एक दिन यशोदा लाला को
दूध पिला रही थी
और उधर से कंस का भेजा
तृनावर्त आ रहा था
जब कृष्ण ने ये जाना
तब अपना भार बढ़ा दिया
ये सोच कहीं मैया को
साथ उठा ले गया
तो मैया तो मर जाएगी
उसे देख घबरा जाएगी
जब मैया का पाँव दुखा
तब मैया के उर मे सोच हुआ
लाला नेक सा तो है
फिर कैसे इतना भार बढ़ा
फिर कान्हा को पलने में सुला
अपने काम में लग गयी
इधर तृनावर्त धर बवंडर
का रूप कान्हा को उठा ले गया
पहले तो कान्हा ने
उसके साथ सारे ब्रजमंडल का
अवलोकन किया
कहाँ कहाँ क्या लीला करनी है
हर जगह को देख लिया
फिर जैसे ही वो मथुरा की ओर जाने लगा
वैसे ही अपना इतना भार बढ़ा दिया
कि उसका काम वही तमाम किया
एक दिन यशोदा बड़े प्रेम से
लाला को स्तनपान करती थीं
बात्सल्य प्रेम से विह्वल हुई जाती थीं
जब कान्हा दूध पी चुके
और माता उनका मुख चूम रही थीं
तभी कान्हा ने जम्हाई ली
और माता उनके मुख में
देख हतप्रभ हुई
अनगिनत
आकाश , अन्तरिक्ष, ज्योतिर्मंडल
दिशायें, सूर्य , चंद्रमा , अग्नि
समुद्र , वायु , द्वीप , पर्वत , वन
समस्त चर - अचर प्राणियों
का अवलोकन किया
करोड़ों ब्रह्माण्ड मुख में समाये थे
जिसे देख मैया को पसीना आया था
चकित मैया बुरी तरह काँप गयी
घबरा कर अँखियाँ बंद कर लीं
मैया को शंका थी कहीं
अधिक दुग्धपान से लाला को
अपच ना हो जाए
उस शंका का निवारण करना था
और मैया को दिव्य रूप दिखाना था
साथ ही ये भी बताना था-------
अरी मैया , तेरा दूध
अकेले मैं नहीं पीता हूँ
समस्त विश्व इसका
पान कर रहा है
तेरे दुग्ध से ही समस्त
विश्व का भरण - पोषण होता है
मगर माता तो आँख बंद कर डर गयी
और ख्यालों में पहुँच गयी
कहाँ ऐसा हो सकता है
लाला के मुख में कैसे
पूरा ब्रह्माण्ड दिख सकता है
इसे अपनी बूढी आँखों
का भरम जाना
और कान्हा को ह्रदय से लगा लिया
कितनी भोली थी मैया
ये लाला ने जान लिया
इसी निश्छल प्रेम को पाने को
विश्वभरण ने अवतार लिया
क्रमश:……………
दूध पिला रही थी
और उधर से कंस का भेजा
तृनावर्त आ रहा था
जब कृष्ण ने ये जाना
तब अपना भार बढ़ा दिया
ये सोच कहीं मैया को
साथ उठा ले गया
तो मैया तो मर जाएगी
उसे देख घबरा जाएगी
जब मैया का पाँव दुखा
तब मैया के उर मे सोच हुआ
लाला नेक सा तो है
फिर कैसे इतना भार बढ़ा
फिर कान्हा को पलने में सुला
अपने काम में लग गयी
इधर तृनावर्त धर बवंडर
का रूप कान्हा को उठा ले गया
पहले तो कान्हा ने
उसके साथ सारे ब्रजमंडल का
अवलोकन किया
कहाँ कहाँ क्या लीला करनी है
हर जगह को देख लिया
फिर जैसे ही वो मथुरा की ओर जाने लगा
वैसे ही अपना इतना भार बढ़ा दिया
कि उसका काम वही तमाम किया
एक दिन यशोदा बड़े प्रेम से
लाला को स्तनपान करती थीं
बात्सल्य प्रेम से विह्वल हुई जाती थीं
जब कान्हा दूध पी चुके
और माता उनका मुख चूम रही थीं
तभी कान्हा ने जम्हाई ली
और माता उनके मुख में
देख हतप्रभ हुई
अनगिनत
आकाश , अन्तरिक्ष, ज्योतिर्मंडल
दिशायें, सूर्य , चंद्रमा , अग्नि
समुद्र , वायु , द्वीप , पर्वत , वन
समस्त चर - अचर प्राणियों
का अवलोकन किया
करोड़ों ब्रह्माण्ड मुख में समाये थे
जिसे देख मैया को पसीना आया था
चकित मैया बुरी तरह काँप गयी
घबरा कर अँखियाँ बंद कर लीं
मैया को शंका थी कहीं
अधिक दुग्धपान से लाला को
अपच ना हो जाए
उस शंका का निवारण करना था
और मैया को दिव्य रूप दिखाना था
साथ ही ये भी बताना था-------
अरी मैया , तेरा दूध
अकेले मैं नहीं पीता हूँ
समस्त विश्व इसका
पान कर रहा है
तेरे दुग्ध से ही समस्त
विश्व का भरण - पोषण होता है
मगर माता तो आँख बंद कर डर गयी
और ख्यालों में पहुँच गयी
कहाँ ऐसा हो सकता है
लाला के मुख में कैसे
पूरा ब्रह्माण्ड दिख सकता है
इसे अपनी बूढी आँखों
का भरम जाना
और कान्हा को ह्रदय से लगा लिया
कितनी भोली थी मैया
ये लाला ने जान लिया
इसी निश्छल प्रेम को पाने को
विश्वभरण ने अवतार लिया
क्रमश:……………
आकाश , अन्तरिक्ष, ज्योतिर्मंडल
ReplyDeleteदिशायें, सूर्य , चंद्रमा , अग्नि
समुद्र , वायु , द्वीप , पर्वत , वन
समस्त चर - अचर प्राणियों
का अवलोकन किया
करोड़ों ब्रह्माण्ड मुख में समाये थे
जिसे देख मैया को पसीना आया था
चकित मैया बुरी तरह काँप गयी
घबरा कर अँखियाँ बंद कर लीं
मैया को शंका थी कहीं
अधिक दुग्धपान से लाला को
अपच ना हो जाए
लाजवाब प्रस्तुति...बधाई
जय यशोदा मैया,जय श्री कृष्ण
ReplyDeleteजय वंदना जी.
मैया की शंका व अनुभूति को आपने खूबसूरती से उकेरा है.
आपकी भाव भक्ति से लिखी जा रही 'कृष्ण लीला'
की प्रशंसा करने के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास.
माँ के प्रेम को बहुत ही सहज रूप से आपने समझा दिया...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव से रचे है
ReplyDeleteकिशन लीला की विस्तृत जानकारी मिली ... बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteसुन्दर काव्य श्रंखला।
ReplyDeleteअभिनव प्रस्तुति है... वाह...
ReplyDeleteसादर...
बहुत सुन्दर और दिव्य ......
ReplyDeleteman aahladit ho uthta hai...
ReplyDeletebehtareen prastuti.
ReplyDeleteअब तो यह ब्लॉग मथुरा-वृन्दावन बन गया है.अति-सुंदर.
ReplyDeletebahut sundar prasang !...umda abhivyakti.
ReplyDeleteHam maze le rahe hain! Bahut khoob...jaaree rahen!
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