होली होली
खेलें होली
रंगों की है
बरजोरी
चलो चलो
सब खेलें होली
आवाज़ ये
आ रही है
दिल को मेरे
दुखा रही है
कैसी होली
कौन सी होली
कौन से रंगों से
करें बरजोरी
कहीं है देखो
रिश्तों के
व्यापार की होली
कहीं है प्यार के
इम्तिहान की होली
कहीं पर देखो
जाति की होली
कहीं है भ्रष्टाचार
की होली
कोई तो फेंके
बमों के गुब्बारे
कहीं पर है
नक्सलिया टोली
लहू का पानी
डाल रहे हैं
नफरतों के
बाज़ार लगे हैं
सियासती चालों की
होली खेल रहे हैं
दाँव पेंच सब
चल रहे हैं
बन्दूक की
पिचकारी बना
निशाना दाग रहे हैं
देश को कैसे
बाँट रहे हैं
ये कैसी होली
खेल रहे हैं
लहू के रंग
बिखेर रहे हैं
केसरिया भी
सिसक रहा है
टेसू के फूलों से
भी जल रहा है
हरियाली भी
रो रही है
अपना दामन
भिगो रही है
अमन शान्ति का
हर रंग उड़ गया है
आसमान भी
बिखर गया है
माँ भी लाचार खडी है
अपनों के खून से
सनी पड़ी है
बेबस निगाहें
तरस रही हैं
जिसके बच्चे
मर रहे हों
आतंक की भेंट
चढ़ रहे हों
जो घात पर घात
सह रही हो
तड़प- तड़प कर
जी रही हो
जिस माँ को
अपने ही बच्चे
टुकड़ों में
बाँट रहे हों
वो माँ बताओ
कैसे खेले होली
जहाँ दिमागों पर
पाला पड़ गया हो
स्पंदन सारे
सूख गए हों
ह्रदयविहीन सब
हो गए हों
अपनों के लहू से
हाथ धो रहे हों
बताओ फिर
कैसे खेलें होली
किसकी होली
कैसी होली
किससे करें
बरजोरी
अब कैसे खेलें होली ?
Saturday, February 27, 2010
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बहुत ही बेहतरीन , आपने होली के पावन अवसर पर रंगो के बहाने सच्चाई उकर कर रख दिया । बहुत ही उम्दा रचना , आपको होली की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामाएं ।
ReplyDeleteवंदना जी होली के माध्यम से आज की विशमताओं को खूब अच्छे ढंग से लिखा है। आपको व परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने
ReplyDelete"किसकी होली
कैसी होली
किससे करें
बरजोरी
अब कैसे खेलें होली ?"
सार्थक प्रश्न उठाये हैं आपने.
- विजय
किसकी होली
ReplyDeleteकैसी होली
किससे करें
बरजोरी
अब कैसे खेलें होली ?
वाकई ये प्रश्न नहीं हैं आईना हैं
सार्थक रचना
काऊ ते खेलो, पर खेलो जरूर. और कौउ न होये तो अपने ही संग खेलो. होली की शुभकामनायें.
ReplyDeleteहोली पर्व की हार्दिक शुभकामनाये और ढेरो बधाई ...
ReplyDeleteholi par desh ki samajik sthiti ki ka sahi darshan, sunder samyik abhivyakti.
ReplyDeleteआपको तथा आपके समस्त परिजनों को होली की सतरंगी बधाई
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई !!
ReplyDeleteहोली के इन रंगो से अवगत कराने के बाद भी, होली की शुभकामनाए!
ReplyDeleteजहाँ दिमागों पर
ReplyDeleteपाला पड़ गया हो
स्पंदन सारे
सूख गए हों
ह्रदयविहीन सब
हो गए हों
अपनों के लहू से
हाथ धो रहे हों
बताओ फिर
कैसे खेलें होली
किसकी होली
कैसी होली
समाज में घटित हो रहे घटना चक्र को पने बोली के माध्यम से मार्मिकरूप से चित्रण किया है!
होली की रंगभरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
aapko holi ki hardik shubhkamnaayen ...rangoka tyauhar aapke jivan me naye taaze rang bhare...
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
ReplyDeleteभल्ले गुझिया पापड़ी खूब उड़ाओ माल
ReplyDeleteखा खा कर हाथी बनो मोटी हो जाए खाल
फिरो मजे से बेफिक्री से होली में,
मंहगाई में कौन लगाए चौदह किला गुलाल
http://chokhat.blogspot.com/
जब कोई बात बिगड़ जाए
ReplyDeleteजब कोई मुश्किल पड़ जाए तो
तो होठ घुमा सिटी बजा सिटी बजा के
बोलो वंदनाजी,"आल इज वेल"
हेपी होली .
जीवन में खुशिया लाती है होली
दिल से दिल मिलाती है होली
♥ ♥ ♥ ♥
आभार/ मगल भावनाऐ
महावीर
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
ब्लॉग चर्चा मुन्ना भाई की
द फोटू गैलेरी
महाप्रेम
माई ब्लोग
SELECTION & COLLECTION
hamesha ki tareh satye ko ukerti aapki rachna bahut acchhi hai.
ReplyDeleteholi ki shubkaamnaye.
सामयिक, मार्मिक, सुन्दर और सोचने को मजबूर करती कविता. सुन्दर रचना. आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरंग-पर्व हमारे और हमारे प्रियजनों के जीवन में प्रेम, करुणा, सुख, शान्ति, समृद्धि, सफलता, उत्कर्ष के सप्त वर्ण इन्द्रधनुष का उन्मेष करे और हमें अन्यों के जीवन में रंग भर सकने की क्षमता, इच्छा, तथा अभिप्रेरणा दे.
बहुत सुंदर, होली की घणी रामराम.
ReplyDeleteरामराम.
वंदना जी,
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को रंगोत्सव की बहुत-बहुत बधाई...
आपको आतिथ्य सत्कार संतरालय दे दिया गया है...
जय हिंद...
साथ ही चलते रहते हैं सभी अनगिन कार्य-व्यापार !
ReplyDeleteहम कहाँ ठहरते हैं क्लेश को पकड़कर ! फाग-रंग सारा क्लेश धो डालता है क्षण भर के लिये !
होली की हार्दिक शुभकामनायें \
बहुत ही सटीक अंकन...और बरजोरी शब्द का प्रयोग तो अद्भुत है..
ReplyDeleteबावजूद आत्मीयता से सराबोर मुबारक मेरी तरफ से ....
Vandana Ji,
ReplyDeleteHoli ke shubh avsar per likhi aapki kavita satrangi vichaar pesh kar rahi hai....
HOLI KI SHUBH KAAMYAEIN
SURINDER RATTI
sach hi kaha hai.. yatharth kavita..BADHAI..
ReplyDeleteएक बहुत अच्छी पोस्ट दिल को छू गयी. एक एक दर्द सही ढंग से उकेरा है
ReplyDeleteआपको होली की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामाएं ।
Bahut hi behtrin....prashtuti.
ReplyDeleteसुन्दर, सार्थक प्रश्न उठाती रचना. बधाई.
ReplyDeleteवाह वंदना मुझे जब कोई कविता यथार्त को इंगित करते हुए लिखी जाती है ना जाने क्यों ह्रदय में उतरती सी चली जाती है ,,, वर्तमान समय में समाज में फैली विषमता और उथल पुथल के हर पक्ष को जिस तरह से आप ने शब्द दिए है मै नतमस्तक हूँ
ReplyDeleteकहीं पर देखो
जाति की होली
कहीं है भ्रष्टाचार
की होली
कोई तो फेंके
बमों के गुब्बारे
कहीं पर है
नक्सलिया टोली
लहू का पानी
डाल रहे हैं
नफरतों के
बाज़ार लगे हैं
सियासती चालों की
होली खेल रहे हैं
दाँव पेंच सब
चल रहे हैं
बन्दूक की
पिचकारी बना
निशाना दाग रहे हैं
देश को कैसे
बाँट रहे हैं
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084