Sunday, June 5, 2011

आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी?

आजकल तो
छुपे छुपे रहते हैं
अक्स खुद से भी
छुपाते हैं
डरते हैं
कोई बैरन कहीं
नज़र ना लगा दे
बताओ भला
कारे को भी कभी
कारी नज़र लगी है

जो खुद नज़र का टीका हो
उसे भला नज़र कब लगती है
सखी री कोई तो बताओ
कोई तो उन्हें आईना दिखाओ
प्यार करने वालों की
नज़र नहीं लगती
ये फलसफा उन्हें भी समझाओ 

कहना उनसे ज़रा
घूंघट तो उठाएं
मोहिनी मूरत तो दिखाएं
आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी?

37 comments:

  1. खूबसूरत कह्विता... वास्तव में अपनों से... प्रेम में... परदे की जगह ही कहाँ है....

    ReplyDelete
  2. वाह सुन्दर भाव ...आखिर सच्चा प्रेम ऐसा ही होता है ...

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब .. प्रेम में सच में कैसा परदा ... प्रेम में तो सब और प्रेम ही प्रेम दिखाई देता है ...

    ReplyDelete
  4. अपनों से कैसी पर्दादारी ....वाह वंदना जी , बहुत ही मासूम सी रचना ।

    ReplyDelete
  5. सुंदर भावों से भरी रचना.

    ReplyDelete
  6. जो खुद नज़र का टीका हो उसे भला नज़र कब लगती है ...kya baat hai

    ReplyDelete
  7. और फिर नज़र जब लगती है तभी तो प्रेम होता है...
    बहुत सुन्दर भाव

    ReplyDelete
  8. bahut khub...behad khubsurat bhav
    prem ki abhivyakti...bahut khub

    ReplyDelete
  9. आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा रचना है यह!

    एक मिसरा यह भी देख लें!

    दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
    खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ।

    ReplyDelete
  11. नजर अपनों की ही ज्यादा लगती है वंदना जी , ऐसा लोग कहते हैं ...
    सुन्दर गीत !

    ReplyDelete
  12. prayas itana sunder to anjam kitana sunder hoga ---
    bahut achha srijan .shukriya ji .

    ReplyDelete
  13. आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी,इस पंक्ति में आपने मुहब्बत की सारी फ़िलासफ़ी को उकेर कर रख दिया है। बधाई वन्दना जी।

    ReplyDelete
  14. apki kavitaye bahut pasand aayi
    humare blog par bhi ek comment kar dijiye ;)
    http://shayaridays.blogspot.com

    ReplyDelete
  15. 'बताओ भला

    कारे को भी कभी

    कारी नज़र लगी है '

    ...............ह्रदय की गहराई से निकली भावपूर्ण मनमोहक रचना

    ReplyDelete
  16. आखिर अपनो से क्या पर्दादारी? वाकई...बहुत ख़ूब

    ReplyDelete
  17. आप का प्रयास हमेशा से ही सुन्दर रहताहै….वन्दना जी।

    ReplyDelete
  18. वाह ... बहुत ही बढि़या ...

    ReplyDelete
  19. अपनों से भी पर्दादारी...बहुत सुन्दर कोमल अहसास...सदैव की तरह एक बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार

    ReplyDelete
  20. बहुत खूबसूरत रचना...

    ReplyDelete
  21. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .प्रेम की नजर पडती है ,निहाल करती है इसीलिए कहा गया -तुम जिसपे नजर डालो उस दिल का खुदा हाफ़िज़ ...
    बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला ,होता ही बज़र्बट्टू है ,ये बुरी नजर वाला .आभार आपकी रचनाशीलता का .अच्छी नजर का .

    ReplyDelete
  22. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .प्रेम की नजर पडती है ,निहाल करती है ।बे -हाल करती है -
    तनिक कंकरी परत ,नैन होत बे -चैन,

    उन नैननकी क्या दशा जिन नैनन में नैन .

    ReplyDelete
  23. सरल-सहज भावाभिव्यक्ति.सुन्दर रचना.

    ReplyDelete
  24. नज़र नहीं लगेगी . सुन्दर वर्णन

    ReplyDelete
  25. सुन्दर कविता
    बधाई हो आपको - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  26. घंूघट के पट खोल, तोहे पिया मिलेंगे
    टाइप्स मामला लगता है यह तो।

    ReplyDelete
  27. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! लाजवाब प्रस्तुती !

    ReplyDelete
  28. घूँघट में क्या है नजर आने पर ही तो नजर लगेगी

    ReplyDelete
  29. सटीक प्रश्न उठाती अच्छी रचना वंदना जी.

    सादर
    श्यामल सुमन
    +919955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  30. सवाल लाजिम है - बहुत खूब वन्दना जी.
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  31. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना!मेरे नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है !
    Download Music
    Download Ready Movie

    ReplyDelete
  32. सुंदर भावों से भरी रचना.

    ReplyDelete
  33. नूर ही नूर है कहाँ का ज़हूर।
    उठ गया परदा अब रहा क्या है॥

    रहने दे हुस्न का ढका परदा।
    वक़्त-बेवक़्त झाँकता क्या है॥
    .........................यगाना चंगेज़ी

    ReplyDelete