मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊँ
और तुम राधा के दासएक दूजे की पीर समझ लें
फिर दोनों के प्राण
ओ श्याम तब जानोगे तुम
दिल की लगी की प्यास
मेरे हिय की जलन है ऐसी
जिसमे जल जाएँ दोनों जहान
इक बार तुम भी जलकर देखो
इस जलन में मोहन प्राण आधार
तब जानोगे कैसी होती है
पिया मिलन की प्यास
जल बिन जैसे मीन प्यासी
तडफत हूँ दिन राति
तुम भी तड़प के देखो प्यारे
फिर जानोगे प्रेम की धार
तुम निर्मोही निःसंग बने हो
कैसे तुमको समझाऊँ
इक बार राधे चरण में आओ
प्रीत की रीत उनसे निभाओ
तुम भी आग पर चलकर देखो
प्रिय मिलन को तरस के देखो
फिर जानोगे कैसी होती
ये ह्रदय की संत्रास
तुम भी प्रेम दीवाने बनकर देखो
राधे के चरण पकड़कर देखो
तब जानोगे मेरे दिल की
कैसे टूटे आस
प्रेम दीवानी वन वन भटकूँ
फिर भी ना पाऊँ ठौर तुम्हारा
एक बार आजाओ गले लगा जाओ
पूरी हो जाए हर आस
मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊं
तुम राधा के दास
हिलमिल दिल व्यथा सुनाएं
एक दूजे को हम समझाएं
पूरण हो जाए हर आस
राधे दीवाने तुम बन जाओ
मोहन दीवानी मैं बन जाऊँ
गलबहियां देकर हिलमिल नाचें
इक दूजे में खुद को समा लें
मैं तेरी तुम मेरे बन जाओ
पूरण हो जाये हर आस
श्याम चरण में चित को लगा के
प्रेम रंग में खुद को रंग के
श्याम पिया की छवि बन जाऊँ
श्याम श्याम की रटना लगाऊं
और ना रहे कोई आस जिया में
श्याम की सजनी मैं बन जाऊं
पूरण कर लूं हर आस
प्यारे जू के चरण शरण में
कर दूं तन मन अर्पण
प्रेम प्रेम की रटना लगाऊं
हो जाऊँ प्रेम रस अंग संग
रसो वयी सः मैं बन जाऊँ
पूरण हो जाए हर आस
मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊँ
और तुम राधा के दास
फक्त रस से ओत-प्रोत सुन्दर रचना रचन के लिए
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
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व्स्तव में सच्चा सुख तो भक्ति में ही है!
मगर आज का इनसान इससे दूर भागता जा रहा है!
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आप इस तरह के साहित्य का स्रजन करती रहें!
यही कामना है!
जय श्री कृष्णा...
ReplyDeleteकृष्णा ने बाँसुरी बजाई न होती,
पग घुंघरु बाँध मीरा नाची न होती॥
कान्हा ने प्रीत सिखाई न होती,
गोपी राधा प्रेम की दीवानी न होती॥
हो जाऊँ प्रेम रस अंग संग
ReplyDeleteरसो वयी सः मैं बन जाऊँ
...
saundarya purn ehsaas
मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊँ और तुम राधा के दास। वाह बहुत सुन्दर। बधाई और शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत ही ममस्पर्शी भाव प्रस्तुत किये आपने दीदी...
ReplyDelete"जल बिन जैसे मीन प्यासी
तडफत हूँ दिन राति
तुम भी तड़प के देखो प्यारे
फिर जानोगे प्रेम की धार"
ईन चार पंक्तियों ने चित्त को ऐसा भावविभोर किया, कि और कुछ कहने के लिए शब्द नहीं है मेरे पास...
इस श्री श्यामसुन्दरचरणानुरागी का, आपके सुहृदय के भावो को शत शत नमन...
Bakti se otprot rachanayen likhneme tum mahir ho!
ReplyDeleteआज तो भक्ति रस में डूब गयी आपकी कलम ....बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteद्वैध भाव को ख़त्म करते हुए अद्वत कविता
ReplyDeleteबधाई
भक्ति रस मे डुबी हुयी एक अति सुंदर प्रेम रचना के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteएक बार आजाओ गले लगा जाओ
ReplyDeleteपूरी हो जाए हर आस
मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊं
prem ke atut ehsaas
कमाल की रचना ....
ReplyDeleteशुभकामनायें
मीरापन में असीम आनन्द है पर कोई वैसा समर्पण दिखा पाये, तब न। उस भाव की सुन्दरता लुटाती कविता।
ReplyDeleteअच्छी भाषा - अच्छी भावना - रसभरी लाईनें - मर्मस्पर्शी , कोमल पद - मनोरम प्रस्तुति । बधाई ।
ReplyDelete"मैं प्रेम दीवानी मीरा बन जाऊँ
ReplyDeleteऔर तुम राधा के दास"...
राधा कृष्ण के प्रेम के बहाने आज प्रेम को पुनः परिभाषित करती कविता अच्छी लगी.. राधा का दास होना प्रेम में समर्पण के भाव को दिखा रहा है.. अच्छी कविता
नितांत व्यक्तिगत अंत:कर्ण/ अंतर्ध्वनि.
ReplyDeleteBahut Khubsurat Abhivyakti.
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