तब शुकदेव जी कहने लगे
आहुक राजा के दो पुत्र थे
देवक और उग्रसेन
उग्रसेन महाप्रतापी राजा था
पवन रेखा उसकी भार्या
अति सुन्दरी पतिव्रता थी
कालसंयोग से इक दिन
वनविहार के समय
बिछड़ गयी राजा और सखियों से
घने जंगल में पहुँच गयी
द्रुम्लिक नामक दैत्य के
मन को भा गयी
उसकी कुदृष्टि से बच ना पाई
राजा का धर वेश उसने
रानी का शील हरण किया
और फिर निज स्वरुप में आ गया
उसे देख रानी का कलेजा थर्राया
रानी ने राक्षस को धिक्कारा
और श्राप देने का उपक्रम किया
तब वो राक्षस बोल उठा
रानी श्राप मत देना
तेरी बंद कोख को खोला है
और अपने धर्म का फल
तुझे दिया है
अब जो पुत्र तेरे उत्पन्न होगा
महाप्रतापी चक्रवर्ती राजा होगा
और परमेश्वर के हाथों
उसका उद्धार होगा
मैं पिछले जन्म का कालनेमि हूँ
हनुमान जी के हाथों मारा गया था
इतना कह राक्षस चला गया
पवन रेखा ईश्वर इच्छा समझ
स्वयं को धैर्य देने लगी
जब शिशु जन्म का समय आया
पृथ्वी पर भारी उपद्रव हुआ
दिशायें सारी भयभीत हुईं
दिन में अँधियारा होने लगा
बादल सिंह गर्जन करने लगे
दामिनी भी कड़कने लगी
वृक्ष धराशायी होने लगे
आंधियां तेज़ चलने लगीं
तारे टूटने लगे
उल्कापात होने लगे
ऐसे में बालक ने जन्म लिया
राजा ने पुत्र जन्म का
खूब उत्सव किया
दान दक्षिणा से याचकों का
घर बार भर दिया
ज्योतिषियों से बालक की
कुंडली बंचवायी है
कुंडली सुन राजा परम दुखी हुआ
जब पता चला
गौ , ब्राह्मण, देवताओं को
दुख देने वाला होगा
यज्ञ ,दान, तपस्या करने वालों
पर अत्याचार करेगा
राजसिंघासन छीन प्रजा को दुःख देगा
जब पृथ्वी दुखी होगी
तब परमात्मा जन्म लेकर
इसका उद्धार करेंगे
इतना सुन राजा दुखी हुआ
परमेश्वर की इच्छा जान संतोष किया
राजा ने एक डलिया मे
बालक को लिटाया है
और यमुना मे बहाया है
बहते बहते बालक शूरसेन को मिल गया
वो उसे अपने घर लाये हैं
और वसुदेव संग दोनो ने
साथ साथ शिक्षा पाई है
जब दोनो बडे हो गये
तब इक दिन नारद जी
उससे मिलने आये हैं
और उसे उसके जीवन का
सब हाल बतलाये हैं
इतना सुन कंस क्रोधित हो उठा
और बदला लेने को
आतुर हो गया
उसने जा घोर तपस्या कर
ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर
दस हजार हाथियो का बल पाया
और राजधानी मे आ उत्पात मचाया
अपने पिता को बंदी बनाया
जैसा भूदेवों ने बतलाया था
वैसा ही उसने आचरण पाया था
कंस के अत्याचारों से
पृथ्वी का ह्रदय डोलने लगा
दस हजार हाथियों का बल
तपस्या में पाया था
उसके अत्याचार से
सबका मन थर्राया था
पूजा पाठ यज्ञ हवन
बंद करवा दिए
इक दिन जरासंध का
एक हाथी पगला गया था
रास्ते से जाते कंस ने
उसे वश किया था
जरासंध ने उसके पौरुष
पर खुश हो
अपनी दो बेटियों
अस्ति और प्राप्ति
का उससे ब्याह किया
अस्ति और प्राप्ति
जैसे नाम थे वैसे ही
कंस के आचरण बनने लगे
अस्ति का मतलब" है "
और प्राप्ति कर अर्थ " इतना और पाना है "
बस इसी उहापोह में लग गया
घमंड से फूला ना समाता था
प्रजा पर मनमाने अत्याचार किया करता
क्रमश:
Sunday, July 17, 2011
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आप पर असीम प्रभु कृपा बरस रही है,वंदना जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,रोचक और धाराप्रवाह रूप से प्रस्तुत कर रहीं हैं कृष्ण लीला आप.
हम धन्य हैं कि आपका कृपा प्रसाद पा रहें हैं.
आपको हृदय से नमन.
बहुत सुंदरता से यह श्रृंखला चल रही है ... पूर्ण जानकारी देती अच्छी पोस्ट
ReplyDeletebeautiful ......... आप बहुत सुन्दर लिख रही हैं वंदना जी - लिखती रहिये - हम यह अमृत पीते रहेंगे ....
ReplyDeleteकथा का काव्य रूपान्तर, रसप्रद और रोचक है। सरस श्रृंखला की अगली कड़ी का इन्तजार!!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आ कर बहुत शांति मिलती है ............ये अमृतरूपी सरिता यूँ ही बहती रहे
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDeleteश्री कृष्ण जी की भक्ति में सरावोर हो गये यह रचना पढ़कर!
आभार!
महागीत की एक और श्रंखला।
ReplyDeleteबहुत रोचक और ज्ञानवर्धक भक्तिपूर्ण प्रस्तुति..आभार
ReplyDeletemam humko karashan ki lila ke bare me batane ke liye dhanyawwaad.
ReplyDeleteagle bhag ka intjaar rahega.
jai hind jai bharat
कृष्ण लीला के रोचक अध्याय...
ReplyDeleteprabhu saath chal rahe hain ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,वंदना जी
ReplyDeleteअगली कड़ी का इन्तजार है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
वंदना जी हार्दिक अभिवादन जय श्री कृष्ण राधे राधे बहुत सुन्दर प्रयास और धारावाहिक आप का ज्ञान वर्धक अस्ति और प्राप्ति बहुत मायामयी हैं
ReplyDeleteधन्यवाद -शुभ कामनाएं
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
bahut sundar lagi aapki ye shrankhala vandana ji.aapoki 1,2 post janokti par padhi se wahi se yaha tak aa gai.padhkar accha kaga
ReplyDeleteबहुत अच्छी है भावों की अभिव्यक्ति।
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