Monday, July 30, 2012

कृष्ण लीला ………भाग 59

राधा से तो प्रीत पुरानी थी
अगले दिन राधा दधि बेचने जब गयी
नन्द के मकान के इर्द गिर्द डोलने लगी
बावरी बन सबसे
मोहन का पता पूछने लगी
किसी ने देखा है मेरा श्याम
कहाँ है उसका घर ग्राम
कोई तो बता दो री
अरी मुझे श्याम के दरस करा दो री 
राधा ने लोक लाज बिसरायी है
मोहन के प्रेम रही बिकाई है
राधा की दशा देख
गोपियों ने पूछा
राधा  तू  क्या बेचती है
सुन राधा ने जवाब दिया
मोहन  मेरे तन मन में यूँ बसे
जैसे मेहँदी के पत्तों में
लाल रंग समाया हो
मेरी गति तुम क्या जानोगी
जब तक ना ऐसा रंग चढ़ाया हो
सखियों ने बहुतेरा समझाया
घर ग्राम का डर दिखलाया
पर राधा ने अपनी सुध बिसरायी
सिर्फ श्याम नाम की रटना लगायी
मुझे श्याम दरस करा दे कोई
श्याम विरह में हो गयी दीवानी
श्याम की हुई मैं मस्तानी
श्याम रंग ऐसे चढ़ जाये
श्यामा श्याम  रहूँ धराये
जब ऐसी दशा देखी सखियों ने
इसके रोम रोम में बसे हैं श्याम
कहना सुनना नहीं  आता काम
गर श्याम दरस न होंगे इसको
देह में प्राण ना रहेंगे इसके
ये देख एक सखी ने जा
सब हाल श्यामसुंदर को बतलाया
एक सुंदर- सी गोरी
नीली साडी पहने
मटकी सिर  पर रखे
तुम्हें पुकारा करती है
और वंशीवट को जाती है
जल्दी जाकर उस विरहिणी
का ताप मिटाओ
नहीं तो प्राणों का त्याग करेगी
तुम्हें देखे बिन ना जी सकेगी
इतना सुन मोहन वंशीवट को दौड़ गए
जा राधा का ताप मिटाया
नयन सुख दे ह्रदय ज्वाल को शांत किया
और इसी तरह मिलन का वचन दिया
मनोरथ पूर्ण कर राधा घर को चली
रास्ते में थी वो सखी खडी
खिला मुखकमल देख सब जान गयी
राधा को मोहन का नाम ले चिढाने लगी
जिसे देख राधा
नाक भौं सिकोडन लगी
छल बल से सखी पूछने लगी
मगर राधे भी चतुर निकली
मिलन का ना कोई हाल बताया
ललिता आदि सखियों ने
जब ये हाल जाना
तब सबने राधा से
मिलन का मन बनाया
सब सखियों को आई देख
राधे सारा माजरा समझ गयी
ललिता ने इधर उधर की बात कर
राधा का मन टटोला
मगर राधा ने मुख से
एक शब्द ना बोला
क्यों मौन धारण कर लिया है
किसे अपना गुरु बना लिया है
सुन राधा ने बतलाया
हँसी ठिठोली ना मुझे भाती है
ये सखी व्यर्थ इलज़ाम लगाती है
श्यामसुंदर का ना मुझे
स्वप्न में भी दर्शन हुआ
वृथा पाप क्यों लगाती है
बदनामी के डर से सकुचाई जाती हूँ
या रिस के कारण चुप  रह जाती हूँ
सुन ललिता ने बात को संभाला
सही कहती हो राधे
कहाँ ऐसे भाग्य हमारे
जो उनके दर्शन हो जायें
हम भी जीवन सफल बनाएँ
राधे तू बडभागिनी है
जो उनके मन को भाती है
इतना कह सखियाँ विदा हुईं
पर रंगे हाथों दोनों को पकड़ना होगा
मन में ठान गयीं
इधर श्यामा श्याम की प्रीत ने रंग जमाया
देखे बिना दोनों ने
इक क्षण चैन ना पाया
तब राधा ने यमुना में
स्नान का बहाना बनाया
और ललिता आदि सखियों को बुलाया
जैसे ही स्नान करके बाहर निकलीं
सामने नटवर नागर को
वंशी अधरों पर रखे 
राधा ने देखा
सुध बुध तन मन की भूल गयी
अँखियाँ उसी रूप में अटक गयीं
दोनों का हाल एक जैसा था
तभी ललिता ने राधा की दशा देख वचन उचारा
कल तो मिलन से मुकरती थीं
आज टकटकी बाँध देख रही हो
अब इन्हें मन में बसा लेना
तुम्हारे वास्ते ही हमने इन्हें बुलाया है
सुन ललिता की भेदभरी वाणी
राधा सकुचा गई
और मन ही मन पछता गयी
हाय ! आज तो चोरी पकड़ी गयी
इन नैनन की अजब जादूगरी  है
राधे का मलिन मुख देख
ललिता ने दिया दिलासा
फिक्र ना करो राधे
हम ना किसी को कुछ बतलायेंगी
ये साँवली मोहिनी सुरतिया का जादू  है
जिसने हर मन को मोह लिया है
चित्त सबका चुरा लिया है
ना जाने कौन  सी तपस्या तुमने की थी
जो इनके मन को भायी हो
सब इनको चाहें बड़ी बात नहीं
इनका प्रेम जिसे मिले
उससे बडभागी कौन दिखे
सुन राधा लज्जित हो बोली
मैंने तो मुख पर ना ध्यान दिया
मेरी दृष्टि तो भृकुटी पर ही अटक गयी
देख सखियाँ सराहना करने लगीं

क्रमश:……………

Tuesday, July 24, 2012

कृष्ण लीला ……भाग 58


अंतर्यामी प्रभु ने गोपियों का
सच्चा प्रेम लखा
गोपियाँ गौरस बेचने जाती थीं
सो राह में उनको रोक लिया
श्रीदामा सहित पांच हजार
बाल सखाओं संग
वृक्षों की  ओट में छिप गए
सोलह श्रृंगार कर जाती
गोपियों का रास्ता रोक लिया
हमारा दान दो तब जाने देंगे
कह गोपियों की राह रोक ली
दंड लेना राजा का धर्म है
और हम तुम कंस की प्रजा हैं
फिर किस अधिकार से तुमने
दंड है माँगा
गोपियों ने मनमोहन से प्रश्न किया
कल तक हमारा गौरस
चुरा -चुराकर खाते  थे
आज वन  में घेरकर लूटना
अच्छी बात नहीं
बचपन में तुमने हमें
बहुत था खिजाया
आज उसी का दंड
भरने का है समय आया
मैया से शिकायत कर
ऊखल से बंधवाया
आज ना बिना दंड दिए जाने देंगे
छोटे मुँह बड़ी बात ना लगती अच्छी
मोहन जो थोडा बहुत खाना चाहो
तो खाओ पर
दंड ना हम भरेंगी
कंस के पास जा सारा हाल कहेंगी
वो ही तुमको दंड देगा
सुन मोहन बोले
कंस से हम नहीं डरते हैं
सीधी तरह दान दे दो
नहीं दूध दही सब छीन लूँगा
फिर मैया के  पास जाओगी
रोकर  शिकायत लगाओगी
आज ना ऐसे जाने दूँगा
जो काम ना तुम्हारे बड़ों ने किया
तुम क्यों कलंक लगाते हो
ऐसे कैसे हमारा निर्वाह होगा
कैसे यहाँ हम रह पाएंगी
सुन मोहन बोले
तुम्हारे धमकाने से
ना अब मैं डरूंगा
जो तुम चली जाओगी
इस डर से क्या दंड छोड़ दूँगा
इसी तरह बहुत देर तक
ब्रजबाला मोहना संग झगडती रहीं
पर मन में खूब हुलसती रहीं
ये प्रीत की रीत निराली है
प्रकट में भेद दिखाती है
पर अंतःकरण में
हर भेद मिट जाता है
सिर्फ श्याम रूप ही भाता है
जब गोपियाँ नहीं मानी
कान्हा ने गौरस  छीन लिया
ग्वाल- बाल बंदरों में बाँट दिया
बचा- खुचा जमीन पर गिरा दिया
मटकियाँ सारी फोड़ दीं
धक्का -मुक्की में वस्त्र फाड़ डाले
तब गोपियों ने जा
यशोदा को हाल बतलाया
पर यशोदा ने ना विश्वास किया
तुम लोग मेरे मोहन को
पाप दृष्टि से देखती हो
खुद ही वस्त्र फाड़ कर 
मुझे उलाहना देती हो
ये सुन ब्रजबालाओं ने
यशोदा को बुरा - भला कहा
क्यों हम पर दोष लगाती हो
दस -पांच गौ ज्यादा होने से
क्या तुम्हारा रुतबा बढ़ गया
हम तुम जाति में बराबर हैं
अगर तुम्हारे पुत्र के
यही लक्षण रहे
तो गाँव छोड़कर चली जाएँगी
क्यों मुझे तुम धमकाती हो
जहाँ मन हो जाकर वहाँ बसों
पर तुम्हारे कारण
बेटे को ना घर से निकालूंगी
ये सुन लज्जित हो
ब्रजबाला घर को गयीं
सारे गाँव में ये बात फैल गयी
ये सुनकर सब ब्रजबालाओं
की इच्छा हुई
हम भी दूध दही बेचने जाएँ
और मनहर प्यारे की श्याम छवि
देख नेत्र जलन शांत करें
दूसरे दिन राधा सहित
  सोलह हजार गोपियाँ
गौरस बेचने चलीं
उनकी मनोदशा जान
कान्हा ने राह रोक ली
और अपनी दान लेने की
बात दोहरा दी
आज तुम्हारे यौवन का
दान लेकर रहूँगा
सुन गोपियाँ झगडने लगीं
फिर प्रभु की मनहर छवि में डूब गयीं
जब प्रभु ने उन्हें
अपने प्रति समर्पित पाया
तब अदृश्य रूप धर
सब गोपियों को ह्रदय से लगाया
ह्रदय ज्वाल जब शांत हुई
हर गोपी आनंदित हुई
यौवन दान और कुछ नहीं
तुच्छ वासनाओं को भस्मीभूत करना था
सो प्रभु के स्पर्श ने
आज मन , वचन , कर्म से
उन्हें शुद्ध किया था
देर हुई जान प्रभु ने
उनका दही - दूध का भोग लगाया
पर बर्तनों को उनके
तब भी भरा पूरा पाया
ये आश्चर्य देवता भी देख रहे थे
और ब्रजगोपियों की
सराहना कर रहे थे
मैंने सबका गौरस चखा
पर राधा की दही का स्वाद ना पाया
तब हँसकर राधे ने
अपने हाथों से दही था खिलाया
बाँकी चितवन से तभी
प्रभु ने राधा का मन मोह लिया
अब देर हुई घर जाओ
कह प्रभु ने उन्हें समझाया
पर गोपियों के मन को
ना ये प्रभु से वियोग भाया
हमने तुम्हें कठोर वचन कहे
प्रभु अपराध क्षमा करना
जब गोपियों ने वाक्य कहे
तब प्रभु  ने सारे भेद खोल दिए
तुम्हारा प्रेम देख
क्षण भर भी ना विलग रह पाता हूँ
तुम्हारा कठोर वचन सुनने ही तो
मैं वैकुण्ठ छोड़
पृथ्वी पर आता हूँ
अपना मन देकर तुमने
मुझको है पाया
ये सब जानो तुम
बस मेरी है माया
जब अपना चित्त फेर लोगी
तब अलग हो जाऊँगा
मगर तब  तक ना तुमसे
मैं भी विलग रह पाऊँगा
इतना कह मोहन वन को गए
मगर गोपियाँ तो अपने
घर ना जा बौरा गयीं
वृक्षों से पूछने लगीं
तुम गौरस मोल लोगे
कभी मोहन का नाम ले
पुकारा करती हैं
गौ रस कहते कहते
अरी कोई मोहन ले लो
श्याम ले लो , कहने लगती हैं
आठों पहर श्याम छवि
ह्रदय और आँखों  में
विराजा करती है 
घर वाले कितना समझायें
पर प्रीत ना बिसरा करती है

क्रमश: ………

Thursday, July 19, 2012

कृष्ण लीला ……भाग 57



कार्तिक सुदी दशमी को
नन्दबाबा ने एकादशी व्रत किया
द्वादशी मे व्रत का पारण करने हेतु
पहर रहते यमुना मे प्रवेश किया
वरुण देवता के दूत पकड कर ले गये
इधर सुबह हुयी तो
नन्दबाबा ना कहीं मिले
सारे मे हा-हाकार मचा
तब कान्हा ने यमुना मे प्रवेश किया
इधर वरुण देवता ने
नन्दबाबा को अपने सिंहासन पर बैठा
स्वागत सत्कार किया
और कृष्ण अपने पिता को लेने आयेंगे
इस बहाने हमे भी
उनके दर्शन होंगे
ये आस लगाये बैठ गया
प्रभु सीधे वरुण लोक मे पहुँच गये
उन्हे देख वरुण देव अगवानी को गये
प्रभु को रत्नजडित सिंहासन पर बैठा
चरण धो विधिवत पूजन अर्चन किया
मनचाही इच्छा पूर्ण कर जन्म सफ़ल किया
प्रभु से कर जोड प्रार्थना करने लगा
प्रभु मेरे दूत से गलती हुयी
पर यही गलती से मेरे
पुण्य उदय हुये
जो आपके चरण यहाँ पडे
हम सबने दर्शन पाया है
ये सब चरित्र नन्दबाबा ने देखा
और परब्रह्म ने मेरे घर अवतार लिया
ये सोच हर्षाने लगे
वापस आ सब गोपों को सारा हाल सुनाया
ये सुन गोपों ने कृष्ण को घेर लिया
कन्हैया वो तुम्हारे पिता हैं
इसलिये उन्हे वैकुण्ठ के दर्शन कराये हैं
क्या हम तुम्हारे कुछ नही लगते
सब शिकायत करने लगे
तब कन्हैया ने सबको
आँखें बंद करने को कहा
आँखे बंद करते ही
सारा दृश्य बदल गया
प्रभु की संकल्प शक्ति से ही तो
इस संसार का निर्माण हुआ
फिर वैकुण्ठ दर्शन कौन सी बडी बात थी
वहाँ जाकर गोपों ने देखा
सभी चतुर्भुजी रूप हैं
सबकी वेशभूषा , शक्ल आदि
कान्हा का ही रूप थीं
सब कान्हा की सेवा करते थे
वहाँ शान्त रस समाया था
जैसे ही गोप ग्वालों ने
कान्हा को देखा
और आवाज़ देना चाहा
वैसे ही वहाँ सबने
इशारों से चुप कराया
वहाँ तो बोलना मना था
शान्त रस मे तो
इक के मन की बात
दूजे को समझ आ जाती है
वहाँ बिना कहे सुने ही बात हो जाती है
 ये देख गोपवृंद घबरा गए
कर जोड़ प्रार्थना करने लगे
हमें तो अपना ब्रज की प्यारा  है
कम से कम वहाँ हमारा
कान्हा तो हमारा है
जिससे जैसे चाहे हम
लड़ते और खेलते हैं
यदि ये ही वैकुण्ठ है
जिसने हमें हमारे कान्हा से
है दूर किया
तो नहीं चाहिए हमें
ये वैकुण्ठ का भोग विलास
जैसे ही सबने प्रार्थना की
वो दृश्य लोप  हुआ
और घबराकर सबने
चक्षुओं को खोल दिया
सामने कान्हा को
उसी रूप में देखा
जैसे रोज देखा करते थे
और जैसे  ही उस छवि को देखा
सारे ग्वाल बाल लिपट गए
और कान्हा से बोले
भैया हमें ना अब  भरमाना
हमें नहीं चाहिए तुम्हारा वैकुण्ठ
हमें  तो इसी रूप में है तुम्हें पाना
कुछ मोहन ने अपनी मोहिनी डाली
और पल में सब कुछ भुला डाला
इधर नंदबाबा ने भी
वरुनलोक का हाल
स्वप्नवत जाना
और सारा ब्रह्मज्ञान
प्रभु लीला से भूल गए
और कान्हा को वैसे ही
पुत्रवत समझने लगे 
 
क्रमश:………

Friday, July 13, 2012

कृष्ण लीला ……भाग 56



इधर इन्द्र की पूजा ना होने पर
इन्द्र को आश्चर्य हुआ
ये ब्रजवासियों ने किसका है पूजन किया
जब इन्द्र को पता चला
क्रोधित हो उसने
मेघराज को आदेश दिया
ये ब्रजवासी अति उद्दंडी हुये
अभिमान मे चूर चूर हुये
एक बालक की बातों मे आ गये
बरसों की परम्परा को
उन्होने है तोडा
अब इसका दण्ड उन्हे भुगतना होगा
कह मेघराज को आदेश दिया
उनचासों पवनों को भी
मेघराज के साथ किया
सरदी पानी से कोई
जी्ता ना बच पाये
ब्रजवासियों संग गोवर्धन भी बह जाये
मूसलाधार वर्षा करते मेघों ने
ब्रजमण्डल को घेरा था
पवन ने भी प्रचण्ड वेग धारण कर
मेघराज का साथ दिया था
ये देख केशवमूर्ति हँसकर
बलराम जी से बोले
देखो नादान इन्द्र क्या करता है
हमारा क्रोध ब्रजवासियो पर मढता है
जब सरदी बारिश से
ब्रजवासी व्याकुल हुए
तब सभी मोहन की शरण मे आ गये
तुमने इन्द्र की पूजा है छुडवाई
देखो उसने कैसी तबाही है मचाई
अब अपने गिरिराज से कहो
वो ही रक्षा करें हमारी
वरना गोधन सहित
सभी ब्रजवासियों का
मरण पक्का समझो
तब कान्हा ने समझाया
सब गौ बछ्डे साथ ले 
गोवर्धन की तलहटी मे पहुँचे
वहाँ कान्हा ने गोवर्धन को
उठाने को कहा
मगर वो 21 किलोमीटर का पहाड
ना टस से मस हुआ
तब कान्हा ने अपनी ऊँगली लगाई
देखते- देखते पहाड उँगली पर आ गया
तब सब ग्वाल बालों ने भी
अपने बाँस आदि लगाये
सारे ब्रजवासी उसके नीचे सुरक्षित हुये
साथ ही प्रभु ने
सुदर्शन को आदेश दिया
एक बूंद पानी ना गिरने पावे
ब्रज मे ना कोई नुकसान होने पावे
सुदर्शन पानी को काटे जाता था
साथ ही आज प्रभु को
एक और लीला करनी थी
अपने एक भक्त की
प्यास भी पूरण करनी थी
रामावतार मे सीता मैया ने
अगस्त ॠषि को
भोजन पर बुलाया
जब अगस्त मुनि भोजन करने बैठे
तो देखते देखते अन्न भण्डार कम पडे
जितना मैया बनाती थी
वो भी खत्म किये जाते थे
अगस्त बाबा तो जैसे
जन्मो की साध पूरी किये जाते थे
जगतजन्नी के हाथों भोजन
सबको नसीब कहाँ होता है
आज अपने भाग्य को सराहे जाते थे
और भोजन का आनन्द लिये जाते थे
जब सुबह से शाम हुई
पर बाबा की ना तृप्ति हुई
तब सीता मैया घबरा गयी
और राम जी से कर जोड
विनती करने लगी
प्रभु ये क्या चमत्कार है
अब आप ही संभालो
इनका ना पाया जाता पार है
जैसे ही अगस्त बाबा ने पानी मांगा
तभी राम जी ने उन्हे कहा
बाबा पानी के लिये तुम्हें
इन्तज़ार करना होगा
जब मै कृष्ण जन्म मे आऊँगा
इतना पानी पिलवाऊँग़ा
जन्म- जन्म की प्यास मिट जायेगी
इतना वचन दे अगस्त बाबा को विदा किया
आज वो ही वक्त था आया
अगस्त बाबा को कान्हा ने था बुलाया
अगस्त बाबा ने
अंजुलि भर- भर पानी पीया था
सात दिन और सात रात तक
पानी था बरसा
आज बाबा की प्यास को था विराम मिला
इधर कान्हा की बाली उमरिया
उस पर गोवर्धन को था धारण किया
ये देख -देख मैया घबराती थी
सबसे बस यही गुहार लगाती थी
ब्रजवासियों कान्हा का ध्यान धरो
देखो मेरो छोटो सो लाला है
तुम सब तो खाते पीते रहते हो
और वो देखो अकेला ज़रा भी ना हिलता है
तुम्हारी रक्षा को तत्पर रहता है
ये सुन गोप बोल पडे
अरे कन्हैया तू हट जा भैया
हम सब मिल कर उठा लेंगे
कान्हा ने समझाया
मेरे बिना ना तुम्हारा काम चलेगा
मगर जब सब ना माने
और कान्हा ने जैसे ही
अपनी ऊँगली खिसकायी
तड- तड करती सबकी
लकडियाँ लाठियाँ टूटने लगीं
ये देख सभी चिल्लाये
अरे कान्हा संभाल भाई
हमसे ना गोवर्धन संभाला जाये
यहाँ गोवर्धन कोई और नही
मानुष तन को है बतलाया
और जिसने इसे धारण कर रखा है
     अर्थात उठा रखा है
वो ही परब्रह्म परमेश्वर है
गर वो शरीर से निकल जाये
तो जिस्म बेजान हो जाये
सात कोस का पहाड और कुछ नही ये शरीर ही है
जिसमे गोविन्द समाये हैं
गर अपने अंगुल से इसे नापेंगे
तो सात अंगुल मे ही
नख से शिख तक नाप लेंगे
प्रकट क्यों नही होते
क्योंकि हमारी आँख है खराब
जिस पर हमने है लगायी
विषयों की पट्टी
जिससे दिखता नही कुछ भी
और मै- मै करता मानव जीता है
पर प्रभु को ना पूर्ण समर्पण करता है
इधर मैया और गोपों को आश्चर्य हुआ
कैसे नन्हे से कान्हा ने
गोवर्धन उठा लिया
जब कान्हा ने देखा
ये मुझे देवता समझने लगे
तो अपनी मीठी बातों से
सबको मोहित किया
गोप कहते कान्हा कहो कैसे
तुमने गोवर्धन लिया उठाय
सुन कान्हा मुस्कुराकर बोले
एक तो तुम लोगों के माखन से
मेरा बल बढा
दूसरे तुम गोपों ने भी तो
सहायता की
तीसरे राधा रानी की कृपा से
मैने गिरिवर लिया उठाय
क्योंकि
बृषभानु ललि वहाँ पधारी थीं
जिन्हे देख कान्हा की मति भरमाई
तभी गिरिराज डोलने लगे
ये देख सबके दिल हिलने लगे
तब सखियाँ राधा को पकड
कीर्ति जी के पास ले गयीं
बृषभानु लली को ना
कान्हा के पास जाने दिया
तब कान्हा का मन स्थिर हुआ
इस तरह सात दिन सात रात
मूसलाधार पानी बरसता रहा
सुदर्शन चक्र और अगस्त मुनि ने
सारा भार संभाला था
एक बूंद पानी ना
ब्रज मे गिरने पाया था
इन्द्र ने अपनी हर संभव
कोशिश करके देख ली
तब इन्द्र को भान हुआ
ये मुझसे क्या गलत हुआ
तुरन्त गुरु बृहस्पति के पास गया
अपने से बडे आदमी की कोई
गलती गर हो जाये
गुरुदेव बतलाइये
कैसे वो सुधारी जाये
जिसका दूसरा आदमी
सम्मान करता हो
उसे आगे करके ले जाओ
गुरु ने था उपाय बताया
सुन इन्द्र गौ माता की पूंछ पकड
गोविन्द के पास पहुँचा
जैसे ही प्रभु ने
गौ माता को देखा
गलबहियाँ डाल उनसे लिपट गये
क्योंकि गाय प्रभु की इष्ट है
ये बात इंद्र को पता चल गयी थी
इसलिये इंद्र ने गाय की पूंछ पकड ली थी
इधर मौका पाकर इंद्र ने
प्रभु के चरण पकडे
रोकर अनुनय विनय करने लगा
हे प्रभु दीनानाथ निरंजन निरंकार
आपको बारम्बार प्रणाम है
मै अज्ञानी आप का पार
कैसे पा सकता हूँ
अज्ञानतावश जो कर्म किया
उसकी क्षमा चाहता हूँ
मुझमे अपने पद का
अभिमान समाया था
जिसे प्रभु ने चूर चूर किया
हम आपके बालक हैं
प्रभु क्षमा करो
गर्भ मे भी बालक
उल्टा सीधा हो जाता है
तो भी ना माँ का
वात्सल्य कम होता है
ऐसे ही हम आपके
गर्भ मे समाये बालक हैं
प्रभु कर जोड क्षमा
मांगने आया हूँ
आपके सिवा ना
तीनो लोकों मे कोई दूजा है
आपकी दया से ही मैने
इंद्र पद पाया था
हे मुरलीधर मेरा अपराध
अब क्षमा करो
तभी कामधेनु गौ भी बोल पडी
प्रभु मै ब्रह्मा की भेजी
आपके सम्मुख आई हूँ
छोटों के अपराध
बडे क्षमा करते आये हैं
दयालु कृपानिधान
अपना नाम सार्थक करो
तब प्रसन्न हो कान्हा बोल उठे
अभिमानी के दंभ का
हरण मै करता हूँ
जो भी अहंकार करे
उसके गर्व को तोड देता हूँ
तुम्हारा अपराध यद्यपि
क्षमा योग्य नही था
मगर तुमने मेरे सभी भक्तों को
गोवर्धन के नीचे एकत्र किया
इसलिये तुम्हारा अपराध
क्षमा करता हूँ
वरना ब्रह्मा का अपराध
ना मैने क्षमा किया था
क्योंकि उसने मम भक्तों को
मुझसे दूर किया था
जो भी भक्तों का अपराध करता है
वो ना मुझे भाता है
आगे से इतना ध्यान रखना
मेरे भक्तों को ना
कभी तंग करना
फिर कामधेनु और इन्द्र ने
प्रभु का पूजन वन्दन किया
और गौ दुग्ध से अभिषेक किया
प्रभु गुण गाते अपने धाम को गये
प्रभु के अलौकिक कर्म देख
ब्रजवासियों को आश्चर्य हुआ
और सबने मिलकर
नन्दबाबा को घेर लिया
बाबा तुम्हारा पुत्र ना
साधारण दिखता है
ये जरूर किसी देवता का
अवतार हुआ है
जब से जन्म लिया
तब से अलौकिक लीला करता है
साधारण मनुष्य के बस की
तो कोई बात नही
इसने खेल खेल मे
इतने राक्षसो का है उद्धार किया
हमे दावानल से भी बचाया
कालियनाग के विष से
यमुना को मुक्त कराया
इतनी छोटी उम्र मे इसने
इतने बडे गिरिराज को है उठा लिया
सच- सच बोलो बाबा
ये कौन है , कहाँ से आया है
कहीं साक्षात नारायण ने ही तो
नही अवतार लिया है
गोपों की बातें सुन
नन्दबाबा बोल पडे
गर्ग मुनि जब आये थे
तब उन्होने विलक्षण लक्षण
इसके बतलाये थे
वो बातें ना मैने किसी को बताई थीं
पर तुम्हारी शंका निवारण को
आज बतलाता हूँ
उन्होने बतलाया था
तुम्हारा ये बालक
हर युग मे
अलग- अलग रुपों मे आता है
कभी श्वेत वर्ण , कभी रक्त
तो कभी पीत वर्ण ये पाता है
इस बार कृष्ण वर्ण मे आया है
जो सबके मन को भाया है
पहले कभी वसुदेव के
यहाँ भी इसने जन्म लिया था
तभी इस बालक का नाम
वासुदेव पडा था
और गुणों और कर्मो के अनुरूप
इसके नाम पडते जायेंगे
मै तो उन नामो को जानता हूँ
पर साधारण जन ना जान पायेंगे
ये सबका कल्याण करेगा
बडी- बडी बाधाओ को पार करेगा
सबको आनन्दित करेगा
चाहे जिस दृष्टि से देखो
गुण , सौन्दर्य , ऐश्वर्य , कीर्ति या प्रभाव
तुम्हारा बालक नारायण के समान
गुणों वाला है
इसलिये इसके अलौकिक कार्य देख
ना शंका करना
दिव्य बालक ने है तुम्हारे यहाँ जन्म लिया
मगर ये बात ना किसी से कहना
तब से मै इसे नारायण का
अंश की समझता हूँ
और इसके बारे मे
ना किसी से कहता हूँ
नन्दबाबा की बातें सुन
सभी गोप विस्मित हुये
और आनन्दित हो
कान्हा की प्रशंसा करने लगे

क्रमश: ………….............