इधर पूतना कान्हा को
दूध पिलाने लगी
सबसे पहले कान्हा ने उसके
विष को पीया
फिर उसके दूध को पीया
और फिर उसके प्राणों
का रोधन करने लगे
अब पूतना चिल्लाई
अरे लाला छोड़ अरे लाला छोड़
कह कर आकाश में उड़ चली
और मानो कान्हा कह रहे हों
मौसी जी मैं तो पकड़ना जानता हूँ
छोड़ना मुझे कहाँ आता है
जो पकड़ कर छोड़ दे
ये तो मनुष्यों को भाता है
मगर मेरा तो तुमसे
जन्मों पुराना नाता है
पूतना कोई और नहीं
पिछले जन्म में
बलि की बहन थी
जब वामन अवतार में
भगवान बलि के
द्वार गए थे
तब उनके रूप को देख
मन में विचार ये आया था
हाय कितना सलोना बालक है
अगर मेरा होता तो मैं
अपना दूध उसे पिलाती
और जब वामन भगवान ने
बलि का सारा साम्राज्य लिया
तो उसके दिल में आया था
अगर ये मेरा बेटा होता
तो यहीं ज़हर देकर मार देती
बस आज उसी की
दूध पिलाने लगी
सबसे पहले कान्हा ने उसके
विष को पीया
फिर उसके दूध को पीया
और फिर उसके प्राणों
का रोधन करने लगे
अब पूतना चिल्लाई
अरे लाला छोड़ अरे लाला छोड़
कह कर आकाश में उड़ चली
और मानो कान्हा कह रहे हों
मौसी जी मैं तो पकड़ना जानता हूँ
छोड़ना मुझे कहाँ आता है
जो पकड़ कर छोड़ दे
ये तो मनुष्यों को भाता है
मगर मेरा तो तुमसे
जन्मों पुराना नाता है
पूतना कोई और नहीं
पिछले जन्म में
बलि की बहन थी
जब वामन अवतार में
भगवान बलि के
द्वार गए थे
तब उनके रूप को देख
मन में विचार ये आया था
हाय कितना सलोना बालक है
अगर मेरा होता तो मैं
अपना दूध उसे पिलाती
और जब वामन भगवान ने
बलि का सारा साम्राज्य लिया
तो उसके दिल में आया था
अगर ये मेरा बेटा होता
तो यहीं ज़हर देकर मार देती
बस आज उसी की
इच्छा को मान दिया था
उसी की चाह को पूर्ण किया था
साथ ही अपने
उसी की चाह को पूर्ण किया था
साथ ही अपने
पतित पावन नाम को
सिद्ध किया था
कुछ ऐसे कान्हा ने उसका अंत किया
ब्रजवासियों को भयमुक्त किया
अट्ठारह कोस में जाकर उसका शरीर गिरा
ब्रजवासी अचंभित देख रहे थे
कान्हा उसके वक्षस्थल पर खेल रहे थे
यशोदा ने जब देखा
दौड़ कर कान्हा को उठा लिया
और फिर मुड़कर पूतना को देख
बोल उठी .......हाय राम इतनी बड़ी!
जब तक शिशु की ममता
प्रबल बनी थी
तब तक ना दृष्टि
पूतना पर पड़ी थी
जब लाला को अपने उठा लिया
तब जाकर पूतना का अवलोकन किया
यही तो माँ की ममता निराली थी
जिसे पाने को आतुर कृष्ण मुरारी थे
गोपियाँ सारी डर गयी थीं
लाला को किसी की बुरी नज़र लग गयी
सोच उपाय करने लगी थीं
पहले ठाकुर जी को
गोमूत्र से स्नान कराया
फिर गौ रज लगायी
फिर गोबर से स्नान कराया
फिर गंगाजल से नहलाया
गाय की पूँछ से झाडा देने लगीं
साथ ही उच्चारण करने लगीं
और देवताओं का आवाहन करने लगीं
और कन्हैया मुस्काते रहे
और मन में सोचते रहे
कितनी भोली है मैया
नहीं जानती मैं ही हूँ सबका खिवैया
पर प्रेम पाश में बंधे प्रभु
आनंद मग्न होते रहे
और बालक होने का सुख भोगते रहे
क्रमश:…………सिद्ध किया था
कुछ ऐसे कान्हा ने उसका अंत किया
ब्रजवासियों को भयमुक्त किया
अट्ठारह कोस में जाकर उसका शरीर गिरा
ब्रजवासी अचंभित देख रहे थे
कान्हा उसके वक्षस्थल पर खेल रहे थे
यशोदा ने जब देखा
दौड़ कर कान्हा को उठा लिया
और फिर मुड़कर पूतना को देख
बोल उठी .......हाय राम इतनी बड़ी!
जब तक शिशु की ममता
प्रबल बनी थी
तब तक ना दृष्टि
पूतना पर पड़ी थी
जब लाला को अपने उठा लिया
तब जाकर पूतना का अवलोकन किया
यही तो माँ की ममता निराली थी
जिसे पाने को आतुर कृष्ण मुरारी थे
गोपियाँ सारी डर गयी थीं
लाला को किसी की बुरी नज़र लग गयी
सोच उपाय करने लगी थीं
पहले ठाकुर जी को
गोमूत्र से स्नान कराया
फिर गौ रज लगायी
फिर गोबर से स्नान कराया
फिर गंगाजल से नहलाया
गाय की पूँछ से झाडा देने लगीं
साथ ही उच्चारण करने लगीं
और देवताओं का आवाहन करने लगीं
और कन्हैया मुस्काते रहे
और मन में सोचते रहे
कितनी भोली है मैया
नहीं जानती मैं ही हूँ सबका खिवैया
पर प्रेम पाश में बंधे प्रभु
आनंद मग्न होते रहे
और बालक होने का सुख भोगते रहे
bas adbhut prasang
ReplyDeleteलगता है काव्य ग्रन्थ का सृजन हो रहा है.....
ReplyDeleteबदिया प्रयास.
krishn ki lila to aprmpaar hai .....
ReplyDeleteपूतना के पिछले जन्म की कहानी नहीं पता थी ... अच्छी जानकारी देती सार्थक पोस्ट ..
ReplyDeleteकृष्ण की प्यारी लीला का मनोहारी काव्य-चित्रण !
ReplyDeleteआभार !
जय हो विष्णु अवतार की।
ReplyDeleteकृष्ण मय करती कविता... आध्यात्मिक चेतना से भरपूर...
ReplyDeletebeautiful presentation.
ReplyDeleteकृष्ण जी भगवान होने का पूरा आनंद उठा रहे हैं...बेचारी माँ तो अपने स्नेह बंधन के परे देखने से रही...
ReplyDeleteसुन्दर कृष्ण-ग्रन्थ।
ReplyDeleteआप बहुत अच्छी जानकारी प्रदान कर रहीं हैं!
ReplyDeleteकृष्ण लीला का मनोहारी काव्य-चित्रण बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteस्त्री के दो चरम रूप!
ReplyDeletesundar shrankhla...
ReplyDeleteमैंने इस पोस्ट पर टिपण्णी की थी.
ReplyDeleteकहाँ गई मेरी टिपण्णी,वंदना जी.
कहीं कान्हा का बालरूप निहारने तो नहीं चली गई?
आपका कृष्ण लीला का हर भाग अनुपम और मनोहारी है.