वो तो सीता ही थी
वो तो लक्ष्मी ही थी
त्याग , तपस्या
प्रेम समर्पण की
बेड़ियों में जकड़ी ही थी
अपने अरमानो की राख
ओढ़ पड़ी ही थी
फिर क्यूँ तुमने मजबूर किया
सीता से मेडोना बनने को
क्यूँ तुमको बाहर ही
उर्वशी रम्भा दिखाई देती थीं
जब तुमने मजबूर किया
उसने आगे कदम बढाया था
तुम्हारे दिखाए रास्ते
को ही अपनाया था
फिर क्यूँ आज हर गली
हर चौराहे, हर मोड़ पर
बातों के दंश लगाते हो
अपने झूठे दंभ की खातिर
क्यूँ नारी को प्रताड़ित करते हो
रूप सौंदर्य के पिपासुक तुम
क्यूँ मानसिक बलात्कार करते हो
सिर्फ अपना वर्चस्व कायम रहे
इसलिए मानसिक प्रताड़ना देते हो
सिर्फ एक दिन नारी का
सम्मान सह नहीं पाते हो
फिर कैसे तुम नारी को दुर्गा कहते हो
नारी पूजा का राग अलापते हो
खुद ही नारी को शोषित करते हो
दोहरे मानदंडों में जीने वाले
पुरुष तुम
क्यूँ अपनी हार से डरते हो
अपने अहम् की खातिर तुम
नारी की अवहेलना करते हो
तेरी जननी है वो
कैसे खुद से तुलना करते हो
वो तो आज भी सावित्री ही है
क्यूँ अपना नज़रिया नही बदलते हो
नारी की आवृत्ति को
नारित्त्व में ही रहने दो
अपने पुरुषत्व की छाँव
में ना जकड़ने दो
उसे जीने दो और आगे बढ़ने दो
बस नारी को नारी रहने दो
Friday, March 5, 2010
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waah
ReplyDeleteवंदना जी , कविता में झलक रही वेदना समझ सकता हूँ ! सच कहूँ तो मैंने तो इस तरह की बातो को तूल देने वाली पोस्टो को पढ़ना ही छोड़ दिया ! जरुरत से ज्यादा किसी भी चीज को उछालना कहाँ की समझदारी ? और एक पक्ष ही नहीं दोनों पक्ष इसके लिए बराबर के जिम्मेदार है ! क्या कहूँ ;
ReplyDeleteजूनून का दौर है, किस-किस को जाए समझाने,
इधर भी अक्ल के दुश्मन उधर भी ................!
वंदना जी बहुत बेहतरीन कविता है बहुत ही दर्द और छोभ दीखता है व्यस्थता और पुरुष मानसिकता के प्रति ,,,, नारी का शोषण हुआ और हो रहा है पर इसका जिम्मेदार कौन है बड़ा विचारणीय प्रश्न है,,,, क्या पुरुष कुछ हद तक हो भी सकता है मगर आवश्यकता है पुरुष और स्त्री जैसे निर्थक विवादों से हट कर आत्म विश्लेषण और अपनी अपनी भूमिका तलाशने की न की लांछन और आरोप लगाने की .. जिस दिन येसा होगा सुधार अपने आप हो जाये गा
ReplyDeleteसादर प्रवीण पथिक
9971969084
व्यक्तिगत तौर पर वन्दना जी का बहुत बहुत बहुत प्रशंषक हूँ !!! और इस कारण पोस्ट की क्रियेटिविटी पर मेरा पसंद का चटका स्वीकार करें !!!
ReplyDeletejo bhi likha hai dil se nikli huyee aawaaz hai or ek naari ki andar ki vedna ko dikhlati hai.
ReplyDeletevandana ji waise to mujhe zyaada samajh nahin hai lekin ye keh sakta hoon ki ek naari ke andar ki vedna ko aapne likha hai jo vo roz ghar se bahar nikalte hi sehti hai .
ReplyDeleteअंतिम पांच पंक्तियों ने कविता का बहुत ही सुंदर समापन किया है .. आपको बहुत बधाई !!
ReplyDeleteकविता अच्छी है क्योकि पीड़ा की अनुभूति स्पष्ट झलकती है -मगर मोनालिसा के बजाय मैडोना कर दीजिये तो कविता का भाव बेहतर स्पष्ट होगा जैसा आपका मंतव्य है शायद!
ReplyDeleteवंदना जी ,
ReplyDeleteवाकई बहुत ही अच्छी और सटीक रचना है !!
हर जो जन्म लेता है इस संसार में वो खुद ही ज़िम्मेदार होता है अपने भूत का वर्तमान का और भविष्य का.........।
ReplyDeleteamitraghat.blogspot.com
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteअच्छी लगी आपकी यह रचना शुक्रिया
ReplyDeletebahut hi saarthak kavita hai ye...lekin is kyun ka jawaab nahi milega..haan peeda sab dekh hi rahe hain..ek naari man ki..
ReplyDeletebahut khoob...
बेशक - ज्यादातर आपकी बात सही है लेकिन गलती इधर से भी है - सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा
ReplyDeleteनारी के मन की पीड़ा और पुरुषों के द्वारा किया मानसिक बलात्कार दिख रहा है इस रचना में....ये शोला भडकता रहना चाहिए....
ReplyDeleteशुभकामनायें
नारी की आवृत्ति को
ReplyDeleteनारित्त्व में ही रहने दो
अपने पुरुषत्व की छाँव
में ना जकड़ने दो
उसे जीने दो और आगे बढ़ने दो
बस नारी को नारी रहने दो ..
दर्द और क्षोभ से लिखी रचना है वंदना जी ... ये बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण बात है की समाज आइन सदियों से नारी का शोषण हो रहा है .... और वो भी नारी उद्धार के नाम पर ....
उसे जीने दो और आगे बढ़ने दो
ReplyDeleteबस नारी को नारी रहने दो
सुन्दर
नारी फिर भी जकड़ी हुई थी जब वह सीता थी और तब भी जब वह मेडोना बनी.
शब्दों ने नारी के प्रति शानदार अभिव्यक्ती की है,
ReplyDeleteसामाजिक हकीकत की कलई पर शानदार चोट.
बधाई स्वीकारें
नारी के मन की पीड़ा और पुरुषों के द्वारा किया मानसिक बलात्कार दिख रहा है इस रचना में....ये शोला भडकता रहना चाहिए....
ReplyDeleteशुभकामनायें....
सुन्दर कविता...........
ReplyDeleteसीता को मेडोना किसने बनाया? कौन बना? क्यों बना?
बहुत से सवाल हैं पर सवालों के परे आपकी बात सही है कि नारी को नारी ही रहने दो...........पर ये बात दोनों ही समझें....!!!!!!!
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
very nice..
ReplyDeleteसचमुच बहुत ही लाजवाब लगी ये रचना....नारी के अन्तर्मन की पीडा को दर्शाती !!!
ReplyDeleteVandna ma'am man bhar aaya aaj ki rachna padh kar.. sahi bhi hai jab qalam me taqat aajaye to use isi tarah aazmana chahiye.. Aabhar.. :)
ReplyDeleteJai Hind... Jai Bundelkhand...
अपना डर हटाने को नारी को सदियों से डराया धमकाया जाता रहा है ...और यह डर ही सीता को मेडोना बनता है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ...
08 march mahila diwas par aapke is naree pradhan kavita ko barambar PRANAM sach he hai naree he sab ke janne hai, vo agar na hote tab sansar aage kaise badhta. purushon ko apna jhoota aahum chodna he hoga. AAHUM main se AA hatana hoga tab benege HUM
ReplyDeleteअपने पुरुषत्व की छाँव
ReplyDeleteमें ना जकड़ने दो
उसे जीने दो और आगे बढ़ने दो
बस नारी को नारी रहने दो
बस यही तो नहीं करने देंगे ये पुरुष...देवी,दासी...पता नहीं क्या क्या बना डालेंगे पर 'नारी' नहीं रहने देंगे ...सबके मनोभावों को व्यक्त करी सुन्दर रचना
यह तो समय ही निर्धारित करेगा । अच्छी रचना ।
ReplyDeleteहर बार की तरह एक और बेहतरीन रचना।
ReplyDeletesach nari ko nari hi rahnen de..
ReplyDeletekuch aur na bannane de....\
subhkamnaayen.............
kaavya mein parivesh ke prati apki jagruktaa prativimbit ho rahi hai
ReplyDeleteabhivaadan .
महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबेहतरीन.........वाकई..बहुत बेहतरीन..
ReplyDeleteSuperb!!!
ReplyDeleteBidroh hai..jabardast...sahi bhi hai..