Tuesday, May 31, 2011

हे कृष्ण ! तुम प्रश्नचिन्ह हो

हे कृष्ण !
तुम प्रश्नचिन्ह हो 
समझ में न आने वाले
ऐसा जटिल प्रश्न 
जिसका उत्तर 
जितना खोजो
उतना उलझता है 
कभी तो द्रौपदी का 
चिर बढ़ाते हो
कभी गोपियों का 
चीर चुराते  हो 
कभी अर्जुन को 
युद्ध का उपदेश देते हो
कभी कालयवन के डर से
भाग खड़े होते हो 
कभी तो नित्य 
तृप्त लगते हो
और कभी
गोपियों से माखन
माँग माँग कर 
खाते हो 
कभी जेल में 
जन्म लेते हो
तो कभी जीव को
संसारी बेड़ियों से
मुक्त करते हो 
तुम अव्यक्त होकर
व्यक्त होते हो
तो कभी व्यक्त 
होकर भी 
अव्यक्त रह जाते हो
कृष्ण तुम
आदि भी हो
अंत भी और
अनंत  भी 
हे कृष्ण तुम
समझ न आने वाले 
वो अलक्ष्य लक्ष्य हो
जिसे  जानना होगा 
प्रेम करना होगा
सिर्फ प्रेम की 
डोरी से बाँधना होगा
वरना तो तुम 
कभी किसी की 
समझ न आने 
वाले प्रश्नचिन्ह हो 
फिर कोई कैसे और 
कहाँ उत्तर खोजे
कुछ प्रश्न अनुत्तरित 
ही रहते हैं 
तो फिर तुम तो
खुद एक प्रश्नचिन्ह हो  

26 comments:

  1. बहुत गहन विचारों से ओत-प्रोत रचना!
    --
    आप बहुत अच्छा लिखतीं हैं!

    ReplyDelete
  2. सच कहा आपने आज कृष्ण की ज़रूरत है बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ,बधाई ....

    ReplyDelete
  3. बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति


    आप भी सादर आमंत्रित हैं
    एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का परिचय
    ये मेरी पहली पोस्ट है
    उम्मीद है पसंद आयेंगी

    ReplyDelete
  4. भावों के संयोग वियोग में प्रश्न खडे करती रचना!! सार्थक!!

    ReplyDelete
  5. प्रश्न हमारा है ,... कृष्ण तो सत्य हैं . न उन्होंने चिर बढाया न चुराया ... सब मृगमरीचिका है . उत्तर हमारे भीतर है पर कस्तूरी की तलाश ज्यों हिरण को है , वैसे ही हमें है

    ReplyDelete
  6. कृष्ण की इतनी छवियाँ साहित्यकारों ने तैयार की हैं कि कृष्ण प्रश्नों का उत्तर देते-देते स्वयं प्रश्नचिह्न बन जाता है. आपने सही और सुंदर लिखा है.

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...जितना भी सोचो कृष्ण के बारे में उतने ही रूप दिखते हैं

    ReplyDelete
  8. कमाल के प्रश्न आपने खड़े किए हैं। कभी इस दृष्टि से सोचा न था। फिर भी प्रश्न अनुत्तरित ही रह गए।

    ReplyDelete
  9. कौन सा कृष्ण हमारा है ..
    अव्यक्त में जो व्यक्त है ...
    जो व्यक्त हो कर भी अव्यक्त है ...
    कृष्ण के छलिया रूप पर जिज्ञासु और क्या कहें यही की तुम खुद एक प्रश्नचिन्ह हो , कृष्ण !

    सुन्दर !

    ReplyDelete
  10. "Krishna" ek aisa shabd hai jisme pura brahamnd samahit hai...usko prashn bana dena....sach me ye shabdo ka hi to khel hai...!!

    lekin ye puri tarah se sach hai....bahut pyari rachna...!!

    ReplyDelete
  11. एक अति सुन्दर प्रस्तुति!!!

    ReplyDelete
  12. महाभारत श्रंखला की एक बेहतरीन सोच को उजागर करती रचना , कृष्ण को समझना हम मानव के बस की बात नहीं जब तक की वो आपको स्वयं न समझने दे. युगों को बदलने कृष्ण आएंगे इस कलयुग में तभी होगा वंदना जी शंका का समाधान , शुभकामनायें

    ReplyDelete
  13. prabhavshali bhaktipurn rachna
    sunder abhivyakti
    rachana

    ReplyDelete
  14. कृष्ण आखिर कृष्ण ही हैं ..उनसा न तो कोई हुआ है ..न कोई होगा ....और अब कहो प्रश्नचिन्ह हैं तो सही है ...!

    ReplyDelete
  15. कृष्ण पर प्रश्न चिन्ह्ह वही लगा सकता है जो उसके सबसे करीब हो.. आपका कृष्ण प्रेम छलक रहा है कविता से... बढ़िया कविता

    ReplyDelete
  16. बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  17. कृष्ण भक्ति धारा सगुण या निर्गुण कोई भी हो, जब भी काव्य व्यंजना हो अनायास सौन्दर्य का समावेश हो ही जाता है, और आज तो कृष्ण का पूर्ण रूप दिख ही गया, व्यक्त या अव्यक्त किसी भी रूप में ये सर्वश्रेष्ठ रचना है.कृष्ण को विस्मय भाव से संबोधित कर इस विस्मयकारी रूप को एक नया आयाम दे दिया है. कृष्ण जहां खुद में प्रारंभ, मध्य और अंत हैं, इस सृष्टि की व्यापकता को अणुवत रूप से अगाध और अव्यक्त की सीमा तक ले जाना..... वन्दना जी अगर इसे मात्र कविता ही कहें तो इसकी व्यापकता और अनुनाद के साथ अन्याय ही होगा.

    ReplyDelete
  18. बहुत ही बढ़िया सुंदर भावाव्यक्ति ,
    बधाई
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  19. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति | :)) | इस बारे में - गीता का एक श्लोक है -
    आश्चर्यवद्पष्यति कश्चिदेनम् (some look at him as amazing)
    आश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः | (and some speak of him as amazing)
    आश्चर्यवच्चैनमन्यः शृणोति (some hear of him as amazing)
    श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित् ॥२.२९ ॥ (still - it is not possible to understand him for most)

    वैसे - यह श्लोक आत्मा के लिए कहा गया है - परमात्मा के लिए नहीं - लेकिन सही बैठता है - कृष्ण पर भी ...

    ReplyDelete
  20. " हे कृष्ण ! तुम एक प्रश्न चिन्ह हो " कविता के माध्यम से आपने कृष्ण को समझने का ' एक प्रयास ' किया है . पर कृष्ण समझने की चीज नहीं, ये तो "समर्पण का नाम" है . इसे तो समर्पित व्यक्ति ही पाते है, ज्ञानी नहीं . कृष्ण कौन हैं , ये तो गोपियाँ ही जानतीं हैं , उद्दव नहीं. मीरा ने कृष्ण को समझा समर्पित हो कर. द्रोपदी का समर्पण, सुदामा का समर्पण, अर्जुन का समर्पण.... और समर्पण तो ज्ञान से कोसों दूर होता है. समर्पित व्यक्ति तो स्वयं "कृष्ण - मय" हो जाता है, और उसका " मन वृन्दावन" . और फिर उसे समझना स्वयं कृष्ण के लिए एक प्रश्न चिन्ह हो जाता है. अस्तु.
    .. आनन्द विश्वास. अहमदाबाद.

    ReplyDelete
  21. "हे कृष्ण ! तुम एक प्रश्न चिन्ह हो" कविता के माध्यम से आपने कृष्ण को समझने का ' एक प्रयास ' किया है . पर कृष्ण समझने की चीज नहीं, ये तो "समर्पण का नाम" है . इसे तो समर्पित व्यक्ति ही पाते है, ज्ञानी नहीं . कृष्ण कौन हैं , ये तो गोपियाँ ही जानतीं हैं , उद्दव नहीं. मीरा ने कृष्ण को समझा समर्पित हो कर. द्रोपदी का समर्पण, सुदामा का समर्पण, अर्जुन का समर्पण.... और समर्पण तो ज्ञान से कोसों दूर होता है. समर्पित व्यक्ति तो स्वयं "कृष्ण - मय" हो जाता है, और उसका " मन वृन्दावन" . और फिर उसे समझना स्वयं कृष्ण के लिए एक प्रश्न चिन्ह हो जाता है. अस्तु. ...आनन्द विश्वास,अहमदाबाद.

    ReplyDelete