Wednesday, December 28, 2011

कृष्ण लीला ...........भाग ३०






सबसे पहला भाव बतलाता है
प्रभु को तो सिर्फ प्रेम रंग भाता है
प्रेम रज्जू से बंध प्रेमी के वश होना ही उन्हें आता है 
अगला भाव दर्शाता है
जब मैया द्वैत भाव से दूर ना हो पाती है
फिर मैं क्यों व्यर्थ
असंगता प्रगट करूँ
जो मुझे बद्ध समझता है
उसके लिए बद्ध
समझना ही उचित जान
प्रभु बँधन में बंध गए
अगला भाव दर्शाता है
प्रभु ने प्रण लिया है
अपने भक्त के छोटे से भाव को परिपूर्ण करना
फिर मैया के रस्सी से बाँधने के भाव को
कैसे ना पूर्ण करते
इक भाव ये बताता है
चाहे मैं कितना ही गुणवान कहाता हूँ
पर भक्त के अर्थात मैया के 
वात्सल्य स्नेह रुपी रज्जू से ही
स्वयं को पूर्ण पाता हूँ
यूँ सोच कान्हा रस्सी से बंध गए
इक भाव ये बताता है
भगवान् भक्त का कष्ट 
परिश्रम ना सह पाते हैं 
और स्वयं बँधन में बंध जाते हैं
और अपनी दयालुता को दर्शाते हैं
कितने करुणा वरुणालय हैं प्रभु 
जिनका ना हम ध्यान लगाते हैं
भगवान ने  मध्य भाग में बँधन स्वीकारा है 
जो ये तत्वज्ञान बतलाता है
तत्व दृष्टि से कोई 
बँधन नहीं होता है
ये तो सिर्फ आँखों का धोखा है
जो वस्तु आगे पीछे 
ऊपर नीचे नहीं होती है
केवल बीच में भासती है
उसका ना कोई अस्तित्व होता है
वह तो  केवल झूठ का आवरण होता है
तो फिर बँधन भी झूठा कहाता है
यूँ तो भगवान किसी बँधन में 
ना समाते हैं
जब मैया उद्यम  कर हार जाती है
तब ग्वालिनें समझाती हैं
लगता है तुम्हारा लाला
अलौकिक शक्ति वाला है
यूँ तो कमर में छोटी सी किंकिनी 
रुन झुन करती है
पर रस्सी से ना बंधती है
शायद विधाता ने इसके ललाट पर
बँधन लिखा ही नहीं
क्यों व्यर्थ परिश्रम करती हो
पर मैया ने आज हठ किया है
चाहे शाम हो या रात
आज तो इसे बांध कर रहूँगी
और जब भक्त हठ कर लेता है
तब भगवान अपना हठ छोड़ देता है
और भक्त का हठ ही पूरा कर देता है
लेकिन बंधता तब हैं जब
भक्त थक जाता है
और प्रभु को पूर्ण समर्पण करता है 
तब ही प्रभु बँधन स्वीकारते हैं
अहंता ममता की दीवारें 
जब तक ना गिराओगे
कैसे भला प्रभु को पाओगे 
ये प्रसंग यही दर्शाता है
भक्त का श्रम या समर्पण और भगवान की कृपा 
ही ये दो अंगुल की कमी बताई गयी है
या कहो जब तक भक्त अहंकारित  होता है
मैं भगवान को बांध सकता हूँ
तब एक अंगुल दूर हो जाता है
और प्रभु भी एक अंगुल की दूरी बना लेते हैं
यूँ दो अंगुल कम पड़ जाता है
आत्माराम होने पर भी भूख लगना
पूर्णकाम होने पर भी अतृप्त रहना
शुद्ध सत्वस्वरूप होने पर भी क्रोध करना 
लक्ष्मी से युक्त होने पर भी चोरी करना
महाकल यम को भी भय देने वाला होने पर भी
मैया से डरना और भागना
मन से भी  तीव्र गति होने पर भी
मैया के हाथों पकड़ा जाना
आनंदमय होकर भी दुखी होना , रोना
सर्वव्यापक होकर भी बंध जाना
भगवान की भक्त वश्यता  दर्शाता है
उनके करुणामय रूप का ज्ञान कराता है
जो नहीं मानते उनके लिए
ना ये दिव्य ज्ञान उपयोगी है
पर जिसने उसको पाया है
वो तो कृष्ण प्रेम में ही समाया है
ये सोच जब माँ को प्यार करने का अधिकार है 
तो फिर सजा देने का भी तो अधिकार है
और अब मैं बाल रूप में आया हूँ
और ये मेरी माँ है तो 
अब बँधन स्वीकारना होगा
माँ को उसका हक़ देना होगा
यों कृपा कर कान्हा बँधन में बंध गए

क्रमशः ............

कृष्ण लीला ...........भाग ३०






सबसे पहला भाव बतलाता है
प्रभु को तो सिर्फ प्रेम रंग भाता है
प्रेम रज्जू से बंध प्रेमी के वश होना ही उन्हें आता है 
अगला भाव दर्शाता है
जब मैया द्वैत भाव से दूर ना हो पाती है
फिर मैं क्यों व्यर्थ
असंगता प्रगट करूँ
जो मुझे बद्ध समझता है
उसके लिए बद्ध
समझना ही उचित जान
प्रभु बँधन में बंध गए
अगला भाव दर्शाता है
प्रभु ने प्रण लिया है
अपने भक्त के छोटे से भाव को परिपूर्ण करना
फिर मैया के रस्सी से बाँधने के भाव को
कैसे ना पूर्ण करते
इक भाव ये बताता है
चाहे मैं कितना ही गुणवान कहाता हूँ
पर भक्त के अर्थात मैया के 
वात्सल्य स्नेह रुपी रज्जू से ही
स्वयं को पूर्ण पाता हूँ
यूँ सोच कान्हा रस्सी से बंध गए
इक भाव ये बताता है
भगवान् भक्त का कष्ट 
परिश्रम ना सह पाते हैं 
और स्वयं बँधन में बंध जाते हैं
और अपनी दयालुता को दर्शाते हैं
कितने करुणा वरुणालय हैं प्रभु 
जिनका ना हम ध्यान लगाते हैं
भगवान ने  मध्य भाग में बँधन स्वीकारा है 
जो ये तत्वज्ञान बतलाता है
तत्व दृष्टि से कोई 
बँधन नहीं होता है
ये तो सिर्फ आँखों का धोखा है
जो वस्तु आगे पीछे 
ऊपर नीचे नहीं होती है
केवल बीच में भासती है
उसका ना कोई अस्तित्व होता है
वह तो  केवल झूठ का आवरण होता है
तो फिर बँधन भी झूठा कहाता है
यूँ तो भगवान किसी बँधन में 
ना समाते हैं
जब मैया उद्यम  कर हार जाती है
तब ग्वालिनें समझाती हैं
लगता है तुम्हारा लाला
अलौकिक शक्ति वाला है
यूँ तो कमर में छोटी सी किंकिनी 
रुन झुन करती है
पर रस्सी से ना बंधती है
शायद विधाता ने इसके ललाट पर
बँधन लिखा ही नहीं
क्यों व्यर्थ परिश्रम करती हो
पर मैया ने आज हठ किया है
चाहे शाम हो या रात
आज तो इसे बांध कर रहूँगी
और जब भक्त हठ कर लेता है
तब भगवान अपना हठ छोड़ देता है
और भक्त का हठ ही पूरा कर देता है
लेकिन बंधता तब हैं जब
भक्त थक जाता है
और प्रभु को पूर्ण समर्पण करता है 
तब ही प्रभु बँधन स्वीकारते हैं
अहंता ममता की दीवारें 
जब तक ना गिराओगे
कैसे भला प्रभु को पाओगे 
ये प्रसंग यही दर्शाता है
भक्त का श्रम या समर्पण और भगवान की कृपा 
ही ये दो अंगुल की कमी बताई गयी है
या कहो जब तक भक्त अहंकारित  होता है
मैं भगवान को बांध सकता हूँ
तब एक अंगुल दूर हो जाता है
और प्रभु भी एक अंगुल की दूरी बना लेते हैं
यूँ दो अंगुल कम पड़ जाता है
आत्माराम होने पर भी भूख लगना
पूर्णकाम होने पर भी अतृप्त रहना
शुद्ध सत्वस्वरूप होने पर भी क्रोध करना 
लक्ष्मी से युक्त होने पर भी चोरी करना
महाकल यम को भी भय देने वाला होने पर भी
मैया से डरना और भागना
मन से भी  तीव्र गति होने पर भी
मैया के हाथों पकड़ा जाना
आनंदमय होकर भी दुखी होना , रोना
सर्वव्यापक होकर भी बंध जाना
भगवान की भक्त वश्यता  दर्शाता है
उनके करुणामय रूप का ज्ञान कराता है
जो नहीं मानते उनके लिए
ना ये दिव्य ज्ञान उपयोगी है
पर जिसने उसको पाया है
वो तो कृष्ण प्रेम में ही समाया है
ये सोच जब माँ को प्यार करने का अधिकार है 
तो फिर सजा देने का भी तो अधिकार है
और अब मैं बाल रूप में आया हूँ
और ये मेरी माँ है तो 
अब बँधन स्वीकारना होगा
माँ को उसका हक़ देना होगा
यों कृपा कर कान्हा बँधन में बंध गए

क्रमशः ............

Tuesday, December 20, 2011

कृष्ण लीला .......भाग २9




जब देखा कान्हा ने
मैया बहुत थक गयी है
जाकर उसी चबूतरे पर बैठ गये
जिसके दूसरी तरफ़ मैया बैठी थी
बुरी तरह रोते जाते हैं
आंखे मलते जाते है
अंसुवन धार बहाते हैं
काजल सारा मुखकमल पर फ़ैला है
डर से चेहरा ज़र्द हुआ है
धीरे से बोले “मैया”
सुन यशोदा बोल उठी
कहाँ है लाला, सामने आ
मैया तुम थक गयी हो
हाँ , कान्हा थक गयी हूँ
कहाँ है तू सामने आ
मैया मारोगी तो नही
डर- डर कर मीठी वाणी मे बोले जाते है
उधर मैया बोल उठी
ना मेरे लाला
आज तो तेरी आरती उतारूंगी
तू आ तो जा मेरे पास
और दो कदम कान्हा बढे
उधर से दो कदम मैया चली
फिर कहा मैया मारोगी तो नही
ना मेरे लाला
आज तो तेरी पूजा करूंगी
सुन दो कदम कान्हा चले
उधर से दो कदम मैया बढी
फिर कहा , मैया मारोगी तो नही
मैया बोली ना आज तो मै
अपने लाला का श्रृंगार करूंगी
और जैसे ही कान्हा निकट आये
मैया ने जोर से धमकाया
दुष्ट तू ने आज बहुत नचाया है
और ऊखल से दुष्ट का संग किया है
आज तुझे बताती हूँ
सुन कान्हा और डर गये
रो – रोकर धमाल मचाया है
हिचकियों का तूफ़ान आया है
जिसे देख मैया ने विचार किया
कहीँ मेरा बेटा ज्यादा डर गया
तो मुश्किल हो जायेगी
सोच मैया ने छडी को फ़ेंक दिया
और कहा खल का संग किया तूने
तो उसके साथ ही बांधूँगी
फिर ना भाग पायेगा
और जब दधि माखन तैयार कर लूंग़ी
तो लाला को मना लूंगी
ये सोच मैया ने
बांधने का निश्चय किया
जिसे योगियों की बुद्धि
ना पकड पाती है
उसे आज मैया के वात्सल्य ने पकडा है
वात्सल्य की डोर मे
आज परब्रह्म बंधा है
जिसका पार ना किसी ने पाया है
पर जो सब छोड उसकी तरफ़ दौड जाता है 
उससे तो वो खुद भी
मुँह ना मोड़ पाता है 
और खुद -ब-खुद उसकी
प्रेममयी मुट्ठी में बंध जाता है 
अब मैया रस्सी से बांधने लगी
पर रस्सी दो अंगुल छोटी पड़ने लगी
घर की सारी रस्सियाँ ख़त्म हुई
पर कान्हा ना बँधन में आते हैं
देख मैया तनिक विस्मित हुई
यहाँ रस्सी से ना बंधने के 
भक्तों ने कुछ भाव बताये हैं
ब्रह्म और जीव के बीच
सिर्फ दो अंगुल का ही फर्क है
जिसे ना वो ज़िन्दगी भर
पार कर पाता है 
इसलिए ये दो अंगुल की दूरी में 
भटका जाता है
कान्हा में सत्वगुण समाया है
और बाकी दोनों का त्याग किया है
कुछ ऐसे दो अंगुल कम करके
प्रभु ने अपना भाव प्रकट किया है
इधर मैया सोचती है
कान्हा की कमर तो मुट्ठी भर की है 
रस्सियाँ सैंकड़ों हाथ लम्बी
फिर भी ना बंध पाता है
जितनी लगाओ 
दो अंगुल की कमी ही दर्शाता है
ना कमर तिल मात्र मोटी 
ना रस्सी एक अंगुल छोटी
कैसा घोर आश्चर्य समाया है



उधर रस्सियाँ आपस में बतियाती हैं
हम छोटी बड़ी कितनी हों
पर भगवान के यहाँ कोई भेद नहीं
प्रभु में अनंतता अनादिता विभुता समाई है 
जैसे नदियाँ समुद्र में समाती हैं
वैसे ही सारे गुण भगवान में लीन हैं
अपना नाम रूप खो बैठे हैं
तो फिर कोई कैसे बंध सकता है
अनंत का पार कैसे कोई पा सकता है
इधर मैया थक थक जाती है
पर कान्हा का पार ना पाती है
जब कान्हा ने देखा
मैया परेशान हुई
तो स्वयं ही रस्सी में बंध गए 
मगर भक्तों ने रस्सी में बंधने के भी
कई भाव हैं कहे


क्रमशः ...........

कृष्ण लीला .......भाग २9




जब देखा कान्हा ने
मैया बहुत थक गयी है
जाकर उसी चबूतरे पर बैठ गये
जिसके दूसरी तरफ़ मैया बैठी थी
बुरी तरह रोते जाते हैं
आंखे मलते जाते है
अंसुवन धार बहाते हैं
काजल सारा मुखकमल पर फ़ैला है
डर से चेहरा ज़र्द हुआ है
धीरे से बोले “मैया”
सुन यशोदा बोल उठी
कहाँ है लाला, सामने आ
मैया तुम थक गयी हो
हाँ , कान्हा थक गयी हूँ
कहाँ है तू सामने आ
मैया मारोगी तो नही
डर- डर कर मीठी वाणी मे बोले जाते है
उधर मैया बोल उठी
ना मेरे लाला
आज तो तेरी आरती उतारूंगी
तू आ तो जा मेरे पास
और दो कदम कान्हा बढे
उधर से दो कदम मैया चली
फिर कहा मैया मारोगी तो नही
ना मेरे लाला
आज तो तेरी पूजा करूंगी
सुन दो कदम कान्हा चले
उधर से दो कदम मैया बढी
फिर कहा , मैया मारोगी तो नही
मैया बोली ना आज तो मै
अपने लाला का श्रृंगार करूंगी
और जैसे ही कान्हा निकट आये
मैया ने जोर से धमकाया
दुष्ट तू ने आज बहुत नचाया है
और ऊखल से दुष्ट का संग किया है
आज तुझे बताती हूँ
सुन कान्हा और डर गये
रो – रोकर धमाल मचाया है
हिचकियों का तूफ़ान आया है
जिसे देख मैया ने विचार किया
कहीँ मेरा बेटा ज्यादा डर गया
तो मुश्किल हो जायेगी
सोच मैया ने छडी को फ़ेंक दिया
और कहा खल का संग किया तूने
तो उसके साथ ही बांधूँगी
फिर ना भाग पायेगा
और जब दधि माखन तैयार कर लूंग़ी
तो लाला को मना लूंगी
ये सोच मैया ने
बांधने का निश्चय किया
जिसे योगियों की बुद्धि
ना पकड पाती है
उसे आज मैया के वात्सल्य ने पकडा है
वात्सल्य की डोर मे
आज परब्रह्म बंधा है
जिसका पार ना किसी ने पाया है
पर जो सब छोड उसकी तरफ़ दौड जाता है 
उससे तो वो खुद भी
मुँह ना मोड़ पाता है 
और खुद -ब-खुद उसकी
प्रेममयी मुट्ठी में बंध जाता है 
अब मैया रस्सी से बांधने लगी
पर रस्सी दो अंगुल छोटी पड़ने लगी
घर की सारी रस्सियाँ ख़त्म हुई
पर कान्हा ना बँधन में आते हैं
देख मैया तनिक विस्मित हुई
यहाँ रस्सी से ना बंधने के 
भक्तों ने कुछ भाव बताये हैं
ब्रह्म और जीव के बीच
सिर्फ दो अंगुल का ही फर्क है
जिसे ना वो ज़िन्दगी भर
पार कर पाता है 
इसलिए ये दो अंगुल की दूरी में 
भटका जाता है
कान्हा में सत्वगुण समाया है
और बाकी दोनों का त्याग किया है
कुछ ऐसे दो अंगुल कम करके
प्रभु ने अपना भाव प्रकट किया है
इधर मैया सोचती है
कान्हा की कमर तो मुट्ठी भर की है 
रस्सियाँ सैंकड़ों हाथ लम्बी
फिर भी ना बंध पाता है
जितनी लगाओ 
दो अंगुल की कमी ही दर्शाता है
ना कमर तिल मात्र मोटी 
ना रस्सी एक अंगुल छोटी
कैसा घोर आश्चर्य समाया है



उधर रस्सियाँ आपस में बतियाती हैं
हम छोटी बड़ी कितनी हों
पर भगवान के यहाँ कोई भेद नहीं
प्रभु में अनंतता अनादिता विभुता समाई है 
जैसे नदियाँ समुद्र में समाती हैं
वैसे ही सारे गुण भगवान में लीन हैं
अपना नाम रूप खो बैठे हैं
तो फिर कोई कैसे बंध सकता है
अनंत का पार कैसे कोई पा सकता है
इधर मैया थक थक जाती है
पर कान्हा का पार ना पाती है
जब कान्हा ने देखा
मैया परेशान हुई
तो स्वयं ही रस्सी में बंध गए 
मगर भक्तों ने रस्सी में बंधने के भी
कई भाव हैं कहे


क्रमशः ...........