गीत गोविन्द के गाती फिरूँ
मैं तो तन- मन में गोविन्द झुलाती फिरूँ
गली- गली गोविन्द गाती फिरूँ
मैं तो तेरे ही दर्शन पाती फिरूँ
अँखियों में गोविन्द सजाती फिरूँ
हिय की जलन मिटाती फिरूँ
जन जन में गोविन्द निहारती फिरूँ
कभी गोपी कभी कृष्ण बनती फिरूँ
मैं तो गोविन्द ही गोविन्द गाती फिरूँ
कभी गोविन्द को गोपाल बनाती फिरूँ
कभी राधा को गोविन्द बनाती फिरूँ
कभी खुद में गोविन्द समाती फिरूँ
कभी गोविन्द में खुद को समाती फिरूँ
मैं तो गोविन्द ही गोविन्द गाती फिरूँ
मैं तो गोविन्द से नेहा लगाती फिरूँ
कभी गोविन्द को अपना बनाती फिरूँ
कभी गोविन्द की धुन पर नाचती फिरूँ
मैं तो मुरली अधरों पर सजाती फिरूँ
कभी मुरली सी गली- गली बजती फिरूँ
मैं तो गोविन्द ही गोविन्द गाती फिरूं
कभी बावरिया बन नैना बहाती फिरूँ
कभी गुजरिया बन राह बुहारती फिरूँ
कभी गोविन्द की राधा प्यारी बनूँ
कभी गोविन्द की मीरा दीवानी बनूँ
मैं तो गोविन्द ही गोविन्द गाती फिरूँ
मैं तो तन- मन में गोविन्द झुलाती फिरूँ
Thursday, April 22, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बहुत सुन्दर भक्ति रस से परिपूर्ण रचना है...जहाँ तक मैं समझता हूँ इस गीत को "जोत से जोत जलाते चलो...." की धुन मे गाया जाए तो यह गीत बहुत गहरे तक उतर जाएगा....धन्यवाद।
ReplyDeletejai govind jai gopal
ReplyDeletejai maadhav jai mohan
बहुत खूब वंदना जी ,,, बहुत ही सुन्दर भक्ति रस से भरी हुई ह्रदय की सुन्दर भावनाओं को शब्द देती हुई एक बढ़िया रचना ,,,, ,,,
ReplyDeleteमेरी तरफ से दो लायने
द्वेत के भाव से विकल हूँ ,,,
मिलन को विहल हूँ ,,,
हूँ लालायित ,,,
सम्मिलन के लिए,,,
तुझे निज में वसा रखा है ,,,
अब निजमे मुझको वसा ले,,
ओ जगत नियन्ता इधर भी देख
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
JI BAHUT BADHIYA....
ReplyDeleteKUNWAR JI,
भक्ति की अप्रतिम रसधार ।
ReplyDeleteभक्ति - रस में डूबा बेहद खूबसूरत भक्ति गीत...
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
Pooree rachana 'Govindmay'ban gayi hai...!
ReplyDeleteलोग भक्तिरस में भीग जाते हैं,
ReplyDeleteमगर हम तो भकित् की इस गंगा में नहा गये है!
बहुत सुन्दर भजन!
बधाई!
Vandana, behad sundar rachana hai!
ReplyDeleteo mare pyare
ReplyDeletemujeh bhi apne radha banao
bahut khoob bahut khoob
vandna jee tussi cha gaye