Thursday, August 4, 2011

कृष्ण लीला ………भाग 6



इधर यशोदा जी की जब आँख खुली
चंद्रमुखी बालक को देख प्रसन्न हुईं
आनंद मंगल मन में छा गया
नन्द बाबा को समाचार पहुंचवा दिया
घर घर मंगल गान होने लगे 
सब नन्द भवन की तरफ़ दौडने लगे
सबके ह्रदय प्रफुल्लित होने लगे
प्रेमानंद ब्रह्मानंद छा गया
गोप गोपियों में
हर्षोल्लास छा गया
गोपियाँ नृत्य करने लगीं
मंगल वाद्य बजने लगे
मंत्रोच्चार होने लगे
नन्द बाबा दान करने लगे
नौ लाख गाय दान कर दी हैं 
पर फिर भी ना कोई गिनती है
बाबा हीरे मोती लुटाने लगे
सर्वस्व अपना न्योछावर करने लगे
जिसने पाया उसने भी ना
अपने पास रखा
दान को आगे वितरित किया
आनन्द ऐसा छाया था
ज्यों नन्दलाला हर घर मे आया था
साँवली सुरतिया मोहिनी मूरतिया
हर मन को भाने लगी
हर सखी कहने लगी
लाला मेरे घर आये हैं
किसी को भी ना ऐसा भान हुआ
लाला का जन्म नन्द बाबा घर हुआ
हर किसी को अहसास हुआ
ये मेरा है मेरे घर जन्मा है
देवी देवता ब्राह्मण वेश धर आने लगे
प्रभु दर्शन पा आनंदमग्न होने लगे
बाल ब्रह्म के दर्शन कर 
जन्म सफ़ल करने लगे
रिद्धि सिद्धियाँ अठखेलियाँ करने लगीं
ब्रजक्षेत्र लक्ष्मी का क्रीड़ास्थल बन गया
रोज आनंदोत्सव होने लगा 
इधर कंस का उदघोष सुना है
नन्द बाबा का मुख सूख गया है
आपस मे विचार किया
कंस को मनाने और कर देने के लिए
नन्द बाबा ने मथुरा को प्रस्थान किया
ताकि उनके लाला पर ना
कंस की कुदृष्टि पड़े
जब से सुना था बालकों का
वध करने का आदेश पारित किया है
तब से नन्द बाबा ने विचार किया
और जाकर मथुरा
कंस का भुगतान किया
अब वासुदेव से मिलने का
फ़र्ज़ भी निभाया
मित्रों ने हाल आदान प्रदान किये
कंस से बच्चों को बचाने के
उपाय तय किये
अब नन्द बाबा को जाने को कहा
इधर कंस को चैन ना पड़ता था
रात दिन उसे अपने 
मारने वाला ही दिखता था
अपने मत्रिमंड्ल से मशवरा किया
और
पूतना को कान्हा को
मारने का काम दिया

18 comments:

  1. कृष्‍ण रंग में भक्ति की यह अविरल धारा यूं ही प्रवाहित होती रहे ...आपका आभार इस बेहतरीन प्रयास के लिये ।

    ReplyDelete
  2. कृष्ण लीला की धारा में बह रहे हैं ..

    ReplyDelete
  3. आधुनिक सुर और मीरा हैं आप.. आपकी कृष्ण भक्ति अदभुद और अनुकरणीय है..

    ReplyDelete
  4. यशोदा के मन की आह्लादित गति... कितना सुन्दर है सबकुछ

    ReplyDelete
  5. वाह ..पढ़कर मन आनंदित हो गया .आभार आपका

    ReplyDelete
  6. जन्माष्टमी के पूर्व कृष्णलीला की रचना पढ़कर हम भी भक्तिमय हो गये!

    ReplyDelete
  7. इस धारा में बार बार डुबकी लगा लेते हैं।

    ReplyDelete
  8. वंदना जी, कृष्ण लीला
    पर आपका काव्य आनंददायी है।
    आप अत्यंत भाग्यशाली हैं कि आपको
    यह सौभाग्य मिला है। भगवान की चर्चा से कभी
    मन नहीं भर सकता। ईश्वर आपकी सद्कामनाएं
    पूरी करें।
    - विनय बिहारी सिंह

    ReplyDelete
  9. वंदना जी, कृष्ण लीला
    पर आपका काव्य आनंददायी है।
    आप अत्यंत भाग्यशाली हैं कि आपको
    यह सौभाग्य मिला है। भगवान की चर्चा से कभी
    मन नहीं भर सकता। ईश्वर आपकी सद्कामनाएं
    पूरी करें।
    - विनय बिहारी सिंह

    ReplyDelete
  10. वंदना जी, कृष्ण लीला
    पर आपका काव्य आनंददायी है।
    आप अत्यंत भाग्यशाली हैं कि आपको
    यह सौभाग्य मिला है। भगवान की चर्चा से कभी
    मन नहीं भर सकता। ईश्वर आपकी सद्कामनाएं
    पूरी करें।
    - विनय बिहारी सिंह

    ReplyDelete
  11. बढ़िया रचना के लिए शुभकामनायें

    आभार आपका= विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  12. अच्छा प्रयोग है...कृष्ण-लीला का ये स्वरुप...अत्यंत रास आ रहा है...

    ReplyDelete
  13. वंदना.

    जैसे कि मैंने उस दिन कहा था , भगवान की अथाह कृपा होने पर ही कोई प्राणी उनके बारे में लिख सकता है .. वरना , हम सब तो सिर्फ सुनते है और पढते है , या ज्यादा से ज्यादा एक दो कविता या गीत या भजन लिख लेते है .. लेकिन उस महाप्रभु की महागाथा लिखने का सौभाग्य बिरले को ही प्राप्त होता है ... जब मैंने पिछली बार तुम्हारी इस कथा को पढ़ा था तो मुझे बहुत आंतरिक खुशी हुई थी और मुझे उज्जैन के कृष्ण मंदिर याद आ गया था ..

    मेरी परम इच्छा है कि , जब ये कथा पूरी हो जाए तो , इसे एक PDF FORMAT में बनाकर सारे मित्रों को देना , इससे अच्छा उपहार और कोई न होंगा .

    प्रभु श्री कृह्सं कि अनुकम्पा तुम पर और तुम्हारे परिवार जानो पर बनी रहे.. यही हृदय से प्रार्थना है ...

    अंत में " हरी अनंत , हरी कथा अनंत "

    जय श्री कृष्ण ..!!!!

    विजय

    ReplyDelete
  14. एक ही बालक को लेकर कोई हर्ष में,कोई शोक में।अपना-अपना भाग्य अपनी-अपनी नियति!

    ReplyDelete
  15. सुबह उठकर आपकी रचना पढ़कर मन ख़ुशी से भर गया ! भक्ति से परिपूर्ण रचना!

    ReplyDelete
  16. आपका सुप्रयास अनुपम है, वन्दनीय है,वंदना जी.
    आपकी प्रस्तुति को पढ़ने का मौका मिल रहा है,इसके लिए मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूँ.
    बहुत बहुत आभार आपका.

    हाथी दीनों, घोडा दीनों और दीनी पालकी
    नन्द के आनंद भयो,जय कन्हैयालाल की.

    ReplyDelete