तन की थकान
तो उतर भी जाये
मन की थकान
कहाँ उतारूँ
किस पेड़ को
साया बनाऊँ
किस डाल पर
झूला डालूँ
कहाँ मैं यादों का
घरौंदा बनाऊँ
कौन सा अब
फूल खिलाऊँ
किस देहरी पर
माथा नवाऊँ
किस आँगन को
मैं बुहारूँ
किस मकां की
दहलीज पर
मन की
रंगोली सजाऊँ
तन की टूटन
जुड़ जाएगी
मन की टूटन
कहाँ जुडाऊँ
किस थाली में
मन को परोसूँ
कौन सा मैं
दीप जलाऊँ
किस देवता का
करूँ मैं पूजन
किस श्याम की
राधा बन जाऊँ
Tuesday, May 11, 2010
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बहुत खूब क्या बात है , शब्दो को पिरोनां तो कोई आपसे सिखे , लाजवाब ।
ReplyDeletewaah bhut khub vandna ji prem rash se bhari hui bhut sundar kavita
ReplyDeletesaadar
praveen pathik
9971969084
तन की टूटन जुड़ जायेगी
ReplyDeleteमन की टूटन कहाँ जुडाऊ
बहुत खूब , वंदना जी
किस थाली में
ReplyDeleteमन को परोसूँ
कौन सा मैं
दीप जलाऊँ
किस देवता का
करूँ मैं पूजन
किस श्याम की
राधा बन जाऊँ
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत!
तन और मन का आपने बहुत ही
सघनता से विश्लेषण करके
बहुत ही सुन्दररूप में यह प्रश्नगीत रचा है!
बधाई!
अति सुन्दर।
ReplyDelete--------
कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
Vandana ! Behad sundar rachana!
ReplyDeleteकिस थाली में
ReplyDeleteमन को परोसूँ
कौन सा मैं
दीप जलाऊँ
किस देवता का
करूँ मैं पूजन
किस श्याम की
राधा बन जाऊँ
,....मनोभावों की सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ
रूह-आफजा से तो काम नहीं चलेगा इसके लिए आपको योग की शरण में जाना पड़ेगा। कविता अच्छी है।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteमन की टूटन का बहुत सटीक विश्लेषण किया है ..बहुत अच्छी रचना....
ReplyDeleteअति सुन्दर... मन को छू लेने वाली रचना...
ReplyDeleteवंदना जी रचना हमेशा की तरह बेहतरीन लगी. ...आभार
ReplyDeleteवाह!जितनी जटिल असमंजस थी उतनी ही सरलता से बता दी गयी!ये शब्दों के चित्र.....
ReplyDeleteअति सुन्दर!
कुंवर जी,
तन की टूटन
ReplyDeleteजुड़ जाएगी
मन की टूटन
कहाँ जुडाऊँ
मन टूटता है तो --- इसलिये टूटने ही न दें
बहुत सुन्दर रचना
भाव गाम्भीर्य
ati sundar...
ReplyDeleteसुंदर कविता...बहुत बढ़िया लगी...बधाई
ReplyDeleteलाजवाब ... लाजवाब .... लाजवाब ......
ReplyDeleteआनन्द आ गया, वन्दना जी.
ReplyDeleteएक अपील:
ReplyDeleteविवादकर्ता की कुछ मजबूरियाँ रही होंगी अतः उन्हें क्षमा करते हुए विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
वाह, बहुत सुन्दर कविता है !
ReplyDeleteवंदना जी बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteइसके लिए आभार
ज्ञानदत्त ने लडावो और राज करो के तहत कल बहुत ही घिनौनी हरकत की है. आप इस घिनौनी और ओछी हरकत का पुरजोर विरोध करें. हमारी पोस्ट "ज्ञानदत्त पांडे की घिनौनी और ओछी हरकत भाग - 2" पर आपके सहयोग की अपेक्षा है.
ReplyDeleteकृपया आशीर्वाद प्रदान कर मातृभाषा हिंदी के दुश्मनों को बेनकाब करने में सहयोग करें. एक तीन लाईन के वाक्य मे तीन अंगरेजी के शब्द जबरन घुसडने वाले हिंदी द्रोही है. इस विषय पर बिगुल पर "ज्ञानदत्त और संजयदत्त" का यह आलेख अवश्य पढें.
-ढपोरशंख
bahut khub aapki prastuti auchhi lgi
ReplyDeleteसिर्फ एक शब्द, बेहतरीन !
ReplyDeleteवाह,बहुतअच्छा लिखा है आपने |आपकी प्रेमानुभूति स्तुत्य है क्योकि किसी का हो जाना या किसी को अपना बना लेना -ये दोनों घटनाएँ जीवन में दिव्यता सूचक हैं .
ReplyDeleteवाह,बहुतअच्छा लिखा है आपने |आपकी प्रेमानुभूति स्तुत्य है क्योकि किसी का हो जाना या किसी को अपना बना लेना -ये दोनों घटनाएँ जीवन में दिव्यता सूचक हैं .
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