ना वो मिला
ना उसे मिलने की
हसरत हमसे
बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन
वो अपना बनाता भी नहीं
पास बुलाता भी नहीं
छः अंगुल की दूरी
मिटाता भी नहीं
बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन
वो सपने में आता भी नहीं
ख्वाब दिखाता भी नहीं
बाँसुरिया सुनाता भी नहीं
रास रचाता भी नहीं
मोहिनी मूरत दिखाता भी नहीं
बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन
कोई चाहत परवान
चढ़ाता भी नहीं
विरह वेदना
मिटाता भी नहीं
एक बार दरस
दिखाता भी नहीं
ह्रदय फटाता भी नहीं
मरना सिखाता भी नहीं
बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन
Thursday, December 2, 2010
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दर्द और संवेदना...
ReplyDeleteसरल और गहरी कविता..
अच्छी लगी..
आभार
आदरणीय वन्दना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
वो अपना बनाता भी नहीं
पास बुलाता भी नहीं
छः अंगुल की दूरी
मिटाता भी नहीं
बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन
क्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.
.....प्रेम पगे भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति
भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ... आप इतना अच्छा लिखती है.. की पढ़कर मैं भी भावों की दुनिया में खो जाता हूँ .... आभार
ReplyDeleteपास होकर भी दूर-दूर होते हैं।
ReplyDeleteख्वाब मिलने के हम संजोते हैं।।
--
इसी का नाम तो जीवन है!
--
सही विश्लेषण,
सुन्दर रचना!
तथ्यपूर्ण सुंदर रचना
ReplyDeleteतथ्यपूर्ण सुंदर रचना
ReplyDeleteउस ऊपर वाले का खेल ऐसा ही है ...वह सभी को यूँही सताता रहता है।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना है वन्दना जी। बधाई।
पास होकर भी दूर-दूर होते हैं।
ReplyDeleteख्वाब मिलने के हम संजोते हैं।।
बहुत ही सुन्दर एवं भावमय करती यह रचना ।
साथ भी होना, उसके बिना भी होना.. जीवन में अक्सर ऐसी विडम्बना होती है... सुन्दर प्रेम कविता..
ReplyDeleteछः अंगुल की दूरी
ReplyDeleteमिटाता भी नहीं
यही छ: अंगुल की दूरी तो नहीं मिटती. लम्बी दूरियाँ तो फिर भी मिट जाती हैं.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
"बस गुजर रही है
ReplyDeleteउसके साथ
उसके बिन"
"बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन"
सहज,स्वाभाविक मार्मिकता पूरी रचना में...कुछ-कुछ ऐसा सा ही लिखना चाहता हूँ मै भी....
कुंवर जी,
बस गुज़र रही है --उसके बिन...बेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबस गुज़र रही है --उसके साथ, उसके बिन...अच्छा प्रयास.
ReplyDeleteजीवन के द्वन्द की पराकाष्ठा।
ReplyDeleteभाव पूर्ण अभिव्यक्ति ...ईश्वर है भी और नहीं भी ....
ReplyDeleteरिश्तो को समझने के लिए यह कविता पैमाना बन गया है.. सुन्दर कविता..
ReplyDeleteगिरधर के लिए मीरा की एक सुन्दर शिकायतपूर्ण अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteKya likhti ho har baar!
ReplyDeletebahut sundar prastuti.....shubhakamnaaye
ReplyDeleteबहुत खूब ।
ReplyDeleteवंदना जी, अनुभूतियों की तीवृता मन को छू गयी। बधाई।
ReplyDelete---------
ईश्वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।
"उसके साथ ... उसके बिन" के विरोधाभास पर बुनी सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसादर!
गहरे भाव के साथ शानदार रचना लिखा है आपने जो सराहनीय है!
ReplyDeletebhawpurn sunder kavita.
ReplyDeleteवो अपना बनाता भी नहीं
ReplyDeleteपास बुलाता भी नहीं
छः अंगुल की दूरी
मिटाता भी नहीं
बस गुजर रही है
उसके साथ
उसके बिन
क्या बात है..बहुत खूब....गहरी कशमकश . खूबसूरत अभिव्यक्ति. शुभकामना
bhut hi bhavpurn abhivykti .dil ki bat hai dil se hi smjhi ja skti hai . bhut khoob .
ReplyDeleteइस कविता के दो dimensions है , एक प्रेम का और दूसरा भक्ति का ... मुझे दोनों ही अच्छे लगे ... बहुत सुद्नर . मुरलीवाले कृष्ण कि कृपा हो आप पर
ReplyDeleteविजय