सुन
तेरे चेहरे पर
गुलाब सी खिली
मधुर स्मित
नज़र आती है मुझे
जब तू दूर -बहुत दूर
निंदिया के आगोश में
स्वप्नों के आरामगाह में
विचरण कर रहा होता है
तेरे सीने के मचलते ज्वार
यहीं भिगो जाते हैं मुझे
मेरे तड़पते जज्बातों को
तेरी बेखुदी में
महकते ख्याल
तेरे अहसासों की
लोरियां सुना
जाते हैं मुझे
तेरी धड़कन की
हर आवाज़ सुना
करती हूँ
तेरे हर पैगाम को
पढ़ा करती हूँ
और मैं यहीं
तुझसे दूर होकर भी
तेरे पास होती हूँ
Tuesday, March 16, 2010
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kya bat hai vandna jee tussi cha gaye jee bahut he badiya wah wah . . .
ReplyDeletekya bat hai vandna jee tussi cha gaye jee bahut he badiya wah wah . . .
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना और अत्यधिक सुन्दर और स्वच्छ शब्दों का प्रयोग... और क्या कहूँ... बढ़िया कविता के लिए धन्यवाद...
ReplyDeleteतेरे हर पैगाम को
ReplyDeleteपढ़ा करती हूँ
और मैं यहीं
तुझसे दूर होकर भी
तेरे पास होती हूँ
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
समर्पण की भावना जगाती पोस्ट!
Mere paas to shabdhee nahee...kya kahun?
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर एहसास है इस में बढ़िया लिखा है आपने शुक्रिया
ReplyDeleteऐसी कविता लिखने के बाद शीर्षक में ही लिख दिया करो कि बुढ़ापे की और बढ़ रहे लोग इसे ना पढे। केवल व्यस्कों के लिए। मजाक कर रही हूँ क्योंकि ऐसी बाते जरा पल्ले नहीं पड़ती है। लेकिन अभिव्यक्ति अच्छी है।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteक्या बात है
बहुत सुंदर
इसी लिए तो नारी को महान कहा गया है
ऐसे भावपूर्ण विचारों की अभिव्यक्ति ....
वाह वाह वाह
तुझसे दूर होकर भी
ReplyDeleteतेरे पास होती हूँ
बहुत ही सुन्दर भाव लिए....ख़ूबसूरत रचना
सच में वंदना जी ये भाव तभी आते है जब प्रिय और प्रेमिका में द्वैत का भाव शून्य हो जाता है अर्थात एकीकार हो जाते है,, तब दो चेतनाए समन्वय प्राप्त कर लेती है बहुत बेहतरीन कविता
ReplyDeleteसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
बहुत ही सुंदर रचना.
ReplyDeleteरामराम.
तेरे सीने के मचलते ज्वार
ReplyDeleteयहीं भिगो जाते हैं मुझे
मेरे तड़पते जज्बातों को
...
और मैं यहीं
तुझसे दूर होकर भी
तेरे पास होती हूँ
प्रवीण शुक्ल जी ने कह ही दिया है
बहुत भावपूर्ण रचना....सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletetujhase door hoote huye bhi terepass hone ka ahasas kar leti hun main.wah,wah vandana ji aapaneto apani is kavita me maano apane saare jajbaato ko nichod kat rakh diya hai.bahut hi umdaa.
ReplyDeletepoonam
बेहतरीन कविता,वंदना जी
ReplyDeletekareebi ehsaason ki kareebi gungunahat
ReplyDeletebahvpurn sundar abhivyakti
ReplyDeleteतुझसे दूर होकर भी
ReplyDeleteतेरे पास होती हूँ
भौतिक दूरी मायने नहीं अगर आत्मिक नजदीकी हो तो.
बहुत सुन्दर
dil ki gahraiyon se nikli behad khoobsurat abhivyakti.
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति .........बहुत खूब
ReplyDeletekhoobsurat ehsaason se saji rachna
ReplyDeleteएकाकार होने की भावपूर्ण अभिव्यक्ति ! रचना सुन्दर है वंदना जी !
ReplyDeleteबेहतरीन रचना!
ReplyDelete...बेहतरीन अभिव्यक्ति!!
ReplyDelete"तुझसे दूर होकर भी
ReplyDeleteतेरे पास होती हूँ"
वाह, बहुत सुन्दर भाव लिए हुए .......!
बहुत भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteवन्दना जी
ReplyDeleteअंत बहुत अच्छा लगा 1कहां से लाती हैं आप अह्सास का दरिया जो हमारा सब को बहा कर ले जाता है
सुमन ‘मीत’
ye kavita to ek maa ke apne bete ke bare me khyaal si bhi lagti hai..
ReplyDelete:) sundar rahi ye bhi
wah kya likhti hain vandna ji. Mujhe to ye bahut acha laga
ReplyDeletewah kya likhti hain vandna ji aap. hume to ye bahut acha laga.
ReplyDeletebhavana se paripurn aap kee kavitaa hai atee sundar
ReplyDeleteअत्यंत भावुक रचना ........
ReplyDeleteमैं यहीं
ReplyDeleteतुझसे दूर होकर भी
तेरे पास होती हूँ
अक्सर प्यार में ऐसा होता है ... खूबसूरत एहसास हैं ,....
अद्भुत। मन को छूती रचना।
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