सुनो
तुम्हें ढूंढ रही हूँ
जन्मों से
रूह आवारा
भटकती
फिरती है
इक तेरी
खोज में
और तू
जो मेरे
वजूद का
हिस्सा नहीं
वजूद ही
बन गया है
ना जाने
फिर भी
क्यूँ मिलकर भी
नहीं मिलता
सिर्फ अहसासों में
मौजूद होने से
क्या होगा
अदृश्यता में
दृश्यता को बोध
होने से क्या होगा
नैनों के दरवाज़े से
दिल के आँगन में
अपना बिम्ब तो
दिखलाओ
इक झलक
पाने को
तरसती
इस रूह की
प्यास तो
बुझा जाओ
ओ मेरे प्यारे
राधा सा विरह
तो दे दिया
मुझे भी अपनी
राधा तो बना जाओ
Sunday, April 25, 2010
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श्याम के रंग में रंगी इस पोस्ट की तारीफ के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है!
ati sundar...
ReplyDeleteBahut sundar , prem ras kee dhaar !!
ReplyDeleteहे री मैं तो प्रेम दीवानी
ReplyDeleteमेरा दर्द न जाने कोय .....
Kaise kanhu , kanhi shuru karte hi shabd khatm na ho jaye.
ReplyDeleteAti Sunder
me teri diwani ban gai gai he shayam mujhe apna le
ReplyDeletebahut khub
shekhar kumawat
Wah, Vandana, wah!
ReplyDeleteprem rang na padwe feeka..
ReplyDeleteaap roj hi likhti hain kya, ya pahle ke likhe hain ye sare?/
और तू
ReplyDeleteजो मेरे
वजूद का
हिस्सा नहीं
वजूद ही
बन गया है
बहुत ही गहरी पंक्तियाँ...सुन्दर रचना
Bahut khoob ... Raadha sa virah de kar Raadha nahi banaata ... bahut hi ache bhaav hain .. meetha sa ulhaana deti hai ye khoobsoorat rachna ..
ReplyDeleteprem ke pavitra ehsaas me lipti ek khubsurat kavita...
ReplyDeletekafi accha laga padhkar.
regards-
#ROHIT
prem ke pavitra ehsaas me lipti ek khubsurat kavita...
ReplyDeletekafi accha laga padhkar.
regards-
#ROHIT
कृष्ण के प्रेम में पगी खूबसूरत कृति....मन आनंदित हुआ ..
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट।
ReplyDeletewaah mujhe radha bana to jao..bahut khoob...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ... ह्रदय की ब्याकुलता को दर्शाती ...
ReplyDeleteप्रेम की व्याकुलता दर्शाती भावपूर्ण रचना
ReplyDelete.......हार्दिक शुभकामनाएं
आपने राधा का विरह और आम भारतीय स्त्री की पीड़ा को सफल अभिव्यक्ति दी है।
ReplyDeleteवजूद बन गया ैै ना जाने फिर भी कहकर आप बहुत कुछ कह देती ह।
सच में वंदना जी उस अनन्त शक्ति से विरह का जो अहसास है ,, आत्मा की जो तड़पन है , है वो ना जाने कितने दुखो के बराबर है ,,,,,आत्मा की छट पटाहट और मिलन की उत्कंठा की हद दिखाती रचना
ReplyDeleteसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
nice.
ReplyDeletebahut hi khoobsurat...
ReplyDeleteaapne bahutahi sunder shabdon ka guldasta pesh kiya hai, dhanyawaad!
ReplyDeleteshabdon ki gahraai main hi bhavarth chhupa hai
ReplyDeletebahut kuchh kah diya hai.
achchha laga
dil ko chhu jati hai
ReplyDeletedil ko chhu jati hai
ReplyDeletedil ko chhu gaya
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