करने लगे विचार ग्वाल बाल
कैसे करें दाह संस्कार
राक्षसी बहुत बडी थी
पूतना वध सुन कंस घबरा गया
मुझे मारने वाला गोकुल में है जान गया
कैसे करें दाह संस्कार
राक्षसी बहुत बडी थी
अट्ठारह कोस में थी गिरी
कुल्हाड़ी से उसके
अंगों को काट काट
एकत्र किया और जला दिया
दिव्य सुगंधित धुंआ जब उठा
ग्रामवासियों का अचरज का
कुल्हाड़ी से उसके
अंगों को काट काट
एकत्र किया और जला दिया
दिव्य सुगंधित धुंआ जब उठा
ग्रामवासियों का अचरज का
ना पारावार रहा
मगर जिसे ठाकुर ने छू लिया हो
जिसका स्तनपान किया हो
फिर चाहे वो कितना बड़ा पापी हो
स्पर्श से पापमुक्त हो जाता है
और भगवान सी दिव्यता पा जाता है
जो गति बाद में यशोदा को पानी थी
वो आज प्रभु ने पूतना को दे डाली थी
क्यूँकि स्तनपान माँ का किया जाता है
इस कारण परमगति की अधिकारिणी जाना
और माँ की पदवी दे मुक्त किया
ऐसे दयालु प्रभु का क्यों ना कोई चिंतन करे
जो उन्हें मारने आता है
उसे भी परमगति जो देते हैं
ऐसे दीनदयालु प्रभु कहाँ मिलते हैं
इतनी सी बात मानव ना समझ पाता है
मगर जिसे ठाकुर ने छू लिया हो
जिसका स्तनपान किया हो
फिर चाहे वो कितना बड़ा पापी हो
स्पर्श से पापमुक्त हो जाता है
और भगवान सी दिव्यता पा जाता है
जो गति बाद में यशोदा को पानी थी
वो आज प्रभु ने पूतना को दे डाली थी
क्यूँकि स्तनपान माँ का किया जाता है
इस कारण परमगति की अधिकारिणी जाना
और माँ की पदवी दे मुक्त किया
ऐसे दयालु प्रभु का क्यों ना कोई चिंतन करे
जो उन्हें मारने आता है
उसे भी परमगति जो देते हैं
ऐसे दीनदयालु प्रभु कहाँ मिलते हैं
इतनी सी बात मानव ना समझ पाता है
पूतना वध सुन कंस घबरा गया
मुझे मारने वाला गोकुल में है जान गया
सभासदों को अति द्रव्य का लालच दिया
लालचवश ब्राह्मण श्रीधर बोल उठा
ये कार्य मैं संपन्न करूंगा
राजन तुम ना चिंता करो
उस बालक को मार तुझे अभय दूंगा
पंडित का वेश बना
यशोदा के पास पहुँच गया
और बालक का दिव्य हाल कहा
ये कार्य मैं संपन्न करूंगा
राजन तुम ना चिंता करो
उस बालक को मार तुझे अभय दूंगा
पंडित का वेश बना
यशोदा के पास पहुँच गया
और बालक का दिव्य हाल कहा
मीठी मीठी बातों से जब
यशोदा का विश्वास जीत लिया
तब यशोदा बालक को ब्राह्मण के पास
छोड़ स्नान को चली गयी
मगर कन्हैया तो सब चाल जान गए थे
ब्राह्मण की कुटिल इच्छा को ताड़ गए थे
उसकी खोटी इच्छा जान
पालने से उतर पड़े
ब्राह्मण की जिह्वया मरोड़ डाली
दूध- दही मुँख पर लिपटा डाली
बर्तन सारे फोड़ दिए
मगर क्यूँकि ब्राह्मण था
इसलिए जीता छोड़ दिया
और फिर जा पालने में लेट गए
यशोदा ने जब आकर देखा
ब्राह्मण के मुँह पर दधि -माखन लिपटे देखा
बर्तनों को फूटा देखा
तो यशोदा बोल उठी
महाराज खाना तो खा लेते मगर
बर्तन काहे फोड़ डाले
उसने कन्हैया की तरह इशारा किया
जुबान तो पहले ही ऐंठ चुकी थी
मगर मैया ने ना विश्वास किया
यशोदा का विश्वास जीत लिया
तब यशोदा बालक को ब्राह्मण के पास
छोड़ स्नान को चली गयी
मगर कन्हैया तो सब चाल जान गए थे
ब्राह्मण की कुटिल इच्छा को ताड़ गए थे
उसकी खोटी इच्छा जान
पालने से उतर पड़े
ब्राह्मण की जिह्वया मरोड़ डाली
दूध- दही मुँख पर लिपटा डाली
बर्तन सारे फोड़ दिए
मगर क्यूँकि ब्राह्मण था
इसलिए जीता छोड़ दिया
और फिर जा पालने में लेट गए
यशोदा ने जब आकर देखा
ब्राह्मण के मुँह पर दधि -माखन लिपटे देखा
बर्तनों को फूटा देखा
तो यशोदा बोल उठी
महाराज खाना तो खा लेते मगर
बर्तन काहे फोड़ डाले
उसने कन्हैया की तरह इशारा किया
जुबान तो पहले ही ऐंठ चुकी थी
मगर मैया ने ना विश्वास किया
क्रोधित हो ब्राह्मण को बुरा भला कहा
महाराज मेरा लाल अभी पलने में लेटा है
कैसे आपकी बात मानूं
वो कैसे ऐसा कर सकता है
क्यूँ झूठ बोल रहे हो
ब्रह्मत्व को कलंकित कर रहे हो
इतना कह ब्राह्मण को निकलवा दिया
रोता ब्राह्मण कंस के पास आया
महाराज मेरा लाल अभी पलने में लेटा है
कैसे आपकी बात मानूं
वो कैसे ऐसा कर सकता है
क्यूँ झूठ बोल रहे हो
ब्रह्मत्व को कलंकित कर रहे हो
इतना कह ब्राह्मण को निकलवा दिया
रोता ब्राह्मण कंस के पास आया
ब्राह्मण का हाल देख
कंस घबरा गया
मेरा हाल यही होना है जान गया
कंस घबरा गया
मेरा हाल यही होना है जान गया
क्रमश:…………
कृष्ण लीला का सुन्दर वर्णन .आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और रोचक चित्रण..आभार
ReplyDeleteकृष्ण लीला का सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया है आपने!
ReplyDeleteमन प्रसन्न हो गया.
ReplyDeleteआदरणीया वंदना जी
ReplyDeleteजय श्रीकृष्ण !
कृष्णलीला की पूरी शृंखला अच्छी जा रही है … बधाई !
♥श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई-शुभकामनाएं !
♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
aapki is shrinkhla ne mujhe bahut prabhawit kiya ... kram se aapke shabdon mein sabkuch padhna bahut hi badhiyaa hai
ReplyDeleteयही भय तो अन्त का प्रारम्भ है।
ReplyDeleteरोचक वर्णन ..ब्राह्मण की कथा पहली बार पता चली ..आभार
ReplyDeleteवंदना जी आपका ये प्रयास ...मन को भाता है ...कृष्ण लीला को शब्दों में पढना और समझना बहुत सरल हो गया है .......आभार
ReplyDeleteanu
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअनिष्ट के पूर्व-संकेत मिलते ही हैं,पर अक्सर हम सचेत होने की बजाए उसकी अनदेखी अथवा नैराश्य का भाव रखते हैं।
ReplyDeleteआपकी कृष्ण लीला ने अब तो गंगा की धारा का रूप धारण कर लिया है.जो भी इसमें डुबकी लगायेगा निश्चित रूप से तर जायेगा.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार वंदना जी.