आज भी
सिहर जाए
रोम रोम
गर तू
प्यार से
छू ले मुझे
आज भी
डूब जाऊँ
नैनों की
मदिरा में
गर तू
नज़र भर
देख ले मुझे
आज भी
बंध जाऊँ
बाहुपाश में तेरे
गर तू
स्नेहमय निमंत्रण दे
उर स्पन्दनहीन
नहीं है
बस नेह जल के
अभाव में
बंजर हो गया है
Saturday, March 20, 2010
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बहुत ही सुंदर रचना और उतने ही सुंदर भाव.
ReplyDeleteरामराम.
Aapki kavitaaon ki ek alag hi khoobsurat pahichan ho gayi hai.. shabdon me lay aur tartamyata dekhte banti hai.
ReplyDeletekahin bhi likhi ho to ek bar dekh kar andaza jaroor lag jayega ki aapka hi likha hai.. ek aur sundar kavita moti ke liye aabhar..
कोमल एहसासों को खूबसूरती से लिखा है...नेह का बादल बरसेगा...
ReplyDeleteशुभकामनायें
उर स्पन्दनहीन
ReplyDeleteनहीं है
बस नेह जल के
अभाव में
बंजर हो गया है
अति सुंदर !!!!!!!!!
कविता की अंतिम पंक्तियां ..बेहद खूबसूरत हैं ....बहुत ही सुंदर कविता
ReplyDeleteअजय कुमार झा
सुन्दर रचना,और मेरी शतकिय पोस्ट पर टिप्पणी देने के लिये ध्न्यवाद ।
ReplyDeleteकई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई
ReplyDeleteउर स्पन्दनहीन
ReplyDeleteनहीं है
बस नेह जल के
अभाव में
बंजर हो गया है
बहुत कोमल और कमनीय भाव और एहसास
क्या खूब लिखा है
बहुत भाऊक होके लिखा अपने
ReplyDeletebahut hi pyaare se bhaw
ReplyDeleteआशावादिता से भरपूर स्वर इस कविता में मुखरित हुए हैं।
ReplyDeleteसुन्दर भाव मन से प्रस्तुत किया है आपने इस रचना ......बहुत खूब
ReplyDeleteur spandan heen nahin hai....................banjar ho gaya hai.
ReplyDeletebehatareen abhivyakti. wah.
Bahut khoob...mere paas alfaaz nahi...
ReplyDeleteशब्दों का सुन्दर संकलन,बहुत ही अच्छी पक्तियां .
ReplyDeleteVIKAS PANDEY
WWW.VICHAROKADARPAN.BLOGSPOT.COM
bahut sunder abhivykti apane sunder bhavo kee.........
ReplyDeleteउर स्पंदन हीन
ReplyDeleteनहीं है
बस नेह जल के
अभाव में
बंजर हो गया है...
वाह वाह वाह वंदना जी वाह...अद्भुत पंक्तियाँ...मेरी बधाई स्वीकार करें...
नीरज
बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना प्रस्तुत किया है आपने!
ReplyDeleteकव्यों के उर से
ReplyDeleteकभी न सूखे नेह का जल
यही कामना
पल - प्रतिपल
bahut hi khooobsurat ahsaaas....ham kitna intzaar karte hain aur kaise kaise sapne dekhte hain ...un ke liye jo kabhi laut kar nahi aate.........
ReplyDeleteउर स्पन्दनहीन
ReplyDeleteनहीं है
बस नेह जल के
अभाव में
बंजर हो गया है ..
वाह .. बहुत खूबलिखा है ... नेह की वर्षा में कलियाँ फिर खिल उठेंगी ... तू कोशिश तो कर ...
इस विषय पर तो मुझसे कुछ नहीं कहा जायेगा वंदना जी ......!!
ReplyDeleteउर स्पन्दनहीन
ReplyDeleteनहीं है
बस नेह जल के
अभाव में
बंजर हो गया है
बहुत सुन्दर कविता है वंदना जी. बधाई.
कोमलतम अनुभूतियाँ ऐसे सज जाती हैं अभिव्यक्ति में कि पूछिए मत !
ReplyDeleteसुन्दर रचना, आभार ।
achhi rachna hai ji...saadhuwad..
ReplyDeleteapki kavita padhkar yaad aata hai vo gaalib sahib ka kehna ki "yu hota to kya hota"!!!
ReplyDeletesunder rachna
Kya baat hai!
ReplyDeleteBehad romani, samvedansheel aur khoobsoorat!
Ur spandanheen nahin hai
Bas neh jal ke abhav mein
Banjar ho gaya hai....
Bahut ras liya maine!
Shubhkamnaen!
अति सुंदर रचना।
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