मैं भूल जाऊँ कान्हा , कुछ गम नहीं
पर तुम ना मुझको भुला देना
श्यामा , अपना मुझे बना लेना
१) मैं तेरी जोत जलाऊँ या ना जलाऊँ
पर तुम ना मुझे भुला देना
अपनी दिव्य ज्योति जगा देना
कान्हा , अपना मुझे बना लेना
२)मैं तुम्हें ध्याऊँ या ना ध्याऊँ
पर तुम ना मुझे भुला देना
मेरा ध्यान निज चरणों में लगा लेना
कान्हा , अपना मुझे बना लेना
३)मैं प्रीत निभाऊं या ना निभाऊं
तुम ना मुझे भुला देना
प्रीत की रीत निभा देना
श्यामा प्रेम का राग सुना देना
कान्हा, अपना मुझे बना लेना
Wednesday, May 26, 2010
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सुन्दर रचना ..प्रेम से भरी स्वच्छ विनती
ReplyDeleteहमारी भी एक अरज उस कान्हा तक पहुंचा देना जी....
ReplyDeleteमै समझ पाऊँ या
ना समझ पाऊँ..
पर तुम तो समझ लेना...
अपनी शरण का एहसास करा देना...
तुझ से अलग ही कहा हूँ...
कान्हा!बस इतना दिखा देना....
कुंवर जी,
वैसे भजन कहें तो ज्यादा सही है.. नहीं?
ReplyDeleteवंदना मैम, मानना पड़ेगा आपको.. इतना बेहतरीन गीत रच डाला आपने..
ReplyDeleteKitni nirmal bhavnayen hain!
ReplyDeleteश्याम से ये मनुहार भारी कविता बड़ी अच्छी लगी...
ReplyDeleteसच्ची आराधना
ReplyDeleteSundar bhakti geet vandna ji!
ReplyDeleteati-sundar abhiwykti vandnaa jee !!!!!!!!!
ReplyDeleteखूबसूरती से की गयी प्रार्थना ....
ReplyDeleteकृष्ण भक्ति में सनी सुन्दर रचना के लिए बधाई!
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह पोस्ट...
ReplyDeleteBahut hi Sundar Abhivyakti Hai Didi...
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