आजकल तो
छुपे छुपे रहते हैं
अक्स खुद से भी
छुपाते हैं
डरते हैं
कोई बैरन कहीं
नज़र ना लगा दे
बताओ भला
कारे को भी कभी
कारी नज़र लगी है
सखी री कोई तो बताओ
कोई तो उन्हें आईना दिखाओ
प्यार करने वालों की
नज़र नहीं लगती
ये फलसफा उन्हें भी समझाओ
कहना उनसे ज़रा
घूंघट तो उठाएं
मोहिनी मूरत तो दिखाएं
आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी?
छुपे छुपे रहते हैं
अक्स खुद से भी
छुपाते हैं
डरते हैं
कोई बैरन कहीं
नज़र ना लगा दे
बताओ भला
कारे को भी कभी
कारी नज़र लगी है
जो खुद नज़र का टीका हो
उसे भला नज़र कब लगती है सखी री कोई तो बताओ
कोई तो उन्हें आईना दिखाओ
प्यार करने वालों की
नज़र नहीं लगती
ये फलसफा उन्हें भी समझाओ
कहना उनसे ज़रा
घूंघट तो उठाएं
मोहिनी मूरत तो दिखाएं
आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी?
खूबसूरत कह्विता... वास्तव में अपनों से... प्रेम में... परदे की जगह ही कहाँ है....
ReplyDeleteवाह सुन्दर भाव ...आखिर सच्चा प्रेम ऐसा ही होता है ...
ReplyDeleteबहुत खूब .. प्रेम में सच में कैसा परदा ... प्रेम में तो सब और प्रेम ही प्रेम दिखाई देता है ...
ReplyDeleteअपनों से कैसी पर्दादारी ....वाह वंदना जी , बहुत ही मासूम सी रचना ।
ReplyDeleteसुंदर भावों से भरी रचना.
ReplyDeleteजो खुद नज़र का टीका हो उसे भला नज़र कब लगती है ...kya baat hai
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteऔर फिर नज़र जब लगती है तभी तो प्रेम होता है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव
bahut khub...behad khubsurat bhav
ReplyDeleteprem ki abhivyakti...bahut khub
आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा रचना है यह!
ReplyDeleteएक मिसरा यह भी देख लें!
दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ।
ReplyDeletebahut badhiya kavita...
ReplyDeleteनजर अपनों की ही ज्यादा लगती है वंदना जी , ऐसा लोग कहते हैं ...
ReplyDeleteसुन्दर गीत !
prayas itana sunder to anjam kitana sunder hoga ---
ReplyDeletebahut achha srijan .shukriya ji .
आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी,इस पंक्ति में आपने मुहब्बत की सारी फ़िलासफ़ी को उकेर कर रख दिया है। बधाई वन्दना जी।
ReplyDeleteapki kavitaye bahut pasand aayi
ReplyDeletehumare blog par bhi ek comment kar dijiye ;)
http://shayaridays.blogspot.com
'बताओ भला
ReplyDeleteकारे को भी कभी
कारी नज़र लगी है '
...............ह्रदय की गहराई से निकली भावपूर्ण मनमोहक रचना
आखिर अपनो से क्या पर्दादारी? वाकई...बहुत ख़ूब
ReplyDeleteआप का प्रयास हमेशा से ही सुन्दर रहताहै….वन्दना जी।
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही बढि़या ...
ReplyDeleteअपनों से भी पर्दादारी...बहुत सुन्दर कोमल अहसास...सदैव की तरह एक बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .प्रेम की नजर पडती है ,निहाल करती है इसीलिए कहा गया -तुम जिसपे नजर डालो उस दिल का खुदा हाफ़िज़ ...
ReplyDeleteबुरी नजर वाले तेरा मुंह काला ,होता ही बज़र्बट्टू है ,ये बुरी नजर वाला .आभार आपकी रचनाशीलता का .अच्छी नजर का .
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .प्रेम की नजर पडती है ,निहाल करती है ।बे -हाल करती है -
ReplyDeleteतनिक कंकरी परत ,नैन होत बे -चैन,
उन नैननकी क्या दशा जिन नैनन में नैन .
सरल-सहज भावाभिव्यक्ति.सुन्दर रचना.
ReplyDeleteनज़र नहीं लगेगी . सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteसुन्दर कविता
ReplyDeleteबधाई हो आपको - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
घंूघट के पट खोल, तोहे पिया मिलेंगे
ReplyDeleteटाइप्स मामला लगता है यह तो।
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! लाजवाब प्रस्तुती !
ReplyDeletekya baat hai...vaah ...apno se kaisa pardaa...
ReplyDeleteघूँघट में क्या है नजर आने पर ही तो नजर लगेगी
ReplyDeleteसटीक प्रश्न उठाती अच्छी रचना वंदना जी.
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सवाल लाजिम है - बहुत खूब वन्दना जी.
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना!मेरे नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है !
ReplyDeleteDownload Music
Download Ready Movie
सुंदर भावों से भरी रचना.
ReplyDeleteनूर ही नूर है कहाँ का ज़हूर।
ReplyDeleteउठ गया परदा अब रहा क्या है॥
रहने दे हुस्न का ढका परदा।
वक़्त-बेवक़्त झाँकता क्या है॥
.........................यगाना चंगेज़ी
bahut badhiya kavita
ReplyDelete