१) सुनो
कुछ ख्वाब बोये थे
तुम्हारे साथ जीने के
बंजर ज़मीन में
२) वेदनाओं के ताबूत में
आखिरी कील जो
लगायी तुमने
रूह को सुकून आ गया
३) तेरी चाहत की
बैसाखियों ने
अपाहिज बनाया मुझे
बस लाश बनना बाकी है
४) कैसे समेटेगा
इन बिखरे टुकड़ों को
जिन्हें कभी
तू ने ही ....................
५) बिन बादल बरसती हूँ
बिन आंसू के रोती हूँ
कहीं सैलाब में बह ना जाऊं
६) दस्तक कोई देता ही नही
आवाज़ कोई आती ही नही
शायद हवाओं का रुख बदल रहा है
Sunday, March 7, 2010
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बहुत मार्मिक रचना.
ReplyDeletewah vandna ji wah,dard ko sabdo me kitne achhe se mala ki terh piroya hai. Jangbir Goyat 09215202231
ReplyDeletewah vandna ji wah,dard ko sabdo me kitne achhe se mala ki terh piroya hai. Jangbir Goyat 09215202231
ReplyDelete२) वेदनाओं के ताबूत में
ReplyDeleteआखिरी कील जो
लगायी तुमने
रूह को सुकून आ गया
ओह!!! कितनी वेदना छुपी है,इन शब्दों में...कमाल की क्षणिकाएं बुनी हैं इस बार...रोम रोम झकझोर देने वाली...बहुत सुन्दर...
achchha likha hai lekin isme kuchh kami si lagi hai ki jaise kuchh or bhi hona chahiye tha.
ReplyDeletedil ko choo jane walee rachana .
ReplyDeleteभावुक कर देने वाली अच्छी सुन्दर रचना ...आभार
ReplyDelete"वेदनाओं के ताबूत में
ReplyDeleteआखिरी कील जो
लगायी तुमने
रूह को सुकून आ गया"
इनती शिद्दत से चाहत - गजब. अंतर्मन की वेदनाओं को दर्शाती मार्मिक एवं अति-संवेदनशील क्षणिकाएं.
गहरे उतरते भाव...उम्दा अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteहिला कर रख दिया इस कविता ने,
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी पक्तियां.
विकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
khoobsurat tukde
ReplyDeleteयह सारे कविता रुपी जुड़े हुए टुकड़े ...बहुत अच्छे लगे......
ReplyDeleteटूटे है लेकिन खूबसूरत टुकड़े है यह ।
ReplyDeletesabhi kshanikayen adbhut.
ReplyDeleteदस्तक कोई देता ही नही
ReplyDeleteआवाज़ कोई आती ही नही
शायद हवाओं का रुख बदल रहा है
त्रिवेणी की शैली में लिखी लाजवाब क्षणिकाएँ ..... बहुत कुछ कह जाती हैं सब .....
bahut kam shabdon main bahut gahre bat kah de, badhai, bahut aacha prayas
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव के साथ आपने बेहद ख़ूबसूरत रचना लिखा है! बहुत अच्छा लगा!
ReplyDeletevedanaon ke tabut me akhiri keel jo lagai tumne dil ko sukun aa gaya.....
ReplyDeleteye ekdam sach hai...Insan ki zindagi me ek aisa samay ata hai...jab...thokor khate khate...dard bhi dard nahi reh jata hai.
वेदनाओं के ताबूत में
ReplyDeleteआखिरी कील जो
लगायी तुमने
रूह को सुकून आ गया.
बहुत मार्मिक .
शरद जी की जबान में .. टूटे हैं पर खूबसूरत टुकड़े हैं यह !
ReplyDeleteसुन्दर प्रविष्टि ! आभार ।
बहुत मार्मिक अभिवयक्ति है। वन्दना आज कल बहुत सुन्दर रचनायें आ रही हैं तुम्हारी। शुभकामनायें
ReplyDeleteदस्तक कोई देता ही नहीं
ReplyDeleteशायद हवाओं का रुख़ बदल गया....
हर पंक्ति....हर लहजा..बेमिसाल....
सारी क्षणिकाएं बहुत मार्मिक...दिल को छू गयीं...ताबूत वाली बहुत अच्छी लगी....
ReplyDeleteमहिला दिवस की शुभकामनायें
बहुत ही मार्मिक हैं आपके सभी शब्द-चित्र!
ReplyDeleteबिल्कुल सटीक हैं!
kya Baat hai..amazing!
ReplyDeletehi, vandana ji
ReplyDeletebahut khoob .
२) वेदनाओं के ताबूत में
ReplyDeleteआखिरी कील जो
लगायी तुमने
रूह को सुकून आ गया
गहरे भावों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
good
ReplyDeletemujhe aapki ye rachana behad pasand aayi ....
ReplyDeleteटूटे टुकड़े हैं तभी शायद दिल को चुभते हैं .. बहुत खूब!
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