का वर्णन किया


क्रमशः .............

Saturday, November 19, 2011

कृष्ण लीला ………भाग 24


नयी नवेली दुल्हनो का तो
और भी बुरा हाल है
सास के डर से ना कुछ कह सकती हैं
और श्यामसुन्दर से मिलने को तरसती हैं
एक दिन सास गयी मन्दिर तब सबने ठान लिया
आज तो दर्शन करके रहेंगी
एक चपला गोपी ने राह सुझायी
कैसे दर्शन होंगे बात बतलायी
घर जा सारी नयी नवेलियों ने
जितने मट्के थे सारे फ़ोड दिये
और छुप कर घर मे बैठ गयीं
सास ने जब आकर देखा तो बहुत गरम हुई
ये किसने उत्पात किया है
कैसे ये सब हाल हुआ है
तब बहू ने बतलाया
जो चपला सखी ने था सिखलाया
वो आया था
सास पूछे कौन आया था
बहू कहे वो आया था
सुन सास का पारा चढता जाता था
अरी तू उसका नाम बता कौन आया था
किसने ये हाल किया
तब बहू ने डरते- डरते बतलाया
नन्द का छोरा आया था
सारे माट- मटका फ़ोड गया
और जाते -जाते कह गया
नन्द का छोरा हूँ
जो करना हो कर लेना
इतना सुन तो सास का पारा चढ गया
उसकी इतनी हिम्मत बढती जाती है
तुमसे इतनी बात कह गया
जाओ उसकी माँ को जाकर
उसकी करतूत बता आना
सुन बहू मन ही मन खुश हुई
बन गयी अब तो बात
होगी सो देखी जायेगी
सोच चौराहे पर पहुंच गयी
जहाँ सारे गांव की नयी नवेली
बाट जोहती थीं
कृष्ण दर्शन को तरसती थीं
सब मिल यशोदा के पास पहुँच गयीं
और यशोदा से शिकायत करने लगीं
तुम्हारे छोरा ने जीना हराम किया है
सारे घर के माट- मटका फ़ोड दिया है
वानर सेना साथ लिया है
घर आँगन मे कीच किया है
सुन मैया कहती है
गोपियो क्यों इल्ज़ाम लगाती हो
मेरा लाला तो यहाँ सोया है
जाकर कान्हा को जगाती है
और सबके सामने लाती है
क्यो लाला तुमने ये क्या किया
ये गोपियाँ क्या कहती हैं
तुमने इनके दही माखन के
सब मटका क्यो फ़ोड दिया
तब कान्हा भोली सूरत बना
मैया को सब बतलाते हैं
मैया मैने ना इनका माखन लिया
ना ही मटका फ़ोडा
ये गोपियाँ झूठ बहकाती हैं
तेरे लाला के दर्शन करने को
बहाने बनाती हैं
पर गोपियाँ कहाँ मानने वाली थीं
वो श्यामल सूरत देखने आयी थीं
मीठी वाणी सुनने आयी थीं
इसलिए उलाहने नये बनाती हैं
जिसे सुन कान्हा मैया को बताते हैं
कैसे गोपियाँ चुगली करती हैं
मै ना इनके घरों को जानता हूँ
यमुना किनारे गली राह मे
बरजोरी पकड ले जाती हैं
कोई मेरा मुख चूमा करती है
कोई कपडे खींचा करती है
कोई टोपी उतारा करती है
कोई गाल पर मुक्का मारा करती है
मुझे कितना दर्द होता है
ये ना इनको पता चलता है
कभी मुझसे अपने घर के
बर्तन मंजवाती हैं
कभी सिर मे तेल लगवाती हैं
तरह तरह से सताया करती हैं
मैया देखो मेरे हाथ कितने छोटे हैं
कैसे मटकी उतारूंगा
सब छींको पर रखा करती हैं
कोई नही मिलता इन्हे बस
मेरी ही शिकायत करती हैं
देख मैया कैसे सब मुझे देख रही हैं
इनकी नज़र से बचा लेना
वरना तेरे लाल को इनकी नज़र लग जायेगी
सुन मैया बलैंया लेती है
मीठी मीठी मोहन की बातो मे
सुख का आनन्द लेती है
इनकी नज़र लगे न लगे
इन मीठी बातों पर कहीं
मेरी नज़र ही न लग जाए 
मैया सोचा करती है 
फिर कहीं बिगड ना जाये
मैया कान्हा को समझाती है
लाला ऐसा ना किया करो
गोपियाँ उलाहना देती हैं
शर्म से गर्दन झुक जाती है
तब कान्हा बोल उठे
मैया अब ना किसी
ग्वालिन के घर जाऊंगा
मैया बातो मे आ जाती है
पर दही माखन चुराकर खाना
नही छोडा

इक दिन गोपियो ने सलाह की
माखनचोर को रंगे हाथो
पकडना होगा
और मैया के सम्मुख लाना होगा
तब ही यशोदा मानेगी
इक दिन मनमोहन
माखन चुराकर खाते थे
सब गोपियो ने मिलकर पकड लिया
और यशोदा के पास ले जाने लगीं
पर कान्हा ने एक छल किया
घूंघट मे गोपी को ना पता चला
कहने लगे मेरा हाथ दुखता है
ज़रा दूसरा हाथ पकड लेना
इतना कह उसके पति का हाथ थमा दिया
पर गोपी ना ये भेद जान सकी
जाकर यशोदा से शिकायत की
अरी यशोदा देख तेरा लाला
आज रंगे हाथो पकड कर लायी हूँ
उसे देख यशोदा खिलखिलाकर हंस पडी
ज़रा घूंघट उठा कर देख तो लो
किसे पकड कर लाई हो , बोल पडी
मेरा कान्हा तो घर मे सोता है
और जैसे ही गोपी ने देखा
अपने पति का रूप दिखा
घबरा कर हाथ छोड दिया
सब तुम्हारे कान्हा की लीला है
कह लज्जित हो घर को चली गयी
यशोदा कान्हा से कहने लगी
लाला कितनी बार मना किया
तू इनके घर क्यो जाता है
माखन तो अपने घर मे भी होता है
सुन कान्हा कहने लगे
मैया ये सब झूठी शिकायत करती हैं
मेरी बाँह पकड अपने घर ले जाती हैं
फिर अपने काम करवाती हैं
कभी मुझको नाच नचाती है
अपने बछडे अपने बच्चे
मुझे पकडाती हैं
सुन कान्हा की मीठी बतियाँ
मैया रीझ गयी
और मोहन प्यारे को
गले लगाती है
स्नेह अपना लुटाती है
प्रेम रस बहाती है


क्रमशः ............

कृष्ण लीला ………भाग 24


नयी नवेली दुल्हनो का तो
और भी बुरा हाल है
सास के डर से ना कुछ कह सकती हैं
और श्यामसुन्दर से मिलने को तरसती हैं
एक दिन सास गयी मन्दिर तब सबने ठान लिया
आज तो दर्शन करके रहेंगी
एक चपला गोपी ने राह सुझायी
कैसे दर्शन होंगे बात बतलायी
घर जा सारी नयी नवेलियों ने
जितने मट्के थे सारे फ़ोड दिये
और छुप कर घर मे बैठ गयीं
सास ने जब आकर देखा तो बहुत गरम हुई
ये किसने उत्पात किया है
कैसे ये सब हाल हुआ है
तब बहू ने बतलाया
जो चपला सखी ने था सिखलाया
वो आया था
सास पूछे कौन आया था
बहू कहे वो आया था
सुन सास का पारा चढता जाता था
अरी तू उसका नाम बता कौन आया था
किसने ये हाल किया
तब बहू ने डरते- डरते बतलाया
नन्द का छोरा आया था
सारे माट- मटका फ़ोड गया
और जाते -जाते कह गया
नन्द का छोरा हूँ
जो करना हो कर लेना
इतना सुन तो सास का पारा चढ गया
उसकी इतनी हिम्मत बढती जाती है
तुमसे इतनी बात कह गया
जाओ उसकी माँ को जाकर
उसकी करतूत बता आना
सुन बहू मन ही मन खुश हुई
बन गयी अब तो बात
होगी सो देखी जायेगी
सोच चौराहे पर पहुंच गयी
जहाँ सारे गांव की नयी नवेली
बाट जोहती थीं
कृष्ण दर्शन को तरसती थीं
सब मिल यशोदा के पास पहुँच गयीं
और यशोदा से शिकायत करने लगीं
तुम्हारे छोरा ने जीना हराम किया है
सारे घर के माट- मटका फ़ोड दिया है
वानर सेना साथ लिया है
घर आँगन मे कीच किया है
सुन मैया कहती है
गोपियो क्यों इल्ज़ाम लगाती हो
मेरा लाला तो यहाँ सोया है
जाकर कान्हा को जगाती है
और सबके सामने लाती है
क्यो लाला तुमने ये क्या किया
ये गोपियाँ क्या कहती हैं
तुमने इनके दही माखन के
सब मटका क्यो फ़ोड दिया
तब कान्हा भोली सूरत बना
मैया को सब बतलाते हैं
मैया मैने ना इनका माखन लिया
ना ही मटका फ़ोडा
ये गोपियाँ झूठ बहकाती हैं
तेरे लाला के दर्शन करने को
बहाने बनाती हैं
पर गोपियाँ कहाँ मानने वाली थीं
वो श्यामल सूरत देखने आयी थीं
मीठी वाणी सुनने आयी थीं
इसलिए उलाहने नये बनाती हैं
जिसे सुन कान्हा मैया को बताते हैं
कैसे गोपियाँ चुगली करती हैं
मै ना इनके घरों को जानता हूँ
यमुना किनारे गली राह मे
बरजोरी पकड ले जाती हैं
कोई मेरा मुख चूमा करती है
कोई कपडे खींचा करती है
कोई टोपी उतारा करती है
कोई गाल पर मुक्का मारा करती है
मुझे कितना दर्द होता है
ये ना इनको पता चलता है
कभी मुझसे अपने घर के
बर्तन मंजवाती हैं
कभी सिर मे तेल लगवाती हैं
तरह तरह से सताया करती हैं
मैया देखो मेरे हाथ कितने छोटे हैं
कैसे मटकी उतारूंगा
सब छींको पर रखा करती हैं
कोई नही मिलता इन्हे बस
मेरी ही शिकायत करती हैं
देख मैया कैसे सब मुझे देख रही हैं
इनकी नज़र से बचा लेना
वरना तेरे लाल को इनकी नज़र लग जायेगी
सुन मैया बलैंया लेती है
मीठी मीठी मोहन की बातो मे
सुख का आनन्द लेती है
इनकी नज़र लगे न लगे
इन मीठी बातों पर कहीं
मेरी नज़र ही न लग जाए 
मैया सोचा करती है 
फिर कहीं बिगड ना जाये
मैया कान्हा को समझाती है
लाला ऐसा ना किया करो
गोपियाँ उलाहना देती हैं
शर्म से गर्दन झुक जाती है
तब कान्हा बोल उठे
मैया अब ना किसी
ग्वालिन के घर जाऊंगा
मैया बातो मे आ जाती है
पर दही माखन चुराकर खाना
नही छोडा

इक दिन गोपियो ने सलाह की
माखनचोर को रंगे हाथो
पकडना होगा
और मैया के सम्मुख लाना होगा
तब ही यशोदा मानेगी
इक दिन मनमोहन
माखन चुराकर खाते थे
सब गोपियो ने मिलकर पकड लिया
और यशोदा के पास ले जाने लगीं
पर कान्हा ने एक छल किया
घूंघट मे गोपी को ना पता चला
कहने लगे मेरा हाथ दुखता है
ज़रा दूसरा हाथ पकड लेना
इतना कह उसके पति का हाथ थमा दिया
पर गोपी ना ये भेद जान सकी
जाकर यशोदा से शिकायत की
अरी यशोदा देख तेरा लाला
आज रंगे हाथो पकड कर लायी हूँ
उसे देख यशोदा खिलखिलाकर हंस पडी
ज़रा घूंघट उठा कर देख तो लो
किसे पकड कर लाई हो , बोल पडी
मेरा कान्हा तो घर मे सोता है
और जैसे ही गोपी ने देखा
अपने पति का रूप दिखा
घबरा कर हाथ छोड दिया
सब तुम्हारे कान्हा की लीला है
कह लज्जित हो घर को चली गयी
यशोदा कान्हा से कहने लगी
लाला कितनी बार मना किया
तू इनके घर क्यो जाता है
माखन तो अपने घर मे भी होता है
सुन कान्हा कहने लगे
मैया ये सब झूठी शिकायत करती हैं
मेरी बाँह पकड अपने घर ले जाती हैं
फिर अपने काम करवाती हैं
कभी मुझको नाच नचाती है
अपने बछडे अपने बच्चे
मुझे पकडाती हैं
सुन कान्हा की मीठी बतियाँ
मैया रीझ गयी
और मोहन प्यारे को
गले लगाती है
स्नेह अपना लुटाती है
प्रेम रस बहाती है


क्रमशः ............