यही सवाल परीक्षित जी ने
शुकदेव जी से किया
तब शुकदेव जी ने
इक कथा का वर्णन किया
पिछले जनम मे इन दोनो ने
बहुत कठिन तप था किया
जब इनका विवाह हुआ
प्रथम रात्रि में
तब इन्होने एक प्रण लिया
गृह्स्थ धर्म तभी निभायेंगे
जब तप करके प्रभु को मनायेंगे
पति ने पत्नि के प्रण का मान रखा
और वन मे जा घोर तप किया
जो भी खाने को मिलता
उससे पहले अतिथि को संतुष्ट करते
बाद मे स्वंय भोजन करते
इक दिन पति लकडी काटने गये हुये थे
और घनघोर बारिश हो रही थी
तभी इक ब्राह्मण ब्राह्मणी का जोडा आया
भोजन करने की इच्छा को बतलाया
सुन वो घबरा गयी
मगर उनका आतिथ्य सत्कार किया
सोचने लगी पतिदेव को ना जाने कितना समय लगे
कहीं अतिथि भूखे ना रह जायें
ये सोच उन्हे बिठा स्वंय
महाजन की दुकान पर गयी
जाकर उससे अनुरोध किया
भैया थोडा अन्न उधार देना
जैसे ही पतिदेव आयेंगे
तुम्हारे पैसे चुकायेंगे
मेरे यहाँ अतिथि आये हैं
इंतज़ार मे बैठे हैं
इतना सुन महाजन ने सिर ऊपर किया
और जैसे ही उसे देखा
एक प्रस्ताव रख दिया
महाजन की नीयत डोल रही थी
उधर युवती मे तप की शक्ति समायी थी
तप की शक्ति से रूप लावण्य दमक रहा था
बिन श्रृंगार के भी चमक रहा था
दिव्य रूप को देख
महाजन का दिल भटक रहा था
एक काम करो तो
तुम्हे ना कुछ देना होगा
युवती ने पूछा कहो क्या करना होगा
इतना सुन महाजन ने
उसके वक्षस्थल की तरफ़ इशारा किया
मुझे ये चाहिये ……कह दिया
सुन वो देवी सन्न रह गयी
बहुत मन्नत चिरौरी करने लगी
पर जब ना महाजन माना
बोली मैने तुम्हे भैया कहा है
कम से कम उसकी तो लाज रखी होती
पर जब तूने कीमत मांग ही ली है
तो तुझे जरूर मिलेगी
पर जैसे तू चाहता है
वैसे ना मिल पायेगी
इतना कह उसने
चाकू से दोनो स्तनो को काट दिया
और महाजन के मूँह पर फ़ेंक दिया
अब सामान ले दौडी जाती थी
ब्राह्मण देवता मै आ रही हूँ …कहती जाती थी
वक्षस्थल से लहू के पतनाले बहे जाते थे
पर उस तरफ़ ना उसका ध्यान गया था
उसे एक ही चिन्ता सताती थी
अतिथि कहीं भूखे ना चले जायें
बार- बार बेहोश हुई जाती थी
होश मे आने पर एक ही बात दोहराती थी
ब्राह्मण देवता मै आ रही हूँ ....
जैसे तैसे गिरती पडती
कुटिया पर ये कहती पहुंच गयी
जाना नही देवता मै आ गयी हूँ
कहते कहते बेहोश हुई
जैसे ही होश मे आयी
खुद को अजनबी की बाहो मे पाया
क्रोध से मुख तमतमा गया
कैसे अन्य पुरुष ने स्पर्श किया
मगर जैसे ही मुख देखा
सारा क्रोध काफ़ूर हुआ
वो तो शिव पार्वती नज़र आने लगे
इतने मे वो महाजन मे रूप मे छुपे
विष्णु भी आ गये
कहा तीनो ने तुम्हारे तप ने
हमे परीक्षा लेने पर विवश किया
पर तुम्हारे समर्पण के आगे हम हार गये
कहो क्या तुम चाहती हो
इतने मे उसके पतिदेव भी आ गये
सुन दोनो ने वरदान मांगा
परमेश्वर मे हमारी अनन्य प्रीती हो
दोनो को वरदान दे उन्होने कहा
देवि तुम्हारा बलिदान व्यर्थ नही जायेगा
जैसा तुमने किया ऐसा ना
कभी कोई कर पाया है
तुम्हारे प्रेम का कर्ज़ चुका नही सकता
इसलिये बालरूप मे आऊँगा
और तब दुग्धपान कर
कुछ कर्ज़ चुकाऊंगा
अब भोले भंडारी बोले
मैया मै भी तेरे दर पर
फिर से भिखारी बन कर आऊँगा
पार्वती ने कहा मैया मै भी
शक्ति के रूप मे तेरे गर्भ से जनम लूंगी
वो ही माया के रूप मे
पार्वती ने जन्म लिया था
इतना कह तीनो अन्तर्धान हुये
उसी वरदान के प्रताप से
आज यशोदानन्दन पृथ्वी पर आये हैं
अपने बाल रूप के मैया को दर्शन कराये हैं
कमशः .................
bahut sundar prastui....abhaar.
ReplyDeleteबड़ा ही सुन्दर प्रसंग।
ReplyDeleteइस श्रृंखला से कई नयी जानकारी मिल रही है ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteनई जानकारी मिली...बहुत सुन्दर प्रस्तुति|
ReplyDeleteBahut khoob!
ReplyDeleteadbhut prasang...
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जय श्री कृष्णा!
शानदार!
ReplyDeleteनई और रोचक प्रसंग को पढ़ने का अवसर मिला .......आभार
ReplyDeleteआपका पोस्ट मन को प्रभावित करने में सार्थक रहा । बहुत अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट ' आरसी प्रसाद सिंह ' पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteवाह! क्या बात है.
ReplyDeleteयह कथा लगता है कुछ नए रूप में ही सुनने को मिली आपसे.
शुक्रिया..बहुत बहुत शुक्रिया जी.