मै हिन्दुस्तानी हूँ
मजहब की दीवार
कभी गिरा नहीं पाया
किसी गिरते को
कभी उठा नहीं पाया
नफरतों के बीज
पीढ़ियों में डालकर
इंसानियत का दावा
करने वाला
मैं हिन्दुस्तानी हूँ
भाषा को अपना
मजहब बनाया
देश को फिर भाषा की
सूली पर टँगाया
अपने स्वार्थ की खातिर
भाषा का राग गाया
कुर्सी की भेंट मैंने
लोगों का जीवन चढ़ाया
क्षेत्रवाद की फसल उगाकर
इंसानियत का दावा
करने वाला
मैं हिन्दुस्तानी हूँ
जातिवाद की भेंट चढ़ाया
लहू को लहू से लडवाया
गाजर -मूली सा कटवाया
फिर भी कभी सुकून ना पाया
नफरत की आग सुलगाकर
अमन का दावा करने वाला
मैं हिन्दुस्तानी हूँ
शहीदों के बलिदान को
हमने भुलाया
कुछ ऐसे फ़र्ज़ अपना
हमने निभाया
फ़र्ज़ का, बलिदान का,
देशभक्ति का पाठ
सिर्फ दूसरों को समझाया
आतंक को पनाह देने वाला
शहीदों के बलिदान को
अँगूठा दिखाने वाला
मैं हिन्दुस्तानी हूँ
हाँ, मैं सच्चा हिन्दुस्तानी हूँ
Tuesday, March 23, 2010
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Aaj man ko chhoo liya aapne is deshbhakti se poorn rachna se
ReplyDeleteकमाल की रचना है...सच्चाई को आपने बेहद ख़ूबसूरती से प्रस्तुत किया है...हर हिन्दुस्तानी को इसे पढ़ कर सबक लेने की जरूरत है...मेरी बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteनीरज
bahut sundar vandana ....
ReplyDeleteek hindustai ka sachha roop ko dikhya...sachmuch yahi hai ham.....
sundar chitran....tumhari har rachna man ko chhu jati hai....kadwi sachayee ko kitni sahjta se dikha diya...badhyee....ham hindustaniyo ko aayena dikha diya....
bahut sundar vandana ....congrtes
ReplyDeleteek hindustai ka sachha roop ko dikhya...sachmuch yahi hai ham.....
sundar chitran....tumhari har rachna man ko chhu jati hai....kadwi sachayee ko kitni sahjta se dikha diya...badhyee....ham hindustaniyo ko aayena dikha diya....
जातिवाद की भेंट चढ़ाया
ReplyDeleteलहू को लहू से लडवाया
गाजर -मूली सा कटवाया
फिर भी कभी सुकून ना पाया
बहुत सुन्दर कटाक्ष और बेधती सी रचना
लाजवाब
वाह वंदना जी, क्या कमाल का लिखा है...हर हिन्दुस्तानी ये कविता पढ़कर एक बार तो जरूर खुद को पलट कर देखेगा...बहुत ही बढ़िया व्यंग...आईना दिखता हुआ.
ReplyDeleteसादर वन्दे!
ReplyDeleteअच्छी कविता!
एक शिकायत भी कि इस प्रकार के सोच वाले खतरनाक ही सही लेकिन कम हैं यैसे में इनके नाम पर इस हिंदुस्तान को, इस धरती को जोड़कर गलत नहीं कह सकते, मेरे हिसाब से अगर इस कविता का शीर्षक "क्या मै हिन्दुस्तानी हूँ" होता तो ज्यादा ठीक होता.
मेरी बात को अन्यथा ना लें, इसी आग्रह के साथ ..
रत्नेश त्रिपाठी
दिल खुश हुआ वंदना जी, अपने हिन्दुस्तानियों की असली परिभाषा आपकी रचना के मार्फ़त पढ़ कर !शुरू की चार लाइनों में ही अपने सब कुछ बोल दिया !
ReplyDeleteआपकी तड़प नज़र आती है इस रचना में ... काश सब सच्चे हिन्दुस्तानी बन सकें ...
ReplyDeleteक्षेत्रवाद की फसल उगाकर
ReplyDeleteइंसानियत का दावा
करने वाला
मैं हिन्दुस्तानी हूँ
पूरी रचना ही सटीक है...हिन्दुस्तानी के दर्द को बहुत कटाक्ष से वर्णित किया है....बधाई
केवल भारत ही नहीं अपितु समस्त संसार में सदा से चल रही यह तो शक्ति की प्रतियोगिता है. महाभारत का युद्ध सदा से होता रहा है
ReplyDeleteydi sb hindustani ho jaye to fir bat hi kya hai
ReplyDeleteprntu jo log bat bin bat pr mjhb ke nam pr bkheda khda krten hai un ka kya krogi desh aur desh ka kanoon jb mjhb se bda hai to hindustani kase ho gye tja udahrn ldki ki vivah ki umr pr hi khda kr diya hai ki hmare mjhb me 18 nhi hai pr yh bhi to hai ki km bhi nhi hai fir 28 vrsh manne me kya mjboori hai pr mjhb nam ki bhi to bdi bimari hai fir aap rt rhi hain hindustani hona
dr. ved vyathit
विचारोत्तेजक!
ReplyDeleteबिल्कुल सच ....यही है एक हिन्दुस्तानी का सच .....बहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteवंदना जी,
ReplyDeleteसच में बिलकुल झकझोर देने वाली रचना लिखी है आपने!
शुक्रिया!
आपने देशभक्ति का पाठ फिर याद कराया है .....शुक्रिया ......!!
ReplyDeleteमैं हिन्दुस्तानी हूँ ... पढ़ी भाव प्रधान और सही सोच की रचना है वंदना जी की.
ReplyDelete- विजय
aadrniya vandna ji men hindustani hun yun to samany baat he lekin aapne likh dil jhakjhor diya he or vastav men hindustani kya he usko aapne pribhashit kiya he akhtar khan akela kota rajasthan
ReplyDeleteआईना सी लगी आपकी ये रचना।
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