मैया को बातों का भुलावा दिया
मीठी मीठी बातों से उसका तो मन मोह लिया
मगर कान्हा कब मानने वाले थे
थोड़ी देर बाद ही फिर
घर से निकल पड़े
और इक गोपी के
पीछे पीछे चल पड़े
उसका पल्लू खींचने लगे
गोपी से मनुहार करने लगे
ए गोपी थोडा सा माखन खिला दे ना
ए गोपी देख तेरे माखन में
कितना स्वाद है
इतना तो माँ यशोदा के
माखन में भी नहीं है
ए गोपी सुन ना
कह - कह पीछे पड़ गए
गोपी मन ही मन मुस्काती है
कान्हा की मीठी बातों पर
रीझी जाती है
मगर ऊपर से नखरे दिखाती है
कान्हा मान जाओ
ना तो मैया से जाकर कह दूंगी
तुम हमें तंग करते हो
तुम्हारे यहाँ इतना माखन है
वो क्यूँ नहीं खाते हो
तुम्हारे माखन में मुझे
दिव्य आनंद आता है
अच्छा जो तुम कहोगी
मैं कर दूंगा
बस एक बार माखन खिला दो ना
जब कान्हा ने ये कहा
तो गोपी ने कान्हा से
गोबर के उपले उठाने को कहा
जितने उपले तुम उठाओगे
उतने ही माखन के लड्डू खिलाऊँगी
मुझे कैसे पता चलेगा
तुम बेईमानी कर जाओगी
कान्हा बोल पड़े
सुन गोपी बोली
जितने उपले उठाओगे
उतनी बिंदियाँ तुम्हारे गाल पर
गोबर के लगाती जाउंगी
फिर उतने लड्डू माखन के तुम खा लेना
अब कान्हा छोटे- छोटे हाथों से
उपले उठते जाते हैं
गोपी उनके मुख पर
गोबर की बिंदियाँ लगाये जाती है
यूँ गोपी ने कान्हा का सारा मुख
गोबर की बिंदियों से भर दिया
जिसे देख गोपी का मन अति हर्षित हुआ
सुख के सागर में डूब गयी
ये कैसी छवि बन गयी
आज तो कान्हा गज़ब के लगते हैं
कैसे श्यामल सूरत पर
गोबर के बिंदु चमकते हैं
ज्यूँ ओस कण पुष्प पर मचल रहे हों
इस तरह सबको सुख पहुंचाते हैं
क्यूँकि सुख पहुँचाने के लिए ही तो
कान्हा पृथ्वी पर आये हैं
गोपियाँ इसी छवि को देखने को तो तरसती हैं
तभी रोज कान्हा का आवाहन करती हैं
इक दिन इक गोपी
चारपाई पर सोयी थी
नन्दलाला ने उसकी चोटी
चारपायी से बांधी थी
और ग्वालबालो संग
आनन्द से माखन खाया था
बर्तनो को फ़ोड डाला
आवाज़ सुन गोपी जाग गयी
पर चारपायी से उठ ना पायी
लेटे लेटे शोर मचाया
दूजी गोपी ने पकड लिया
यशोदा निकट ले आई
माखनचोर की करतूत बताई
कैसे घर के बर्तन फ़ोडा करता है
राह चलती गोपियों के
सिर से पल्लू खींचा करता है
कभी दधि की मटकी फ़ोडा करता है
हम राह चल नही पाती हैं
तुम्हारे लाल ने बडा उधम मचाया है
गोपियो की बाते मैया को सच्ची लगने लगीं
तब कान्हा को यशोदा कहने लगी
तुम चोरी क्यो करते हो
ये गन्दा काम कहाँ से सीखा
अगर नही मानोगे तो
घर मे बांध बिठा दूंगी
रोज ऐसी प्यारी प्यारी लीलाये करते है
मोहन गोपियो का मन हरते हैं
जिसे देख देख सुर भी लरजते हैं
और एक ही बात कहते हैं
कौन सा ऐसा पुण्य कर्म किया
जिसका पार वेदो ने भी ना पाया है
वो ब्रह्म साक्षात धरती पर उतर आया है
यही सवाल परीक्षित जी ने
शुकदेव जी से किया
तब शुकदेव जी ने
इक कथा का वर्णन किया
क्रमशः .............