Tuesday, January 17, 2012

कृष्ण लीला ........भाग 33


इक दिन फल बेचने वाली आई है
जन्म -जन्म की आस में
मोहन को आवाज़ लगायी है
अरे कोई फल ले लो
आवाज़ लगाती फिरती है
मगर आज ना टोकरा खाली हुआ
एक भी फल ना उसका बिका
रोज का उसका नित्य कर्म था
प्रभु दरस की लालसा में 
नन्द द्वार पर आवाज़ लगाती थी
और दरस ना  पा 
निराश हो चली जाती थी
मगर आज तो 
अँखियों में नीर भरा है
करुण पुकार कर रही  है
वेदना चरम को छू रही है 
स्वयं का ना भान रहा 
सिर्फ मोहन के नाम की रट लगायी है
कब दोगे दर्शन गिरधारी
कब होगी कृपा दासी पर
इक झलक मुझे भी दिखलाओ
जीवन मेरा भी सफल बनाओ
कातर दृष्टि से द्वार को देख रही है 
मोहन के दरस को तरस रही है
दृढ निश्चय आज कर लिया है
जब तक ना दर्शन होंगे
यहीं बैठी रहूंगी
जब मोहन ने जान लिया
आज भक्त ने हठ किया है
तो अपना हठ  छोड़ दिया
यही तो प्रभु की भक्त वत्सलता है
प्रेम में हारना ही प्रभु को आता  है
पर भक्त का मान रखना ही प्रभु को भाता है 
भक्त के प्रेम पाश में बंधे दौड़ लिए हैं
मैया से बोल उठे हैं
मैया मैं तो फल लूँगा
पर मैया बहला- फुसला रही है
इतने घर में फल पड़े हैं
वो खा लो लाला
पर कान्हा ने आज बाल हठ पकड़ा है 
मैं तो उसी के फल खाऊंगा
लाला पैसे नहीं है कह मैया ने समझाना चाहा
पर कान्हा ने ना एक सुनी
किसी तरह ना मानेंगे जब मैया ने जाना
तब बोली मैया पूछो उससे 
क्या अनाज के बदले फल देगी
इतना सुन कान्हा किलक गए हैं
अंजुलियों  में अनाज भर लिया है 
ठुमक - ठुमक कर दौड़े जाते हैं
अनाज भी हथेलियों से गिरता जाता है
मगर कान्हा दौड़ लगाते आवाज़ लगाते हैं 
रुकना फलवाली मैं आता हूँ 
बाहर जाकर फलवाली से कहते हैं
मैया फल दे दो 
तोतली वाणी सुन 
मालिन  भाव विह्वल हुई जाती है
और कहती है
लाला एक बार फिर मैया कहना
और कान्हा फिर पुकारने लगते हैं
मैया फल दे दो ना
बार - बार यही क्रम दोहराती है
प्रभु की रसमयी वाणी सुन 
जीवन सफल बनाती है
आज जन्मों की साध पूरी हुई है
नेत्रों की प्यास तृप्त हुई है
अश्रु धारा बह रही है
प्रभु का दीदार कर नेत्र रस पी रही है 
अपना सब कुछ न्यौछावर कर देती है
कान्हा के हाथों पर फल रख देती है
ना जाने उन छोटे- छोटे हाथों में
कौनसा करिश्मा समाया था
सुखिया मालन के सभी फलों ने
आज कान्हा के हाथों में स्थान पाया था
पर कान्हा उससे पहले जो 
अनाज लेकर आये थे
वो छोटी- छोटी अंजुरियों में 
समा ना पाया था 
रास्ते भर बिखरता आया था
सिर्फ दो चार दाने ही बचे थे
उन्हें ही टोकरी में रख देते हैं
और उसके फल लेकर
पुलक- पुलक कर 
आनंदित हो अन्दर चल देते  हैं
मगर आज उस मालिन का 
भाग्योदय हो गया था
वो तो आल्हादित हो रही थी
प्रभु प्रेम में मगन हो रही थी
अब ना कोई साध बची थी
नाचती- गाती घर को गयी थी 
मगर जो टोकरी फलों की रोज उठाती थी
वो ना आज उससे चल रही थी
जैसे - तैसे घर को पहुंची थी
और जैसे ही टोकरी उतारी थी
वो तो मणि- माणिकों से भरी पड़ी थी 
ये देख वो रोने लगी 
अरे लाला मैंने तुझसे ये कब माँगा था
बस तेरे दीदार की लालसा बांधी थी
हर आस तो पूरी  हो गयी थी
पर तू कितना दयालू है
ये आज तूने बतला दिया
और मुझे अपना ऋणी बना लिया 
ये प्रभु की भक्त वत्सलता है
कितना वो भी प्यार पाने को तरसता है
इस प्रसंग से ये ही दर्शाया है
जिसमे ना लेश मात्र स्वार्थ ने स्थान पाया है
सिर्फ प्रेम ही प्रेम समाया है 
बस निस्वार्थ प्रेम ही तो प्रभु के मन को भाया है 
जो एक बार उनका बन जाता है
फिर न दरिद्र रह पाता है 
उसका तो भाग्योदय हो जाता है
जिसने नामधन पा लिया
कहो तो उससे बढ़कर 
कौन धनवान हुआ 
बस यही तो दर्शाना था
सभी को तो प्रभु ने 
संतुष्ट करके जाना था
हर मन की साध को 
पूर्णता प्रदान करना 
प्रभु की भक्तवत्सलता दर्शाता है 
फिर ओ रे मन तू 
उस प्रभु से क्यों न प्रेम बढाता है 

क्रमशः ..................

22 comments:

  1. मैं तो पढ़ते पढ़ते कभी यशोदा कभी राधा तो कभी कृष्ण ही हो गई

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  2. मैं तो पढ़ते पढ़ते कभी यशोदा कभी राधा तो कभी कृष्ण ही हो गई

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    1. और मै लिखते लिखते बन जाती हूँ रश्मि जी………यही तो उसकी दिव्य लीला है कब किस रूप मे ढाल ले पता ही नही चलता …………यूँ भी मिलन हुआ करता है :)

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    2. Padhte hue man aalhadit ho jata hai!

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    3. क्या बात है रश्मि जी,वंदना जी,kshama जी.

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  3. प्रभु से सच्चा प्रेम हो जाए तो फिर कोई भी कामना अधूरी नहीं रह सकती ...सुन्दर वर्णन

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  4. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  5. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  6. waah vandana jee bahut sajeev varnan kiya hai.thanks.

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  7. बहुत बढ़ीया और जिवंत वर्णन किया आपने, यह तो आपका जादू है। इंतजार है।

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  8. बस प्रेम ही प्रेम ... कृष्ण लीलाएं अद्भुत हैं

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  9. पढ़ते हुए मन भावविह्वल हो गया...

    भक्त के प्रति प्रभु का वात्सल्य...

    प्रेम की चरम सीमा का वर्णन पढ़ मन आनन्दित हो गया!

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  10. वंदना रश्मि जी को शत शत नमन.
    आपका मन हर क्षण कान्हा से जुड़ा है
    आपकी भक्ति की निराली अदा है.
    मेरा मन आपकी हर प्रस्तुति पर फ़िदा है.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा ,वंदना जी.

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  11. फलवाली का यह प्रसंग सजीव हो उठा.बड़ा ही मनोरम दृश्य है.वाह !!!!

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  12. आज मैंने उस तस्वीर पर कविता पढ़ी जो मेरे रोम रोम में बसी है ..
    शब्द नहीं हैं मेरे पास ..
    आपका ब्लॉग फोल्लो करना चाहती हूँ ..कैसे करू
    मार्गदर्शन करिए..
    kalamdaan.blogspot.com

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  13. bahut sunder prastuti. ham bhi aas lagaay hain unse milne ki.

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  14. बहुत बेहतरीन ...हमारे ब्लोग पर आपका स्वागत है

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