हवा के बहने से
पत्ते के हिलने से
पैदा होता नैसर्गिक
संगीत कभी सुना है
सुनना ज़रा
कल- कल करती
नदी के बहने का
मधुर संगीत
फूल की पंखुड़ी
पर गिरती ओस की
बूँद का अनुपम संगीत
तितली की पंखुड़ी
के हिलने से पैदा होता
मनमोहक संगीत
सुना है कभी
सुनना कभी
कण -कण में व्याप्त
दिव्य संगीत की धुन
बिना आवाज़ का
बहता प्रकृति का
अनुपम संगीत
रोम- रोम
को महका देगा
ह्रदय को
प्रफुल्लित
उल्लसित कर देगा
ब्रह्मनाद का आभास
करा जायेगा
तुझे तुझमे व्याप्त
ब्रह्म से मिला जायेगा
अनहद नाद बजा जायेगा
Thursday, December 23, 2010
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प्रकृति के सारे अंगों का स्वर अद्भुत है, कान लगा कर सुनिये तो।
ReplyDeleteसुन रही हूँ इस कविता के माध्यम से और ब्रह्म के नैसर्गिक सुख को आत्मसात कर रही हूँ ... शब्द शब्द ब्रह्म को स्थापित कर रहे हैं ...
ReplyDeleteवंदना जी.
ReplyDeleteइधर आपके लेखन में माधुर्य बढ़ा है. क्यों और कैसे ये मैं नहीं जानता.माँ सरस्वती आपका साथ देती हुई नज़र आ रही हैं.नैसर्गिक संगीत की विभिन्न कोणों से काव्यात्मक व्याख्या बहुत खूबसूरत की है आपने. बधाई.
sari prakriti me usi anhad naad ka shashvat sangeet samahit hai ..
ReplyDeletebas use anubhoot karne ki kuwwat chahiye..
swayam pravahit rachna.
आदरणीय वंदना जी.
ReplyDeleteनमस्कार !
काव्यात्मक व्याख्या बहुत खूबसूरत
ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुँच गए..
.........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
बिना आवाज़ का
ReplyDeleteबहता प्रकृति का
अनुपम संगीत
रोम- रोम
को महका देगा
ह्रदय को
प्रफुल्लित
उल्लसित कर देगा
--
बहुत सुन्दर कल्पना को सजाया है
आपने इस रचना में।
प्रकृति में व्याप्त संगीत का सुन्दर विश्लेषण किया है आपने.. सूक्ष्म अवलोकन है प्रकृति का.. एक संगीतमय कविता... मन झंकृत हो गया..
ReplyDeleteबहुत मधुर जी, धन्यवाद
ReplyDeleteसंगीत उसी अनहद नाद की ही तलाश है लेकिन दुनिया में ऐसे बहुत से अवरोध हैं जो वहाँ तक पहुँचने ही नहीं देते ..वहीं लय टूट जाती है और ताल खत्म हो जाता है । जिन्दगी में अगर संगीत का सुख चाहिये तो उन अवरोधों को दूर करना ही होगा ।
ReplyDeleteअनहद नाद स बजने वाला संगीत बहुत कठिनाई से सुनने को मिलता है ....प्रकृति के संगीत को सुनने का प्रयास जारी है ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह कविता।
ReplyDeleteधन्य है .
ReplyDeleteसुंदर कविता -
ReplyDeleteसुंदर प्रकृति का एहसास कराती हुई -
bhut hi sundarta se nature ke sabhi rango ko apni kavita me samet liya..............bhut hi sundar rachna
ReplyDeleteकमाल की प्रस्तुति..हरेक शब्द का संगीत मन को मोहित कर गया. आभार
ReplyDeleteवाह क्या बात है। ये सारा संगीत रुक कर तल्लीन होकर सुना है कई बार। अब तो ये संगीत ध्वनि प्रदूषण के कारण शहर में तो आसानी से सुनाई नहीं देता, फिर भी जब बी मौका मिलता है तो तल्लीन होकर सुनता हूं। हां वो बह्म नाद नहीं सुना...वैसे भी हम पापियों को इतना पवित्र संगीत सुनाई नहीं देने वाला।
ReplyDeleteदिव्य संगीत की धुन
ReplyDeleteबिना आवाज़ का
बहता प्रकृति का
अनुपम संगीत
रोम- रोम
को महका देगा
तुझे तुझमे व्याप्त
ब्रह्म से मिला जायेगा
दिव्य अहसास है इस गहराई में डूबना!!
sunder prastuti. HAPPY NEW YEAR_2011
ReplyDeleteसुन्दर कविता |
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