Tuesday, July 13, 2010

ए री मोहे मिल गये नन्द किशोर

ए री मोहे मिल गये नन्द किशोर
 बाँह पकड़त हैं मटकी फोड़त हैं
करत हैं कितनी किलोल 
ए री मोहे ......................................

कभी छुपत हैं कभी दिखत हैं
कभी रूठत हैं कभी मानत हैं
जिया में उठत हिलोर 
ए री मोहे ........................................

रास रचावत हैं सबहों नचावत हैं
वेणु मधुर- मधुर ऐसी बजावत हैं
बाँध कर प्रेम की डोर 
ए री मोहे .........................................

 

15 comments:

  1. सचमुच वंदना जी लगता तो यही कि आपको नंद किशोर आखिर मिल ही गए। आपकी अर्ज उन्‍होंने सुन ली। आपके इस गीत में यह भाव इतने सहज तरीके से आया है कि लगता है इतने दिनों की आपकी तड़प अब अपने मुकाम पर पहुंच गई है। नंदकिशोर जी को प्रेम और नैन की डोर में बांधकर रखियेगा।

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  2. कभी छुपत हैं कभी दिखत हैं
    कभी रूठत हैं कभी मानत हैं
    जिया में उठत हिलोर
    ए री मोहे .................
    --
    बहुत सुन्दर भजन!

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  3. Bahut,bahut pyara geet hai..waqayi Nand kishor mil jane ki khushi chhalak rahi hai!

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  4. नन्द किशोर की भक्ति में ओत प्रोत रचना .....वाह बहुत सुन्दर !!

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  5. नटखट नन्द किशोर की रास का बहुत ही
    वन्दनीय चित्रण किया है आपने .....
    गीत - रचना की श्रृंखला में अनुपम प्रयोग . . .
    बधाई

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  6. mohay panghat pe nand lal chhed gayo re...

    bahut hee badhiya rachna vandana ji

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  7. aapke pass aur ho to mughe mail kriyega pls

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  8. waaaaaaaaaaaaaaaah aaj phli baar krishn bhakti wali kuch padhne ko mil rahi hai kya baat hai

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  9. बहुत सुन्दर भक्ति भाव से लिखा भजन

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  10. वन्दना जी, आपकी कृष्ण भक्ति को मेरा शत-शत नमन।
    जय श्री कृष्णा!

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  11. बाँध कर प्रेम की डोर
    ए री मोहे ..
    बहुत ही सुन्दर प्रेम रस में पगी,रचना

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  12. कृष्ण भक्ति से ओत-प्रोत,
    सुन्दर रचना के लिए आभार...

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  13. ऐसे गीतों का सृजन कम हो रहा है.. इस तरह ये एक विशिष्ट गीत हो गया..

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