कान्हा ओ कान्हा
कहाँ छुपा है श्याम सांवरिया
ढूँढ रही है राधा बावरिया
होली की धूम मची है
तुझको राधा खोज रही है
अबीर गुलाल लिए खडी है
तेरे लिए ही जोगन बनी है
माँ के आँचल में छुपा हुआ है
रंगों से क्यूँ डरा हुआ है
एक बार आ जा रे कन्हाई
तुझे दिखाएं अपनी रंगनायी
सखियाँ सारी ढूँढ रही हैं
रंग मलने को मचल रही हैं
कान्हा ओ कान्हा
कान्हा ओ कान्हा
तुझ बिन होली सूनी पड़ी है
श्याम रंग को तरस रही है
प्रीत का रंग आकर चढ़ा जा
श्याम रंग में सबको भिगो जा
प्रेम रस ऐसे छलका जा
राधा को मोहन बना जा
मोहन बन जाये राधा प्यारी
हिल मिल खेलें सखियाँ सारी
रंगों से सजाएँ मुखमंडल प्यारी
लाल रंग मुख पर लिपटाएँ
देख सुरतिया बलि बलि जायें
श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
श्यामल श्यामल सब हो जाये
Friday, February 26, 2010
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श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
ReplyDeleteश्यामल श्यामल सब हो जाये..होली का रंग यूँ ही बरसता रहे होली मुबारक
vah vah holi ko kis sundar tareke se prastut kiya hai aapne bahut he aacha laga padh kar
ReplyDeleteप्रेम रस ऐसे छलका जा
ReplyDeleteराधा को मोहन बना जा
मोहन बन जाये राधा प्यारी
बहुत सुन्दर....कान्हा को याद किये बिना होली क्या....
होली की शुभकामनाये, वन्दना जी !
ReplyDeleteबहुत हटकर है आपकी रचना। हर बार कान्हा राधा को और उसकी सखियों को छेडता है, रंग लगाता है लेकिन, इस होली में कान्हा को राधा खुद अपनी सखियों के संग होली खेलने के लिये ढूँढ रही है और कान्हा माँ के आँचल में छुपा है। वाहजी! बेहतरीन भावाभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteभक्ति और प्रेम का चटक रंग
ReplyDeleteहोली पर रंगकामनायें
ReplyDeleteकन्हैया बिन कैसे पायें
माँ के आँचल में छुपा हुआ है
ReplyDeleteरंगों से क्यूँ डरा हुआ है
एक बार आ जा रे कन्हाई
तुझे दिखाएं अपनी रंगनायी
सखियाँ सारी ढूँढ रही हैं
रंग मलने को मचल रही हैं
कान्हा ओ कान्हा
आपके गीत ने तो बरसाने की याद दिला दी!
बहुत ही समसामयिक और सटीक रचना है!
श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
ReplyDeleteश्यामल श्यामल सब हो जाये.
बेहतरीन,होली की शुभकामनाये.
"श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
ReplyDeleteश्यामल श्यामल सब हो जाये"
गोपियों की चाहत का सजीव चित्रण
कान्हा ओ कान्हा
ReplyDeleteकहाँ छुपा है श्याम सांवरिया
ढूँढ रही है राधा बावरिया
होली की धूम मची है
तुझको राधा खोज रही है
अबीर गुलाल लिए खडी है
तेरे लिए ही जोगन बनी है
माँ के आँचल में छुपा हुआ है
रंगों से क्यूँ डरा हुआ है
जग के सभी व्यक्तियो मे कही ना कही बसा "कान्हा एवम राधा" की होली ढिठोली, प्रेम एवम भक्ती का दोहरा रुप आपकी इस कविता मे पढने को मिला, वही मॉ के आचल को वर्णित कर इस होली त्योहार को और पावनमय भक्तिमय बना देने की यह महान कला सिर्फ और सिर्फ् वन्दनाजी! आपही कर सकती है। अति सुन्दर पाठ ने हमे होली को प्रेम भक्तिमय भाव से मनाने मे अधिक प्रोहोत्सान मिलेगा।
बधाई सुन्दर रचना के लिए वन्दनाजी!
श्याम रंग यूँ निखर निखर जाये
ReplyDeleteश्यामल श्यामल सब हो जाये.
-बहुत बेहतरीन!!
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
एक बढ़िया और रुकने को विवश करती अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनायें !
ReplyDeleteशुक्रिया ,
ReplyDeleteदेर से आने के लिए माज़रत चाहती हूँ ,
उम्दा पोस्ट .
accha prayas hai.