कुल पुरोहित गर्गाचार्य
गोकुल पधारे हैं
नन्द यशोदा ने
आदर सत्कार किया
और वासुदेव देवकी का हाल लिया
जब आने का कारण पूछा
तो गर्गाचार्य ने बतलाया है
पास के गाँव में
बालक ने जन्म लिया है
नामकरण के लिए जाता हूँ
बस रास्ते में
तुम्हारा घर पड़ता था
सो मिलने को आया हूँ
सुन नन्द यशोदा ने अनुरोध किया
बाबा हमारे यहाँ भी
दो बालकों ने जन्म लिया
उनका भी नामकरण कर दो
सुन गर्गाचार्य ने मना किया
तुम्हें है हर काम
कंस को पता चला तो
मेरा जीना मुहाल करेगा
सुन नन्द बाबा कहने लगे
भगवन गौशाला में चुपचाप
नामकरण कर देना
हम ना किसी को बताएँगे
सुन गर्गाचार्य तैयार हुए
जब रोहिणी ने सुना
कुल पुरोहित आये हैं
गुणगान बखान करने लगी
सुन यशोदा बोली
गर इतने बड़े पुरोहित हैं
तोऐसा करो
अपने बच्चे हम बदल लेते हैं
तुम मेरे लाला को और मैं
तुम्हारे पुत्र को लेकर जाउंगी
देखती हूँ कैसे तुम्हारे कुल पुरोहित
सच्चाई जानते हैं
माताएं परीक्षा पर उतर आयीं
बच्चे बदल गौशाले में पहुँच गयीं
यशोदा के हाथ में बच्चे को देख
गर्गाचार्य कहने लगे
ये रोहिणी का पुत्र है
इसलिएएक नाम रौहणेय होगा
अपने गुणों से सबको आनंदित करेगा
तो एक नाम "राम " होगा
और बल में इसके समान
कोई ना होगा
तो एक नाम बल भी होगालिया जाने वाला नाम
मगर सबसे ज्यादा
बलराम होगा
ये किसी में कोई भेद ना करेगा
सबको अपनी तरफआकर्षित करेगा
तो एक नाम संकर्षण होगा
और अब जैसे ही
रोहिणी की गोद के बालक को देखा
तोगर्गाचार्य मोहिनी मुरतिया में खो गए
अपनी सारी सुधि भूल गए
खुली आँखों से प्रेम समाधि लग गयी
गर्गाचार्य ना बोलते थे ना हिलते थेकितने पल निकल गए
ना जाने इसी तरह
ये देख बाबा यशोदा घबरा गए
हिलाकर पूछने लगे बाबा क्या हुआ ?
बालक का नामकरण करने आये हो
क्या ये भूल गए
सुन गर्गाचार्य को होश आया है
और एकदम बोल पड़े
नन्द तुम्हारा बालक
कोई साधारण इन्सान नहीं
ये तो कह जो ऊँगली उठाई
तभी कान्हा ने आँख दिखाई
कहने वाले थे गर्गाचार्य
ये तो साक्षात् भगवान हैं
तभी कान्हा ने
आँखों ही आँखों में
गर्गाचार्य को धमकाया है
बाबा मेरे भेद नहीं खोलना
बतलाया है
मैं जानता हूँ बाबा
यहाँ दुनिया
भगवान का क्या करती है
उसे पूज कर
अलमारी में बंद कर देती है
और मैं अलमारी में
बंद होने नहीं आया हूँ
मैं तो माखन मिश्री खाने आया हूँ
माँ की ममता में
खुद को भिगोने आया हूँ
गर आपने भेद बतला दिया
मेरा हाल क्या होगा
ये मैंने तुम्हें समझा दिया
मगर गर्गाचार्य मान नहीं पाए
जैसे ही दोबारा बोले
ये तो साक्षात् तभी
कान्हा ने फिर धमकाया
बाबा मान जाओ
नहीं तो जुबान यहीं रुक जाएगी
और ऊँगली
उठी की उठी रह जाएगी
ये सारा खेल
आँखों ही आँखों में हो रहा था
पास बैठे नन्द यशोदा को
कुछ ना पता चला था
अब गर्गाचार्य बोल उठे
आपके इस बेटे के नाम अनेक होंगे
जैसे कर्म करता जायेगा
वैसे नए नाम पड़ते जायेंगे
लेकिन क्योंकि इसने
इस बार काला रंग पाया है
इसलिए इसका एक नाम कृष्ण होगा
इससे पहले ये कई रंगों में आया है
मैया बोली बाबा
ये कैसा नाम बताया है
इसे बोलने में तो
मेरी जीभ ने चक्कर खाया है
कोई आसान नाम बतला देना
तब गर्गाचार्य कहने लगे
मैया तुम इसे कन्हैया , कान्हा , कनुआ कह लेना
सुन मैया मुस्कुरा उठी
ताजिंदगी कान्हा कहकर बुलाती रही
यहाँ तक कि
सौ साल बाद
कुरुक्षेत्र में जब
कान्हा पधारे थे
सुन मैया दौड़ी आई थी
अपने कान्हा का पता
पूछती फिरती थी
अरे किसी ने मेरा कान्हा देखा क्या
कोई मुझे मेरे कान्हा से मिलवा दो
बस यही गाती फिरती थी
तपती रेत पर
नंगे पाँव दौड़ी जाती थी
नेत्रों से अश्रु बहते थे
पैरों में छाले पड़ गए थे
मगर मैया को कहाँ
अपने शरीर का होश था
उसका व्याकुल ह्रदय तो
कान्हा के दरस को तरस रहा था
१०० साल का वियोग
मैया ने कैसे सहा था
आज कैसे वो रुक सकती थी
जिसके लिए वो जी रही थी
जिसकी सांसों की डोर
कान्हा मिलन में अटकी पड़ी थी
उसकी खबर पाते ही
बेचैन हो गयी थी
हर मंडप में जाकर
गुहार लगाती थी
मगर कोई ना उसे
समझ पाता था
क्यूँकि उनका कान्हा तो अब
द्वारिकाधीश बन गया था
किसी ने ना कभी
ये नाम सुना था
उनके लिए तो सिर्फ
द्वारकाधीश नाम ही
संबल था
मगर मैया ने ना
कभी कोई और नाम लिया था
उसके लिए तो
उसका कान्हा आज भी
कनुआ ही था
मैया आवाज़ लगा रही थी
लगाते लगाते जैसे ही
एक मंडप के आगे से गुजरी
ये करुण पुकार सिर्फ
मेरे कान्हा ने सुनी
अरे ये तो मेरी मैया
मुझे बुलाती है
मगर वो यहाँ कहाँ से आ गयी
इस अचरज में पड़े
नेत्रों में अश्रु भरे
कान्हा दौड़ पड़े
मैया- मैया कह आवाज लगायी
देख तेरा कान्हा यहाँ है
कह मैया को आवाज़ लगायी
सुन कान्हा की आवाज़
मैया रुक गयी
और कान्हा को
पहले की तरह
गोद में लेकर बैठ गयी
मेरा लाल कितना दुबला हो गया है
क्या कान्हा तुझे माखन
वहाँ नहीं मिलता है
मैया रोती जाती है
भाव विह्वल हुई जाती है
जैसे बचपन में लाड
लड़ाती थी वैसे ही
आज भी लाड - लड़ाती है
आज तेरा कान्हा मैया
द्वारकाधीश बना है
जो तू मांगेगी
सब हाजिर हो जायेगा
बोल मैया तू क्या चाहती है
सुन मैया बोल पड़ी
लाला तेरे सिवा ना
किसी को चाहा है
और माँ तो सदा
बेटे को देती आई है
तू जो चाहे मुझसे मांग लेना
मेरा तो जीवन धन
सर्वस्व तू ही है कान्हा
सुन कान्हा रो पड़े
तुझसा निस्वार्थ प्यार
मैया मैंने कहीं ना पाया है
तभी तो तेरे प्रेम के लिए
मैं धरती पर आया हूँ
ऐसा अटल प्रेम था माँ का
तभी तो मैया ने ना
कभी कृष्ण कहा
उसके लिए तो उसका कान्हा
सदा कान्हा ही रहा
गर्गाचार्य को दान दक्षिणा दे विदा किया
नित्य आनंद यशोदा के आँगन
बरसने लगा
बाल रूप में नन्द लाल
अठखेलियाँ करने लगे
मैया आनंद मग्न
कान्हा को खिलाती रही
और ब्रह्मा से मानती रही
कब मेरा लाला
घुट्नन चलेगा
कब दंतुलिया निकलेंगी
कब लाला मुझे
मैया कहकर पुकारेगा
मैया रोज ख्वाब सजाती है
ब्रह्मा से यही मानती है
वक्त यूँ ही गुजरता रहा
कान्हा के अद्भुत रूप पर
गोपियाँ मोहित होती रहीं
अद्भुत चित्रण...
ReplyDelete------
आप चलेंगे इस महाकुंभ में...
...मानव के लिए खतरा।
कृष्ण मय करती कविता... काव्य सुधा विस्मित करती है... सरस, सहज कविता...
ReplyDeleteआनंदित कर देने वाला प्रसंग .....
ReplyDeleteकृष्ण ही कृष्ण मय करतीसुन्दर भावपूर्ण कविता....
ReplyDeleteभक्तिमय कृष्ण कथा।
ReplyDeleteतभी कान्हा ने आँखों ही आँखों में गर्गाचार्य को धमकाया है बाबा मेरे भेद नहीं खोलना बतलाया है मैं जानता हूँ बाबा यहाँ दुनिया भगवान का क्या करती है उसे पूज कर अलमारी में बंद कर देती है और मैं अलमारी में बंद होने नहीं आया हूँ
ReplyDeleteअदभूत, अनुपम ,शानदार,बेहतरीन
क्या क्या कहूँ ,वंदना जी
शब्द ही नहीं हैं मेरे पास आपकी इस
सुन्दर प्रस्तुति पर अपने मनोभाव प्रस्तुत
करने के लिए.आप यूँ ही भक्ति रस में रंगी
हमे भी सराबोर करती रहें.
आभार.
इतनी सरस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteश्रीमद भागवत पुराण के दसम स्कंध का इतना रोचक रूपान्तर प्रस्तुत करने के लिए आपको बहुत बधायी !आभार स्वीकारें
भोला-कृष्णा
इतनी सरस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteश्रीमद भागवत पुराण के दसम स्कंध का इतना रोचक रूपान्तर प्रस्तुत करने के लिए आपको बहुत बधायी !आभार स्वीकारें
भोला-कृष्णा
सुन्दर प्रस्तुति पर
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ||
आप्कीस श्रृंखला से मन आनंदित हो रहा है ..विस्तार से जानकारी मिल रही है ...
ReplyDeleteमन को प्रफुल्लित कर देने वाले प्रसंग की सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteमाता का बच्चों के प्रति वात्सल्य, ईश्वर की लीला समूचा प्रसंग ही सर्वदा श्रवण, पठन योग्य…सुंदर रचना।
ReplyDeleteसुंदर...सुंदर...सुंदर...
ReplyDeleteभावपूर्ण कविता.
ReplyDeletebahut sundar krishmayee prastuti..
ReplyDeleteaapko NAVRATRI kee sapariwar haardik shubhkamnayen!
बहुत सुन्दर पूरा मन कृष्ण मय हो जाता है यहाँ आकर
ReplyDeleteआप भी मेरे फेसबुक ब्लाग के मेंबर जरुर बने
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MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
MITRA-MADHUR
KYA BHAVABHIVYAKTI HAI ! MAN
ReplyDeleteTHIRAKNE LAGAA HAI
वंदना जी बहुत सुन्दर मनमोहक चित्रण कान्हा का ....अद्भुत रचना सुन्दर मूल भाव बधाई हो ...ये आँखें नम
ReplyDeleteभ्रमर ५
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteकौन ना भीग जाये इस भक्ति रस में !
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