मुझे शिला बनाया होता
अहिल्या सा तारने को
फिर राम बनकर आया होता
मुझे गंवारिन ही बनाया होता
शबरी सा तारने को
फिर राम बनकर आया होता
मुझे सखी अपनी बनाया होता
द्रौपदी की लाज बचाने को
फिर श्याम बन कर आया होता
श्याम कुछ तो अपना बनाया होता
चाहे खाक ही चरणों की बनाया होता
फिर धूल झाड़ने को ही सही
अपना हाथ तो बढाया होता
मुझे भी गले से लगाया होता
एक बार श्याम मेरे
मन मंदिर में तो आया होता
एक फूल प्रेम का
मुझमे भी खिलाया होता
फिर चाहे राम बनकर चाहे श्याम बनकर
आया होता
मुझे भी प्रेमरस
पिलाया होता
समर्पण की सुन्दर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteमुझे अहिल्या बनाया होता ... बहुत ही भावपूर्ण रचना ... बधाई
ReplyDeleteबहुत खूब सुन्दर पोस्ट के लिए
ReplyDeleteबधाई ......
बहुत खूब सुन्दर पोस्ट के लिए
ReplyDeleteबधाई ......
वाह! क्या बात है, भक्ति रस में डूब गए!
ReplyDeleteराम श्याम में रची बसी सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअच्छे विचार - अच्छी अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteHar bhakti ras me doobee naaree kee antarng ichhaa!
ReplyDeleteक्या बात है..
ReplyDeleteरचना में बहुत अच्छे प्रतीको का प्रयोग किया है आपने!
ReplyDelete--
सुन्दर रचना!
सदाबहार विषय और मधुर रचना ....शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteप्रेमानुभूति पर अतिसुंदर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeletenek vichar......sundar post....dil ko chhoo gayi
ReplyDeleteआपके भक्ति भाव को प्रणाम.प्रेमरस अब आप पियेंगी ही नहीं सभी को अवश्य पिलायेंगी.
ReplyDeleteआपकी भक्तिपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए आभार.
मुझे सखी अपनी बनाया होता
ReplyDeleteद्रौपदी की लाज बचाने को
फिर श्याम बन कर आया होता
bahut bhamaye panktiyan .sundar bhavabhivyakti .badhai .
ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रण .... एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
kya baat hai ,rachana dharmita ka nirvahan aakhir kalam se pravahit ho hi gaya . sunder abhivykti . aabhr
ReplyDeletesunder abhivyakti ...!!
ReplyDeleteसुन्दर....वह स्वय ही शिला बनाता है स्वयं ही तारणहार बनता है...भाव मयी रचना...
ReplyDeleteचाहे राम बनकर
ReplyDeleteचाहे श्याम बनकर
आया होता
मुझे भी प्रेमरस
पिलाया होता... premras se aastha se bhari rachna
मुझे गंवारिन ही बनाया होता शबरी सा तारने को फिर राम बनकर आया होता....
ReplyDeleteवाह वंदना जी सारे प्रतीक मनोहारी ....बहुत कुछ सीखने को मिलता है आपसे. !!
्वाह यह तो मन से निकली आवाज लगती हे, अतिसुंदर भावाभिव्यक्ति, धन्यवाद
ReplyDeleteप्रेम और भक्ति रस से सरोबार पोस्ट.
ReplyDeletesunder abodh chah..
ReplyDeleteचाहे खाक ही चरणों की बनाया होताफिर धूल झाड़ने को ही सहीअपना हाथ तो बढाया होता
ReplyDeleteishwar prem aur bhakti ki sundar abhivyakti
Aapko Vandana banaya h... nit prabhi k charno me samarpit ho jaane k lie...sundar bhav purna kavita behad pasand aayi :)
ReplyDeleteबहुत खूब सुन्दर पोस्ट के लिए
ReplyDeleteबधाई ......
sahaj-sarthak shaili...prabhavi rachna!
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