मोहन की मीठीभाषा
मैया को नित लुभाती है
कान्हा की मधुर बातो पर
मैया बलि- बलि जाती है
इक दिन मोहन गोपों संग
बलदाऊ संग खेल रहे थे
खेलते खेलते झगडा हो ग्या
और बलराम जी बोल उठे
इसका ना माँ है ना बाप
हार जीत जाने नाहीं
बेकार मे झगडा बढाता है
ये सुन कान्हा रोते - रोते
मात यशोदा से बोल उठे
मैया दाऊ ने दिल दुखा दिया
क्या मोको तूने मोल लियो है
क्या तुम मेरी माँ नही हो
क्या नन्दबाबा मेरे पिता नही
यशोदा गोरी नन्द बाबा गोरे
तुम कैसे भये कारे
या रिस के कारण खेलन जात नाही
अब तुम ही करो निवारण
कान्हा की मीठी बतियाँ सुन
मैया बलिहारी जाती है
गोधन की सौगंध खा
कान्हा को यकीन दिलाती हैं
मै तेरी माता तू मेरा बेटा
कहकर गले लगाती हैं
कान्हा की छवि हर मन को लुभाती है
नित नयी - नयी लीलाये होती है
जो वृज को आनन्दित करती हैं
इक गोपी अपनी व्यथा
दूजी को ऐसे सुनाती है
जिस दिन से देखा नन्दनन्दन को
मेरा जीवन बदल गया
मेरा शरीर और मन श्याममय हो गया
अब उसे ह्र्दय मे बिठा लिया है
और पलको पर ताला लगा दिया है
पर आश्चर्य ना ये कम हुआ
ह्रदय मे चारो ओर प्रकाश हुआ
सुध बुध अपनी भूल गयी
उसकी छवि मे डूब गयी
अब अपना आपा खो गया
पता नही सखी ये क्या हो गया
मै उसमे थी या वो मुझमे था
कुछ भी ना पता चला
लोक - लाज सब भूल चुकी हूँ
उस दिन से सिर उघाडे घूमती हूँ
सास - ननद परेशान हो गयी
झाड - फ़ूंक सारी करवा ली है
पर समझ ना आती बीमारी है
अब उस रस को कोई क्या जानेगा
कोई विरला ही पहचानेगा
और घायल की गति कोई घायल ही जानेगा
दूसरी गोपिका का भी
यही हाल हो गया
जिस दिन से आँगन मे
खेलते देखा है
रूप लावण्य की राशि को
घर से संबंध टूट चुका है
जब भी उनकी तुतलाती वाणी सुनती है
कान सुनने को उत्कंठित हो जाते है
नेत्र राह से प्रेम रस बहने लगता है
दोनो दंतुलियाँ जग रौशन कर जाती हैं
ह्रदयतम सारा मिटाती हैं
कौन ना उस पर रीझेगा
हर बृज गोपी का हाल बुरा है
किसी ना किसी बहाने
गोपियाँ श्यामसुन्दर की राह तकती हैं
माखन खिलाने के रोज
नये बहाने गढती हैं
क्रमशः ..............
क्रमशः ..............
Ek wah se aage aur kuchh kaha jata nahee..
ReplyDeleteमोहन की मीठीभाषा मैया को नित लुभाती है कान्हा की मधुर बातो पर मैया बलि- बलि जाती है... aur krishn leela padhker main vaari vaari jati hun
ReplyDeleteअनुपम ... भावमय करते शब्दों का संगम ..।
ReplyDeleteवाह ....प्रेम की सरिता बह रही है
ReplyDeleteआनंद आ गया
मन कृष्ण में खो जाता है आपकी लीला पढ़ कर... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteगोपी ग्वालों के प्रेम भाव में उतराती कृष्ण की लीला।
ReplyDeleteबहुत बढिया।
ReplyDeleteहर बृज गोपी का हाल बुरा है किसी ना किसी बहाने गोपियाँ श्यामसुन्दर की राह तकती हैं माखन खिलाने के रोज नये बहाने गढती हैं
ReplyDeleteकृष्ण प्रेम में आपका भी तो बुरा हाल है.
किसी न किसी बहाने आप भी तो उसकी राह
तकती हैं,पोस्ट लिखने के लिए नए नए
भाव मधुर व अदभुत रूप में प्रस्तुत करती हैं.
बेहद ख़ूबसूरत चित्रण...
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत चित्रण...
ReplyDeleteकान्हा की मीठी बतियाँ सुन मैया बलिहारी जाती है गोधन की सौगंध खा कान्हा को यकीन दिलाती हैं मै तेरी माता तू मेरा बेटा कहकर गले लगाती हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...गोपियौ की दशा का भी बहुत सुन्दर वर्णन|
"एक प्रयास" में ये अद्भुत प्रयास हो रहा है
ReplyDeleteरचना अच्छी लिखी है।
ReplyDeleteबालमन कोमल होता है। कौन किसकी संतान,यह सोचने की न उसकी उमर होती है,न ज़रूरत। बलराम के ही संस्कार में कुछ खोट मालूम होता है।
ReplyDeleteसुंदर भावमय प्रस्तुति,...
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट में स्वागत है,...
sundar manmohak vivran , vandana ji.
ReplyDeleteवन्दना जी नमस्कार, सुन्दर भाव मोहन---- मैया बलि बलि जाती है। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteआपकी रचनाएं बहुत दूर ले जाती हैं .....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !