सखी री मेरे
नैना भये चितचोर
श्याम को चाहें
श्याम को निहारें
प्रेम सुधा में
भीग- भीग जावें
मुझ बैरन के
हिय को रुलावैं
सखी री मेरे
नैना भये चितचोर
श्याम छवि पर
बलि -बलि जावें
मधुर स्मित पर
लाड- लड़ावें
मुझ बेबस की
एक ना मानें
सखी री मेरे
नैना भये चितचोर
श्याम पर रीझें
श्याम को रिझावें
मुरली की धुन पर
बरस- बरस जावें
मुझ बिरहन के
विरह को बढ़ावें
सखी री मेरे
नैना भये चितचोर
Tuesday, June 1, 2010
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श्री कृष्ण जी की भक्ति से सराबोर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना!
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हम तो इस रस में भीग ही नही गये
बल्कि नहा लिए!
कृष्णभक्ति श्रृंखला में लिखी गई ये कविता भी अच्छी बन पड़ी है और भक्ति काल के गीतों की याद दिलाती है.
ReplyDeleteACHCHHI RACHNA
ReplyDeletePADKAR ACHCHHA LAGA
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
khadi boli ka achcha upyog kia hai aapne .sundar rachna.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeletewaah Meera ke padon ki yaad dila di...
ReplyDeleteसखी तू तो भयी बावरी री तू तो भयी बावरी...
ReplyDeleteकान्हा की प्रीत
धर चित नयनन को धरे दोस
सब जाने फिर काहे खोये तू होस,
नयन बेचारे रोये
जब उनका सब मान खोये
अश्रु ना रोक पाये वो निरदोस,
सखी तू तो भयी बावरी री...
कुंवर जी,
भक्ति रस में भीगी बहुत सुन्दर रचना...बिलकुल कृष्णमय हो गए पढते पढते
ReplyDeleteवाह!! इस बोली में गीत गुनगुनाकर अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है ....शुरू से अंत तक सब कुछ लाजवाब ,,,,पढ़कर बहुत अच्छा लगा ..धन्यवाद
ReplyDeleteश्याम पर रीझें
ReplyDeleteश्याम को रिझावें
यही तो लीला है
सुन्दर रचना
happy birth day
ReplyDeleteKaise madhur,bhaktimay prem se sarabor rachna hai!
ReplyDeleteआपका ब्लॉग देखा बहुत ही अच्छा लगा।
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