मधु हो तुम
और मेरी क्षुधा अनंत
सदियों से अतृप्त
प्रेम सुधामृत हो तुम
और मेरी तृष्णा अखंड
सदियों से अपूर्ण
अलोकिक श्रृंगार हो तुम
रूप का अनुपम भंडार हो तुम
और मैं प्रेमी भंवरा
सदियों से रूप पिपासु
पूर्ण हो तुम
और मेरी यात्रा अपूर्ण
सदियों से भटकता
सदियों तक भटकता
अनंत कोटि मिलन
अनंत कोटि विछोह
अनंत अपूरित
तृष्णाओं का महाजाल
ओह! पूर्ण , कहो
अब कैसे अपूर्ण
पूर्ण हो ?
कैसे विशालता में
बिंदु समाहित हो?
हे पूर्ण तृप्त
करो मुझे भी
अब पूर्ण तृप्त !
और मेरी क्षुधा अनंत
सदियों से अतृप्त
प्रेम सुधामृत हो तुम
और मेरी तृष्णा अखंड
सदियों से अपूर्ण
अलोकिक श्रृंगार हो तुम
रूप का अनुपम भंडार हो तुम
और मैं प्रेमी भंवरा
सदियों से रूप पिपासु
पूर्ण हो तुम
और मेरी यात्रा अपूर्ण
सदियों से भटकता
सदियों तक भटकता
अनंत कोटि मिलन
अनंत कोटि विछोह
अनंत अपूरित
तृष्णाओं का महाजाल
ओह! पूर्ण , कहो
अब कैसे अपूर्ण
पूर्ण हो ?
कैसे विशालता में
बिंदु समाहित हो?
हे पूर्ण तृप्त
करो मुझे भी
अब पूर्ण तृप्त !
सुन्दर भाव और सूफियाना अंदाज़े बाया करती रचना
ReplyDeleteबधाई
--
..बहुत ही सुंदर शब्दों का संगम!...
ReplyDeleteअपूर्णता से पूर्णता की ओर
ReplyDeleteबेहतरीन कविता.....
बेहतरीन लिखा है
ReplyDeleteprem se bhari rachna .... jismen divyta ka ahsaas hota hai....
ReplyDeletekaro mujhe bhi ab poorn tript..bahut sundar bhavabhivyakti..
ReplyDeleteसब जग
ReplyDeleteअधूरा मन
इसी तलाश में
Wah,Vandana wah!
ReplyDeleteकुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
ReplyDeleteरस भाव समेटे बढ़िया कृति
ReplyDeleteमधु हो तुम
ReplyDeleteऔर मेरी क्षुधा अनंत
सदियों से अतृप्त ....
मधुमय रचना .
ati sundar rachana
ReplyDeleteपूर्णता, अपूर्णता का संबंध तो बना रहेगा, प्रवाह भी।
ReplyDeleteसुन्दर भाव और सूफियाना अंदाज़े बाया करती रचना
ReplyDeleteबधाई...
खूबसूरत कामना ...भक्ति से सराबोर
ReplyDeleteबहुत उम्दा!
ReplyDeleteपूर्णमदः पूर्णमिदम्!
ReplyDeleteसुन्दर कामना और भावना को लिए हुए
सुन्दर रचना!
बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteअनंत अपूर्ण क्षुधा को प्रेम से पूर्ण करने की चाहत ...
ReplyDeleteसुन्दर कविता !
priya vandana ji,
ReplyDeletepranam ,
sundar chitran ,sargabhit,man ko chhuti ,bhavmayi prasuti. abhar.
प्रेम रस से लबरेज़ अच्छी अभिwयक्ति ,जो ईश्वरीय प्रेम की भी याद दिलाती है, गर सू्फ़ियाना अन्दाज़ से निहारें। ,मुबारक।
ReplyDeleteइस बार आपकी कविता का रूमानी पक्ष उभर कर सामने आया है.
ReplyDeleteयहाँ "तुम" का संबोधन ईश्वर के लिए है क्या ?
@कुंवर जी
ReplyDeleteये पूरी रचना ही ईश्वर को समर्पित है ...........पूरी रचना में उसे ही संबोधित किया है .
बेहतरीन प्रस्तुति !
ReplyDeleteओह! पूर्ण , कहो
ReplyDeleteअब कैसे अपूर्ण
पूर्ण हो ?
कैसे विशालता में
बिंदु समाहित हो?
हे पूर्ण तृप्त
करो मुझे भी
अब पूर्ण तृप्त !
गहन अहसास...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
नमस्कार........ आपका कि कविता मन को छु गयी......
ReplyDeleteमैं ब्लॉग जगत में नया हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें......
http://harish-joshi.blogspot.com/
आभार.
अति सुन्दर--वेदों में वर्णित ..मधुला विद्या...व ओम पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णामे्वावशिय्ते....का अद्भुत संगम....
ReplyDeleteबहुत सुब्दर रचना। बधाई।
ReplyDelete'He poorn tript,karo muze bhi ab poorn tript' koi bhakt hi bhagwan se kehta hai.Ye to nadia ki tadaf hai samunder se milne ki,aatma ki pukar hai parmatma se milan ki.Aisi
ReplyDeletebhav aur bhakti se poorn rachana ko
sat sat pranam.
i like it.
ReplyDeleteamazing poem .... waah waah waah ..
ReplyDeleteसुन्दर कविता !
ReplyDeleteॐ कश्यप में ब्लॉग में नया हूँ
कर्प्या आप मेरा मार्ग दर्शन करे
धन्यवाद
http://unluckyblackstar.blogspot.com