तब नारद जी ने बतलाया
देवताओं के सौ वर्ष बीतने पर
कृष्ण सान्निध्य मिलने पर
प्रभु चरणों में प्रेम होने पर
स्वयं प्रभु अवतार ले
तुम्हारा उद्धार करेंगे
इतना कह नारद जी ने
नर नारायण आश्रम को प्रस्थान किया
आश्रम जाने का भी अभिप्राय जान लो
श्राप दो या वरदान
तपस्या क्षीण हो जाती है
तपशक्ति संचय करने को
फिर तपस्या करनी पड़ती है
यक्षों पर जो अनुग्रह किया
वो तपस्या बिना पूर्ण नही हो सकता
और प्रभु के प्रति भी
अपने कृत्य का निवेदन करना था
संत ऐसे ही होते हैं
उनकी महिमा निराली होती है
दोषी के उद्धार के लिए
खुद को भी दुःख दे देते हैं
पर दूसरे दुःख से जब द्रवित होते हैं
अपने बारे में ना कुछ सोचते हैं
ये दोनों ही वहाँ
यमलार्जुन वृक्ष कहलाये हैं
और प्रभु ऊखल से बंधे
घिसटते- घिसटते
नारद जी के वचन को
प्रमाण करने वहाँ आये हैं
उन दोनों वृक्षों के बीच
ऊखल को फंसाया है
इसका भाव गुनीजनों ने
ये बतलाया है
जब प्रभु किसी के
अंतर्देश में प्रवेश करते हैं
तब उसके जीवन के
सब क्लेश हर लेते हैं
भीतर प्रवेश बिना
उद्धार ना हो सकता था
प्रभु तो घिसटते हुए
आगे जा निकले
पर ऊखल वहीँ अटक गया
रस्सी कमर से बंधी थी
उसे ज़रा सा झटका दिया
त्यों ही वृक्ष की जडें उखड गयीं
और दोनों वृक्ष घनघोर गर्जन करते
वहीँ पर गिर पड़े
जो प्रभु गुणों से बंधा हो
भक्ति वात्सल्य की रस्सी से भरा हो
वह तिर्यक गति वाला ही क्यों ना हो
दूसरों का उद्धार कर सकता है
मानो यही दर्शाने को
प्रभु ने ऊखल को यश दिया
और उसके हाथों उनका उद्धार कराया
दोनों ने दिव्य रूप प्राप्त किया
कर जोड़ स्तुति करने लगे
हे दीन दयाल , पतितपावन
नाथों के नाथ
हम शरण में आये हैं
दीन हीन अज्ञानी जान
कृपानिधान कृपा कीजिये
अब हमें शरण में लीजिये
प्रभु के मंगलमय गुणों का गान किया
नारद जी का अनुग्रह माना
नारद कृपा से आज
गदगद हुए जाते हैं
अपने भाग्य को सराहे जाते हैं
गर नारद ने ना श्राप दिया होता
तो कैसे दर्शन किया होता
तब प्रभु ने पूछा कहो क्या चाहते हो
सुन दोनो ने प्रभु की
नवधा भक्ति का इज़हार किया
प्रभु ने वरदान दे
दोनों का अभीष्ट सिद्ध कर
दोनों का परम कल्याण किया
इधर वृक्षों के गिरने से
जो भयंकर गर्जन हुआ
उसे सुन गोकुलवासी भयभीत हुए
नंदबाबा मैया सब दौड़े आये
वृक्षों के गिरने का कारण
ना जान भरमाये
ये कैसे गिर गए
समझ ना पाए
बार- बार अचरज किये जाते
ये सारा किया धरा कन्हैया का है
वहाँ खेल रहे गोपों ने बतलाया
वृक्ष में से तो दिव्य पुरुषों के
निकलने का सब हाल बतलाया
पर गोपों की बात ना किसने मानी
नंदबाबा ने लाला को गोद में उठा गले लगाया
मैया माखन रोटी - मेवा ले दौड़ी आई
बड़े चाव से मन मोहन को रोटी खिलाई
नित नए- नए खेल दिखाते हैं
मोहन के कर्म सभी को
खूब सुहाते हैं
किसी गोपी की मटकी फोड़ देते हैं
तो किसी के हाथ से माखन खाते हैं
किसी गोपी के बर्तन मांजा करते हैं
माखन के लालच में मोहन
नित नए- नए स्वांग रचाया करते हैं
गोपियाँ बलिहारी जाती हैं
मोहन के बिन इक पल
चैन ना पाती हैं
साँवली सूरतिया देखे बिन
बावरी हुई जाती हैं
यूँ सांवरे से प्रीत बढाती हैं
क्रमशः ..............
Behtareen!
ReplyDeleteनित नए- नए खेल दिखाते हैं
ReplyDeleteमोहन के कर्म सभी को खूब सुहाते हैं
किसी गोपी की मटकी फोड़ देते हैं तो
किसी के हाथ से माखन खाते हैं
किसी गोपी के बर्तन मांजा करते हैं
माखन के लालच में मोहन नित
नए- नए स्वांग रचाया करते हैं
गोपियाँ बलिहारी जाती हैं.
भक्तिभावों से ओतप्रोत कमाल की
प्रस्तुति है आपकी.हम तो निहाल हैं
आपकी पावन लेखनी के.बहुत बहुत
आभार,वंदना जी.
कृष्ण छवि है मनोहारी
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
इस रूप में कृष्ण लीला पढ़ने में आनंद आ रहा है ...आभार वंदना
ReplyDeleteप्रीति नहीं कम होती कान्हा,
ReplyDeleteहमको कभी मनाने आना..
नित नए- नए खेल दिखाते हैं
ReplyDeleteमोहन के कर्म सभी को खूब सुहाते हैं
बहुत सुंदर चल रही है यह श्रृंखला...आनंदमयी प्रस्तुति!
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteलोहड़ी पर्व की बधाई और शुभकामनाएँ!
कृष्ण की बाल -लीला तो अदभुत ही है ....पढकर मन आनंदित हो जाता है
ReplyDeletebahut achchi prastuti vandana jee.
ReplyDeleteकृष्ण लीला मन को मोह रही है ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteअति सुंदर व आनंददायक लीला चल रही है.
ReplyDeleteआज मैंने उस तस्वीर पर कविता पढ़ी जो मेरे रोम रोम में बसी है ..
ReplyDeleteशब्द नहीं हैं मेरे पास ..
आपका ब्लॉग फोल्लो करना चाहती हूँ ..कैसे करू
मार्गदर्शन करिए..
ओके ..widget सबसे नीचे था..देख लिया ..
फोल्लो कर रही हूँ ..