शब्द निराकार हो गए
अर्थ बेकार हो गए
अब कैसे नव सृजन हो ?
चिंतन बिखर गया
आस की ओस
हवा मे ही
खो गयी
निर्विकारता
निर्लेपता का
आधिपत्य हो गया
अब कैसे नव सृजन हो ?
ह्रदय तरु पर
कुंठाओ का पाला
पड गया
संवेदनायें अवगुंठित
हो गयीं
दृश्य अदृश्य हो गया
अब कैसे नव सृजन हो?
शून्यता मे आरुढ
हर आरम्भ और अंत
भेदभाव विरहित
आत्मानंद
सृष्टि का विलोपन
अब कैसे नव सृजन हो?
अर्थ बेकार हो गए
अब कैसे नव सृजन हो ?
चिंतन बिखर गया
आस की ओस
हवा मे ही
खो गयी
निर्विकारता
निर्लेपता का
आधिपत्य हो गया
अब कैसे नव सृजन हो ?
ह्रदय तरु पर
कुंठाओ का पाला
पड गया
संवेदनायें अवगुंठित
हो गयीं
दृश्य अदृश्य हो गया
अब कैसे नव सृजन हो?
शून्यता मे आरुढ
हर आरम्भ और अंत
भेदभाव विरहित
आत्मानंद
सृष्टि का विलोपन
अब कैसे नव सृजन हो?
ये शब्द और अर्थ/उनके भाव/ सब तुम्हारे हैं/सुन्दर सृजन तुम्हारा/कैसे हो सकते हैं अर्थहीन..!
ReplyDeleteसबसे पहले 100वीं पोस्ट की आपको बधाई प्रेषित करता हूँ!
ReplyDelete--
शब्द निराकार हो गए
अर्थ बेकार हो गए
अब कैसे नव सृजन हो ?
--
सभी का यह ही हाल है!
आपने बहुत सटीक और सशक्त अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है!
उम्मीद पर कायम है जीवन...नवसॄजन फिर भी होगा!...एक सुंदर कविता से साक्षात्कार हुआ है!
ReplyDeleteशतक तो बन ही गया न। बधाई।
ReplyDeleteह्रदय तरु पर
ReplyDeleteकुंठाओ का पाला
पड गया
संवेदनायें अवगुंठित
हो गयीं
दृश्य अदृश्य हो गया
अब कैसे नव सृजन हो?
utkrisht prashnon ka srijan
आद. वंदना जी,
ReplyDelete१०० वीं पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें !
जीवन,काव्य, क्रिकेट में १०० का बड़ा महत्व !
काव्य अगर छू ले इसे प्राप्त करे अमरत्व !
आपकी काव्य-यात्रा रोज नई ऊँचाइयों को छूती रहें इन्हीं शुभकामनाओं के साथ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
नवसृजन फिर भी होगा। बधाई।
ReplyDeleteसौवी पोस्ट की बधाई |
ReplyDeleteनई राहे नया चिंतन नए शब्द कुछ और नया सृजन करेंगे |
वधाई वंदनाजी इस १००वी रचना की !
ReplyDelete१०० वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई आपको
ReplyDelete' शब्द निराकार हो गए
अर्थ बेकार हो गए
अब कैसे नव सृजन हो'
अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
चिंतन बिखर गया
ReplyDeleteआस की ओस
हवा मे ही
खो गयी
निर्विकारता
निर्लेपता का
आधिपत्य हो गया
अब कैसे नव सृजन हो ?
सृजन तो हो ही रहा है चाहे िस सृजन की चिंता के बहाने । खूबसूरत प्रस्तुति ।
100 वीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteहमेशा की भाँती एक उत्कृष्ट रचना । १०० वीं रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteशब्द निराकार हो गए
ReplyDeleteअर्थ बेकार हो गए
अब कैसे नव सृजन हो ?...
बहुत ही कोमल भावनाओं की रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
sachi ka satak nahi laga koie baat nahi aap ne satak pura kiya badhai ho......
ReplyDeletejai baba banaras....
१०० वीं पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें ....वंदना जी,
ReplyDelete१०० वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुतबहुत बहुतबहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteऐसी स्थिति सर्जक में अस्थायी रूप से आ जाती है |
ReplyDeleteAnupam Abhivyakti!!
ReplyDeleteह्रदय तरु पर
ReplyDeleteकुंठाओ का पाला
पड गया
संवेदनायें अवगुंठित
हो गयीं
दृश्य अदृश्य हो गया
अब कैसे नव सृजन हो?
...sanshay kee sthti mein bhi srajan ka hona lajmi hai, itnee bhavpurn rachna iska anutha udaharan ban baitha hai..
bhavpurn rachna ke liye haardik badhai
आदरणीय वंदना जी,
ReplyDeleteनमस्कार
100 वी पोस्ट की बधाई
चिंतन बिखर गया
आस की ओस
हवा मे ही
खो गयी
निर्विकारता
निर्लेपता का
आधिपत्य हो गया
अच्छी पोस्ट
अब कैसे नव सृजन हो ?
सौवीं पोस्ट और फिर भी की नवसृजन कैसे हो ? ... मन की शिथिलता को बखूबी शब्दों में ढाला है
ReplyDeletecongrats for 100th post
ReplyDelete100वीं पोस्ट की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteलोग कैसे कह रहें हैं? ये एक अच्छी रचना है. सिर्फ शब्दों का हेर फेर कविता नहीं होते........... पर यहाँ तो, शब्दों को बुना गया है, विचार और शब्दों की सृष्टि ने एक कविता को जन्म दिया है. ये सुन्दर नहीं, वास्तविक कविता है....... इसे कविता कहना चाहिए......... सिर्फ शब्दों का हेर फेर कविता नहीं होते.
ReplyDeleteक्या लिख दिया तुमने .......? जीवन के मोह मैं कई जीवनों की बलि. आखिर ऐसा क्यों होता है? ....... आज ही एक कविता लिखी है..... राजेश को सपरिवार मेरी श्रृद्धांजली...... और काकी से ये सवाल ..........
ReplyDeleteएक सवाल जिन्दगी से
तू इसके होने से पहले क्या थी?
जब ये न था, तू कहाँ थी.
तू इसके, साथ है
या इसके बाद है?
पता नहीं,
अभी तो ये दिखता है
पहले दिखता था या नहीं
कब ये यहाँ आएगा
कब भोग कर जाएगा,
फिर भी मेरा सवाल
वहीं का वही रह जाएगा
तू इसके होने से पहले क्या थी?