Sunday, June 5, 2011

आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी?

आजकल तो
छुपे छुपे रहते हैं
अक्स खुद से भी
छुपाते हैं
डरते हैं
कोई बैरन कहीं
नज़र ना लगा दे
बताओ भला
कारे को भी कभी
कारी नज़र लगी है

जो खुद नज़र का टीका हो
उसे भला नज़र कब लगती है
सखी री कोई तो बताओ
कोई तो उन्हें आईना दिखाओ
प्यार करने वालों की
नज़र नहीं लगती
ये फलसफा उन्हें भी समझाओ 

कहना उनसे ज़रा
घूंघट तो उठाएं
मोहिनी मूरत तो दिखाएं
आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी?

35 comments:

  1. खूबसूरत कह्विता... वास्तव में अपनों से... प्रेम में... परदे की जगह ही कहाँ है....

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  2. वाह सुन्दर भाव ...आखिर सच्चा प्रेम ऐसा ही होता है ...

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  3. बहुत खूब .. प्रेम में सच में कैसा परदा ... प्रेम में तो सब और प्रेम ही प्रेम दिखाई देता है ...

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  4. अपनों से कैसी पर्दादारी ....वाह वंदना जी , बहुत ही मासूम सी रचना ।

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  5. सुंदर भावों से भरी रचना.

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  6. जो खुद नज़र का टीका हो उसे भला नज़र कब लगती है ...kya baat hai

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  7. और फिर नज़र जब लगती है तभी तो प्रेम होता है...
    बहुत सुन्दर भाव

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  8. bahut khub...behad khubsurat bhav
    prem ki abhivyakti...bahut khub

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  9. आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा रचना है यह!

    एक मिसरा यह भी देख लें!

    दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
    खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है

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  10. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 07- 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच

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  11. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ।

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  12. नजर अपनों की ही ज्यादा लगती है वंदना जी , ऐसा लोग कहते हैं ...
    सुन्दर गीत !

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  13. prayas itana sunder to anjam kitana sunder hoga ---
    bahut achha srijan .shukriya ji .

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  14. आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी,इस पंक्ति में आपने मुहब्बत की सारी फ़िलासफ़ी को उकेर कर रख दिया है। बधाई वन्दना जी।

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  15. 'बताओ भला

    कारे को भी कभी

    कारी नज़र लगी है '

    ...............ह्रदय की गहराई से निकली भावपूर्ण मनमोहक रचना

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  16. आखिर अपनो से क्या पर्दादारी? वाकई...बहुत ख़ूब

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  17. आप का प्रयास हमेशा से ही सुन्दर रहताहै….वन्दना जी।

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  18. वाह ... बहुत ही बढि़या ...

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  19. अपनों से भी पर्दादारी...बहुत सुन्दर कोमल अहसास...सदैव की तरह एक बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार

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  20. बहुत खूबसूरत रचना...

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  21. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .प्रेम की नजर पडती है ,निहाल करती है इसीलिए कहा गया -तुम जिसपे नजर डालो उस दिल का खुदा हाफ़िज़ ...
    बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला ,होता ही बज़र्बट्टू है ,ये बुरी नजर वाला .आभार आपकी रचनाशीलता का .अच्छी नजर का .

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  22. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .प्रेम की नजर पडती है ,निहाल करती है ।बे -हाल करती है -
    तनिक कंकरी परत ,नैन होत बे -चैन,

    उन नैननकी क्या दशा जिन नैनन में नैन .

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  23. सरल-सहज भावाभिव्यक्ति.सुन्दर रचना.

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  24. नज़र नहीं लगेगी . सुन्दर वर्णन

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  25. घंूघट के पट खोल, तोहे पिया मिलेंगे
    टाइप्स मामला लगता है यह तो।

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  26. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! लाजवाब प्रस्तुती !

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  27. घूँघट में क्या है नजर आने पर ही तो नजर लगेगी

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  28. सटीक प्रश्न उठाती अच्छी रचना वंदना जी.

    सादर
    श्यामल सुमन
    +919955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  29. सवाल लाजिम है - बहुत खूब वन्दना जी.
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  30. सुंदर भावों से भरी रचना.

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  31. नूर ही नूर है कहाँ का ज़हूर।
    उठ गया परदा अब रहा क्या है॥

    रहने दे हुस्न का ढका परदा।
    वक़्त-बेवक़्त झाँकता क्या है॥
    .........................यगाना चंगेज़ी

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