जाकर योगी बैठ गया ध्यान में
कर रहा करुण पुकार है
भोले नाथ ध्यान में विनती करते हैं
प्रभु दर्शन को नैना तरसते हैं
क्या इतने पास होकर भी
दर्शन नहीं होंगे
अविरल धार अँखियों से बहती है
सुन कर करुण पुकार
कान्हा मचल गए
भक्त के आँसुओं पर
भगवान रीझ गए
कैसे भक्त को रोता देख सकते थे
इसलिए साथ देने को
खुद ने भी रुदन मचाया है
जिसे देख यशोदा का मन घबराया है
मैया ने हर उपाय किया
मगर कान्हा का ना
रुदन बंद हुआ
नन्द बाबा को जब पता चला
हकीम वैद्य का हर उपचार किया
जाने कितने टोटके किये
मगर सभी बेअसर रहे
नज़रें कितनी उतारी हैं
मगर कान्हा का मुँह
खुला तो खुला ही रहा
देख मैया बाबा परेशान हुए
रात सारी आँखों में कट गयी
सुबह शांडिल्य ऋषि आये हैं
दोनों पति -पत्नी चरणों में गिर गए
देखो गुरुदेव लाला चुप ना होता है
सुन बाबा ने भी सभी उपाय किये
मगर लाला का रुदन चलता रहा
ये देख शांडिल्य मुनि को अचरज हुआ
मेरा उपाय ना कभी निष्फल हुआ
आज कौन सा नया कारण हुआ
सोच मुनि ने ध्यान किया
आँखों के आगे भोलेनाथ का दर्श किया
माजरा सारा समझ गए
आँख खोल पूछने लगे
यहाँ कोई आया था क्या
सुन यशोदा बोल पड़ी गुरुदेव
इक जोगी आया था
विकराल वेश उसने बनाया था
बस तभी से तो लाला रोता है
सुन मुनि ने कहा
जाकर उसको बुला लाओ
वो ही तुम्हारे लाला को
चुप करावेगा
अन्यथा धरती पर नहीं है कोई
जो उसे चुप करा सके
माँ- बाप का प्यार हार गया
पुत्र मोह में मैया ने
अपना हठ त्याग दिया
गोपी पालकी लेकर तुम जाओ
बाबा को आदर सहित ले आओ
गोपी ने जाकर योगी को
मैया का सन्देश सुनाया है
मगर योगी ने तो
समाधि में ध्यान लगाया है
योगी यहाँ होता तो
गोपी की वाणी सुन पाता
वो तो ध्यानमग्न बैठा है
अपने प्रभु के पास
ध्यान मे ही पहुँचा है
उनसे बातों में उलझा है
क्यूँ प्रभु इतनी देर लगायी है
दास की सुध ना आई है
कौन सा ऐसा अपराध हुआ
जो ना द्वारे पर दर्श हुआ
भाव विह्वल भोलेनाथ
अविरल अश्रु बहाते हैं
इधर गोपी आवाज़ें लगाती है
पर भोले बाबा के कान तक
ना पहुंच पाती है
जब बाबा ने ना कुछ सुना
तब गोपी ने योगी को
पकड़ के हिला दिया
बाबा मैया बुलाती है , संदेसा दिया
पालकी भिजवाई है
तुम्हारी हठ के आगे हारी है
सुन महादेव मुस्कुराये हैं
मन ही मन में सोचते हैं
वाह रे प्रभु !
तुम्हारी लीला न्यारी है
कभी द्वार आये को धकियाते हो
कभी पालकियों में बुलवाते हो
मन ही मन नमन करते हैं
और गोपी की वाणी
सुन जोगी प्रफुल्लित हुआ
प्रभु के पास जाने को
पैदल ही उद्यत हुआ
क्रमश:……………
कर रहा करुण पुकार है
भोले नाथ ध्यान में विनती करते हैं
प्रभु दर्शन को नैना तरसते हैं
क्या इतने पास होकर भी
दर्शन नहीं होंगे
अविरल धार अँखियों से बहती है
सुन कर करुण पुकार
कान्हा मचल गए
भक्त के आँसुओं पर
भगवान रीझ गए
कैसे भक्त को रोता देख सकते थे
इसलिए साथ देने को
खुद ने भी रुदन मचाया है
जिसे देख यशोदा का मन घबराया है
मैया ने हर उपाय किया
मगर कान्हा का ना
रुदन बंद हुआ
नन्द बाबा को जब पता चला
हकीम वैद्य का हर उपचार किया
जाने कितने टोटके किये
मगर सभी बेअसर रहे
नज़रें कितनी उतारी हैं
मगर कान्हा का मुँह
खुला तो खुला ही रहा
देख मैया बाबा परेशान हुए
रात सारी आँखों में कट गयी
सुबह शांडिल्य ऋषि आये हैं
दोनों पति -पत्नी चरणों में गिर गए
देखो गुरुदेव लाला चुप ना होता है
सुन बाबा ने भी सभी उपाय किये
मगर लाला का रुदन चलता रहा
ये देख शांडिल्य मुनि को अचरज हुआ
मेरा उपाय ना कभी निष्फल हुआ
आज कौन सा नया कारण हुआ
सोच मुनि ने ध्यान किया
आँखों के आगे भोलेनाथ का दर्श किया
माजरा सारा समझ गए
आँख खोल पूछने लगे
यहाँ कोई आया था क्या
सुन यशोदा बोल पड़ी गुरुदेव
इक जोगी आया था
विकराल वेश उसने बनाया था
बस तभी से तो लाला रोता है
सुन मुनि ने कहा
जाकर उसको बुला लाओ
वो ही तुम्हारे लाला को
चुप करावेगा
अन्यथा धरती पर नहीं है कोई
जो उसे चुप करा सके
माँ- बाप का प्यार हार गया
पुत्र मोह में मैया ने
अपना हठ त्याग दिया
गोपी पालकी लेकर तुम जाओ
बाबा को आदर सहित ले आओ
गोपी ने जाकर योगी को
मैया का सन्देश सुनाया है
मगर योगी ने तो
समाधि में ध्यान लगाया है
योगी यहाँ होता तो
गोपी की वाणी सुन पाता
वो तो ध्यानमग्न बैठा है
अपने प्रभु के पास
ध्यान मे ही पहुँचा है
उनसे बातों में उलझा है
क्यूँ प्रभु इतनी देर लगायी है
दास की सुध ना आई है
कौन सा ऐसा अपराध हुआ
जो ना द्वारे पर दर्श हुआ
भाव विह्वल भोलेनाथ
अविरल अश्रु बहाते हैं
इधर गोपी आवाज़ें लगाती है
पर भोले बाबा के कान तक
ना पहुंच पाती है
जब बाबा ने ना कुछ सुना
तब गोपी ने योगी को
पकड़ के हिला दिया
बाबा मैया बुलाती है , संदेसा दिया
पालकी भिजवाई है
तुम्हारी हठ के आगे हारी है
सुन महादेव मुस्कुराये हैं
मन ही मन में सोचते हैं
वाह रे प्रभु !
तुम्हारी लीला न्यारी है
कभी द्वार आये को धकियाते हो
कभी पालकियों में बुलवाते हो
मन ही मन नमन करते हैं
और गोपी की वाणी
सुन जोगी प्रफुल्लित हुआ
प्रभु के पास जाने को
पैदल ही उद्यत हुआ
क्रमश:……………
वाह रे प्रभु !
ReplyDeleteतुम्हारी लीला न्यारी है
कभी द्वार आये को धकियाते हो
कभी पालकियों में बुलवाते हो
मन ही मन नमन करते हैं
और गोपी की वाणी
सुन जोगी प्रफुल्लित हुआ
प्रभु के पास जाने को
पैदल ही उद्यत हुआ
aankhon se ek dhaara prawahit ho uthi
कृष्ण लीला का रोचक वर्णन ..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा प्रयास ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत ही अलौकिक और दिव्य प्रसंग|
ReplyDeleteभक्ति में सरोबार करती आपकी कृष्ण लीला अच्छी लग रही है. बहुत सुन्दर लीला वर्णन.
ReplyDeleteकृष्ण -लीला का सुन्दर और रोचक वर्णन .....आपकी कृपा से हमें भी पढ़ने का मौका मिल रहा है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteभकितरस का यह कारवाँ बढ़िया चल रहा है!
अगले पड़ाव की प्रतीक्षा है!
कृष्णलीला का आनन्द उठा रहे हैं।
ReplyDeleteकभी द्वार आए को धकियाते हो,
ReplyDeleteकभी पालकियों में बुलवाते हो.
बहुत ही सुंदर कृष्ण लीला का वर्णन.
आनंदम ...
ReplyDeleteकृष्ण लीला का रोचक वर्णन ..
ReplyDeleteवाह... अलौकिक और दिव्य
ReplyDeleteनमन
about us:
Jansunwai is a NGO indulged in social awareness going to publish a book with content from blog writers. ( for details pls check this link http://jan-sunwai.blogspot.com/2011/09/blog-post_17.html )
Our blog www. jan-sunwai.blogspot.com is a platform for writers as well as for the people looking for legal help.In appriciation of the quality of some of your content we would love to link your content to our blog under your name, so that you can get the credit for the content.
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Regards.
आज पहली बार कृष्ण लीला देखी ! केवल एक भाग ही पढ पाये ! वर्णन सरस लगा ! भोला - कृष्णा
ReplyDeleteभक्त के आँसुओं पर
ReplyDeleteभगवान रीझ गए
कैसे भक्त को रोता देख सकते थे
इसलिए साथ देने को
खुद ने भी रुदन मचाया है
जिसे देख यशोदा का मन घबराया है
वाह! वंदना जी वाह!
भक्त की महिमा न्यारी है.
माता यशोदा और क्या करतीं.
भक्त के आँसुओं पर
ReplyDeleteभगवान रीझ गए
कैसे भक्त को रोता देख सकते थे
इसलिए साथ देने को
खुद ने भी रुदन मचाया है
जिसे देख यशोदा का मन घबराया है
वाह! वंदना जी वाह!
भक्त की महिमा न्यारी है.
माता यशोदा और क्या करतीं.
bahut khub....krishn lila ka khubsurat varnan
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