बरसों साथ रहकर भी
तेरा मेरा अनजाना रिश्ता
देह की दहलीज पर ही
क्यूँ सिमट गया
मन के आँगन तक की राह
कोई मुश्किल तो ना थी
मौन का शून्य ही
अस्तित्व को बाँटता रहा
प्रगाढ़ स्नेह के बंधन को
कम आँकता रहा
अर्धांगिनी शब्द को
खूँटी पर टाँकता रहा
अर्ध अंग के महत्त्व
को नकारता रहा
शब्द को सिर्फ
शब्द ही रहने दिया
कभी शब्द को
अंतस में ना
उतार पाया
शायद इसीलिए
साथ रहकर भी
अनजान रहे
मन के बंधन
में ना बँधे
देह के रिश्ते
देह पर ही
बिखर गए
Monday, March 8, 2010
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ehsaason ko bahut achchhe se likha hai
ReplyDeleteअर्धांगिनी शब्द को
ReplyDeleteखूँटी पर टाँकता रहा
अर्ध अंग के महत्त्व
को नकारता रहा
नारी के हृदय की वेदना को बखूबी शब्दों में उकेरा है....सुन्दर रचना...
अनजान रहे
ReplyDeleteमन के बंधन
में ना बँधे
देह के रिश्ते
देह पर ही
बिखर गए
सम्वेदनाओं की खूबसूरत अभिव्यक्ति!
आज बहुत दुखी हूँ.... इस आभासी दुनिया में कभी रिश्ते नहीं बनाने चाहिए... कई रिश्ते दर्द देते हैं.... बहुत दर्द देते हैं... ऐसा दर्द जो नासूर बन जाते हैं....
ReplyDeleteकविता बहुत अच्छी लगी....
शायद इसीलिए
ReplyDeleteसाथ रहकर भी
अनजान रहे
मन के बंधन
में ना बँधे
देह के रिश्ते
देह पर ही
बिखर गए
मन की सम्वेदनाओं को
बहुत ही चतुराई से शब्दों में उतारा है आपने!
बधाई!
tareef ke liye shabd nahi hain mere paas vandana ji...
ReplyDeletebahut hee sundar rachna aapki...
man gaye mohtarma, vasna aur nishchal pyar ko bahut karene se ukera hai aapne bahut bahut badhai is post ke liye swekar karen
ReplyDeleteबहुत गहरा और सच लिखा है ... अक्सर मैने ऐसे बहुत से शादी शुदा लोग देखे हैं जो अंत तक जीवन को या तो समझोता समझते या जिस्मानी रिश्ता ... अच्छा लिखा है ..
ReplyDeleteबहुत खूब वंदना जी रिश्तो की गहराई में उतर कर उन्हें वास्तव के धरातल पर ला पटकती बेहतरीन रचना रिश्तो की गर्माहट को बहुत सिद्दत से अनुभव कराती और और र्श्तो के प्रति अपनी जिम्मेदारी का बोध कराती
ReplyDeleteबरसों साथ रहकर भी
तेरा मेरा अनजाना रिश्ता
देह की दहलीज पर ही
क्यूँ सिमट गया
मन के आँगन तक की राह
कोई मुश्किल तो ना थी
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
Marm hai kavita me....dard hai...ehsas hai,,,,Good one !!!
ReplyDeleteवाह , ऐसे संबंधों को शब्द देना भी कठिन लगता है , फूल भी अपनों के मारे हुए चुभते हैं शूलों की तरह |
ReplyDeleteबहुत अच्छी अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteur sari bhawnaaon me deemak lag gaye
ReplyDeleteसच कहा आपने, नारी की भावनाओं की अच्छी अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteविकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
nari hriday ki vedna or ehsas purnath prilakshit ho rahe hain..bahut bhavpurn abhivyakti Vandna ji
ReplyDeleteबहुत गहरे भावों को सुन्दर शब्दों से कह दिया आपने। सच आप भावों को बखूबी कह देती है।
ReplyDeleteAapki abhivyakti ati sundar hai..
ReplyDeleteshayad aisi vedna kai nari-hriday me hai...
कया कहूं .....
ReplyDeleteबस
निशब्द हूँ ....
आभार और अभिवादन .
अर्धांगिनी शब्द को
ReplyDeleteखूँटी पर टाँकता रहा
अर्ध अंग के महत्त्व
को नकारता रहा
ek stri ke man ki vyatha hai yah..bahut ki sahi dhang se uker kar rakh diya aapne...
bahut pasand aayi yah kavita...
bahut acchi rachna hai.. isaki tarif ke liye sabd nahi mil rahe hai.
ReplyDeleteकुछ रिश्ते तो देह तक भी नहीं पहुचते वंदना जी ......!!
ReplyDeleteआपने दिल के भाव उकेरे हैं आपने .....!!
"शब्द को सिर्फ
ReplyDeleteशब्द ही रहने दिया
कभी शब्द को
अंतस में ना
उतार पाया"
असाधारण शक्ति का पद्य
ReplyDeleteबरसों साथ रहकर भी
ReplyDeleteतेरा मेरा अनजाना रिश्ता
देह की दहलीज पर ही
क्यूँ सिमट गया
देह की दहलीज ने कई बार कई रिश्तों को उसके विस्तृत आयाम से महरूम किया है और नेह का रिश्ता केवल देह का रिश्ता बन जाता है.
सुन्दर मनोभाव
जो केवल देह की भाषा ही समझते हैं वे भला मन को कहाँ पढ़ पाते हैं? बहुत श्रेष्ठ रचना बधाई।
ReplyDeleteमन के आँगन तक की राह
ReplyDeleteकोई मुश्किल तो ना थी
मौन का शून्य ही
अस्तित्व को बाँटता रहा
बहुत खूब...इतनी खूबसूरती से उकेरा है...अहसासों को...बहुत ही बढ़िया कविता
dil ke chhalo ko koi gar shaayri kahe to parwah nahi,
ReplyDeletetakleef to tab hoti hai jb log wah-wah karte hai.....
devdaas me ek sher suna tha..
ab mai kya kahoo, kya na kahoon
nari ke bhavanao ko bade sashkt dhang se aur khoob surat ahasaso kesaath abhi vyakt kiya hai.
ReplyDeletepoonam
..मन के आँगन तक की राह
ReplyDeleteकोई मुश्किल तो ना थी
मौन का शून्य ही
अस्तित्व को बाँटता रहा
प्रगाढ़ स्नेह के बंधन को
कम आँकता रहा...
,,,वाह! अच्छी कविता के लिए बधाई.
बरसों साथ रहकर भी
ReplyDeleteतेरा मेरा अनजाना रिश्ता
देह की दहलीज पर ही
क्यूँ सिमट गया
BARSON SAATH RAHNE KE KAARAN HI SIMATT GAYA......
मन के बंधन
ReplyDeleteमें ना बँधे
देह के रिश्ते
देह पर ही
बिखर गए
ना जाने कितने रिश्तों की बखिया उधेड़ दी है आपने अपनी इस रचना में....विलक्षण रचना...बहुत बहुत बधाई...
नीरज