प्रियतम
प्राण प्यारे
नैना जोहते
बाट तिहारी
तुझ बिन तडपत
रैन हमारी
पी -पी पुकारत
सांझ सकारे
तुझको खोजत
नैन हमारे
आस की आस
भी छूटन लागी
प्रीत की प्यास
भी टूटन लागी
तुझ बिन प्यारे
बरसत हैं
सावन भादों हमारे
कोऊ ना सन्देश
पाऊं तिहारा
पाती भी
सूनी आ जाती
बिन संदेस के
संदेस दे जाती
भूल गए
प्राणाधार हमारे
प्रेम के वो
हिंडोले भूले
कर आलिंगन के
रस्ते भूले
तिरछी कमान के
तीर भी टूटे
अधरों के अवलंबन
भी छूटे
रूठ गए
सांवरिया मोसे
भूल गए वो
प्रेम बिछोने
खोजत- खोजत
मैं तो हारी
नैना भी
पथरा गए हैं
प्रीतम ,आने की
राह तकत हैं
क्यूँ भूल गए सांवरिया
सूनी पड़ी प्रीत अटरिया
काहे भूल गए सांवरिया........
Sunday, July 4, 2010
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लाजवाब तरीके से विरह गीत लिखा आपने.. पर आकार कविता का क्यों??
ReplyDeleteविरह वेदना को खूब उतारा है शब्दों में...सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteएक सक्रिय ब्लागर होने पर भी बहुत दिनो से शेष फिर और खानाबदोश पर आपका आना नही हुआ।
ReplyDeleteब्लागिंग के टिप्पणी आदान-प्रदान के शिष्टाचार के मामले मे मै थोडा जाहिल किस्म का इंसान हूं लेकिन आपमे तो बडप्पन है ना...!
डा.अजीत
www.monkvibes.blogspot.com
www.shesh-fir.blogspot.com
भक्तिरस में सराबोर रचना पढ़कर तो हम भी भक्तिमय हो गये!
ReplyDelete--
सुन्दर रचना!
आपकी रचनाओं में गहन भाव समग्र रूप से दर्शनीय होता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सूनी पडी प्रीत अटरिया--- विरह की अथाह वेदना है इस रचना मे । रचना बहुत अच्छी लगी।शुभकामनायें
ReplyDeleteBada nazagat bhara geet hai...aur anootha bhi!
ReplyDeleteमंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुंदर रचना.....
ReplyDeleteशब्द शब्द से पीड़ा झर रही है...अनुपम रचना...वाह...
ReplyDeleteनीरज
virah ki vyatha ko shabdon mein dhaala hai aapane!...uttam rachanaa!
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना .....!!
ReplyDeletelajawaab abhvyakti...........bahut sundar
ReplyDeleteBahut sundar rachna !
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