प्रेम मोहताज़ नहीं होता
किसी अवलंबन का
प्रेम का बीज
स्वतः अंकुरित होता है
नहीं चाहिए प्रेम को
कोई आशा ,
कोई अपनापन
कोई चाहत
प्रेम स्फुरण
आत्मिक होता है
क्योंकि प्रेम
प्रतिकार नहीं चाहता
प्रेम के बदले
प्रेम नहीं चाहता
फिर क्या करेगा
किसी ऊष्मा का
किसी नमी का
किसी ऊर्जा का
प्रेम स्व अंकुरण है
बहती रसधार है
फिर कैसे उसे
कोई पोषित करे
प्रेम तो स्वयं से
स्वयं तक पहुँचने का
जरिया है
फिर कैसे खुद को खुद
से कोई जुदा करे
कैसे कह दें
प्रेम स्खलित हो जायेगा
प्रेम कुछ पल के लिए
सुप्त बेशक हो जाये
अपने में ही बेशक
समा जाये
मगर प्रेम कभी
नहीं होता स्खलित
प्रेम तो दिव्यता का भान है
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