Thursday, January 27, 2011

मधु हो तुम

मधु हो तुम
और मेरी क्षुधा अनंत
सदियों से अतृप्त 


प्रेम सुधामृत हो तुम
और मेरी तृष्णा अखंड 
सदियों से अपूर्ण

अलोकिक श्रृंगार हो तुम
रूप का अनुपम भंडार हो तुम
और मैं प्रेमी भंवरा
सदियों से रूप पिपासु


पूर्ण  हो तुम
और मेरी यात्रा अपूर्ण
सदियों से भटकता
सदियों तक भटकता
अनंत कोटि मिलन
अनंत कोटि विछोह 
अनंत अपूरित
तृष्णाओं का महाजाल 
ओह! पूर्ण , कहो 
अब कैसे अपूर्ण
पूर्ण  हो ?
कैसे विशालता में
बिंदु समाहित हो?
हे पूर्ण तृप्त
करो मुझे भी 
अब पूर्ण तृप्त !

33 comments:

  1. सुन्दर भाव और सूफियाना अंदाज़े बाया करती रचना
    बधाई

    --

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  2. ..बहुत ही सुंदर शब्दों का संगम!...

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  3. अपूर्णता से पूर्णता की ओर

    बेहतरीन कविता.....

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  4. बेहतरीन लिखा है

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  5. bahut hi umda likha hai Vandana Ji...

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  6. bahut hi umda likha hai Vandana Ji...

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  7. karo mujhe bhi ab poorn tript..bahut sundar bhavabhivyakti..

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  8. सब जग
    अधूरा मन
    इसी तलाश में

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  9. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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  10. मधु हो तुम
    और मेरी क्षुधा अनंत
    सदियों से अतृप्त ....

    मधुमय रचना .

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  11. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार 29.01.2011 को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    आपका नया चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  12. पूर्णता, अपूर्णता का संबंध तो बना रहेगा, प्रवाह भी।

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  13. सुन्दर भाव और सूफियाना अंदाज़े बाया करती रचना
    बधाई...

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  14. खूबसूरत कामना ...भक्ति से सराबोर

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  15. पूर्णमदः पूर्णमिदम्!
    सुन्दर कामना और भावना को लिए हुए
    सुन्दर रचना!

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  16. बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद

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  17. अनंत अपूर्ण क्षुधा को प्रेम से पूर्ण करने की चाहत ...
    सुन्दर कविता !

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  18. priya vandana ji,

    pranam ,

    sundar chitran ,sargabhit,man ko chhuti ,bhavmayi prasuti. abhar.

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  19. प्रेम रस से लबरेज़ अच्छी अभिwयक्ति ,जो ईश्वरीय प्रेम की भी याद दिलाती है, गर सू्फ़ियाना अन्दाज़ से निहारें। ,मुबारक।

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  20. इस बार आपकी कविता का रूमानी पक्ष उभर कर सामने आया है.
    यहाँ "तुम" का संबोधन ईश्वर के लिए है क्या ?

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  21. @कुंवर जी
    ये पूरी रचना ही ईश्वर को समर्पित है ...........पूरी रचना में उसे ही संबोधित किया है .

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  22. बेहतरीन प्रस्तुति !

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  23. ओह! पूर्ण , कहो
    अब कैसे अपूर्ण
    पूर्ण हो ?
    कैसे विशालता में
    बिंदु समाहित हो?
    हे पूर्ण तृप्त
    करो मुझे भी
    अब पूर्ण तृप्त !

    गहन अहसास...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  24. अति सुन्दर--वेदों में वर्णित ..मधुला विद्या...व ओम पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णामे्वावशिय्ते....का अद्भुत संगम....

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  25. बहुत सुब्दर रचना। बधाई।

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  26. 'He poorn tript,karo muze bhi ab poorn tript' koi bhakt hi bhagwan se kehta hai.Ye to nadia ki tadaf hai samunder se milne ki,aatma ki pukar hai parmatma se milan ki.Aisi
    bhav aur bhakti se poorn rachana ko
    sat sat pranam.

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