ए री मोहे मिल गये नन्द किशोर
बाँह पकड़त हैं मटकी फोड़त हैं
करत हैं कितनी किलोल
ए री मोहे ......................................
कभी छुपत हैं कभी दिखत हैं
कभी रूठत हैं कभी मानत हैं
जिया में उठत हिलोर
ए री मोहे ........................................
रास रचावत हैं सबहों नचावत हैं
वेणु मधुर- मधुर ऐसी बजावत हैं
बाँध कर प्रेम की डोर
ए री मोहे .........................................
Tuesday, July 13, 2010
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सचमुच वंदना जी लगता तो यही कि आपको नंद किशोर आखिर मिल ही गए। आपकी अर्ज उन्होंने सुन ली। आपके इस गीत में यह भाव इतने सहज तरीके से आया है कि लगता है इतने दिनों की आपकी तड़प अब अपने मुकाम पर पहुंच गई है। नंदकिशोर जी को प्रेम और नैन की डोर में बांधकर रखियेगा।
ReplyDeleteकभी छुपत हैं कभी दिखत हैं
ReplyDeleteकभी रूठत हैं कभी मानत हैं
जिया में उठत हिलोर
ए री मोहे .................
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बहुत सुन्दर भजन!
Bahut,bahut pyara geet hai..waqayi Nand kishor mil jane ki khushi chhalak rahi hai!
ReplyDeleteनन्द किशोर की भक्ति में ओत प्रोत रचना .....वाह बहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteनटखट नन्द किशोर की रास का बहुत ही
ReplyDeleteवन्दनीय चित्रण किया है आपने .....
गीत - रचना की श्रृंखला में अनुपम प्रयोग . . .
बधाई
एक भावप्रद भजन।
ReplyDeletemohay panghat pe nand lal chhed gayo re...
ReplyDeletebahut hee badhiya rachna vandana ji
aapke pass aur ho to mughe mail kriyega pls
ReplyDeletewaaaaaaaaaaaaaaaah aaj phli baar krishn bhakti wali kuch padhne ko mil rahi hai kya baat hai
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भक्ति भाव से लिखा भजन
ReplyDeleteवन्दना जी, आपकी कृष्ण भक्ति को मेरा शत-शत नमन।
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा!
बाँध कर प्रेम की डोर
ReplyDeleteए री मोहे ..
बहुत ही सुन्दर प्रेम रस में पगी,रचना
कृष्ण भक्ति से ओत-प्रोत,
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए आभार...
ऐसे गीतों का सृजन कम हो रहा है.. इस तरह ये एक विशिष्ट गीत हो गया..
ReplyDeletej s k
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