Friday, July 22, 2011

कृष्ण लीला………भाग 3

अब पृथ्वी बहुत घबरायी थी
गौ का रूप रख ब्रह्मा के पास आई थी
ब्रह्मा जी कहने लगे
इसका उपाय तो
विष्णु जी ही बताएँगे
और गौ को ले सभी देवता
महादेव सहित क्षीरसागर किनारे
करबद्ध प्रार्थना करने लगे
प्रभु तारनहारे
हमारी नैया पार लगा देना
जैसे ग्राह से गज को छुड़ाया
परशुराम अवतार लिया
पृथ्वी को क्षत्रिय रहित किया
ब्राह्मणों का उद्धार किया
राम रूप में भी
पृथ्वी का भार हरण किया
हर बार पृथ्वी के भार
को आपने दूर किया
इस बार भी उसकी
नैया पार लगाइए
अब देर ना लगाओ प्रभु
पृथ्वी भयातुर हो गयी है
आपकी शरण में आ गयी है
अब इसकी रक्षा कीजिये
पृथ्वी भार हरण के लिए
अब प्रभु अवतार लीजिये
स्तुति सुन आकाशवाणी हुई
पृथ्वी तुम डरो नहीं
जल्द मैं अवतार लूँगा
देवकी के गर्भ से जन्म लूँगा
यशोदा को  पालन का सुख दूंगा
जो भी सेवा करना चाहे
बाल लीलाओं का आनंद लेना चाहे
जाकर गोकुल में जन्म ले ले
इतना सुन सब आनंदमग्न हो गए
प्रभु गुणों को गाते
निज स्थानों पर गए
अब प्रभु जन्म की आस में
ज़िन्दगी बिताने लगे
देवताओं , गन्धर्व , किन्नर
ऋषि मुनि आदि ने
ब्रजक्षेत्र  में जन्म लिया
वेदों की ऋचाओं  ने
गोपी रूप धारण किया


इसके आगे शुकदेव जी कहने लगे
जब कंस का अत्याचार बढ़ा
तब उसने विचार किया
कुछ अच्छा कार्य करना चाहिए
सबके दिलों में सम्मान भी पाना चाहिए
इतना सोच उसने अपने
चाचा की लाडली देवकी का ब्याह तय किया
 देवकी का ब्याह कंस
वासुदेव से करने लगा
और बहुत धूम धाम से ब्याह किया
दान दहेज़ बहुत मन से दिया
प्रेम के वशीभूत हो
विदाई रथ को कंस
जब स्वयं हांकने लगा
तभी आकाशवाणी ने उद्घोष किया
जिसे इतने हर्ष से ले जाता है
उसी देवकी का आठवां पुत्र
तुझे चिरनिद्रा में सुलाएगा
तू काल के फंदे से ना बच पायेगा
इतना सुन कंस क्रोध से भर गया
अंग प्रत्यंग क्रोध  से जलने लगा
देवकी के बाल खींच जब
तलवार से उसे मारने लगा
तब वासुदेव जी ने विचार किया
अब ये इसकी बहन नहीं
मेरी भार्या है
और इसकी रक्षा करना
मेरा धरम होगा
वासुदेव धर्मनिष्ठ और सत्यव्रती थे
ये कंस जानता था
जब वासुदेव ने वचन दिया
अपना हर पुत्र तुम्हें भेंट करूँगा
चाहे जो कर लेना
मगर देवकी से कोई खतरा नहीं तुम्हें
इसलिए उसे छोड़ देना
सूर्य चंद्रमा को साक्षी जान
तुम्हें वचन मैं देता हूँ
इतना सुन कंस ने उन्हें छोड़ दिया



क्रमश:

17 comments:

  1. सुन्दर.. आध्यात्म से ओतप्रोत....पढ़ कर आनंद आ रहा है...

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  2. आप एक कालजयी कार्य कर रहीं हैं!
    --
    बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति है आज की!
    धन्यवाद!

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  3. एक प्रयास!!!!! सार्थक प्रयास ही नहीं, आनंदाभूति प्रयोग!!

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  4. वैसे यह कथा तो हम सबने सुनी ही है . प्रभु के अवतार का आनंद लेने के लिए देवतागण भी किसी न किसी रुप में प्रभु के करीब ही रहते थे.एक बार फिर आपने आनंदित कर दिया. आपके ब्लॉग पर आ कर मन प्रसन्न हो जाता है.

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  5. प्यारी दीदी.... बहुत ही सुन्दर रचना है... श्री कृष्ण कथा रस का पान इसी तरह से इस ह्रदय को करवाते रहे...

    जय श्री कृष्ण...

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  6. सार्थक अभिव्यक्ति !
    आभार !

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  7. केशव धृत दशविधि रूपा, जय जगदीश हरे।

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  8. Mam apka pryas ki me dad deta hun, man parsan ho gya hai.
    Jai hind jai bharat

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  9. सुंदर भक्तिभाव और प्रस्तुति.

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  10. रोचक शैली में सुंदर प्रस्तुति।

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  11. बहुत ही अच्छी पोस्ट

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  12. भक्ति रस से सराबोर खूबसूरत प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  13. बहुत सुन्दर और भक्तिभाव से पूर्ण प्रस्तुती!

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  14. सुंदर और भक्ति भाव से युक्त....

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  15. आपकी यह प्रस्तुति भी अति सुन्दर है,वंदना जी.
    लगता है आप अपनी भक्ति के रंग में सभी को रंग डालेंगीं.आपका 'एक प्रयास' अति उत्तम है.

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