कान्हा की वर्षगांठ का दिन था आया
नन्द बाबा ने खूब उत्सव था मनाया
गोप ग्वालों ने नन्द बाबा संग किया विचार
यहाँ उपद्रव लगा है बढ़ने
नित्य नया हुआ है उत्पात
जैसे तैसे बच्चों की रक्षा हुई
और तुम्हारे लाला पर तो
सिर्फ प्रभु की कृपा हुयी
कोई अनिष्टकारी अरिष्ट
गोकुल को ना कर दे नष्ट
उससे पहले क्यों ना हम सब
कहीं अन्यत्र चल दें
वृन्दावन नाम का इक सौम्य है वन
बहुत ही रमणीय पावन और पवित्र
गोप गोपियों और गायों के मनभावन
हरा भरा है इक निकुंज
वृंदा देवी का पूजन कर
गोवर्धन की तलहटी में
सबने जाकर किया है निवास
वृन्दावन का मनोहारी दृश्य
है सबके मन को भाया
राम और श्याम तोतली वाणी में
बालोचित लीलाओं का सबने है आनंद उठाया
ब्रजवासियों को आनंद सिन्धु में डुबाते हैं
कहीं ग्वाल बालों के संग
कान्हा बांसुरी बजाते हैं
कभी उनके संग बछड़ों को चराते हैं
कहीं गुलेल के ढेले फेंकते हैं
कभी पैरों में घुँघरू बांध
नृत्य किया करते हैं
कभी पशु पक्षियों की बोलियाँ
निकाला करते हैं
तो कहीं गोपियों के
दधि माखन को खाते हैं
नित नए नए कलरव करते हैं
कान्हा हर दिल को
आनंदित करते हैं
जब कान्हा पांच बरस के हुए
हम भी बछड़े चराने जायेंगे
मैया से जिद करने लगे
बलदाऊ से बोल दो
हमें वन में अकेला ना छोडें
यशोदा ने समझाया
लाला , बछड़े चराने को तो
घर में कितने चाकर हैं
तुम तो मेरी आँखों के तारे हो
तुम क्यों वन को जाते हो
इतना सुन कान्हा मचल गए
जाने ना दोगी तो
रोटी माखन ना खाऊँगा
कह हठ पकड़ ली
यशोदा बाल हठ के आगे हार गयी
और शुभ मुहूर्त में
दान धर्म करवाया
और ग्वाल बालों को बुलवाया
श्यामसुंदर को उन्हें सौंप दिया
और बलराम जी को साथ में
भेज दिया
जब कंस ने जाना
नंदगोप ने वृन्दावन में
डाला बसेरा है
तब उसने वत्सासुर राक्षस को भेज दिया
बछड़े का रूप रखकर आया है
और बछड़ों में मिलकर
घास चरने लगा है
उसे देख बछड़े डर कर भागने लगे
पर श्यामसुंदर की निगाह से
वो ना बच पाया है
उसे पहचान केशव मूर्ति ने कहा
बलदाऊ भैया ये
कंस का भेजा राक्षस है
बछड़े का रूप धर कर आया है
चरते - चरते वो
कृष्ण के पास पहुँच गया
तब कान्हा ने उसका
पिछला पैर पकड़
घुमा कर वृक्ष की जड़ पर पटका
एक ही बार में प्राणों का
उसके अंत हुआ है
यह देख देवताओं ने पुष्प बरसाए हैं
ग्वालबाल भी उसका अंत देख हर्षाये हैं
क्रमशः ...........
सुन्दर वर्णन!
ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्णन..मनोहारी....राधे कृष्णा।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सजीव वर्णन करती हो तुम . ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सजीव वर्णन करती हो तुम . ..
ReplyDeleteNice .
ReplyDeleteआनंदित लीला ... अमुपम ...
ReplyDeleteफिर बजी बांसुरी , कान्हा चले ठुमक के - और मैं वारी वारी
ReplyDeleteमनोहारी कृष्ण कथा..
ReplyDeleteबाल -लीला का सुन्दर और अदभुत वर्णन ...
ReplyDeleteवाह ..वाह ..बहुत ही सुन्दरता से वर्णन किया है नन्द गोपाल की अटखेलियों का ..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
श्यामसुन्दर की महिमा ..सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteनेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर उनको शत शत नमन!
रोचक!!
ReplyDeleteबालहठ के आगे माता यशोदा हार गईं...बहुत सुंदर प्रस्तुति|
ReplyDeleteआपकी लेखनी कमाल की है.
ReplyDeleteअनुपम काव्यमय कृष्ण लीला संजीव हो उठी है.
लाजबाब प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार.