तेरी याद में
जब अश्कों का
दरिया बहता था
तब अंतस में
बैठा तू ही तो
तड़पता था
आज तेरा
ये अंदाज़
समझ आया है
जब मैं और तू
दो रहे ही नहीं
जब तू ही वजूदमें समाया है
हर ओर तेरा ही
नूर समाया है
जहाँ मेरा "मैं"
ना नज़र आता है
जब एकत्व को
अस्तित्व प्राप्त
हो गया है
फिर बता साँवरे
अश्क अब
कैसे बहाऊँ?
तुझे अब कैसे
और तडपाऊँ?
Thursday, May 6, 2010
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बहुत सुंदर शब्दों में ...... बहुत सुंदर कविता.....
ReplyDeleteवाह!आत्मविश्लेषण की बेहतरीन प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहित ही सुन्दर....
कुंवर जी,
जब बजूद में ही समां जाए तो फिर " मैं " कहाँ बचता है.....और ना ही तड़पाने की ख्वाहिश...
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
bas vandana ji...
ReplyDeletemat tadpaao..
bahut achhi rachna..
अति सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteवंदना जी,
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कही है, बस इसको समझने की जरूरत है.
Kitni saraltase likh deti ho..!Koyi taamjhaam nahi...bas bhavna se bharpoor!
ReplyDeleteअति सुंदर रचना. इसके लिए आभार
ReplyDeleteजब एकत्व को
ReplyDeleteअस्तित्व प्राप्त
हो गया है
फिर बता साँवरे
अश्क अब
कैसे बहाऊँ?
... ek honi hi mein purnata hai. esi aapne bakhubi abhivykt kiya hai.. bahut shubhkamnayne
बहुत सुंदर,खूबसूरत भाव
ReplyDeletepyaari aur sachhi rachna...waah
ReplyDeleteभिन्नता के सारे बंधन ,,,,
ReplyDeleteयूँ टूटे ,,,,,
अभिन्न एकत्व दिख रहा है ,,,,
मै एक रंगी हो गया हूँ ,,,
हर ओर तेरा ही तो प्रभुत्त्व दिख रहा है
bahut sundar...
ReplyDeleteसुन्दर रचना अच्छे भावो के साथ ....
ReplyDeletebhav sahi pr prastuti aur auchhi ho skti thi
ReplyDeleteaap ki sb kavitaon k bhav auchhe lge pr ye kavita se pratit na ho kr kuch aur se pratit hote hai
han ji
ReplyDeletejo dil main samaya hai use kaise dard diya ja sakta hai,
bahut khoob
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना ! बधाई!
ReplyDeleteजब एकत्व को
ReplyDeleteअस्तित्व प्राप्त
हो गया है
फिर बता साँवरे
अश्क अब
कैसे बहाऊँ ?
-सुन्दर.
प्रशंसनीयं ।
ReplyDeleteप्रशंसनीय ।
ReplyDeleteआपकी कविता अन्तस को छु गयी, एक प्रेमी और प्रेयसी के बीच के प्रेम की पराकाष्ठा को अभिव्यक्त करती आपकी कविता की हरेक पन्क्तिया प्रेम की उच्च स्वरूप को अभिव्यक्त करती है जिसमे प्रेमी और प्रेयसी आपस मे एक स्वरूप को प्राप्त कर लेते है. इस सन्दर्भ मे किशन जी और राधा के बीच का प्रसन्ग मुझे याद आता है जिसमे राधा जे एकिशन जी से पूछती है कि हे किशन -तुम कैसे हो, क्या यह अनुचित नही कि तुमने विवाह किसी और से किया और शादी किसी और से रचा ली?
ReplyDeleteतब किशन जी कहते है कि हे राधिका विवाह के लिये दो लोगो की आवश्यकता होती है जिसमे एक पुरूष और दूसरी स्त्री होती है, तुम बताओ कि हममे से दूसरा कौन है? और जब हम दोनो मे दूसरा कोई है ही नही तो फिर विवाह किससे?
प्रेम की पराकाष्ठा औरप्यार का उच्चतम स्वरूप, शायद आपने यही रेखान्कित करने का प्रयास किया है. राकेश