आज कान्हा घर से बाहर
पहली बार निकले हैं
दाऊ दादा संग
दोनो कदम बाहर धरे हैं
बाहर बैठे बैल के
दोनो सींगो को दोनो ने पकडा है
कभी एक इधर से खींचता है
तो दूजा उठ जाता है
तो कभी दूजा खींचता है
तो पहला उठ जाता है
दोनो झूला झूल रहे है
आनन्द मे मग्न हो रहे है
मगर बैल परेशान हुआ
कुछ देर तो बैठा रहा
मगर जब देखा ये तो
तंग किये जाते है
परेशान हो उठ खडा हुआ
अब तो दोनो बालक
सींगो पर झूल गये
और तोरी की तरह लटक गये
जब हाथ छुटने लगे
तब दोनो चिल्लाने लगे
मैया बचाइयो –मैया बचाइयो
शोर सुन
यशोदा रोहिणी दौडी आईं
और दोनो के हाल देख हँसने लगीं
ये कैसे इतने ऊंचे लटक गये
और उन्हे पकडने को दौड पडीं
पर नन्हे हाथ कब तक पकडे रखते
जब तक रोहिणी यशोदा पहुँचती
दोनो धम्म से नीचे पडे
गोबर मे गिर गये
मैया ने उन्हे उठाया है
और सीने से लगाया है
पल्लू से कान्हा को
पोंछती जाती हैं
साथ ही कहती जाती हैं
तुझे कितना संवारूँ सजाऊँ
पर तू गन्दगी मे जा लिपटता है
मुझे लगता है पिछले जन्म मे
तू सूअर था
ये सुन कन्हैया मुस्कुरा रहे हैं
और सोच रहे हैं
जग नियन्ता की माँ होकर
तू कैसे अनपढ़ रह सकती है
माँ तू तो ब्रह्मज्ञानी है
तुझे तो सब पता है
पिछले जन्म मे मैने
सूअर यानी वराह रूप भी
धारण किया था
ऐसी अद्भुत लीलायें
कान्हा करते हैं
कभी गोपियों के घर जाते हैं
उनके दधि माखन खाते हैं
योगी ॠषि मुनि भी जिनकी
ध्यान मे सुधि ना पाते हैं
वो गोपियों की छाछ पर
नाचे जाते हैं
कभी कोई गोपी
मन मे विचार करती
और कान्हा को याद कर
छींके पर माखन रखती
उसके प्रेममय भाव जान
जब कान्हा आकर खाते हैं
गोपी फ़ूली ना समाती है
आनन्द ना ह्रदय मे समाता
आँखो से छलक छलक जाता
सखियाँ पूछा करतीं
कौन सा तुझे खज़ाना मिला
पर गोपी के मूँह से
ना शब्द निकलता
प्रेम विह्वल गोपी का
रोम रोम पुलकित होता
बहुत पूछने पर इतना ही कह पाती
आज मैने अनूप रूप देखा है
और फिर
वाणी अवरुद्ध हो जाती
अंग शिथिल पड जाते
प्रेमाश्रु बहे चले जाते
क्रमशः ---------------
वाणी अवरुद्ध हो जाती
ReplyDeleteअंग शिथिल पड जाते
प्रेमाश्रु बहे चले जाते
भक्ति की पराकाष्ठा का बहुत सुन्दर चित्रण...
सभी त्योहारों की शुभकामनाएँ!
Tumharee jitnee bhee taareef kee jaye ,kam hai!
ReplyDeleteमैया मोरी, मैं नहीं माखन खायो।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और आनंददायक प्रसंग .............अदभुत
ReplyDeleteek sukun ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteदीपावली, गोवर्धनपूजा और भातृदूज की शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteदीपावली, गोवर्धनपूजा और भातृदूज की शुभकामनाएँ!
वाह ..
ReplyDeleteकृष्ण लीला का अद्भुत दर्शन
ReplyDeleteकृष्ण लीला के मोह से बचना असंभव है...
ReplyDeleteयूँ ही कृष्ण लीलामृतपान करते जाएँ,भक्तिपूर्ण प्रस्तुति के लिए आपका बहुत आभार
ReplyDeleteआपको सपरिवार दीपावली व नववर्ष की शुभकामनाएं !
आपके द्वारा यहाँ लिखी गई कृष्ण लीला हर बार बन को छु जाती है और आँखों के सामने जैसे कृष्ण लीला का एक चलचित्र सा चलने लगता है आभार ....
ReplyDeleteअरे वाह!
ReplyDeleteयह तो मनमोहक कान्हा प्रस्तुति है!!
निःशब्द!
ReplyDeleteगोपियां प्रेम में थीं और प्रेम मस्तिष्क से नहीं होता। बात जब हृदय की हो,तो महसूस करना ही अच्छा। बोलने का क्या काम!
ReplyDeleteमैया ने उन्हे उठाया है और सीने से लगाया है पल्लू से कान्हा को पोंछती जाती हैं साथ ही कहती जाती हैं तुझे कितना संवारूँ सजाऊँ पर तू गन्दगी मे जा लिपटता है मुझे लगता है पिछले जन्म मे तू सूअर था ये सुन कन्हैया मुस्कुरा रहे हैं और सोच रहे हैं जग नियन्ता की माँ होकर तू कैसे अनपढ़ रह सकती है माँ तू तो ब्रह्मज्ञानी है तुझे तो सब पता है पिछले जन्म मे मैने सूअर यानी वराह रूप भी धारण किया था
ReplyDeleteआपका भी कमाल है वंदना जी.
तीन बार टिपण्णी टाईप की,तीनो बार
आया "Required field must not
be blank"
अब की बार पुकारा है
जय श्री राम,जय श्री कृष्ण,जय यशोदा मैय्या,
जय वंदना जी.
देखता हूँ टिपण्णी प्रकाशित हुई की नही.
हो जाये तो प्लीज बता दीजियेगा.