Monday, March 8, 2010

कचोट

बरसों साथ रहकर भी
तेरा मेरा अनजाना रिश्ता
देह की दहलीज पर ही
क्यूँ सिमट गया
मन के आँगन तक की राह
कोई मुश्किल तो ना थी
मौन का शून्य ही
अस्तित्व को बाँटता रहा
प्रगाढ़ स्नेह के बंधन को
कम आँकता रहा
अर्धांगिनी शब्द को
खूँटी पर टाँकता रहा
अर्ध अंग के महत्त्व
को नकारता रहा
शब्द को सिर्फ
शब्द ही रहने दिया
कभी शब्द को
अंतस में ना
उतार पाया
शायद इसीलिए
साथ रहकर भी
अनजान रहे
मन के बंधन
में ना बँधे
देह के रिश्ते
देह पर ही
बिखर गए

31 comments:

  1. अर्धांगिनी शब्द को
    खूँटी पर टाँकता रहा
    अर्ध अंग के महत्त्व
    को नकारता रहा


    नारी के हृदय की वेदना को बखूबी शब्दों में उकेरा है....सुन्दर रचना...

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  2. अनजान रहे
    मन के बंधन
    में ना बँधे
    देह के रिश्ते
    देह पर ही
    बिखर गए

    सम्वेदनाओं की खूबसूरत अभिव्यक्ति!

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  3. आज बहुत दुखी हूँ.... इस आभासी दुनिया में कभी रिश्ते नहीं बनाने चाहिए... कई रिश्ते दर्द देते हैं.... बहुत दर्द देते हैं... ऐसा दर्द जो नासूर बन जाते हैं....

    कविता बहुत अच्छी लगी....

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  4. शायद इसीलिए
    साथ रहकर भी
    अनजान रहे
    मन के बंधन
    में ना बँधे
    देह के रिश्ते
    देह पर ही
    बिखर गए

    मन की सम्वेदनाओं को
    बहुत ही चतुराई से शब्दों में उतारा है आपने!
    बधाई!

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  5. tareef ke liye shabd nahi hain mere paas vandana ji...

    bahut hee sundar rachna aapki...

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  6. man gaye mohtarma, vasna aur nishchal pyar ko bahut karene se ukera hai aapne bahut bahut badhai is post ke liye swekar karen

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  7. बहुत गहरा और सच लिखा है ... अक्सर मैने ऐसे बहुत से शादी शुदा लोग देखे हैं जो अंत तक जीवन को या तो समझोता समझते या जिस्मानी रिश्ता ... अच्छा लिखा है ..

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  8. बहुत खूब वंदना जी रिश्तो की गहराई में उतर कर उन्हें वास्तव के धरातल पर ला पटकती बेहतरीन रचना रिश्तो की गर्माहट को बहुत सिद्दत से अनुभव कराती और और र्श्तो के प्रति अपनी जिम्मेदारी का बोध कराती
    बरसों साथ रहकर भी
    तेरा मेरा अनजाना रिश्ता
    देह की दहलीज पर ही
    क्यूँ सिमट गया
    मन के आँगन तक की राह
    कोई मुश्किल तो ना थी
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  9. Marm hai kavita me....dard hai...ehsas hai,,,,Good one !!!

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  10. वाह , ऐसे संबंधों को शब्द देना भी कठिन लगता है , फूल भी अपनों के मारे हुए चुभते हैं शूलों की तरह |

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  11. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !!

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  12. सच कहा आपने, नारी की भावनाओं की अच्छी अभिव्यक्ति.

    विकास पाण्डेय
    www.विचारो का दर्पण.blogspot.com

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  13. nari hriday ki vedna or ehsas purnath prilakshit ho rahe hain..bahut bhavpurn abhivyakti Vandna ji

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  14. बहुत गहरे भावों को सुन्दर शब्दों से कह दिया आपने। सच आप भावों को बखूबी कह देती है।

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  15. Aapki abhivyakti ati sundar hai..
    shayad aisi vedna kai nari-hriday me hai...

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  16. कया कहूं .....
    बस
    निशब्द हूँ ....

    आभार और अभिवादन .

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  17. अर्धांगिनी शब्द को
    खूँटी पर टाँकता रहा
    अर्ध अंग के महत्त्व
    को नकारता रहा

    ek stri ke man ki vyatha hai yah..bahut ki sahi dhang se uker kar rakh diya aapne...
    bahut pasand aayi yah kavita...

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  18. bahut acchi rachna hai.. isaki tarif ke liye sabd nahi mil rahe hai.

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  19. कुछ रिश्ते तो देह तक भी नहीं पहुचते वंदना जी ......!!
    आपने दिल के भाव उकेरे हैं आपने .....!!

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  20. "शब्द को सिर्फ
    शब्द ही रहने दिया
    कभी शब्द को
    अंतस में ना
    उतार पाया"

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  21. असाधारण शक्ति का पद्य

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  22. बरसों साथ रहकर भी
    तेरा मेरा अनजाना रिश्ता
    देह की दहलीज पर ही
    क्यूँ सिमट गया
    देह की दहलीज ने कई बार कई रिश्तों को उसके विस्तृत आयाम से महरूम किया है और नेह का रिश्ता केवल देह का रिश्ता बन जाता है.
    सुन्दर मनोभाव

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  23. जो केवल देह की भाषा ही समझते हैं वे भला मन को कहाँ पढ़ पाते हैं? बहुत श्रेष्‍ठ रचना बधाई।

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  24. मन के आँगन तक की राह
    कोई मुश्किल तो ना थी
    मौन का शून्य ही
    अस्तित्व को बाँटता रहा
    बहुत खूब...इतनी खूबसूरती से उकेरा है...अहसासों को...बहुत ही बढ़िया कविता

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  25. dil ke chhalo ko koi gar shaayri kahe to parwah nahi,
    takleef to tab hoti hai jb log wah-wah karte hai.....
    devdaas me ek sher suna tha..

    ab mai kya kahoo, kya na kahoon

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  26. nari ke bhavanao ko bade sashkt dhang se aur khoob surat ahasaso kesaath abhi vyakt kiya hai.
    poonam

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  27. ..मन के आँगन तक की राह
    कोई मुश्किल तो ना थी
    मौन का शून्य ही
    अस्तित्व को बाँटता रहा
    प्रगाढ़ स्नेह के बंधन को
    कम आँकता रहा...
    ,,,वाह! अच्छी कविता के लिए बधाई.

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  28. बरसों साथ रहकर भी
    तेरा मेरा अनजाना रिश्ता
    देह की दहलीज पर ही
    क्यूँ सिमट गया

    BARSON SAATH RAHNE KE KAARAN HI SIMATT GAYA......

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  29. मन के बंधन
    में ना बँधे
    देह के रिश्ते
    देह पर ही
    बिखर गए

    ना जाने कितने रिश्तों की बखिया उधेड़ दी है आपने अपनी इस रचना में....विलक्षण रचना...बहुत बहुत बधाई...
    नीरज

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